उत्तराखंड देश

दल बदलुओं व भ्रष्ट नेताओं को हटाने और गैरसैंण व भू कानून जैसी जनांकांक्षाओं को साकार करने से ही पार लगेगी, उतराखण्ड में 2022 के चुनावी भंवर मे फंसी भाजपा की नौका, मोदी जी

मोदी शाह रूपि ब्रह्मास्त्र के बावजूद उत्तराखंड विधानसभा 2022 की चुनावी आहट से भी क्यों दरक रहा है भाजपा का मजबूत किला उत्तराखंड

यशपाल व संजीव आर्य के पाला बदलने के बाद हरक के बयानों से रही़ भाजपा की हवाईयों को थाम पाएंगे क्या विजय बहुगुणा?

देव सिंह रावत

कल 27 अक्टूबर को जैसे ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की मुलाकात करने की भनक उत्तराखंडियों को लगी तो भाजपा ही नहीं कांग्रेसी भी इस भेंट का निहितार्थ  ढूंढने लगे। हालांकि स्वयं मुख्यमंत्री कार्यालय ने ही इस मुलाकात को शिष्टाचार भेंट बताई। इस मुलाकात के पीछे छुपे हुए निहितार्थ का अर्थ समझने में भाजपाई ही नहीं कांग्रेसी सहित प्रदेश की राजनीति में रुचि लेने वाले लोग।
हालांकि उत्तराखंड के सियासी सूत्रों के अनुसार भाजपा नेतृत्व ने यशपाल आर्य और उनके पुत्र कि कांग्रेस का दामन थामने के बाद हरक सिंह रावत व अन्य विधायकों से बयानों से आशंकित भाजपा नेतृत्व ने विजय बहुगुणा को उनके साथ कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं को मनाने के लिए देहरादून मिशन पर भेजा है।
हालांकि विजय बहुगुणा के प्रति भाजपाई व कांग्रेसी ज्यादा आशंकित नहीं है। विजय बहुगुणा व उनके पुत्र तथा उनके करीबी विधायक सुबोध उनियाल से भाजपा आशंकित नहीं है। विजय बहुगुणा व हरक सिंह के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामने वाले 9 नेताओं में से केवल सुबोध उनियाल ही भाजपा में जुड़े रहने के लिए उत्साहित और सहज हैं। बाकी कांग्रेस से भाजपा में गए सभी नेता असहज है।

