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चीन के नापाक इरादों पर चतुर्पक्षीय सुरक्षा संवाद (क्वाड) अंकुश लगाने में कहां तक होगा सफल?

 

भारत के लिए नाटो नहीं चतुर्पक्षीय सुरक्षा संवाद (क्वाड) है वरदान

देव सिंह रावत

आज 24 मई 2022 को जापान की राजधानी टोक्यो में हुए चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (क्वाड) की संपन्न हुई बैठक पर पूरी दुनिया टकटकी लगाए बैठी हुई थी। बैठक में जापान के प्रधानमंत्री किशिदा, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथोनी एल्बनिजि और अमेरिका के राष्ट्रपति बाईडेन वह भारत की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सम्मलित हुए।

चीन भले ही चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (क्वाड) को नाटो का एशियाई संस्करण बताकर इसे अमेरिका का हथकंडा बता रहा हो परंतु इस बात से चीन भी इनकार नहीं कर सकता है कि यह नाटो से मजबूत संगठन है जो चीन के नापाक मंसूबों पर नकेल डाल सकता है। इस संगठन में ऐसे समय अपनी दहाड़ चीन के क्षेत्र में की जब चीन ताइवान को अपने शिकंजे में लेने के लिए कमर कस चुका है चीनी रणनीतिकारों का मानना है कि इस समय अमेरिका वह उसके साथी संगठन नाटो यूक्रेन रूस युद्ध में उलझे हुए हैं ऐसे समय में वह चीन के खिलाफ मोर्चा नहीं खोल सकते इसी का फायदा उठाते हुए चीन ने ताइवान पर कब्जा करने का मन बना लिया। चीन भूल गया कि उसके आसपास उसके जितने भी पड़ोसी देश हैं वर्तमान में रूस हुआ उत्तर कोरिया को छोड़कर सभी देश उसके विस्तार वादी प्रवृत्ति के कारण दुखी व पीड़ित हैं इसलिए अमेरिका के साथ मिलने पर भारत जापान और ऑस्ट्रेलिया जिन देशों का जीना हराम चीन ने अपने विस्तार वादी प्रवृत्ति से कर रखा है। वे चीन को सबक सिखाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
जहां तक भारत का दृष्टिकोण है भारत के राष्ट्रीय हितों सुरक्षा की दृष्टि से भारत के लिए चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (क्वाड) एक वरदान साबित हो सकता है।
परंतु जहां तक नाटो का सवाल है वह भारत के हितों के अनुकूल नहीं है भारत के हित जहां यूक्रेन की दृष्टि से देखा जाए तो रूस के साथ है। क्योंकि रूस ने विगत 7 दशकों से न केवल भारत के हर विपत्ति काल में सहायता दी अपितु भारत के विकास व सामरिक मजबूती दिलाने में भी रूस का महत्व पूर्ण सहयोग रहा। रूस ने भारत को हमेशा न केवल अत्याधुनिक तकनीकी व सामरिक हथियार दिए अपितु इनके भारत में उत्पादन के लिए भी हमेशा सहयोग दिया। भारत और रूस के सामरिक सहयोग का सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र है।
वहीं दूसरी तरफ अमेरिका सदा ही भारत विरोधी पाकिस्तान आदि देशों को सहयोग देता रहा। यही नहीं भारत को चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (क्वाड) मैं सम्मलित होने के बावजूद वह अत्याधुनिक सामरिक हथियार देने के लिए तैयार नहीं है, जो वह सहजता से आस्ट्रेलिया व जापान को देता है। वह भारत की तरफ सदैव आशंकित रहता है। परंतु चीन के साथ अमेरिका के वर्चस्व की जंग के कारण उसको भारत का साथ अत्यावश्यक लगता है। रूस के खिलाफ भारत को उकसाने के बावजूद भारत ने जो रूस से अपनी मित्रता को जारी रखा उसे भी अमेरिका और उसके मित्र राष्ट्र आशंकित है।

वहीं दूसरी तरफ जहां चीन का सवाल आता है तो भारत को वर्तमान स्थितियों को देखते हुए चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (क्वाड) ही बेहतर सहयोगी नजर आता है।

