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जब मैने संसद में देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने के लिये लगाई थी हुंकार’

28 मिनट के प्रकरण से बेनकाब हुई संसद हमले की 22वीं बरसी के दिन संसद की सुरक्षा व्यवस्था

संसद पर हुये हमले की 22वीं बरसी पर हुये हंगामें से याद आई 34 साल पुरानी महत्वपूर्ण घटना

देवसिंह रावत 
13 दिसम्बर 2023 को एक तरफ देश संसद पर हुये आतंकी हमले की 22 वीं बरसी पर इस हमले में 13 दिसम्बर 2001 को हुये आतंकी हमले में बलिदान हुये 9भारतीय जांबाजों को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा था उसी दिन संसद में 2 युवक लोकसभा की दर्शक दीर्घा से नारेबाजी करते हुये संसद में कूद कर पीला रंग का धुआं छोड कर दहशत फैलाने लगे।  इस प्रकरण में चारों नारेबाजी करने वाले (दो संसद के अंदर व दो संसद के बाहर ) पकडने के साथ  एक गुरूग्राम से विकी शर्मा को पकडने में सफलता मिली। परन्तु पांचवा आरोपी  ललित झा जिसे पुलिस मुख्य षडयंत्रकर्ता भी बता रही है वह फरार है।
उसने 14 दिसंबर 2023 की देर रात दिल्ली के पुलिस थाने में आत्मसमर्पण किया।
इस 28 मिनट के इस प्रकरण ने देश के सर्वोच्च संस्थान की सुरक्षा व्यवस्था पर पूरी तरह से प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। आखिर संसद पर हुये आतंकी हमले के बाबजूद संसद की सुरक्षा के प्रति इतनी लापरवाही, वह भी संसद पर हमले की बरसी के दिन , 28 मिनट का संसद पर आतंक फैलाने वालों से अधिक संसद की व्यवस्था के कर्णधारों को कटघरे में खडा करता है।
इस प्रकरण पर सरकार संसद की सुरक्षा से गंभीर खिलवाड मानते हुये इस मामले को लोकसभाध्यक्ष  ने सदन में ही सजा देने के बजाय इस प्रकरण की गहन जांच कराने हेतु इस मामले को तुरंत विशेष जांच के लिये दिल्ली पुलिस को सौंप दिया।  इस मामले की गंभीरता देखते हुये तमाम जांच ऐजेन्सियां इस पर गहरी नजर रखते हुये तालमेल कर गहन जांच कर रही है। इसी के तहत 14 दिसम्बर 2023 को दिल्ली पुलिस ने इस प्रकरण के चारां आरोपियों  मनोरंजन डी, सागर शर्मा, नीलम आजाद व अमोल शिंदे को पटियाला हाउस न्यायालय में किया। न्यायालय ने आरोपियों को 7 दिन की पुलिस की हिरासत में गहन जांच की इजाजत दी।
संसद पर हुये आतंकी हमले की 22वीं बरसी के दिन 13 दिसम्बर2023 की दोहपरी एक बजे के करीब एक बजे लोकसभा के अंदर दर्शक दीर्घा से नारेबाजी करते हुये सदन में कूच से संसद सहित पूरे देश में हडकंप मच गया। लोकसभा के अंदर सदन के कूदे युवक सांसदों की बेंचों में चढ़ कर लोकसभाध्यक्ष की तरफ बढ रहा था। इस दौरान एक घुसपेठिये ने अपने जीते के अंदर से पीले रंग का कुछ निकाला और उसे सप्रे किया जिससे संसद में पीला धुआं चारों तरफ फैल गया। लोकसभा में दहशत फैलाने वाले  सागर शर्मा व मनोरंजन      वहीं इन 5 आरोपियों को अपने घर में शरण देने वाले विक्की शर्मा  व उसकी पत्नी को पुलिस ने गिरफ्तार   कर दिया। ऐसा