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सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को ठेंगा दिखा कर आकाशवाणी महानिदेशालय कर रहा है मोदी जी के मन की बात साकार करने वाले आकाशवाणी कर्मियों का घोर शोषण व मनमानी

 

देवसिंह रावत

देश में किस प्रकार से नौकरशाह/अधिकारी देश के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश व देश की सरकार की जन कल्याणकारी कार्यों को ठेंगा दिखाते हुए कर्मचारियों का शोषण करके उनके पेट में लात मारने का कृत्य करने करते हैं। इसका जीता जागता उदाहरण देखने सुनने को  मिला संसद भवन की देहरी स्थित आकाशवाणी में।

15 दिसंबर 2023को आकाशवाणी के पीड़ित कर्मचारियों ने नई दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक प्रेस वार्ता आयोजित कर आकाशवाणी के महानिदेशालय के कर्मचारियों की शोषण की व्यथा को उजागर किया।
तीन चार दशकों से आकाशवाणी को देश की 140 करोड़ जनता तक पहुंचाने का भगीरथ कार्य करने वाले आकाशवाणी की इन अनियमित कर्मचारियों की व्यथा को बयान करते हुए समाचार वाचक रवि कपूर दिल्ली, नितिन बाघमारी उद्घोषक आकाशवाणी बीड- महाराष्ट्र व मनोज कुमार उद्घोषक आकाशवाणी पटना बिहार सहित देश के विभिन्न आकाशवाणी केंद्रों से आये कर्मचारियों ने अपनी व्यथा का बखान किया कि सर्वोच्च न्यायालय की स्पष्ट आदेशों के बाद जहां प्रसार भारती के तहत दूरदर्शन ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को पालन किया। वहीं प्रसार भारती की का अंग होने के बावजूद आकाशवाणी के सर्वोच्च अधिकारियों की मनमानी व हटधर्मिता के कारण आकाशवाणी के हजारों कर्मचारी जो रात दिन एक करके वर्षों से आकाशवाणी को जीवन्त किये हुए हैं उनको नियमित करने के बजाय उनके पेट में लात मारने का काम कर रहे हैं। अधिकारी जहां समर्पित कर्मचारियों को नजरअंदाज कर रहे हैं वहीं अपने प्यादों को तुरंत नियमित करने की धृष्टता भी कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के एक दशक के कार्यकाल की दौरान अनियमित कर्मचारियों की कुशलता पूर्वक संचालन के कारण आज प्रधानमंत्री की मां की बात देश की 140करोड लोगों की बात बन चुकी है। ऐसे मेहनती समर्पित व अनुभवी कर्मचारियों को सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान करते हुए नियमित करने के बजाय उनको ठेंगा दिखाने वाले अधिकारियों पर अंकुश लगाने की प्रधानमंत्री मोदी से गुहार इन पीड़ित कर्मचारियों ने पत्रकारों माध्यम से लगाई। उल्लेखनीय की इन पीड़ित कर्मचारियों में बड़ी संख्या में महिला कर्मी भी हैं ।इसमें प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र के कर्मचारियों की सम्मलित हैं।
इस पत्रकार वार्ता में पीड़ित कर्मचारियों ने बताया कि

