उत्तराखंड देश

स्वतंत्रता सैनानी व पूर्व सांसद परिपूर्णानंद पैन्यूली को दिल्ली के उतराखण्डी समाज ने गढवाल भवन में दी भावपूर्ण श्रद्धांजलि

अग्रणी स्वतंत्रता सैनानी  व पूर्व सांसद परिपूर्णानंद पैन्यूली को श्रद्धांजलि देने तक नहीं आये भाजपा नेता

नई दिल्ली से प्यारा उतराखण्ड डाट काम

दिल्ली में उतराखण्डी समाज ने 4 मई को अग्रणी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व टिहरी संसदीय क्षेत्र के पूर्व सांसद परिपूर्णानंद को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। पूर्व सांसद परिपूर्णानंद का गत माह 96 साल की उम्र में देहरादून में निधन हो गया। दिवंगत  पैन्युली जी देहरादून के बल्लूपुर के निकट सपरिवार निवास करते थे। दिवंगत पैन्यूली जी को श्रृद्धांजलि देने के लिए देश की राजधानी दिल्ली में उतराखण्डी समाज की प्रतिनिधी संस्था ‘गढवाल हितैषिणी सभा ने कई दशकों से उतराखण्डी समाज की सांस्कृतिक केन्द्र बन कर उभरे ‘गढवाल भवन में 4 मई की सांयकाल को आयोजित की गयी। इसमें कांग्रेस के महामंत्री हरीश रावत व पूर्व केन्द्रीय मंत्री मोहसिना किदवई सहित अनैक कांग्रेसी नेता, दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार, समाजसेवी, राज्य आंदोलनकारी, सांस्कृतिककमीर्, बडी संख्या में दिवंगत परिपूर्णानंद पैन्यूली के परिजन, व गढवाल हितैषिणी सभा के वरिष्ठ सदस्य उपस्थित थे।  परन्तु सबसे हैरानी की बात यह है कि भारत की जंगे आजादी के जांबाज, पूर्व सांसद, चिंतक, पत्रकार, लेखक व क्रांतिकारी को दो शब्द श्रद्धांजलि देने का भान उतराखण्डी भाजपा नेताओं में नहीं रही। हालांकि इस सभा में बडी संख्या में कांग्रेस के दिग्गज नेता उपस्थित रहे। सुत्रों के अनुसार दिवंगत परिपूर्णानंद पैन्यूली की स्मृति सभा का आयोजन करने वाली गढवाल हितैषिणी सभा ने उतराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत, सभी सांसदों के अलावा दिल्ली व उतराखण्ड के भाजपा के सभी सामाजिक सरोकारों में सक्रिय रहने वाले प्रमुख नेताओं को इस स्मृति समारोह में सम्मलित होने का आग्रह किया था। परन्तु अफसोस है कि देश भक्ति व भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक होने की हुंकार भरने वाले भाजपा नेताओं को देश की आजादी के पुरोधा को श्रद्धांजलि देने का समय नहीं रहा। जबकि उतराखण्ड व दिल्ली के भाजपा से जुडे अधिकांश  प्रमुख नेता दिल्ली में चुनाव अभियान में दिल्ली में ही डेरा डाले हुए है। भाजपा नेताओं द्वारा देश के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सैनानी व पूर्व सांसद परिपूर्णानंद पैन्यूली की स्मृति सभा में उपस्थित न होने से संस्था के वरिष्ठ पदाधिकारियों के अलावा भाजपा के समर्पित वरिष्ठ पदाधिकारी भी हैरान हैं। गढवाल हितैषिणी सभा से पैन्यूली जी दशकों तक जुडे रहे।
