उत्तराखंड देश

हरियाणा व पंजाब में सत्तासीन होने के मंसूबों पर पानी फिरने के बाद अब केजरीवाल की वक्रदृष्टि उतराखण्ड पर

भाजपा व कांग्रेस से बदतर आप से नहीं अपितु राज्य गठन के लिए समर्पित रही उक्रांद से है उतराखण्ड की जनता को आश  
 उतराखण्ड विधानसभा 2022 के चुनाव में सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारेगी आम आदमी पार्टी
देवसिंह रावत
दिल्ली में दो बार अभूतपूर्व बहुमत के साथ सत्तासीन हुए अरविंद केजरीवाल, अब उतराखण्ड में अपनी नई सियासी पारी खेलना चाहते है। दिल्ली में पूर्ण राज्य न होने के कारण अरविंद केजरीवाल किसी पूर्ण राज्य में अपनी नई पारी खेलना चाहते थे। इसके लिए अरविंद केजरीवाल सबसे पहले अपने गृह राज्य हरियाणा की सत्ता में काबिज होना चाहते थे। परन्तु वहां जाट बर्चस्व की राजनीति में उनकी दाल नहीं गली। वहां उनकी राह में कांग्रेस व भाजपा के नेताओं से पहले उनके ही दल के नेता योगेंद्र यादव सबसे बडे अवरोधक लगे। हरियाणा में चुनावी दंगल में उतर कर अपने मंसूबों को धरातल में उतारने का मन बना चूके केजरीवाल ने देखा की योगेंद्र से वे पार नहीं पा सकेंगे तो उन्होने अचानक सबको चैंकाते हुए हरियाणा में चुनावी जंग से दूर रहने का ऐलान किया। इससे कार्यकत्र्ताओं में भारी निराशा उपजी। इसके बाद ही योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण आदि समर्पित दिग्गजों को बहुत ही अपमानित व अलौकतांत्रिक ढंग से दल से बहार किया गया।
हरियाणा में निकट भविष्य में भी दाल न गलने की आशंका से ग्रसित अरविंद केजरीवाल ने पंजाब की सत्ता में काबिज होने के मंसूबे से ही पंजाब विधानसभा चुनाव में पूरे दमखम से उतरे थे। परन्तु पंजाब के स्वाभिमानी जनता ने केजरीवाल के मंसूबे भांप कर उनकी पार्टी को धूल चटा दी। पंजाब में नशे के खिलाफ केजरीवाल की मुहिम लोगों के नजर में आप सांसद के देख कर उतर गयी। वहीं आतंक से त्रस्त पंजाब में केजरीवाल का रूख स्पष्ट न होने से पंजाब के लोगों के साथ पंजाब आम के वरिष्ठ नेताओं का भी केजरीवाल से मोह भंग हो गया। जिस जरनेल सिंह को दिल्ली से पंजाब में चुनावी दंगल में केजरीवाल ने अपना भरत बनाने की मंशा से उतारा था आज वह जरनैल सिंह को भी केजरीवाल आप से बाहर कर चूके है। वेसे सिद्धांतों की बात करने वाले केजरीवाल की कथनी व करनी में भारी अंतर देख कर उनके समर्थकों का ही नहीं संस्थापक सदस्यों का भी मोह भंग हो चूका है। सत्तामोह में नये कार्यकत्र्ताओं के दम पर उतराखण्ड की सरजमी पर केजरीवाल कैसे अपने मंसूबों को साकार करेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। वेसे उतराखण्ड के ताज पर आप के बडे नेताओं की नजर लगनी कोई नयी बात नहीं है। पिछले चुनावों में चुनाव से पहले पूरी हवा थी कि आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता कुमार विश्वास उतराखण्ड की कमान संभाल सकते है। परन्तु पार्टी के सभी बडे नेताओं को एक एक करके दल से बाहर करने वाले लोकशाही के दंभ भरने वाले अरविंद केजरीवाल के सबसे खासमखास समझने वाले कुमार विश्वास को इसका भान भी नहीं था कि उनके मंसूबों पर पारी फेरने