लगता है कि नई संसद भवन में दर्शक दीर्घ से सदन केवल 12 फीट है। जिस समय संसद के अंदर यह दहशत फैली हुई थी उससे कुछ देर पहले ही संसद भवन के बाहर इनके दो साथी 42 वर्षीया नीलम व लातूर के 25 वर्षीय अमोल शिंदे ने  संसद के बाहर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की उपस्थिति में नारेबाजी करते हुये यह पीला धुआं फैलाया। संसद के बाहर हंगामा करने वालों को तुरंत पुलिस ने दबोच लिया। परन्तु जब इनको संसद मार्ग थाने ले जा रहे थे तो तभी संसद में भी इनके साथियों ने ऐसी ही दहशत फैला दी। जिसके बाद पुलिस प्रसाशन को समझ में आया कि ये एक ही दल के लोग है। इस प्रकरण में गिरफ्तार लोगों से की गयी पुछताछ के बाद गुरूग्राम से विक्की शर्मा व उनकी पत्नी को भी दबोचा गया। सुरक्षा बलों ने इन चारों से एक भी फोन बरामाद नहीं कर पाई। इसके बाद कडाई से की गयी पुछताछ के बाद पता चला कि इनका पांचवां साथी ललित झा इस प्रकरण के बाद फरार हो गया। खबरों के अनुसार पुलिस इस फरार ललित झा को कलकत्ता के एक स्वयंसेवी संस्था से जुडने के साथ मुख्य आरोपी भी बता रही है।   ऐसी आशंका है कि उसी के पास इन सभी के फोन भी हैं। जांच के बाद तुरंत पता चला कि संसद में घुसे दोनों आरोपी भाजपा सांसद प्रताप सिम्हा के पास के जरिये संसद में दर्शक दीर्घा में प्रवेश किया था। सांसद प्रताप कर्नाटक के मैसुर -कोडागु संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते है।जिस समय इन दोनों घुसपैठियों ने सदन में दहशत फैलाई,उस समय बंगाल से भाजपा सांसद खेगेन मुर्मू बाल रहे थे।  सबसे अहं यह सवाल है कि जब संसद में दर्शक दीर्घा में आम दर्शक को केवल 45 मिनट का समय मिलता है। उसके बाद दर्शक को सदन से बाहर कर दिया जाता है। पर बताया जा रहा है कि ये दहशत फैलाने वाले करीब 2 घण्टे तक दर्शक दीर्घा में कैसे रहे। ऐेसी भी खबरें है कि सदन में पर्याप्त संख्या में कर्मचारी न होने के कारण व्यवस्था में ऐसी खामियां सामने आ रही है। इसके साथ यहां पर यह सवाल भी उठना लाजमी है कि अहिंसक प्रदर्शनकारियों पर सदन के सुरक्षा कर्मियों के बजाय सांसदों ने अंकुश लगाकर दबोचा। इससे संसद के अंदर रखे गये सुरक्षा कर्मियों की इस प्रकरण पर सवालिया निशान खडा करती है। सदन के अंदर की आरजकता व उधम पर अंकुश लगाने का दायित्व इन्ही सुरक्षा कर्मियों का होता है। अगर ये सदन में उपस्थित थे तो सांसदों द्वारा अहिंसक प्रदर्शनकारियों से मारपीट करना कहां तक उचित है। यह मारपीट पूरे देश ने खबरिया व इंटरनेटी माध्यमों के द्वारा देखा। इस प्रकरण पर व्यवस्था मूक क्यों है?इस पूरे प्रकरण में इनके संगठनों को सार्वजनिक करते हुये आकाओ को शिकंजे पर लेने में सफल होना तो रहा दूर जांच ऐजेन्सियां इस प्रकरण के 40 घण्टे बीत जाने के बाद भी इनके उदेश्य व आका का नाम तक सार्वजनिक नहीं कर पाये? देश की जनता को आशंका है कि ये सामान्य आक्रोशित युवा हैं या किसी भारत विरोधी तत्वों के मोहरे?