दिवंगत पैन्यूली की पावन स्मृति को नमन करते हुए वक्ताओं ने जहां परिपूर्णानंद को महान सपूत, नेता, पत्रकार, समाजसेवी व क्रांतिकारी बताते हुए उनके बताये हुए मार्ग का अनुशरण करने का संकल्प लिया। वहीं इस बात से भी आहत थे कि ऐसे समर्पित महानायक के निधन  पर राजनैतिक दलों के प्रमुखों द्वारा एक शोक संदेश तक प्रकट नहीं किया गया। वक्ताओं ने अफसोस प्रकट किया कि समाज के लिए समर्पित क्रांतिकारियों को न तो राजनैतिक दल उचित सम्मान देते हैं व नहीं समाजिक संस्थायें ही इनकी महता जीवित रहते समझ पाते हैं। जबकि इस स्मृति सभा का प्रचार प्रसार गढवाल हितैषिणी सभा एक पखवाडे से प्रमुख समाचार पत्रों, दूरभाष व पत्रों से कर रही थी। भाजपा के नेताओं की इस आयोजन में अनुपस्थिति सबको खल रही थी।
वहीं इस समारोह में बडी संख्या में कांग्रेसी, आप, वामपंथी व सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी इसमें सम्मलित हुए। कांग्रेस के महासचिव व उतराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, पूर्व केन्द्रीय मंत्री मोहसिना किदवई, पूर्व सांसद महावीर त्यागी के परिजन, उतराखण्ड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय,दिवंगत परिपूर्णानंद जी  परिजनों में दिल्ली सरकार के दिल्ली संवाद कमिशन के सचिव श्री जोशी,  उनके दामाद पत्रकार  मनोज गैरोला, पुत्री प्रीति गैरोला, कांग्रेसी नेता राजेश्वर पैन्यूली, 92 वर्षीय बुजुर्ग समाजसेवी चंद्रपाल रावत, गढवाल लोकसभा के कांग्रेसी प्रत्याशी मनीष खंडूडी, वरिष्ठ पत्रकार  उमाकांत लखेडा, कांग्रेस के प्रवक्ता धीरेन्द्र प्रताप, कांग्रेस के राष्ट्रीय सह सचिव हरिपाल रावत,उतराखण्ड कांग्रेस के महामंत्री विजय सारस्वत आदि। । गढवाल हितैषिणी सभा के अध्यक्ष मोहब्बत राणा व उपाध्यक्ष नरेन्द्र नेगी, ने श्रद्धांजलि सभा मे सम्मलित सभी लोगों का धन्यवाद करते हुए पूर्व सांसद परिपूर्णानंद पैन्यूली को अपनी श्रद्धांजलि प्रकट किया। समारोह का संचालन गढवाल हितैषिणी सभा के महासचिव पवन कुमार मैठानी ने किया। श्रृद्धांजलि देने वाले प्रमुख समाजसेवियों में उतराखण्ड राज्य गठन आंदोलन के प्रमुख संगठन उतराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष देवसिंह रावत, उतराखण्ड महासभा के अनिल पंत, रंग कर्मी खुशहाल सिंह बिष्ट, समाजसेवी बी एस नेगी व पीडी तिवारी, आप नेता बचन सिंह धनौला, पंकज पैन्यूली, प्रताप थलवाल, वरिष्ठ समाजसेवी दाताराम जोशी, गढवाल हितैषिणी सभा के पूर्व अध्यक्ष मदन बुडाकोटी, अजय बिष्ट, संयोगिता ध्यानी, टिहरी से भाजपा नेता आजाद नेगी,  कांग्रेसी नेता आषाड अधिकारी, दिल्ली प्रदेश महिला कांग्रेस की प्रमुख नेत्री उमा जोशी,समाजसेविका प्रेमा धोनी, रंगकर्मी  उक्रांद नेता प्रताप शाही व जलंधरी, सतेन्द्र प्रयासी, अनैक वरिष्ठ पत्रकार कुशाल जीना, अभिनव कलूडा,सुनील नेगी, हरीश लखेड़ा,सूर्याप्रकाश सेमवाल, चारू तिवारी, व सतेन्द्र रावत, समाजसेवी प्रवीण राणा, वीपी भट्ट, राजेश सिंह राणा, लखपत भण्डारी, आर पी चमोली, जय सिंह राणा, राजेश्वर प्रसाद कंसवाल, टिहरी उतरकाशी जनविकास परिषद के डा एसएन बसलियाल, राकेश नेगी,आप नेता रणजीत सिंह नेगी व प्रताप थलवाल, टी भण्डारी, साहित्यकार दिनेश ध्यानी, पृथ्वी सिंह केदारखण्डी, ढौडियाल व दर्शन सिंह रावत आदि उपस्थित रहे।

