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मोदी के राज में लालू की छत्रछाया के अभाव में बिहार विधानसभा चुनाव में फिर होगी नीतीश की पौ बारह

चुनाव आयोग ने बजायी कोरोनाकाल में विश्व का सबसे बडा चुनाव‘ बिहार विधानसभा चुनाव 2020’ की  रणभेरी,

तीन चरणों (28 अक्टूबर, 3 नवम्बर व 7 नवम्बर)में मतदान      10 नवम्बर को होगी मतगणना

देवसिंह रावत

25 सितम्बर 2020 को जहां मोदी सरकार द्वारा संसद में पारित  किसान कल्याण विधेयक के खिलाफ किसान देश व्यापी विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं उसी दिन दोपहरी में भारत के निर्वाचन आयोग ने देश के सबसे बडे राज्यों में एक बिहार विधान सभा चुनाव 2020 का शंखनाद कर पूरे बिहार में चुनाव आचार संहिता लागू कर दी।  मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने चुनाव आयोग के मुख्यालय में आयोजित एक विशेष प्रेस वार्ता में बिहार चुनाव का ऐलान करते हुए बताया कि 243 विधानसभा सीटों वाली बिहार विधानसभा का चुनाव इस बार ं तीन चरणों में मतदान होगा। प्रथम चरण में 16 जनपदों की 71 विधानसभा सीटों पर मतदान 28 अक्टूबर होगा। वहीं  दूसरे चरण में 17 जनपदों के 94 विधानसभा सीटों पर मतदान 3 नवम्बर को होगा तथा तीसरे चरण में 15 जनपदों की 78 विधानसभा सीटों पर मतदान 7 नवंबर को होगा। तीनो चरणों के लिए हुए मतदान की मतगणना  10 नवंबर को होगी ।
बिहार के 7 करोड़ से अधिक मतदाता इस बात का फैसला करेंगे कि अगल पांच सालों के लिए बिहार का भाग्य विधाता कौन रहेगा। क्या बिहार की जनता इन चुनाव में भी  अगले पांच साल तक बिहार की बागडोर  15 साल से सत्ता में काबिज नीतीश कुमार के ही हाथों में पुन्नः सौंप देगी या नीतीश कुमार को सत्ता से बेदखल करने के लिए राजग गठबंधन को कडी टक्कर दे रहे लालू नंदन के हाथों में सौंपेगी।  यह भी 10 नवंबर को साफ हो जाएगा। इस बार 14 नवम्बर को होने वाली दिवाली बिहार के चुनाव में बाजी मारने वाला गठबंधन एक प्रकार से 10 नवम्बर को ही मना देगा।
परन्तु बिहार की राजनीति के जानकारों को पूरा भरोसा है कि मोदी राज में लालू की छत्रछाया के अभाव मं नीतीश कुमार की ही पौ बारह ही होगी। नहीं लगता है बिहार विधानसभा चुनाव में जनता कोई बड़ा परिवर्तन करेगी। भले ही नीतीश कुमार से भी बिहार की जनता का मोह भंग हो चूका है। परन्तु इसके बाबजूद बिहार में नीतीश से बेहतर कोई विकल्प न भाजपा में नजर आ रहा है व नहीं लालू नंदन की राजद में। भले ही चुनावी समर के ऐलान के बाद राजग व राजद दोनों में भगदड़ मचेगी। परन्तु मोदी की छ़त्रछाया में नहीं लगता है कि बिहार में कोई बड़ा उलट फेर हो रहा है। जिस प्रकार से भाजपा महाराष्ट्र में अपने सबसे पूराने वैचारिक सहयोगी शिवसेना का नेतृत्व किसी भी कीमत पर स्वीकार न करके विपक्ष में भी बैठ गयी परन्तु वहीं बिहार में वह नीतीश की जादूगरी के आगे सष्टांग होने से भी परहेज नहीं कर रही है। खासकर उस नीतीश की सरपरस्ती में जिस नीतीश ने मोदी के साथ मंच व तस्वीर तक कभी सांझी करने पर देशव्यापी किरकिरी करायी थी। आज नीतीश ने जमीनी सचाई स्वीकार करते हुए मोदी है तो मुमकीन है का जाप करना पड़ रहा है। देश के राजनीति के मर्मज्ञ इस बात से भी हैरान है कि जातिवादी राजनीति के शिकार हुए बिहार में विगत 15 साल से नीतीश कुमार का ही राज चल रहा है जिनकी जाति का वजूद बिहार में दस प्रतिशत से भी कम है। कभी प्रधानमंत्री