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न्याय व भारत की अस्मिता का प्रतीक है रामजन्मभूमि,अयोध्या सहित पूरे भारत में एक इंच स्थान भी आक्रांता बाबर के लिए नहीं दी जा सकती

आक्रांता बाबर से नहीं भारत से जुडे है भारतीय मुस्लिम और त्यागंे आक्रांता बाबर के नाम से बनी बाबरी मस्जिद का दावा

नई दिल्ली (प्याउ)। भले ही सर्वोच्च न्यायालय का श्री राम जन्मभूमि मामले में फैसला एक माह के अंदर आ जाएगा पर भारत सरकार को चाहिए कि वह हर हाल में न्याय व भारत के सम्मान की रक्षा करने के दायित्व का निर्वहन करें।
इस मामले में अंतिम न्याय व भारत का आम जनमानस की चाहत यही है कि अयोध्या में केवल भगवान राम का भव्य मंदिर बने और आक्रांता बाबर के नाम पर भारत में एक इंच जगह नहीं दी जा सकती।
देश के हित में यह बेहतर होता कि मुस्लिम पक्ष सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के आने से पहले ही  अयोध्या में   आक्रांता बाबर के नाम की  मस्जिद बनाने के अपने दावे को त्याग कर भारतीय संस्कृति का  सम्मान बढ़ाते और  आक्रांता व अत्याचारी बाबर से अपना संबंध जोड़ने के बजाय भारत की सरजमी से मोहब्बत का पैगाम देते।रामजन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद विवाद
हिंदू मुस्लिमों के बीच का भूमि विवाद नहीं अपितुु भारत पर विदेशी आक्रांता द्वारा भारत को गुलाम बनाने का प्रकरण है। भारतीय मुस्लिम सहित हर एक भारतीय सपने में भी बाबर सहित  आक्रांताओं के नाम का कोई स्मारक स्वीकार नहीं करेगा।निहित स्वार्थी हुक्मरानों व दलों ने भारतीय मुस्लिमों को आक्रांता बाबर पर किया गुमराह कर उसे बलात मुस्लिम अस्मिता से जोडकर देश के अमन चैन व भाईचारे को नष्ट करने का कृत्य किया।  रामजन्मभूमि का मामला जमीन का विवाद नहीं अपितु विदेशी आक्रांता बाबर द्वारा रौदी गयी भारत की अस्मिता का है प्रश्न।
देश के पदलोलुपु शासकों व निहित स्वार्थी तत्वों ने विदेशी आक्रांता व  अत्याचारी बाबर को इस्लाम का प्रतीक बता कर देशभक्त मुस्लिमों को गुमाराह किया और देश को बर्बादी के गर्त में धकेला
राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर 40 दिनों तक चली सुनवाई 16 अक्टूबर को पूरी हो गई और ऐसा माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला नवंबर में सुनाएगा क्योंकि मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत होने से पहले ही यह फैसला आ जायेगा। इस संवैधानिक पीठ में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के अलावा न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति  डीवाय चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति  एस अब्दुल नजीर हैं जो 6 अगस्त 2019  से देश के सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले की 16 अक्टूबर को सुनवाई की।इसी को देखते हुए उप्र शासन ने भी अयोध्या में सुरक्षा के व्यापक प्रबंध करते हुए अयोध्या में मध्य अक्टूबर माह से 10 दिसम्बर तक धारा 144 लगा दी है।

हालांकि यह ऐतिहासिक फैसला होगा. राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील राम मंदिर और बाबरी मस्जिद की जमीन के भले ही न्यायालय मालिकाना हक पर विवाद मान रही है। परन्तु भारतीयों के लिए जमीन से अधिक आस्था व देश के स्वाभिमान का है। इस मामले मेें न्याय की भावी तस्वीर भांपते हुए ऐसी अटकलें सुनने में आ रही है कि मुस्लिम पक्षकार इसमें समझौता करना चाहता है कि वे रामजन्मभूमि मंदिर के लिए अपना दावा छोड़ सकते हैं बेशर्ते हिंदू पक्षकार यह वचन दे कि वे काशी व मथुरा में इसी प्रकार की मांग नहीं उठायेंगे। ऐसी अटकलें भी है मुस्लिम पक्ष के इस रवैये को हिंदू पक्षकारों ने सिरे से नकार दिया है।