उल्लेखनीय है कि टिहरी गढ़वाल के छोल गांव मंें 19 नवम्बर 1924 को  जूनियर इंजीनियर कृष्णानंद पैन्यूली व एकादशी देवी के घर में पुत्र रत्न के रूप में जन्मे, परिपूर्णानंद पैन्यूली भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समर्पित सैनानी के साथ टिहरी राजशाही को उखाड़ फैकने के महान क्रांतिकारी नेता, अजा/अजजा के लिए उत्थान के लिए समर्पित योद्धा, जनहितों के लिए समर्पित पत्रकार व लेखक थे।  1942 में 18 वर्ष की आयु में ही परिपूर्णानंद पैन्यूली जी आजादी की जंग भारत में जुड गये थे।
भारत की आजादी के जांबाज सैनानी परिपूर्णानंद पैन्यूली के दादा  राघवानन्द पैन्यूली टिहरी रियासत के दीवान थे परन्तु जंगे आजादी में गांधी जी का उनको ऐसा प्रभाव पडा कि जिस टिहरी रियासत के दीवान उनके दादा राघवानंद पैन्यूली थे उसकी राजशाही को उखाड फैंकने का सफल आंदोलन  सम्पूर्णानंद पैन्यूली ने वर्षों तक किया।
जंगे आजादी के ध्वजवाहक सम्पूर्णानंद पैन्यूली की शिक्षा भी आजादी की जंग की अनैक आंदोलनकारियों को तैयार करने वाले काशी विद्यापीठ से हुई । उन्होने यहां से शास्त्री व आगरा से समाज शास्त्र से एम ए की शिक्षा ग्रहण की। आजादी के आंदोलन में वे सक्रिय रहे। भारत छोड़ों आंदोलन में सक्रिय रहने के कारण ब्रिटिश सरकार द्वारा राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर उन्हें छह साल के लिए मेेरठ, लखनऊ व टिहरी के जेलों में बंद किया गया।
अंग्रेजी सरकार की सजा से मुक्त होने के बाद परिपूर्णानंद पैनूली ने टिहरी में राजशाही के खिलाफ चल रहे प्रजामण्डल के आंदोलन की अगुवाई करने में जुट हो गये। इसी आरोप में टिहरी राजशाही ने उन्हें 27 नवम्बर 1946 को राजद्रोह के आरोप में डेढ़ साल की जेल व 500रूपये का दण्ड भी लगाया गया। जेल बंदी के दौरान पैन्यूली जी वहां पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चैधरी चरण सिंह, राजस्थान के राज्यपाल रहे रघुकुल तिलक जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के बीच रहे। टिहरी जेल के जुल्मों से मुक्ति पाने के लिए उन्होने 10 दिसम्बर 1946की मध्य रात्रि को  मात्र एक लंगोठी पहने पूरिपूर्णानंद पैनूली ने कडाके की ठण्ड में कंबल औढ़ कर भिलंगना नदी को पार कर  दस दिन तक पैदल चलकर चकराता पहुंचे। उन्होने देहरादून में भी टिहरी मुक्ति आंदोलन का केन्द्र बनाने के साथ टिहरी के साथ देश की आजादी के लिए सक्रिय रहे। वे ‘रामेश्वर शर्मा के छदम नाम से दिल्ली में क्रांतिकारी कार्यों मंें जुट गये।   
उनकी महता का सबसे ज्वलंत प्रमाण यह रहा कि 1949 में टिहरी रियासत के भारत में विलय के दस्तावेजों में हस्तााक्षर करने वाले तीन प्रमुख प्रतिनिधियों में एक परिपूर्णानंद पैनूली थे। उन्होने हिमाचल प्रदेश कमेटी जो उस समय हिमालयन हिल स्टेट्स रीजन काउंसित के नाम से विख्यात रही उसके अध्यक्ष निर्वाचित हुए। इस संस्था में टिहरी रियासत सहित 34 हिमाचल हिल स्टेट सम्मलित रहे। युवा अवस्था में ही समाजसेवा में सदैव समर्पित रहते थे। 1955-65 के दौरान जनजाति व अजा की महिलाओं को अनैतिक कार्यो से मुक्ति दिलाकर उनको चकराता में सम्मान के साथ बसाने का काम किया।