वाला और कोई दूसरा नहीं उसके संघर्ष के साथी अरविंद केजरीवाल ही होगा। केजरीवाल ने न केवल आम आदमी पार्टी की नींव रखने वाले प्रशांत भूषण व देश के विख्यात गांधीवादी चिंतक योगेंद्र यादव को  दूध में से मक्खी की तरह बाहर फैंक दिया। उसके बाद कुमार विश्वास व कपिल मिश्रा का नम्बर आया। आम आदमी पार्टी में आये पत्रकार आशुतोष ने भी केजरीवाल की राजनीति से तौबा करके पुन्नः अपनी पत्रकारिता को धार देना ही हितकर समझा। हालांकि केजरीवाल द्वारा अपने साथियों को दूध में मक्खी की तरह निकालने की आदत केवल आप बनने के बाद ही पैदा नहीं हुई। जनलोकपाल आंदोलन में संघर्ष काल में सबसे पहले स्वामी रामदेव,तेजतरार आंदोलनकारी श्रीओम गौतम व स्वामी अग्निवेशआदि को बहुत ही चालाकी से किनारा करने का काम अरविंद कर चूके थेे। वहीं आप गठन के बाद सत्तासीन होने के बाद अपने कथनों व मूल्यों को किस ढंग से सांप की केंचूली की तरह उतारने वाले अरविंद केजरीवाल से जनलोकपाल आंदोलन के प्रेणेता अण्णा हजारे कितना मर्माहित हुए। यह जगजाहिर है। अरविंद केजरीवाल अपनी सत्ता के लिए अपने स्वयं घोषित सिद्धांतों व मूल्यों को कैसे रौंदते है इसका पूरा उदाहरण है उनका दिल्ली में सत्तासीन हुए दो बार का कार्यकाल। भ्रष्टाचार के खिलाफ उनका आंदोलन उनके खुद के लिए एक आईना है। बची खुची कसर दिल्ली के दंगों की पूरी कर दी। जिस प्रकार से उनके एक नेता की शह पर दिल्ली के दंगे की भट्टी में यहां का अमन चैन स्वाहा हुआ,उसके लिए कहीं न कहीं केजरीवाल की सरपरस्ती वाले आम नेता जिम्मेदार है। इन दंगों के भेंट उतराखण्ड का नौजवान दिलवर नेगी भी चढ़ा। क्या अपनी सत्ता के लिए ऐसे अलोकतांत्रिक व अवसरवादी व्यक्ति के कलुषित मंसूबे देवभूमि उतराखण्ड की जनता कभी सफल नहीं होने देगी। उतराखण्ड के लोग स्वाभिमानी, देशभक्त व न्यायप्रिय है वे कालनेमियों को पहचानते है। जिस उतराखण्ड की जांबाज जनता ने इंदिरा गांधी को सबक सिखाया था वह देवभूमि में केजरीवाल व उनके प्यादों को सफल होने देंगे यह संभव नहीं है। उतराखण्ड में केजरीवाल की दाल नहीं गलने वाली। दिल्ली की सत्ता में मोदी व कांग्रेस के आशीर्वाद से सत्तासीन हुए केजरीवाल का उतराखण्ड में भी सत्तासीन होने के मंसूबे दिवास्वप्न की तरह बिखर जायेंगे। उतराखण्ड के लोग सहृदय व्यक्ति को सर आंखों पर बिठाती है परन्तु तिकडमी कालनेमियों को आईना दिखाती है।

दिल्ली में इसका ऐलान आम आदमी पार्टी के प्रमुख व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उतराखण्ड विधानसभा चुनाव 2022 में आम आदमी पार्टी के चुनावी दंगल में उतरने का ऐलान करते हुए कहा कि पहले हमें नहीं लगता था कि पार्टी उतराखण्ड में चुनाव लडेगी। पर डेढ महीने पहले हमने उतराखण्ड में एक सर्वे कराया। सर्वे के अनुसार राज्य की 62 प्रतिशत जनता भाजपा व कांग्रेस के कुशासन से त्रस्त है और जनता चाहती है कि आम आदमी पार्टी उतराखण्ड के विधानसभा चुनाव में हिस्सा ले।