वह भी ऐसे समय जब एक तरफ रूस वह यूक्रेन के बीच भीषण युद्ध चल रहा है वह दूसरी तरफ चीन अपने पूर्व भूभाग ताइवान पर कब्जा करने के लिए किसी भी समय हमला कर सकता है । एक तरफ अमेरिका और उसके मित्र नाटो देश यूक्रेन को हथियारों व रसद इत्यादि की सहायता देकर उसे रूस के खिलाफ मजबूती से मदद दे रहे हैं वहीं दूसरी तरफ अमेरिका अपने मित्र ताइवान को चीनी शिकंजे से बचाने के लिए कमर कसे हुए है। चीन पर अमेरिका कैसे अंकुश लगाएगा इसी दिशा में कदम बढ़ाते हुए अमेरिका ने अपने मित्र राष्ट्रों को जो चीन की अपने पड़ोसियों के भूभाग पर कब्जा करने वाली विस्तार वादी कृतियों से पीड़ित है आशंकित हैं और अपने बचाव के लिए कोई मजबूत मंच बनाना चाहते हैं ऐसे देशों में भारत जापान ऑस्ट्रेलिया को साथ में लेकर अमेरिका ने 2007 में बनाया गया अपने निष्क्रिय संगठन चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (क्वाड), को एक बार पुनः न केवल सक्रिय किया अभी तो उसको मजबूती प्रदान करने के लिए जापान की राजधानी टोक्यो में शिखर सम्मेलन का भी आयोजन किया इस शिखर सम्मेलन की मेजबानी जहां जापान ने की। इस शिखर सम्मेलन में चीन से पीड़ित ऑस्ट्रेलिया के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री भी सम्मलित हुए। इस संगठन के प्रमुख सदस्य के रूप में भारत का सम्मलित होना चीन के लिए एक बहुत बड़ा धक्का साबित होगा ।क्योंकि इन चारों देशों में केवल भारत ही ऐसा देश है, जिसकी सीमा चीन से सीधा मिलती है ।जो विकास की दृष्टि से, सामरिक दृष्टि से और सांस्कृतिक दृष्टि से चीन को कड़ी टक्कर दे सकता है। भारत व चीन का दशकों पुराना विवाद यह कि चीन ने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की भारत की मित्रता की पंचशील प्रस्ताव को 1962 में भारत पर हमला करके रौंदने का कार्य किया। इसके साथ चीन ने हजारों वर्ग किलोमीटर भारतीय जमीन पर भी ब्लात कब्जा किया।
चीन के इस दुश्मन भरे रवैया के बावजूद भारतीय हुक्मरानों का चीन से मित्रता का भ्रम नहीं टूटा। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी मित्रता की पींग को आगे बढ़ाने के लिए भारत यात्रा पर आए चीन के वर्तमान राष्ट्रपति को झूले में झूलाये। परंतु मुंह में राम बगल में छुरी रखने वाले चिन्ह भारत की मित्रता को रोंदते हुए भारत के दुश्मन पाकिस्तान को अपना सहयोगी बनाकर भारत के लद्दाख आदि क्षेत्र में अतिक्रमण जारी रखा इसका भारतीय जांबाज सैनिकों ने मुंह तोड़ जवाब दिया। परंतु भारतीय हुक्मरानों ने न आज तक पाकिस्तान व नहीं चीन से संबंध विच्छेद किए व नहीं उन्हें शत्रु राष्ट्र का दर्जा दिया। इससे उत्साहित होकर चीन और पाकिस्तान निरंतर भारत विरोधी आतंकी गतिविधियां व भारतीय सीमा पर हमला जारी रखे हुए हैं।