इस पूरे प्रकरण में मुझे 34 साल पहले मेरे द्वारा घटित हुई ऐतिहासिक घटना की बरबस याद दिला दी। बात 21 अप्रैल 1989 की थी। उस दिन मैं संसद में देश के हुक्मरानों को देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होने के बाबजूद उन्हीं अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी व नाम इंडिया का गुलाम बनाये रखने के कारण धिक्कारने के लिये गया था। मैं अकेले ही इस कार्यक्रम को अंजाम दे रहा था। मै उन दिनों रेलवे कालोनी किशन गंज दिल्ली में रह रहा था। संसद में कैसे प्रवेश किया जा सकता है, इसकी जानकारी प्राप्त करने के बाद मैने अपने सांसद श्रीमती सुन्दरवती नवलप्रभाकर से  जो करोलबाग संसदीय क्षेत्र की सांसद थी, संसद की कार्यवाही देखने का प्रवेश पत्र पहले ही प्राप्त कर चूका था। उस प्रवेश पत्र को लेकर मै संसद भवन में तमाम सुरक्षा जांच  के बाद प्रवेश हुआ। मुझे उसी दिन पता चला की यह तय समय पर  केवल पोने घण्टे के लिये ही मान्य होता है। संसद में प्र्रवेश करते हुये मैने अपना चश्मा,घडी इत्यादि जमा करा दी थी। मुझे आशंका थी कि जब मैं नारेबाजी करूंगा तो उस समय छिनाझपटी में चश्मा इत्यादि टूट सकते हैं। संसद दीर्घा की अंतिम पंक्ति में सुरक्षा कर्मी ने मुझे बेठने को कहा। मेरी मंशा पहले सदन में कूदने की थी। जिसके लिये मैं उस प्रकार के जूते की व्यवस्था न कर सका। नहीं मैं उस केमिकल को पा सका जिसके हाथों पर लगाने से ताली बजाते समय पटाखे की तरह आवाज हो। पर मैं पीछे की बेंच से सदन की तरफ की पहली पंक्ति में बैठ कर संसद को अपनी बात नारे के माध्यम से सुगमता से सुनाना चाहता था। संसद दीर्घा की कड़ी सुरक्षा व्यवस्था का मुझे अंदाजा नहीं था। वहां पर किसी प्रकार से इशारे, गर्दन हाथ इत्यादि हिलाना या किसी से बोलना आदि भी मना था। मेेने उस पंक्ति पर खडे हो कर नजर रख रहे सुरक्षा कर्मी से गुहार लगाई की मुझे दिखाई कम देता है इसलिये मुझे पहली पंक्ति में बैठने की इजाजत दी जाय। उसने मेरे भोले चेहरे पर विश्वास करके मुझे अगली पंक्ति में बिठा दिया। वहां यह भी प्रवेश पत्र पर स्पष्ट उल्लेख था कि किसी भी समय स्थिति को देखते हुये दर्शक को दर्शक दीर्घा से बाहर किया जा सकता है। जिस समय मैं सदन की दर्शक दीर्घा में पंहुचा तो उस समय सदन यानि लोकसभा में तत्कालीन कृषि मंत्री भजनलाल कृर्षि मामलों से संबंधित प्रश्नों के उतर दे रहे थे। मै दर्शक दीर्घा में मरे समीप नजर रख रहे सुरक्षा कर्मी पर पर नजर रखे हुये था और सदन में बोल रहे भजन लाल पर भी। जैसे ही सुरक्षा कर्मी मेरे से दूर गया और भजन लाल ने अगला पेज पलटा, इसको मेने उपयुक्त व अनकुल समय मान कर जोर से दोनों हाथों से ताली बजाते हुये ‘अंग्रेजी मूर्दाबाद-मूर्दाबाद’ के दो नारे तेजी से लगाये। नारे इतने जोरदार थे कि  भौचंक्के भजनलाल ने भी जोर से कहा भई मैं हिंदी में बोल रहा हॅू। इसी दोरान मेरे मुंह को हाथ से बंद करते हुये सादी वर्दी धारी एक दर्जन से अधिक संसद सुरक्षा कर्मियों ने मुझे उठा कर दर्शक दीर्घा से बाहर ले आये।