हम इससे उत्साहित हैं और हमने उतराखण्ड को अपनी कर्मभूमि बनाने का मन बनाया है। एनजीओं काल से हवाई सर्वेक्षणों में पारंगत अरविंद केजरीवाल भले ही दिल्ली में सत्तासीन होने में केजरीवाल सफल हों पर वे उतराखण्ड की कठोर पहाडी राहों में यह सर्वेक्षण आंधे मुंह गिरेंगे। यह भी सच है कि उतराखण्ड की जनता राज्य गठन के 20 सालों में भाजपा व कांग्रेस के कुशासन से त्रस्त है। वे एक मजबूत विकल्प तलाश रही है। परन्तु वह चाहती है कि अगर कोई तीसरा विकल्प बने तो उतराखण्ड से बने। जो लोग दशकों से उतराखण्ड के हक हकूकों के लिए संघर्ष कर रहे है। लोग राज्य गठन के प्रमुख संगठन उत्तराखण्ड क्रांति दल के नेतृत्व में तीसरे मोर्चा की राह देख रहे है। यह सच है कि उक्रांद के सत्तालोलुपु मठाधीशों के कारण उक्रांद संगठनात्मक दृष्टि से भाजपा व कांग्रेस की तरह जमीन पर मजबूत न दिखे परन्तु प्रदेश की जनता की सहानुभूति उक्रांद के साथ है। आम आदमी पार्टी भले ही धन व बाहुबल में भाजपा व कांग्रेस को टक्कर दे सकती है परन्तु जनता यह जानती है आप भी भाजपा व कांग्रेस की तरह बदरंग है। प्रदेश के हितों के साथ खिलवाड ही करेगी। प्रदेश के हितों के साथ अगर कोई न्याय करेगी तो उक्रांद जैेसे दल। जिनका पूरा जीवन उतराखण्ड के जनहितों के लिए संघर्ष करने के लिए समर्पित रहा। उक्रांद को सभी राजनैतिक रूप से जागरूक सपा व माकपा को छोड कर अन्य दलों को साथ लेकर एक मजबूत मोर्चा बनाये। ईमानदारी से संघर्ष करेंगे तो जनता साथ देगी। परन्तु दिल्ली का राजकाज देख कर आप पर जनता को विश्वास नहीं होगा।
हालांकि आम आदमी पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में भी उतराखण्ड में अपने प्रत्याशी उतार चूकी है परन्तु जनता ने उसे सिरे से नकार दिया था। इस हार का झटका इतना गहरा लगा कि आप ने 2017 व 2019 के विधानसभा चुनाव में सबकुछ तैयारी करने के बाबजूद प्रत्याशी उतारने का साहस नहीं जुटा पायी। इससे चुनावी जंगबाज अनैक नेताओं ने आप से किनारा कर दिया।
इसको लेकर देहरादून में भी आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रभारी दिनेश मोहनिया ने पत्रकार वार्ता करके केजरीवाल के इस ऐलान को जारी किया। आम आदमी पार्टी ने उतराखण्ड के 10800 मतदान केंद्रो में से 6 हजार मतदान केंद्रो पर प्रभारी भी तय दिये हैं।प्रत्येक मतदान केंद्र प्रभारी के साथ 5-5 कार्यकर्ताओं का एक दल भी बनाया गया है। वहीं आम आदमी पार्टी ने उतराखण्ड का प्रमुखएस एस कलेर के हाथों में सौंपी है। पार्टी अन्य राजनैतिक दलों की तर्ज पर जिला स्तर के संगठन पर जोर देने के बजाय मतदान केंद्र दल को मजबूत करने को प्राथमिकता दे रही है।
यही नहीं आम आदमी पार्टी के प्रमुख के उतराखण्ड में चुनावी समर में उतरने के ऐलान के बाद आम आदमी पार्टी उतराखण्ड के लिए चुनावी घोषणा पत्र भी बनाने की तैयारी कर रही है। आप ने उतराखण्ड के मण्डलों के भी प्रमुख बना दिये है। कुमाऊं मण्डल का प्रभारी अमित जोशी को बनाया गया है।
दिल्ली की तर्ज पर बडे चेहरों के बजाय मुद्दों को प्रमुखता देने की रणनीति बनायी है। इसमें पलायन, बेरोजगारी, दिल्ली में सरकारी विद्यालयों की स्थिति  को सुधारने व  स्वास्थ्य में मोहल्ला क्लीनिक आदि मुद्दों को लेकर चुनावी दंगल में उतरेेगी।

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