इस बैठक को संबोधित करते हुए चीन की नाक में नकेल डालने के लिए तैयार विश्व की महाशक्ति अमेरिका ने चीन को करारा जवाब दिया कि हम हिंद प्रशांत क्षेत्र के लोकतांत्रिक देश हैं और इस क्षेत्र की हम ताकतें हैं। हम हिंद प्रशांत क्षेत्र को स्वतंत्र क्षेत्र बनाना चाहते हैं। हम नहीं चाहते हैं कि चीन सहित कोई भी देश इस क्षेत्र पर अपना एकाधिकार जमा कर विश्व के हितों पर कुठाराघात करें।
इस प्रकार का दुस्साहस जो भी देश करेगा चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (क्वाड), उसके नापाक इरादों को विफल कर देगा।
इसी प्रकार का संवाद जापान व ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने भी इस शिखर सम्मेलन में व्यक्त किए।
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि

प्रधानमंत्री किशिदा, प्रधानमंत्री एंथोनी एल्बनिजि और राष्ट्रपति बिडेन

प्रधानमंत्री किशिदा, आपके शानदार अथित्या के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद । आज टोक्यो में मित्रों के बीच होना मेरे लिए बहुत खुशी की बात है ।

मैं सबसे पहले प्रधान मंत्री एंथोनी एल्बनिजि, चुनावों में विजय के लिए आपको बहुत बहुत बधाई, बहुत बहुत शुभकामनाएं।

शपथ लेने के 24 घंटे के बाद ही आपका हमारे बीच होना, Quad मित्रता की ताकत और इसके प्रति आपकी प्रतिबद्धता को दिखाता है।

मान्यवर
इतने कम समय में Quad समूह ने विश्व पटल पर एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है ।

आज Quad का scope व्यापक हो गया है और स्वरूप प्रभावी हो गया है ।

हमारा आपसी विश्वास, हमारा डिटरमिनेशन, लोकतांत्रिक शक्तियों को नई ऊर्जा और उत्साह दे रहा है ।

Quad के स्तर पर हमारे आपसी सहयोग से एक free, open और inclusive Indo-Pacific क्षेत्र को प्रोत्साहन मिल रहा है, जो हम सभी का साझा उद्देश्य है।

COVID – 19 की विपरीत परिस्थितियों के वाबजूद, हमने वैक्सिन-डिलिवरी, climate action, supply chain resilience , disaster response और आर्थिक सहयोग जैसे कई क्षेत्रों में आपसी समन्वय बढ़ाया है।

इससे इंडो-पैसेफिक में शांति, समृद्धि और स्थिरता सुनिश्चित हो रही है।

Quad इंडो-पेसिफिक क्षेत्र के लिए एक constructive एजेंडा लेकर चल रहा है।

इससे Quad की छवि एक ‘Force for Good’ के रूप में और भी सुदृढ़ होती जायेगी।

बहुत बहुत धन्यवाद।

चारों नेताओं के संबोधन के बाद भले ही चतुर्पक्षीय सुरक्षा संवाद किस शिखर बैठक समापन हो गई हो परंतु इस बैठक की गूंज दुनिया के कोने कोने के साथ चीन के हुक्मरानों के कानों तक अवश्य गूंज रही है।

भले ही चीन चतुर्पक्षीय सुरक्षा संवाद को एशिया का नाटो घोषित करें परंतु नाटो व चतुर्पक्षीय सुरक्षा संवाद मैं सबसे बड़ा अंतर है नाटो में भारत नहीं है वह चतुर्पक्षीय सुरक्षा संवाद मैं भारत सम्मलित है। नाटो रूस के खिलाफ अपने वर्चस्व को बनाने के लिए अमेरिका का एक संगठन है वहीं चतुर्पक्षीय सुरक्षा संवाद चीन के विस्तार बाद को रोककर विश्व की रक्षा करने का अमेरिका व चीन से पीड़ित देशों का एक संगठन है। दोनों में एक ही समानता है कि अमेरिका विश्व में अपना वर्चस्व बनाने के लिए इस प्रकार के संगठन को खड़ा करता है पर भाव जहां नाटो का वर्चस्व का है वहीं चतुर्पक्षीय सुरक्षा संवाद का चीन के विस्तार वादी रवैया से विश्व की रक्षा करने का है। देखना है चीन के नापाक इरादों पर
चतुर्पक्षीय सुरक्षा संवाद अंकुश लगाने में कहां तक सफल होता है?

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