परंतु जब से आगामी 2022 में होने वाले उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा को डूबता हुआ जहाज मानकर भाजपा प्रदेश भाजपा सरकार के कबीना मंत्री यशपाल आर्य व उनकी विधायक पुत्र संजीव आर्य ने अचानक मंत्री पद से इस्तीफा देकर भाजपा को छोड़कर कांग्रेस आला नेतृत्व राहुल गांधी के समक्ष कांग्रेस का दामन थाम लिया। भाजपा नेतृत्व उतराखण्ड में सबसे ज्यादा आशंकित है तो हरक सिंह रावत से। क्योंकि हरक सिंह रावत ही प्रदेश के एकमात्र ऐसे नेता है जिनके विद्रोही तेवरों के आगे प्रदेश की हर सत्तासीन रही पार्टी परेशान रही।परंतु विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष करके अपनी नौका को भंवर से पार लगाने मैं दक्ष होने के कारण त्रिवेंद्र रावत को छोड़कर अब तक की कोई भी मुख्यमंत्री उन पर नकेल नहीं कर सके। हालांकि जनता को उनसे कोई आशायें नहीं है परंतु चुनावी राजनीति के मंझे हुए बाजीगर होने के कारण वे प्रदेश के तीन प्रमुख दलों की बड़े नेता व मंत्री रहे। हरक सिंह को उनके विरोधी भले ही अवसरवादी होने का आरोप लगाए परंतु चुनावी राजनीति में कोई भी पार्टी उन पर अंकुश नहीं लगा पाई। कई विवादों में आए दिन घिरे रहने वाले हरक सिंह रावत को चुनावी जंग में जीतने के लिए राजनीतिक दलों की बेशाखियों से ज्यादा अपने चुनावी कौशल पर विश्वास है। हरक सिंह रावत अकेले नहीं अपितु कई विधायकों को अपने साथ जोड़ तोड़ में साथ रखने के लिए जाने जाते हैं ।भले ही कांग्रेस को छोड़कर भाजपा के दामन थामने के प्रकरण में विजय बहुगुणा का नाम आगे रखा गया परंतु कांग्रेस में तोड़फोड़ करने व जमीनी टक्कर देने के लिए हरक सिंह सबसे आगे रहे। जो सीधा प्रहार व घेराव कांग्रेसी मुख्यमंत्री के दावेदार हरीश रावत का हरक सिंह ने किया वह प्रहार करने की क्षमता किसी अन्य में नहीं थी।
राज्य गठन के बाद भले ही अन्य नेता दलों के आकाओं के सहारे मुख्यमंत्री बन गए हो परंतु जमीनी धरातल में एक दो नेताओं को छोडकर प्रदेश में कोई भी नेता हरक सिंह के सामने साम दाम दंड भेद की जंग में बौने ही नजर आते है।
हालांकि आगामी चुनाव से पहले कांग्रेस का दामन थामने वालों में देहरादून के विधायक उमेश शर्मा काऊ के नाम की चर्चा भी जोरों पर है। परंतु काऊ अपनी विधानसभा सीट में ही प्रभावी हैं परंतु जिस प्रकार से हरक सिंह रावत का प्रभाव है वैसा प्रभाव भाजपा के नेताओं को अन्य किसी नेता का नजर नहीं आ रहा है। इसीलिए हरक सिंह को मनाने के लिए भाजपा काफी प्रयत्नशील है इसी माह उनकी भाजपा के मुख्य रणनीतिकार हमेशा से भी मुलाकात हुई।
परंतु लगता है मुलाकात के बाद भी हरक सिंह भाजपा में संतुष्ट नहीं है उनके असंतुष्ट होने का एक प्रमुख कारण यह भी है कि वह खुद को धामी, तीरथ, त्रिवेंद्र, निशंक व खंडूरी से भी वरिष्ठ व मुख्यमंत्री का सक्षम दावेदार मानते हैं। वह कहते भी हैं कि मैं भाजपा में सबसे युवा जिलाध्यक्ष तथा कल्याण मंत्रिमंडल में मंत्री रहा। अपने तेज तरार तेवरों कारण वे बसपा में आला नेतृत्व मायावती के करीबी नेताओं में भी रहे।
कांग्रेस में भी वे सभी बड़े नेताओं के आंखों की किरकिरी बने रहे।
अब वे अगर किसी तरह से भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में सम्मलित होने में सफल होते हैं तो भाजपा के लिए काफी परेशानी रहेगी। हालांकि कांग्रेस में सम्मलित होने के उनके मार्ग में सबसे बड़े अवरोधक मुख्यमंत्री के दावेदार हरीश रावत हैं। इसीलिए उन्होंने राजनीति के मंझे खिलाड़ी के तौर पर समय की नजाकत समझते हुए हरीश रावत से ही सार्वजनिक माफी भी मांगने में कोई देर नहीं लगायी।
जिससे भाजपाई नेतृत्व के कान खड़े हो गए हैं।
