दुनिया

सऊदी सहित 7 देशों से सबक लेकर आतंकवाद के सफाये के लिए आतंकी पाक से सम्बंध तोड़े भारत

-कतर पर  आतंकवादियों व ईरान से रिश्ते का आरोप लगाते हुए सऊदी अरब, बेहरीन, यमन, मिस्त्र, अमीरात, लीबिया व मालद्वीप ने तोड़े सम्बंध

-अमेरिका व रूस के बर्चस्व की जंग के कारण उपजा खाडी विवाद

देवसिंह रावत
एक तरफ सऊदी अरब जैसे दुनिया के अग्रणी मुस्लिम देश के नेतृत्व में खाडी के चार मुस्लिम देशों सऊदी अरब, बहरीन, यमन, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई)  व मिस्त्र ने खाड़ी  के ही देश कतर से अपने सम्बंध तोड़ कर अपने राजनियकों को भी वापस बुलाना शुरू कर दिया है। सऊदी आदि देशों के इस निर्णय का लीबिया व मालद्वीप जैसे मुस्लिम देशों ने भी कतर से अपने सम्बंध तोड़ दिये है। इन देशों का आरोप है कि कतर के दुनिया में सबसे खौपनाक आतंकी सगठन मुस्लिम ब्रदरहुड, अल-कायदा, आइएसआइएस जैसे आतंकी संगठनो से रिश्ते हैं और खाड़ी के इन देशों के विरोधी ईरान के साथ भी सम्बंध बढ़ा रहा है।
वहीं दूसरी तरफ दुनिया भर में इस्लामी आतंक का कारखाना समझे जाने वाले आतंकी पाकिस्तान, भारत को तबाह करने में वर्षो से लगा हुआ है। ंहर दिन आतंकी पाकिस्तान के आतंकी हमले में भारत की रक्षा के लिए समर्पित भारतीय सुरक्षा बलों को शहादत देनी पड़ रही है। इसके बाबजूद भारतीय हुक्मरान आतंकी पाकिस्तान पर अंकुश लगाने के लिए उससे तुरंत सम्बंध तोड़ने के बजाय बेशर्मी से पाकिस्तान को सबसे मित्र राष्ट्र का दर्जा दे कर पूरे विश्व में भारत की जग हंसाई कर रहा है। संसद, मुम्बई, कारगिल, पठानकोट, उरी के अलावा कश्मीर में आये दिन हो रहे आतंकी पाकिस्तान के हमले के बाबजूद भारतीय हुक्मरानों के दिलो दिमाग में विगत डेढ दशक से चढ़ा पाकिस्तान सबसे करीबी मित्र राष्ट्र का भूत नहीं उतर रहा है। जबकि पाकिस्तान मित्रता के नाम पर अमेरिका के बाद अब चीन की शह पर भारत की एकता अखण्डता को तबाह करने के लिए निरंतर आतंक का कहर ढा रहा है। भारत में पाकिस्तानी व चीनी आतंकबाद पाकिस्तान के द्वारा संचालित हो रहा है। जब तक भारत सरकार इस मूल स्रोत पर अंकुश नहीं लगायेगी तब तक भारत में न तो आतंकबाद रूकेगा व नहीं नक्सलवाद।
एक तरफ सऊदी अरब जैसे दुनिया के अग्रणी मुस्लिम देश के नेतृत्व में खाडी के चार मुस्लिम देशों सऊदी अरब, बहरीन, यमन, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई)  व मिस्त्र ने खाड़ी  के ही देश कतर से अपने सम्बंध तोड़ कर अपने राजनियकों को भी वापस बुलाना शुरू कर दिया है। सऊदी आदि देशों के इस निर्णय का लीबिया व मालद्वीप जैसे मुस्लिम देशों ने भी कतर से अपने सम्बंध तोड़ दिये है। इन देशों का आरोप है कि कतर के दुनिया में सबसे खौपनाक आतंकी सगठन मुस्लिम ब्रदरहुड, अल-कायदा, आइएसआइएस जैसे आतंकी संगठनो से रिश्ते हैं और खाड़ी के इन देशों के विरोधी ईरान के साथ भी सम्बंध बढ़ा रहा है।
ताजा घटनाक्रम मे आतंकवाद को संरक्षण देने के आरोपों को लेकर दुनिया भर में इस्लाम का प्रचार प्रसार करने व कटरपंथी इस्लाम पर सबसे अधिक दौलत लुटाने के लिए कुख्यात खाड़ी देशों में अमेरिका के सबसे बड़े समर्थक सऊदी अरब के नेतृत्व में छह मुस्लिम देशों ने कतर से सम्बंध तोड़ने का ऐलान कर दिया। इन देशों के शासकों को सत्ता से उखाड फैंकने के लिए  दुनिया भर की अमन शांति के लिए अभिशाप बने ये आतंकी संगठन निरंतर इन देशों में आतंकी हमला कर रहे है और अपनी घुसपेट बढा रहे है। इसी को रोकने के लिए खाड़ी के अगुवा देश सऊदी अरब के नेतृत्व में इन देशों ने कतर से सभी प्रकार के रिश्ते तोड़ने का ऐलान कर पूरे विश्व में हडकंप मचा दिया है। क्योंकि खाडी देश विश्व में सबसे अधिक कच्चे तेल व गैस के उत्पादक है।
इन देशों को भय है इन आतंकी संगठनों के कारण उनको देश भी अफगानिस्तान, सीरिया व इराक की तरह बर्बाद हो सकता है। इन देशों ने कतर से अपने राजनयिकों को बुलाना शुरु कर दिया है। लोगों के आने जाने पर भी पाबंदी लगाने की प्रक्रिया शुरु हो गई है।
सबसे चैकाने वाली बात यह है कि अमेरिका  के वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की पहली अरब यात्रा के बाद जिस प्रकार से सऊदी अरब ने यह कदम उठाया उसका मकसद खाड़ी देशों में पहले से अलग थलग ईरान को और अलग थलग करना। कतर ने पांच बड़े खाड़ी देशों के फैसले को आधारहीन और न्याय के विरुद्ध करार दिया है। दूरी तरफ ईरान ने खाड़ी में तनावपूर्ण माहौल बनाने की दृष्टि से सऊदी व उनके साथियों के इस कदम के पीछे अमेरिका पर निशाना साधते कहा कि इसकी साजिश राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सऊदी अरब दौरे के समय ही तैयार कर ली गई थी।
कई मुस्लिम देशों ने सऊदी सहित 5 देशों के इस कदम का समर्थन किया वहीं पाक जैसे आतंकी देश इस मामले को वातचीत के द्वारा सुलझाने के लिए कह रहे है।
खाड़ी देशों की इस तनावपूर्ण घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए अमेरिका ने कहा कि अमेरिका ने कहा, कि यह विवाद बातचीत से सुलझाये जा सकंगे। इसके साथ अमेरिका ने ऐलान किया कि खाड़ी के ताजा घटना क्रम का सीरिया व इराक सहित कई देशों में चल रही अमेरिका की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में कोई असर नहीं पडेगा। खुद अमेरिका का कतर में बडा सैन्य अड्डा है। 10 हजार अमेरिकी सैनिक कतर में तैनात हैं।
खाड़ी के देशों में तनाव बढ़ने का भारत सहित दुनिया पर सबसे बड़ा असर कच्चे तेल की कीमतों को लेकर पड़ेगा। ये सभी देश कच्चे तेल के बड़े उत्पादक देश हैं और भारत इनसे बड़े पैमाने पर तेल खरीदता है। भारत, कच्चे तेल की जरूरत का एक बड़ा हिस्सा सउदी अरब से लेता है वहीं प्राकृतिक गैस भारत,  कतर से खरीदता है। यही नहीं खाडी देशों में भारत के पौने करोड़ लोग है। सऊदी अरब में 30 लाख, संयुक्त अरब अमीरात में 25 लाख  व कतर में 5 लाख से ज्यादा भारतीय कामगार है। जो देश की अर्थव्यवस्था को एक प्रकार से विशेष मजबूती प्रदान करते है।
ऐसे में यहां तनाव फैलने पर कच्चे तेल की कीमतों पर असर होगा जिसका बोझ भारत की आम जनता व यहां की अर्थव्यवस्था को भी उठाना पड़ेगा। सनद रहे कि पिछले तीन वर्षो से कच्चे तेल की कीमतें काफी स्थिर बनी हुई हैं और इसका फायदा भारत को मिल रहा है। भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने और व्यापार घाटे को कम करने में इससे मदद मिली है। लेकिन अगर तनाव के बाद कच्चा तेल महंगा होता है जो यह स्थिति बदल सकती है।
भले ही खाडी देशों के इस निर्णय की डोर अमेरिका के हाथों में प्रतीत होती है। यह पूरी कार्यवाही आतंकवादी संगठनों पर अंकुश लगाने के नाम पर भले ही हो पर इसका असली मकसद रूस के मित्र ईरान को कमजोर करना है।