उल्लेखनीय है कि रामजन्मभूमि विवाद में सर्वोच्च न्यायालय में चली आखिरी सुनवाई के एक दिन पहले जस्टिस गोगोई ने कहा था कि 16 अक्टूबर की शाम पाँच बजे तक सुनवाई पूरी हो जाएगी लेकिन 16 अक्टूबर को एक घंटे पहले ही सुनवाई पूरी करने की घोषणा कर दी गई।सुनवाई का समय समाप्त होने के बाद अदालत ने ये भी कहा कि अगर दलीलें बाकी हों तो संबंधित पक्ष तीन दिन के भीतर लिखित रूप में दे सकते हैं।
सर्वोंच्च न्यायालय ने रामजन्मभूमि मामले को बातचीत से हल करने के लिए  मध्यस्थता का पर्याप्त अवसर दे कर समय सीमा 31 जुलाई तक का समय भी दिया था  । उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले के समाधान के लिए न्यायमूर्ति इब्राहिम खलीवुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति जिसमें न्यायमूर्ति इब्राहिम के अलावा एम पंचू व धर्मगुरू श्री रविशंकर को हिंदू व मुस्लिम पक्षकारों के बीच न्यायालय से बाहर इसका समाधान करने का दायित्व सौंपा है। परन्तु शताब्दियों से चल रहे इस विवाद का हल वर्तमान हालातों में मध्यस्थता से हल होने की संभावनाये कहीं दूर दूर तक नहीं दे रही है। क्यों देश के हुक्मरानों व राजनैतिक दलों ने अपने निहित स्वार्थो व अज्ञानता के कारण इस देश की अस्मिता के प्रश्न को हिंदू मुस्लिमों के बीच जमीन विवाद बना डाला। इससे इसको समझने व हल करने में देश की सरकारें, राजनैतिक दल व न्यायालय भी समझने में पूरी तरह से असफल रही। अगर राजनैतिक दल व सरकारें देश के जनमानस को यह समझाने में सफल रहती तो मुस्लिम इसे भूल कर भी इस आक्रांता बाबर के नाम पर बने मस्जिद के पक्ष में खडे नहीं होते। राजनैतिक दलों ने अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए इसे हिंदू मुस्लिम का विवाद बना दिया। जबकि यह मामला राष्ट्र की अस्मिता का प्रश्न है।
यह सर्वविदित सत्य है कि भारत की अस्मिता के प्रतीक  भगवान  राम का जन्म अयोध्या में हुआ था और उनके जन्मस्थान पर एक भव्य मन्दिर विराजमान था जिसे  आक्रमणकारी बाबर ने तोड़कर वहाँ एक मस्जिद बना दी।
महाराज विक्रमादित्य द्वितीय द्वारा निर्मित भगवान राम के इस भव्य मंदिर को विदेशी आक्रांता द्वारा तलबार व सैन्य ताकत के बल पर  ध्वस्थ किये जाने पर इससे पूरे भारतीय समाज ने खुद को अपमानित महसूस किया। विदेशी आक्रांता द्वारा किये गये इस हैवानियत से मुक्ति के लिए भारतीय जनमानस ने  शताब्दियों ंसे निरंतर संघर्ष किया। हजारों हजार लोगों ने अपनी शहादतें दी परन्तु इस अन्याय, अत्याचार, कत्लेआम से न तो मुगलों  व नहीं अंग्रेजों की दासता काल में न्याय मिल पाया। सबसे शर्मनाक बात यह है कि बाबर द्वारा यहां पर किये गये  बलात कब्जा, अन्याय व भारतद्रोही जुल्म से मुक्ति दिला कर न्याय करने का दायित्व भी आजादी के बाद की 72 सालों की सरकारें दिलाने में असफल रही।
देश की आजादी के बाद लोेगों को आशा थी कि देश में भारतीयों का राज आने के बाद इस अन्याय, अत्याचार व हैवानियत से मुक्ति मिल जायेगी। परन्तु देश के सत्तालोलुपु हुक्मरानों ने देश को न्याय दिलाने के बजाय इस पर शर्मनाक मौन रखा। सरकारों की शर्मनाक दिशाहीनता देख कर बाबर के भारतद्रोही, अमानवीय जुल्मों को नजरांदाज करके कुछ दिशाहीन लोग उसके अन्याय के साथ खडे होने का दुशाहस करके शताब्दियों से बाबर व उनके बाद के आक्रांताओं द्वारा दिये गये जख्मों को कुरेदने का राष्ट्रद्रोही कुकृत्य किया। देश की पूरी व्यवस्था अन्याय व हैवानियत के प्रतीक इस विवाद को सुलझाने के अपना दायित्व पूरा करने की जगह इस कलंक को भारत के माथे पर बनाये रखने का कृत्य बेशर्मी से करके न्याय का गला घोंटते रहे। अंग्रेजों के जाने के 72 साल से देश की अस्मिता, लोकशाही व न्याय के प्रतीक रामजन्मभूमि मंदिर का निर्माण न किये जाने से पूरा विश्व  भारतीय हुक्मरानों की धृष्ठता पर हंस रहा है वहीं जनता खुद को ठगी महसूस कर रही है। लोग इस बात से भी हैरान है कि कट्टरपंथी जिन्ना की पाकिस्तान की विकृत सोच को नकारने वाले भारतीय मुस्लिमों को देश के पदलोलुपु शासकों व निहित स्वार्थी तत्वों ने एक अत्याचारी बाबर को इस्लाम का प्रतीक बता कर गुमराह किया।