इसके साथ उन्होने तत्काल दर्शक दीर्घार् में उपस्थित दर्शकों की तलाशी लेते हुये सबको बाहर कर दिया। सबसे पहले उन्होने मेरा नाम व पास के बारे में पूछा। उन्हें आशंका थी कि ये मेरे अन्य साथी भी हो सकते है। एक दर्शक के पास एक पर्चा मिला उसको भी पकड लिया। पर बाद में जब उसने माफी मांगते हुये संतोषजनक जवाब दे दिये तो उस दर्शक को जाने दिया व उसके पास जारी करने वाले सांसद से भी सवाल किये। जब उनको इस बात का यकीन हो गया कि मैं अकेले ही हूॅं, उस समय मेरे पास से रेलवे का गत माह का एक फगवाडे की टिकट भी मिली थी। उस समय पंजाब आतंक के साये से भी देश आशंकित था। इसलिये सभी पुलिस थानों में यह जांच करने के लिये भी कहा गया कि मेरा कोई अपराधिक इतिहास तो नहीं है। इसके बाद मुझे संसद सुरक्षा कर्मियों के साथ देश की अनैक जांच ऐजेन्सियों ने गहन पूछताछ की। मेरा नाम, पता, परिवार का विवरण, नाते रिश्तेदार, शिक्षा सहित पूरा जीवनवृत व सामाजिक गतिविधियां के अलावा क्यों व किसके कहने पर यह कार्य किया। इसके साथ जांच ऐजेन्सियों ने अपनी पूरी ताकत मुझे माफी मांगने के लिये दवाब बनाने में लगाया। वे मुझे समझाते रहे कि माफी नहीं मांगोगे तो आपका भविष्य कहीं का नहीं रहेगा। खासकर सरकारी सेवाओं इत्यादि के लिये। जब उन्होने पूछा आप किस राजनैतिक दल व संगठन के हो? मैने कहा कि ये जितने भी राजनैतिक दल हैं ये सब गुनाहगार है भारत को आजादी मिलने के बाद फिर से अंग्रेजी भाषा का गुलाम बनाने का। ये देशद्रोह है। इस सदन ने देश पर गुलामी थोपी है इसलिये माफी मांगने के बजाय मैं फांसी पर लटक सकता हॅू। तमाम ऐजेन्सियांं को जब यह यकीन हो गया कि मै माफी नहीं मांगूंगा और मैं अकेला हूॅ। राष्ट्रवादी हूॅ।तो उन्होने लोकसभा सचिवालय को यह सूचित कर दिया। इसके बाद सदन में संसदीय कार्य मंत्री नामग्याल ने सदन में यह प्र्रस्ताव रखा कि मैने सदन में नारे बाजी करके सदन की अवमानना की है। इसलिये इनको आज सदन की कार्यवाही चलने तक सदन के सुरक्षा कर्मियों के गिरफ्त में रहने की सजा दी। संयोग से उस दिन कर्नाटक की निर्वाचित सरकार को बर्खास्त कर राष्टपति शासन लगा दिया गया। सदन में दिन भर हंगामा चला। रात आठ बजे तक कार्यवाही चली। संसद की कार्यवाही समाप्त होने के बाद संसद सुरक्षा प्रमुख ने संसद के द्वार पर दिल्ली पुलिस के सपूर्दे किया। हालांकि दिल्ली पुलिस का वह उप निरीक्षक मेरे द्वारा नाराबाजी करने की घटना के बाद मेरे साथ ही संसद नियंत्रण कक्ष में ही बैठा था। पेरन्तु पुलिस वर्दी में उसे भी दर्शक दीर्घा में जाने की इजाजत नहीं थी। उस दिन रात को रामायण का प्रसारण भी हो रहा था। दिल्ली पुलिस मुझे संसद मार्ग थाने में लाई। वहां मेरे फोटो व हाथ अंगुलियों के निशान इत्या लिये गये। उसके बाद दिल्ली पुलिस अधिकारी ने मुझे कहा कि कोई नया केश आ गया है ं। इसलिये वह मेरे साथ इस समय मेरे घर नहीं आ पा रहा है। मैं अकेले ही जब घर पंहुचा तो मेरे पिताजी व माता जी मेरी इंतजारी कर रहे थे। मेरे पिताजी को इस बात की आशंका हो गयी थी कि कहीं समाचारों में संसद में नारेबाजी करने वाला मै ही रहा होगा। जब उन्होने पूछा तो मेने बताया। दूसरे दिन सुबह संसद मार्ग पुलिस का एक बडा दस्ता पुलिस का ट्रक सा ला कर हमारे आवास पर आया। वहां आ कर उस दस्ते ने मेरे घर में तलाशी ली। तलाशी लेने के बाद पुलिस का यह दस्ता हमारे स्थानीय थाने सराय रोहिला गया। उसके बाद सराय रोहिला पुलिस का दल इसकी जांच करने आया। पुलिस कर्मी मेेरी गतिविधियों से अनविज्ञ थे, उनके बोलने के तरीके से मेरी मॉ बहुत आहत