वैसे भी ईरान के खिलाफ अमेरिकी समर्थक सऊदी सहित तमाम खाड़ी देश पहले से शिया व सुन्नी के विवाद के कारण एकजूट हुए है।सऊदी जहां पाकिस्तान सहित तमाम सुन्नी देशों के साथ अमेरिका के खेमे में है। वहीं ईरान शिया देश है और सीरिया के शासक बशर अल असद भी शिया है। असद को अरबी भाषा में शेर को कहते हैं। पेशे से चिकित्सक असद ने सन् 2000 से सीरिया में शासन कर रहे है। रूस गठबंधन के देश होने के कारण अमेरिका ने यहां पर तख्ता पलट  किया है। वह भी शिया व सुन्नी के नाम पर। सीरिया की आबादी का 74 प्रतिशत सुन्नी मुस्लिम है। शिया मुस्लिम केवल 3.2 प्रतिशत है। कुल मिला कर अमेरिका नहीं चाहता है कि इस क्षेत्र में रूस के गठबंधन को कमजोर करके अपने गठबंधन को मजबूत कर रहे हैं। इसी के लिए सीरिया व अब कतर वाली समस्याये खड़ी हो रही है। अफगान, इराक, मिश्र व लीबिया की तबाही के पीछे भी यही धारणा रही। पाकिस्तान को आतंक की फेक्टरी बनाने के पीछे कहीं न कहीं अमेरिका का ही संरक्षण रहा।  खाडी में उपजा ताजा विवाद भी एक प्रकार से अमेरिका व रूस के बर्चस्व की जंग का ही एक निकृष्ठ उदाहरण है।

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