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पहली जून से खुलेगी विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी

जोशीमठ(प्याउ)। कोरोना महामारी से त्रस्त व निराश भारत सहित पूरे  विश्व के प्रकृति प्रेमी, उतराखण्ड वन विभाग द्वारा पहली जून से विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी के खोलने  की खबर से गदगद है। फूलों की घाटी के दर्शन की व्यवस्था समुचित करने के लिए वन विभाग की पहला दल 30 जून को घांगरिया पंहुच गयी है। फूलों की घाटी भ्रमण के लिये सबसे सर्वोत्तम समय जुलाई, अगस्त व सितंबर के माह माने जाते हैे। इसी समय में विश्व भर के लोग बड़ी संख्या में फूलों की घाटी के भ्रमण को प्राथिमिकता देते है। उल्लेखनीय है कि सितंबर माह में ही दुर्लभ ब्रह्मकमल दिव्य फूल भी खिलते है।
इससे पहले प्रकृति प्रेमी इस बात से आशंकित थे कि कहीं कोरोना महामारी पर अंकुश लगाये जाने के लिए लगायी गयी लम्बी तालाबंदी से चार धाम यात्रा की तरह फूलों की घाटी की यात्रा पर भी ग्रहण न लग जाय। प्रकृति प्रेमी इस दुर्लभ फूलों की घाटी का भ्रमण कैसे कर पायेंगे इसके बारे में सभी मार्गदर्शन का ऐलान सरकार शीघ्र कर देगी।
फूलों की घाटी  हिमालय पर्वत श्रृंखला में पावन देवभूमि उतराखण्ड स्थित मोक्षभूमि चमोली में है। जनपद चमोली के जोशीमठ से 32 किमी दूरी पर विश्व की एकमात्र विलक्षण प्राकृतिक फूलों की घाटी 3 किमी लम्बी व आधा किमी चैड़ी हैं। यह राष्ट्रीय उद्यान के साथ यूनेस्को ने 1982 में विश्व धरोहर स्थल के रूप में विख्यात है। हालांकि यह विश्व धरोहर नंदादेवी अभयारण्य नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान का ही भाग माना जाता है।
फूलों की घाटी के बारे में यहां ऐसा जनविश्वास है कि त्रेता युग में जब लक्ष्मण व मेघनाथ के बीच हुए युद्ध में लक्ष्मण जी मूच्र्छित हो गये थे तब वेध द्वारा बतायी गयी संजीवनी हनुमान जी इसी घाटी में पधारे थे। वहीं दूसरी यह भी धारणा जनता में प्रचलित है कि यह वही स्थान है जहां कामदेव ने भगवान शिव की समाधी भंग करने का दुसाहस किया था।
आधुनिक काल में सन 1931 ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ व आर एल होल्डसवर्थ ने दुनिया में इसका प्रचार प्रसार किया।  इस घाटी की खूबसूरती से प्रभावित होकर स्मिथ पुन्न सन1937 में इस घाटी में वापस आये और, 1938 में उन्होने फूलों की घाटी (वेली आफ फ्लोवर)नाम से एक किताब भी प्रकाशित की । इससे शेष विश्व को इस अदभूत घाटी की तरफ बरबस खिंच रही है।

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