बनने के लिए मोदी से दूरी बनाने क ेसाथ अपने वरिष्ठ नेता शरद यादव व जार्ज को दूध से मक्खी की तरह बाहर करने वाले नीतीश कुमार को भी यह बात समझ में आ गयी है कि मोदी व शाह की सरपरस्ती में अब किसी दूसरे का प्रधानमंत्री बनना संभव नहीं है। इसी को भांपते हुए नीतीश ने बिहार विधानसभा का राज मोदी के आशीर्वाद के सहारे चलाने में अपना भला समझा। वहीं भाजपा को भी समझ में आ गया कि बिहार की सत्ता में काबिज होने के लिए अभी नीतीश जरूरी है। इसी समीकरण के तहत भाजपा व जदयू दोनों ने यह गठबंधन जारी रखा है। नहीं तो पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी सहित इस गठबंधन के  सहयोगी दल कबके किनारा कर देते। ें
कोरोना महामारी से त्रस्त विश्व में बिहार का चुनाव विश्व का सबसे बड़ा चुनाव है, । कोरोना काल में हो रहे इस चुनाव में कई नियमों में बदलाव किया गया है। मुख्य चुनाव आयुक्त ने ऐलान किया कि बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के लिए मतदान सुबह 7 बजे से शाम के 6 बजे तक होगा।  नामांकन ऑनलाइन भी किया जा सकेगा, बूथ स्तर पर थर्मल स्कैनर लगेंगे। नामांकन भरने के लिए उम्मीदवार के साथ केवल 2 व्यक्ति सीमित । नामांकन में वाहनों की संख्या भी केवल 2 ही होगी। घर घर प्रचार अभियान के लिए उम्मीदवार सहित केवल पांच व्यक्ति सीमित। प्रोटोकॉल के अनुसार स्वास्थ्य और सुरक्षा का पालन आवश्यक।
मुख्य चुनाव आयुक्त, सुनील अरोड़ा के अनुसार कोरोना काल में मतदान सुरक्षित कराने के लिए, अब तक 7 लाख से अधिक हैंड सैनिटाइजर , लगभग 46 लाख मास्क, 6 लाख पीपीई किट, 7.6 लाख फेस किट और 23 लाख ग्लव्स की व्यवस्था की गई है। बिहार के 38 जिलों में लगभग 18.87 लाख प्रवासियों में से 16.6 लाख मतदान के पात्र थे और 13.93 लाख लोगों के नाम पहले से ही सूची में थे। 2.3 लाख लोगों का पंजीकरण किया गया है और यह प्रक्रिया अभी भी जारी है। मतदान सुरक्षित कराये जाने के लिए  एक लाख पोलिंग स्टेशन होंगे, ईवीएम व वीवीपीएआई भी बढ़ाये गए हैं।
इस साल वर्तमान में एक अधिमास यानी मलमास के कारण दशहरा व दिवाली  के पावन पर्व के बीच ही बिहार विधानसभा चुनाव भी सम्पन्न होंगे।
मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि कोरोना  संक्रमण के कारण क्वारंटाइन में रहने वाले मतदाता या तो पोस्टल बैलट से मतदान कर सकते हैं या फिर वे अंतिम चरण के चुनाव के दिन अपने अपने मतदान केंद्रों में स्वास्थ्य अधिकारियों की देख रेख में मतदान करेंगे। बिहार विधानसभा चुनाव में मतदान एक घंटा अधिक यानी शाम छह बजे तक चलेगा, कोविड-19 रोगी आखिरी घंटे में मतदान कर सकते हैं।
मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव के लिए 7 लाख हैंड सैनिटाइजर, 46 लाख मास्क, 6 लाख पीपीई किट, 6.7 लाख फेस शील्ड और 23 लाख जोड़ी दस्तानों की व्यवस्था कर ली गई है। कोविड-19 के साए में होने जा रहे बिहार चुनाव के दौरान जहां भी जरूरत होगी और आग्रह किया जाएगा, वहां डाक मतदान की सुविधा उपलब्ध करवाई जाएगी। कोरोना काल में हो रहे इस चुनाव का  प्रचार भी केवल वुर्चुअल होगा, सत्तारूढ़दल ने विडियो कांफ्रेंसिग के द्वार्रा  वर्चुअल रैलियां कर चूकी है। वहीं लालू की राजद व उसके गठबंधन इस प्रचार में अभी सत्तारूढ़ गठबंधन से पिछडे है। उनके समर्थक वर्ग इस प्रकार के फोन व प्रचार से प्रायः दूर ही है।उनको इस चुनाव में भारी मेहनत करनी पडेगी।