हुई। उसने पुलिस के जाने के बाद कहा कि यह औलाद नहीं होलाद हो गया। हम कहां मुह दिखायेंगे? लोग क्या कह रहे होंगे कि इनके यहां पुलिस आई है। पर मेरे पिताजी सहज ही थे। वे समझते थे कि यह अपराध नहीं देशहित का मुद्दा है। इसके बाद एक दो दस्ते आये। इसके बाद मुझे इस बात का अहसास था कि पुलिस जांच के लिये मेरे गांव उतराखण्ड भी जायेगी। दूसरे दिन के खबरों व समाचार पत्रों में प्रथम पृष्ठ पर यह खबर थी। किसी काटूर्निस्ट ने कार्टू्रन भी बनाया था। जब में आधे महिने के बाद गांव गया तो वहां यह खबर फैल चूकी थी। चंद लोग थे जो संसद में नारे लगाने की महता समझते थे। जब स्थानीय जनपद मुख्यालय से जांच अधिकारी गर्मियों की दोहपरी में मोटर मार्ग से 12 किमी दूर मेरे घर पंहुचा तो वह भी बहुत परेशान था। जब उसे हमारी राजस्व पटवारी चौकी में मेरे नाम से अनजान अधिकारी दिखे तो उसे भी आश्चर्य हुआ कि यह सामान्य व्यक्ति इस पचडे में क्यों पडा। जब उसको मेने पूरा प्रकरण बयान किया तो उन्हे भी तसल्ली हुई्र। इसके बाद गांव से लेकर दिल्ली तक जिसकी जीतनी समझ व नजरिया उसने अपने ढंग से मेरा आंकलन किया। पर आज से 34 साल पहले जिन सवालों को लेकर मैं सडक से संसद का संघर्ष कर रहा था, आज भी वे सवाल हर दिन प्रधानमंत्री से इंटरनेटी माध्यम से फेसबुक व टवीटर के माध्यम से करता हॅू। इस मांग के लिये मैने देश के सत्तासीन दल व इसकी मातृ संगठन के प्रमुख ध्वजवाहकों, केंद्रीय मंत्रियों व सांसदों की उपस्थिति में बडे बडे सभागारों में उठाया। इसी मांग को लेकर संसद की चौखट जंतर मंतर, रामलीला मैदान, शहीद पार्क, प्रधानमंत्री कार्यालय पर दस्तक दिये। वर्षों का अखण्ड धरना, प्रदर्शन व जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक सैकडों दिन की पदयात्रा। वह भी हर कार्य दिवस पर। परन्तु इस बात का संतोष है कि भले ही मोदी सरकार इस मामले पर अखण्ड धरना देन नहीं दे रही पर स्वयं प्रधानमंत्री देर सबेर हमारी मांगों को स्वर देकर देश से गुलामी की हर निशानियों को मिटाने की हुंकार भरते है। इसके साथ वे देश की पूरी व्यवस्था भारतीय भाषाओं में संचालित करने के साथ इंडिया के बजाय भारत के पक्ष में भी खडे  हो रहे हैं। आशा है प्रधानमंत्री मोदी देश को फिरंगी गुलामी से मुक्त करने का काम करके देश को सही अर्थो में आजाद करेंगे। इस प्रकरण के साथ मुझे संघ लोक सेवा आयोग से लेकर जंतर मंतर पर देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने के संघर्ष के साथियों के संघर्ष को याद कर नमन करता हॅू। मेरे वरिष्ठ साथी पुष्पेंद्र चौहान, स्व राजकरण सिंह, रवींद्र धामी, ओम प्रकाश हाथ पसारिया, डा श्याम रूद्र पाठक, प्रो अमरनाथ झा, डा बलदेव बंशी, ओम प्रकाश तपस, हबीब अख्तर, अभिराज शर्मा, सुनील कुमार, चंद्रवीर, पाठक, वेदानंद, मन्नु, पुनिया,  सहित दर्जनों साथियों की बरबस याद आती है। इस अवसर पर पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ देवीलाल सहित अनैक देश के दिग्गज नेताओं का स्मरण कर उनकी इस संघर्ष में सहभागी बनने के लिये नमन करता हॅू। इसी आशा में कि एक दिन जरूर आयेगा जब भारत में भारतीय भाषाओं व भारत नाम का लोकशाही का सूर्योदय होगा। तभी सच्चे अर्थो में देश आजाद होगा। जयहिंद

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