1971 में टिहरी के पूर्व राजा मानवेन्द्र शाह को पराजित कर सांसद निर्वाचित हुए। अपने संसदीय कार्यकाल में उन्होने पर्वतीय दूरस्थ क्षेत्रों के विकास के लिए समर्पित रहे। हरिजनों व जनजातीय क्ष्ज्ञेत्रों के लिए सराहनीय कार्य किये। वे तीन साल तक संसद की कार्यान्वयन समिति , आकलन समिति के सदस्य भी रहे।  1972-74 को उप्र पर्वतीय विकास निगम के अध्यक्ष रहे। 1973 में एकीकृत जनजाति विकास समिति का गठन कर चकराता व उतरकाशी जनजाति क्षेत्रों के विकास के लिए समर्पित रहे।
एक प्रखर स्वतंत्रता संग्राम सैनानी, क्रांतिकारी व राजनेता के साथ साथ परिपूर्णानंद पैनूली एक जीवंत पत्रकार व लेखक भी रहे। उनकी पहली पुस्तक ‘ देशी राज्य और जन आंदोलन’ की प्रस्तावना 1948 में डा बी पट्टाभि सीतारामैया, दूसरी पुस्तक ‘नेपाल का पुनर्जागरणकी प्रस्तावना तत्कालीन उप्र के मुख्यमंत्री डा सम्पूर्णानंद ने लिखी। उनकी ‘संसद और संसदीय प्रक्रिया’ की प्रस्तावना महान समाजवादी चिंतक और विचपारक, काशी हिंदू विश्वविद्यालय वनारस के कुलपति आचार्य नरेन्द्र देव ने लिखी। वे चार दशक से अधिक समय तक अंग्रेजी दैनिक हिन्दुस्तान टाइम्स के संवाददाता भी रहे। वे उतरप्रदेश हरिजन सेवक संघ के सचिव भी रहे। उन्होने बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री व यमुनोत्री के मंदिरों में स्थानीय लोगों के भारी विरोध के बाबजूद प्रवेश कराया। यही नहीं हिमाचल प्रदेश के सिरमौर में अजा के लोगों को सवर्णों के जलस्रोतों से पानी भरवाने के आरोप में जेल की सजा भी काटी। 1962-63 के उन्होने हिमाचल प्रदेश के पौंटा साहिब व देहरादून की घाटी में मुस्लिम गुर्जरों को पुनर्वास कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।  अजा/जनजाति के उत्थान व हितों के संघर्षों में सहभागी बनने के लिए भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने 1996  में डा अम्बेडकर सम्मान से सम्मानित किया।
निर्धन बच्चों की शिक्षा और वंचितों के विकास के लिए वह अशोक आश्रम को संचालित करने के लिए समर्पित रहे।
परिपूर्णानंद पैन्यूली का पूरा परिवार उच्च शिक्षित  परिवार रहा। परिपूर्णानंद पैन्यूली की पत्नी स्व. कुंतीरानी पैन्युली वेल्हम गर्ल्स में शिक्षिका थीं। दिवंगत परिपूर्णानंद पैन्यूली के शोकाकुल परिवार में उनकी  चार बेटियां हैं, जिनमें से एक इंदिरा अमेरिका में रहती हैं, दूसरी पुत्री राजश्री वेल्हम स्कूल में ही शिक्षिका हैं और अन्य दो बेटियां विजयश्री और तृप्ति दिल्ली में रहती हैं। प्यारा उतराखण्ड देश की आजादी के इस महानायक, पूर्व सांसद, चिंतक, लेखक व पत्रकार परिपूर्णानंद पैन्यूली की पावन स्मृति को नमन कर अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करती है।

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