दुनिया

देह परमात्मा की धरोहर है, देह की आसक्ति भी दुखों का सागर है

 

देवसिंह रावत

हर जीव की तरह हर शरीर का भी अपना धर्म, सीमा व सफर होता है।जब तक व जिस तरह का गठबंधन इसके नियंता ने जीव के साथ तय किया होता है,यह वहीं तक व उसी तरह से चलेगा।इसीलिये कहा जाता है …. सब विधि हाथ। …..सबहीं नचावत राम गोसाईं।
शंकराचार्य जी, रामकृष्ण परमहंस जी व खुद मेने देह व्याधियों से जीव की विकट स्थिति को कदम कदम पर महसूस किया।
मेने
अपने जीवन में तमाम चिंतन मंथन के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए,। शायद इस परिस्थिति का बोध करा कर परमात्मा हमारा कल्याण करना चाहता हो। यह शरीर भी उसी की धरोहर है।
हम से अधिक उसको मालूम है कि हमें अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचाने के लिए किस प्रकार की परिस्थितियां व किस प्रकार का स्वास्थ्य वाला शरीर जरूरी है। हमसे ज्यादा चिंता उस परमात्मा को हम जैसे अनंत कोटी ब्रह्मांड के असंख्य जीवो की है।
जीव सहित सकल ब्रह्मांड का नियंता प्रभु जी ही तो हैं।
यह शरीर हमारा नहीं उनकी धरोहर है। अपनी धरोहर की चिंता हम से कई गुना अधिक उनको है।
सच यही है शरीर हमारा नहीं और नहीं शरीर हमारी मंजिल है। इस जीवन की सह यात्री तो है पर हमारी मंजिल नहीं।
इसलिए इसकी चिंता परमात्मा पर छोड़ दो केवल यही कहो प्रभु जो तुम्हारी इच्छा।
जीव शरीर के लिए नहीं है। स्थूल देह सुक्ष्म, कारण व महाकारण आदि देहों में सफर करता हुआ जीव अपनी अनंत यात्रा करता है।देह की आसक्ति भी एक अवरोधक है बन्धन ही है। हम तो यात्री है अनंत धाम के । और आनंद धाम की प्राप्ति तमाम बंधनों से मुक्त होकर ही प्रभु की कृपा से ही मिलती हैं। हम सब इसी पथ के यात्री हैं ।यात्रा के कुछ पलों के साथी हैं। प्रभु हम सबकी सबसे प्रिय कल्याणी हैं। सब चिंता से मुक्त होकर अपने कर्तव्य पथ पर रत रहना ही सफल और सुखद जीवन का सार है। मैं सहित सभी चिंताओं को श्री चरणों में समर्पित कर दो, तब ही प्रभु की कृपा से दुख में भी सुख की अनुभूति होगी। यही परमानंद का सार है।
अपनत्व के मोह के कारण भी दुख होता है ।हम शरीर को अपना मान लेते हैं जबकि प्रभु की धरोहर।
आपके उज्जवल भविष्य व उत्तम स्वास्थ्य की कामना हूं। ओम

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