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन कौशिक की कोशिशों को परवान होते न देख कर समझा जा रहा है कि आला नेतृत्व ने विजय बहुगुणा को हरक सिंह को मनाने के लिए देहरादून मिशन पर उतारा है। जानकारों का मानना है कि कोई बड़ी मजबूरी न हो तो अब हरक सिंह, भाजपा को किसी भी पल चुनाव से पहले अलविदा कहकर कांग्रेस में सम्मलित हो सकते हैं। विजय बहुगुणा उनकी दिशा को बदलने में अब शायद ही सफल हो।
हरक सिंह के अलावा भाजपा में असहज महसूस करने वाले नेताओं में सतपाल महाराज भी हैं। जिनकी कांग्रेस में जुड़ने की अटकलें लगाई जा रही है। परंतु महाराज को न भाजपा व नहीं कांग्रेस मुख्यमंत्री बनाने के लिए तैयार हैं। इसलिए महाराज के लिए एक तरफ कुआं है दूसरी तरफ खाई है। यह भाजपा नेतृत्व की भूल समझी जा रही है जो उन्होंने सतपाल महाराज को नजरअंदाज करके चुनावी बेला पर धामी को मुख्यमंत्री बनाया।
अगर सतपाल महाराज को मुख्यमंत्री बनाया होता तो भाजपा को चुनावी समर में कांग्रेस की मुख्यमंत्री के दावेदार हरीश रावत से मुकाबला करने के लिए अपने मुख्यमंत्री का चेहरा पीछे नहीं हटाना पड़ता। भाजपा को भी समझना चाहिए था की प्रदेश व देश में शासन तंत्र चलाने के लिए अनुभवी नेताओं की नितांत जरूरत होती है। भाजपा व कांग्रेस के आला नेतृत्व की दिशाहीनता के कारण उतराखण्ड में अनुभवहीन व अक्षम नेताओं को सत्तासीन किये जाने का दंश उत्तराखंड, विगत 21 सालों से बदहाली का दण्ड भोग रहा है इसी कारण राज्य गठन के 21 वर्ष बाद भी राजधानी गैरसैंण सहित सभी जन आकांक्षाओं को साकार तक नहीं कर पायी।
ऐसा नहीं है कि भाजपा नेतृत्व को उत्तराखंड में भाजपा कमजोरी का आभास नहीं है। परन्तु अनुभवहिनता व दुराग्रह के कारण उसके सभी दाव गलत पडे। उसका डबल इंजन का दाव भी कुंद हो गया। इसी को भांपते हुए भाजपा नेतृत्व ने प्रदेश नेतृत्व से जनांकांक्षाओं को साकार करने का फरमान देने के बजाय प्रदेश के नेतृत्व को बार बार बदलने की तुगलकी भूल कर दी। इस भूल के कारण पूरे देश में भाजपा नेतृत्व की जग हंसाई भी हुई। आला नेतृत्व की भूल रही कि प्रदेश की जनांकांक्षाओं को समझने व साकार करने वाला अनुभवी मुख्यमंत्री बनाने के बजाय नौशिखियों को आसीन कर प्रदेश व अपने दल का भट्टा गोल ही कर दिया। इसके बाबजूद भाजपा आला नेतृत्व हर हाल में उत्तर प्रदेश के साथ उत्तराखंड में भी जीतना चाहता है। इसलिए भाजपा का आला नेतृत्व यानी खुद मोदी जी नवम्बर माह के पहले पखवाडे में भगवान केदारनाथ के दर्शन कर वहां पर अनैक लोक लुभावनी योजनाओं का ऐलान कर सकते है। परन्तु इसके बाद भी जो कसर रहेगी उसे चुनावी प्रबंध से शाह पूरा कर देंगे। ऐसा विश्वास है। चुनावी प्रबंध है। पर कहा भी गया है कि काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ाई जा सकती है।
मोदी जी को चाहिए कि वह उतराखण्ड विधानसभा चुनाव जीतने के लिए दल बदलुओं व जनता की नजरों में अयोग्य नेताओं को हटाकर नये समर्पित नौजवान युवाओं को भाजपा का प्रत्याशी बनाये। जनता भ्रष्ट व दल बदलुओं से मुक्ति चाहती है। वह हैरान है कि भाजपा नेतृत्व राम राज्य के नाम पर इन जनभावनाओं का अनादर करने वाले नेताओं को क्यों महत्वपूर्ण पदों पर आसीन कर संरक्षण दे रही है? चुनाव जीतने के लिए तिकडम करने के बजाय भाजपा नेतृत्व को तुरंत राजधानी गैरसैंण, भू कानून आदि राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करने के लिए प्रदेश सरकार को त्वरित निर्देश देना चाहिए। जनता हैरान है कि जनभावनाओं का सम्मान करने से भाजपा व कांग्रेस सहित सत्तासीन रहे दलों के जनप्रतिनिधी क्यों कटते रहे? जनता भाजपा नेतृत्व के कदमों के बाद ही 2022 के चुनावी समर में अपना जनादेश किसे देना है और किसे दण्डित करना है इस बात कर निर्णय करेगी।

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