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पहाड़ो में लगी भीषण आग के लिए कौन जिम्मेदार ?

गर्मी का मौसम हो या बरसात का मौसम उत्तराखंड के लोगो का जीवन हर मौसम में कठिनाइयों के बीच में गुजरता है। उसी प्रकार जैसे जैसे गर्मी बढ़ है वैसे वैसे पहाड़ो में लगने वाली आग की घटनाये बढ़ती जा रही है। जिस भी जंगल को देखे वह भीषण आग का तांडव चारो और फ़ैल रखा है। आखिर ऐसी घटनाओ के लिए कौन जिम्मेदार है उत्तराखंड के किसी भी जिले को देख ले आप पहाड़ के सभी जंगल में आग की या तो चपेट में है या चपेट में आने के लिए पूरी तरह से तैयार बैठे है।

मनुष्यो का प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन

भीषण आग के तांडव के पीछे चाहे आप जिसको भी दोस दे ले लेकिन आग लगने के इस कारण को आम काम जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। क्यूंकि पहाड़ में लोगो ने जितनी प्राकृतिक वनो का दोहन कर पहाड़ो को बिलकुल नग्न बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। आप चाहे किसी भी पहाड़ के जंगलो को देख ले आपको उसमे लगे पेड़ो की संख्यां लगभग अब ना के बराबर नज़र आएगी। पहले के ज़माने के लोगो के साथ बैठकर अगर आप बात करेंगे तो वो बताएंगे आपको की अगर पहले ऐसी किसी के जंगल में आग लगती थी तो सभी गांव वाले उसको बुझाने जाते थे। ताकि वनो को बचाया जा सके। लेकिन आजकल के वहां के लोग अब इन चीजों से अपने आपको दूर रखते है।

चीड़ से ग्रषित पहाड़ के जंगल

इस पेड़ ने तो पुरे उत्तराखंड के वनो की मनो जिंदगी नर्क बना रखी है। क्यूंकि यह ऐसा पेड़ है जो पहले दूसरे के घर में पनाह लेता है और फिर उसी को नष्ट कर पूरा जंगल अपनी गिरफ्त में लेकर अपनी वनसंख्या को दिन रात बढ़ता रहता है। यह पेड़ उसी प्रकार का चरित्र रखता है जैसे भारत में आये मुगलो अंग्रजो और वर्तमान में रोहिग्याओ ने भारत का हाल कर रखा है। गर्मियां आते ही सबसे पहले इसकी पत्तियां आग पकड़ती है और फिर इसके पेड़ में आग लगती और आग लगते ही इसके बीज जिसको हम छ्योंता बोलते उसपर आग अगति है और वो इस आग को फ़ैलाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाता है।और देखते ही देखते आग पुरे जंगल को अपनी पकड़ में लेकर घंटो में पूरा जंगल तबाह कर देती है।

पहाड़ की सरकार का निकम्मापन

पहाड़ के लोगो के पास अपने खेतो और पशुओ से ही फुर्शत नहीं मिलती की वो सरकार की निकम्मेपन को खुलकर कभी उजागर नहीं कर पाते है। दरअसल उत्तराखंड में बड़े पैमाने में वन संपदा है जिसका रक्षण करना उत्तराखंड के फारेस्ट गार्ड करते है जिनको गाओं की भाषा में जंगलात वाले कहते है। कहा जाता है की यही वे लोग है जो कभी कभी अपने भष्टाचार को छुपपाने के लिए जंगलो में आग के निर्माता या साजिशकर्ता बन जाते है ताकि उनके द्वारा जिन पेड़ो की रक्षा का उनको कर्तव्य था वे बता सके की वे जल कर राख हो गए है।

 

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