गत बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में राजद व जदयू व कांग्रेस के सप्रंग ने 243 विधानसभा सीटों वाली बिहार विधानसभा के चुनाव में भाजपा के राजग गठबंधन को पछाड दिया था। सप्रंग ने गत चुनाव में 178 सीटों पर काबिज हो कर बड़ी जीत हासिल की थी तो भाजपा की राजग गठबंधन जिसमें भाजपा, पासवान की एलजेपी व मांझी की हम  58 सीटों पर सिमट गया। गत बिहार विधानसभा के चुनाव में राजद को सबसे अधिक 80 सीटें नीतीश की  जेडीयू को 71 व कांग्रेस को 27 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। वहीं भाजपा 53, एलजेपी 2, कुशवाहा की आरएलएसपी 2 और  माझी की हम को एक सीट मिली थी। इस चुनाव में मात खाने के बाद मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा ने बिहार के चुनावी समीकरणों पर गहन चिंतन मंथन के बाद समझ लिया कि नीतीश जैसे चुनावी मर्मज्ञ के बिना बिहार की सत्ता में सहभागी बनना अभी संभव नहीं है। इसी मूल मंत्र को आत्मसात करके भाजपा ने ऐसा दाव चला कि नीतीश व लालू का समीकरण रेत की महल की तरह बिखर गया और बिहार की सत्ता में राजद व कांग्रेस बाहर धकेल कर भाजपा अपने गठबंधन के साथ नीतीश की सरपरस्ती में बिहार की सत्ता में काबिज हो गयी। भले ही इस समीकरण में कुशवाह जैसे साथी बाहर गये परन्तु राजग को मांझी की हम का साथ फिर मिल गया। इस बार बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के चुनावी रणभेरी के समय भी साफ लग रहा है कि मोदी के राज में लालू के अभाव में बिहार विधानसभा चुनाव में फिर होगी नीतीश की पौ बारह । मुख्य विरोधी दल राजद की स्थिति ऐसी ताजपोशी जैसी नहीं है। राजद की इसी स्थिति को भांप कर राजद के सबसे वरिष्ठ प्रभावशाली नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी स्वर्गवाश होने से चंद दिन पहले राजद का त्याग करना ही श्रेयकर समझा। राजद की स्थिति 2015 की तरह नहीं है। वहीं मोदी का राज, नीतीश का चेहरा के साथ सत्ता की तिकडम का लाभ राजग को अवश्य मिलेगा।

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