देश की हर नागरिक को यह समझना यह चाहिए  कि बाबर सहित सभी आक्रांता एक अत्याचारी व भारतद्रोही रहा। इनके जुल्मों व प्रतीकों से भारत को मुक्ति दिलाने के लिए सभी देशवासियों को एकजूट होना चाहिए। 72 साल से इसकी होश न देश के दिशाहीन शासकों को रही व नहीं न्याय के मठाधीशों को। न्याय का एक सामान्य सिद्धांत ही कहता है कि समय पर न्याय न होना भी एक जुल्म ही होता है।
देश की इतना शर्मनाक पतन हो गया कि यहां लोग भारत पर हमला करने वाले, लाखों भारतीयों को कत्लेआम करने वाले व भारतीय संस्कृति को रौंदने वाले हैवानों के प्रतीकों को मिटाने के बजाय उस कलंक को बनाये रखने के लिए न केवल आवाज उठा रहे हैं अपितु न्याय के नाम पर इस इस हैवानियत को बनाये रखने का कुकृत्य कर रहे है। आज देश इस कलंक को मिटाने के लिए उद्देल्लित और आंदोलित है।
खुद को भारत पर कई बार हमला करने व लूटने वाले चंगेजखान का खुद को अपना वंशज मानने वाले विदेशी आक्रांता बाबर ने न केवल भारत पर मुगल(फारसी में मंगोल लोगों को मुगल कहा जाता है।) शासन की नींव रखी अपितु उसके शासन मेें भारतीय संस्कृति को निर्ममता से रोंदा गया इसके लिए उसने इस्लाम के प्रसार के मुख्य अस्त्र जेहाद (धर्मयुद्ध) के तहत भारतीय संस्कृति के आस्था स्थलों, मंदिरों, मूर्तियों को निर्ममता से रौंदा। इसी हैवानियत के तहत बाबर के सेनापति मीर बाकी ने १५२८ को भारतीय संस्कृति के प्राण समझे जाने वाले भगवान राम के जन्म स्थान पर बने मंदिर को ध्वस्थ करके वहा ंपर बाबरी मस्जिद में तब्दील कर दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में इस स्थान को मुक्त करने एवं वहाँ एक नया मन्दिर बनाने के लिये एक लम्बा आन्दोलन चला। ६ दिसम्बर सन् १९९२ को यह विवादित ढ़ांचा गिरा दिया गया और वहाँ श्री राम का एक अस्थायी मन्दिर निर्मित कर दिया गया।

इस रामजन्मभूमि मंदिर विवाद की प्रमुख घटनाक्रम पर एक नजर-

१५२८ में राम जन्म भूमि पर मस्जिद बनाई गई थी। हिन्दुओं के पौराणिक ग्रन्थ रामायण और रामचरित मानस के अनुसार यहां भगवान राम का जन्म हुआ था।

१८५३ में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार विवाद हुआ।

१८५९ में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा।

१९४९ में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई। तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया।

सन् १९८६ में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया। मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।

सन् १९८९ में विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल से सटी जमीन पर राम मंदिर की मुहिम शुरू की।

