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उतराखण्डी भाषा अकादमी खोलना स्वागत योग्य पर इसका नाम उतराखण्डी भाषा अकादमी रखते व उतराखण्डी भाषाविदों को भी सदस्य बनाते

दिल्ली सरकार ने उतराखण्डी समाज के लिए  20 सदस्यीय ‘गढवाली-कुुमाऊंनी व जौनसारी भाषा अकादमी की अधिसूचना जारी

नई दिल्ली (प्याउ)। इसी सप्ताह दिल्ली सरकार ने दिल्ली में उतराखण्डी समाज की उतराखण्डी भाषा अकादमी खोलने की मांग को स्वीकार करते हुए ‘गढ़वाली,कुमाऊंनी व जौनसारी भाषा अकादमी का गठन करने का ऐलान किया। इस अकादमी की कमान उतराखण्ड के र्शीष लोक गायक व कवि हीरा सिंह राणा को सौंपी गयी।उतराखण्डी समाज ने इसका खुले दिल से स्वागत किया। परन्तु भाषा अकादमी के नाम उतराखण्डी प्रबुद्ध लोगों के गले नहीं उतर रहा है। इसके साथ 17अक्टूबर को निकाली गयी अधिसूचना के अनुसार 20 सदस्यीय समिति में  पदेन अध्यक्ष कार्यकारी मुख्यमंत्री व कला संस्कृति भाषा मंत्री मनीष सिसौदिया, उपाध्यक्ष हीरासिंह राणा, मुख्य सचिव वित्त, सचिव कला-संस्कृति व भाषा दिल्ली सरकार, सदस्य-बीएन ढौडियाल, दिवाकर उनियाल, दिनेश बिष्ट,राजेश्वर प्रसाद शर्मा, श्रीमती चंद्र कला नेगी, श्रीमती पृथ्वी बडोला, सुरत सिंह रावत, पदम सिंह पवार, बृजमोहन उप्रेती, पृथ्वी सिंह, श्रीमती प्रीति कोटनाला सलैन, पीएन शर्मा, जय सिंह राणा, पवन कुमार मैठानी, संदीप शर्मा व सचिव गढवाली, कुमाऊंनी व जौनसारी अकादमी नामित किये है।

हर सत्तारूढ़ दल की तरह आम आदमी पार्टी ने भी अपने दल के नेताओं को इसमें नामित किये। परन्तु उतराखण्ड समाज को आशा थी कि इस समिति को सही दिशा देने के लिए दिल्ली में उतराखण्डी समाज के बोली भाषा के लिए कई वर्षों से कार्य कर रहे भाषाविदो व दिल्ली में उतराखण्ड समाज के गंगा प्रसाद विमल जैसे ंप्रकाण्ड साहित्यकारों के साथ आप के वरिष्ठ नेता हरीश अवस्थी को सदस्य मार्ग दर्शक मण्डल के रूप में रखते तो बेहतर कार्य होता। ं
उतराखण्डी सदैव ही उतराखण्डी अकादमी की मांग करती आयी। परन्तु दुखदः है कि राजनैतिक दल प्रायः दलीय स्वार्थ के लिए तत्कालीन लाभ के लिए जनहितों पर कुठाराघात करने से पीछे नहीं रहते। सरकार का काम जनता को एकजूट करना होता है व अपने कार्यों से सही दिशा देना। परन्तु इस काम को करने के बजाय दिल्ली सरकार ने उतराखण्डियों की भाषा अकादमी की मांग को भले ही स्वीकार किया परन्तु इसका नामकरण करते समय बांटने का कृत्य कर दिया। उतराखण्डी भाषा अकादमी का गठन करने के बजाय दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने इसे गढ़वाली, कुमाऊंनी व जौनसारी बोली भाषा अकादमी कर दिया। बेहतर होता कि आप सरकार केन्द्र सरकार से उतराखण्डी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूचि में दर्ज कराने का पुरजोर अनुरोध करती। दूसरा काम दिल्ली सरकार अगर ईमानदारी व दूरदर्शी से काम करती तो उसे उतराखण्डी बोली भाषा पर काम करने वाले तीन चार विद्धानों को बिठा कर तीनों बोलियों का एक भाषा के रूप में बनाने का काम करते। गढवाली कुमाऊंनी के गीतों को उतराखण्ड में सभी क्षेत्र में बोला व समझा जाता। प्रायः काफी एकाकार है, केवल चंद बोलने के लहजे का अंतर है। परन्तु यह ठोस काम करने का समय व इच्छा जब उतराखण्ड की 18 सालों की सरकारों की नहीं रही तो दिल्ली सरकार से यह आशा करना भी एक प्रकार से नाइंसाफी ही होगी।
दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने उतराखण्डी जनभावनाओं का सम्मान करने का सराहनीय कार्य करते समय भाषा अकादमी का नाम रखने बडी भूल कर गये। इसके लिए इस दल के नेताओं का निजी संकीर्ण नजरिया भी जिम्मेदार है। इसके साथ  आप पार्टी में उतराखण्डी नेता अपने दल के नेता को यह भी समझाने में असफल रहे कि इसका नाम उतराखण्डी भाषा अकादमी रखें। परन्तु केजरी सरकार की भूल को केन्द्र व उतराखण्ड सरकार भी सुधार कर सकती है उतराखण्डी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में सम्मलित करके। सत्तासीनों व समाज दोनों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि महत्वपूर्ण संस्थानों में मील के पत्थर ही रखे जाने चाहिए। परन्तु देखा यह जा रहा है कि समाज व देश के हितों के लिए समर्पित लोगों के बजाय आज कल निहित स्वार्थी, दिशाहीन थैलीशाहों व दलीय बंधुआ मजदूरों की ही सुनते है।

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