“सर्वोच्च न्यायालय के संवैधानिक पीठ में उमा देवी व अन्य मामलों में दिनांक 10. 4. 2006 को दिये आदेश के अनुच्छेद 44 में 10 वर्षों से या अधिक से स्वीकृत एवं रिक्त पदों के विरुद्ध सेवारत अनियमित गर्मियों को एक मुश्त उपाय के अंतर्गत 6 महीने के अंदर नियमितकरण की प्रक्रिया प्रारंभ कर नियमित किये जाने का आदेश केंद्र व राज्य सरकारों को दिया था उक्त आदेश का अनुपालन अर्थ भारत सरकार की कार्मिक विभाग ने भी दिनांक 11. 12. 2006 को आदेश जारी किया था परंतु प्रसार भारती व आकाशवाणी महानिदेशालय उक्त आदेशों की वर्षों अवेहलना करता रहा है। जब 12 वर्ष बीत गये तब 13 वर्ष में दिनांक 22. 8. 2019 को प्रसार भारती नई दिल्ली से समयबद्ध नियमितकरण की योजना बनाई और 5. 9. 2019 के ज्ञापन के संग जारी कर दिया। उक्त ज्ञापन के दिशा निर्देश के अनुसार 4. 11. 2019 तक अनियमित कर्मियों को अपने-अपने केंद्रों में अपने दावों से संबंधित ऑफलाइन आवेदन जमा करने को कहा गया। 4.12. 2019 तक प्राप्त आवेदनों की प्रारंभिक जांच की बाद केंद्रों को आकाशवाणी महानिदेशालय को भेजना था। ये समयबद्ध योजना आकाशवाणी और दूरदर्शन दोनों की सभी अनियमित कर्मियों को एक मुश्त उपाय की अंतर्गत नियमितीकरण के लिए बनाई गई थी, परंतु आकाशवाणी महान निदेशालय की दो वरिष्ठ अधिकारियों ने प्रसार भारती के ज्ञापन में फिर बदल कर नया परिपत्र जारी किया जो भ्रामकता से भरा था। साथ ही सभी आकाशवाणी केंद्रों को ईमेल भेज कर उद्घोषक संवर्ग के अनियमित कर्मियों से आवेदन स्वीकार नहीं करने का आदेश जारी कर दिया। कई आकाशवाणी केंद्रों में चार-पांच महीने आवेदन पड़े रहे, जिन्हें 4. 12. 2019 तक महान निदेशालय नहीं भेजा गया। केंद्रों के अधिकारी दावेदारों को यह कहकर उनके आवेदन लौटने लगे कि यह कैजुअल लेवर से मांगा गया है आप जैसे कि कैजुअल क्वालिफाइड वर्करों से नहीं। यह कहकर भी आवेदनों को केंद्रों द्वारा लौटाया जाने लगा कि आप पार्ट टाइम वर्कर हैं यह फुल टाइम लेवर के लिए है। केंद्र से प्राप्त ईमेल की प्रति मिलने पर प्रमाण की सॉन्ग लिखित रूप से ईमेल प्रसार भारती की तत्कालीन सीईओ श्री शशि शेखर को अवगत कराया गया और उक्त साजिश का खुलासा करते हुए उसे निरस्त करने, केंद्रों में जमा आवेदनों को सीधा प्रसार भारती मंगवाए जाने का निवेदन किया गया और जांच की प्रक्रिया से आकाशवाणी महानिदेशालय एवं केंद्रों को दूर रखने का आदेश आग्रह किया गया। लिखित शिकायत की जाने की पश्चात जुलाई 2020 में प्रसार भारती ने हेरफेर वाले परिपत्र को वापस लेकर पारदर्शिता के नाम पर IARS पोर्टल जारी करने का तथा पुनः दावों के साथ ऑनलाइन आवेदन जमा करने का आदेश जारी किया। इस IARS पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन भी दिसंबर 2020 तक जमा कर दिए गए। IARS पोर्टल पर आवेदनों की जांच पड़ताल के लिए प्रसार भारती ने एक जांच कमेटी गठित की जिसके प्रमुख बनाये गये एस सी मिश्रा। नवंबर 2021 की अपने परिपत्र के अनुच्छेद 3 में पोर्टल पर जमा आवेदनों की संख्या 5962 बताई।
इस नियमितीकरण योजना के अंतर्गत जो चार पैरामीटर निर्धारित की गई थी उसे आधार पर 379 दावेदार योग्य पाएगी इसके बाद भी आज तक इन 379 शॉर्ट लिस्टेड उम्मीदवारों को नियमित नहीं किया गया। मामले को जानबूझकर अतिरंजित किया गया और लटकाया जा रहा है। सच्चाई यह है कि आकाशवाणी महानिदेशालय नई दिल्ली ने प्रसार भारती लागू होने के पूर्व भी सामान रूप से स्थिति दिनांक 30. 6. 1992 को कम योग्य प्रारंभ में नियुक्त की गई कैजुअल उद्घोषक मोहम्मद हसन मीर को एक वर्ष बाद ही दिनांक 29. 4. 1994 को स्थाई उद्घोषक ग्रेट 4 पद पर नियमित कर दिया। इतना ही नहीं रमेश मरहट्टा कैजुअल उद्घोषक को भी दिनांक 13/14. 2. 1991 को स्थाई उद्घोषक ग्रेट 4 पद पर नियमित कर दिया गया। फिर डॉक्टर शबनम अशाई अप्रैल 1993 का प्रकरण हो या स्वर्गीय मोहम्मद शफी कैजुअल स्टाफ की पुत्री मारूफ उल निशा का अनुकंपा के आधार पर स्थाई उद्घोषक ग्रेट 4 के पद नियमित किया जाने का प्रकरण। इसी तरह समान रूप से नियुक्त कंचन कपूर एवं अन्य को पी रामेंद्रको भी नियमित कर दिया गया। आकाशवाणी महानिदेशालय एवं प्रसार भारती द्वारा ऐसी कई उदाहरण भरे पड़े हैं जिन्हें आकाशवाणी महानिदेशालय प्रसार भारती की मिली भगत से नियमितीकरण का लाभ देती रही। चाहिए वे वीआईपी पैरवी पर हो या किसी अवैध तरीके से क्यों ना हो। ज्ञात हो की आकाशवाणी में कुल स्वीकृत पदों की संख्या 26 129 है जिनमें एक 10 810 पद भरे हुए हैं तथा कुल 15319 पद आज भी रिक्त है।

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