६ दिसम्बर १९९२ को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई। परिणामस्वरूप देशव्यापी दंगों में करीब दो हजार लोगों की जानें गईं।

उसके दस दिन बाद १६ दिसम्बर १९९२ को लिब्रहान आयोग गठित किया गया। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश एम.एस. लिब्रहान को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया।

लिब्रहान आयोग को१६ मार्च १९९३ को यानि तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था, लेकिन आयोग ने रिपोर्ट देने में १७ साल लगाए।

३० जून २००९ को लिब्रहान आयोग ने चार भागों में ७०० पन्नों की रिपोर्ट प्रधानमंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को सौंपा।

जांच आयोग का कार्यकाल ४८ बार बढ़ाया गया।

३१ मार्च २००९ को समाप्त हुए लिब्रहान आयोग का कार्यकाल को अंतिम बार तीन महीने अर्थात् ३० जून तक के लिए बढ़ा गया।

2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने निर्णय सुनाया जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया गया। न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सितंबर 2010 में दिए अपने फैसले में 2.77 एकड़ विवादित भूमि को तीन पक्षों रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था। इस फैसले के खिलाफ 14 अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं, जिसकी सुनवाई संविधान पीठ कर रही है।न्यायालय ने यह भी कहा कि वहाँ से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा। न्यायालय ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्जा रहा है इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा। दो न्यायधीधों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए। लेकिन हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से अस्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

केंद्र ने  सरकार ने ‘निश्चित क्षेत्र एक्ट, 1993श् के तहत अयोध्या में 67.7 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था। इसमें वह हिस्सा भी शामिल था जिस पर विवादित ढांचा था। केंद्र ने कहा है कि जब विवाद सिर्फ 0.313 एकड़ जमीन पर है, जहां कभी बाबरी मस्जिद अवस्थित थी

उच्चतम न्यायालय ने ७ वर्ष बाद निर्णय लिया कि 11 अगस्त 2017 से तीन न्यायधीशों की पीठ इस विवाद की सुनवाई प्रतिदिन करेगी। सुनवाई से ठीक पहले शिया वक्फ बोर्ड ने न्यायालय में याचिका लगाकर विवाद में पक्षकार होने का दावा किया और 70 वर्ष बाद 30 मार्च 1946 के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी जिसमें मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति घोषित अर दिया गया था।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि 5 दिसंबर 2017 से इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू की जाएगी। वह भी करने में सर्वोच्च न्यायालय असफल रहा।
25 नवम्बर 2018 को अयोध्या में भगवान राम के मंदिर निर्माण की मांग को लेकर लिए लाखों लोग एकजूट हुए। बाद में इस आंदोलन कों लोकसभा चुनाव को देखते स्थगित किया गया। इससे संघ का मोदी सरकार पर पूर्ण विश्वास ही परिलक्षित होता है।

इसके बाद मोदी सरकार ने विवादस्थ स्थल 2.77 एकड़ भूमि को छोड़ कर शेष भूमि पर लगा यथास्थिति का प्रतिबंद्ध हटाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय से अनुमति मांगी है। इससे राममंदिर निर्माण की राह खुल जायेगी।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि 5 फरवरी 2018 से इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू की जाएगी। सरकारें व सर्वोच्च न्यायालय इस गंभीर व संवेदनशील विवाद को त्वरित हल करने के बजाय लम्बे समय तक लटका कर एक प्रकार देश व न्याय के हितों का गला ही घोंट रहे हैं। सरकार व न्यायालय की इस उदासीनता  से देश के सामाजिक तानाबाना व शांति को पदलोलुपु राजनेता, निहित स्वार्थी तत्व व देश विरोधी तत्व नष्ट करने में लगे है। इससे देश की स्थिति निरंतर बिगडती जा रही है। देशवासी ही नहीं पूरी दुनिया हैरान है कि भारत की सरकार व न्यायालय अपनी जिम्मेदारी से मोह क्यों मोड़ कर देश को बर्बादी के गर्त में क्यों धकेल रहे हैं।
-आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में 5 न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने 40 दिनों तक यानी 6 अगस्त 2019  से 16 अक्टूबर तक प्रतिदिन इस मामले की  सुनवाई की। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के अलावा न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति  डीवाय चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति  एस अब्दुल नजीर हैं । इसका फैसला एक माह के अंदर आने की संभावना है।

 

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