देश

आतंकियों व हैवानों के दानावाधिकार पर घडियाली आंसू बहाने वाले देश व जनता की सुरक्षा पर मौन क्यों?

 
उन्नाव की दामिनी के दम तोड़ने से फिर शोक में डूबा देश

 

आतंकियों व हैवानों को त्वरित खात्मा करने वाले जांबाजों से ही सुरक्षित है दमतोड़ चूकी व्यवस्था के दंश से व्यथित देश
हेदराबाद की दामिनी के गुनाहगारों के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने पर पूरे देश में हर्ष की लहर 
व्यवस्था जहां जीवंत होती है वहीं हो सकता है कानून का राज पर भारत में तो  शताब्दियों से अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी के दंश से व्यवस्था आंख भी नहीं खोल पाई।
देवसिंह रावत
जैसे ही 7दिसम्बर के तड़के लोगों को उन्नाव जिले की दामिनी के दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में कल रात 11.40 बजे दम तोड़ने की खबर मिली, पूरा देश शोक में डूब गया।  लोग इस बात से भी बेदह आहत थे कि देश की दमतोड़ चूकी कानून व्यवस्था को तुरंत सुधार करने के लिए सरकार पर भारी जनदवाब बनाने के बजाय देश के कई प्रभावशाली लोग केवल ऐसे हैवानों के दामनाधिकारों की बेशर्मी से वकालात कर 6 दिसम्बर को हेेदराबाद की दामिनी के गुनाहगारों को तेलंगाना पुलिस द्वारा मुठभेेड़ में मारे जाने पर प्रश्न खड़े कर रहे है।  देश में एक के बाद एक हो रही इस प्रकार की शर्मनाक घटनाओं से भारी आक्रोश है। तेलंगाना के हैदराबाद के साइबराबाद में 27 और 28 नवंबर की रात को पशु चिकित्सक के साथ चार लोगों द्वारा दुराचार करके उसकी निर्मम हत्या की। इसके बाद हैवानों ने नेशनल हाइवे-44 पर अंडरपास के पास इस पीड़िता को जला दिया । इस प्रकरण से पूरा देश स्तब्ध और आक्रोशित हो गया। लोग सड़क पर उतर आये। तेलांगाना पुलिस की ही नहीं वहां के मुख्यमंत्री की भी इस मामले में भारी किरकिरी हुई।उप्र के उन्नाव से भी एक पीड़िता को हैवानों द्वारा जिंदा जलाने की घटना से देश गुस्से से फट सा गया। लोग इस बात से भी आहत थे कि 2012 में दिल्ली की दामिनी के गुनाहगारों को आज 7 सालों बाद भी व्यवस्था सजा नहीं दे पायी। जबकि ऐसे दावा किया जा रहा था कि दिल्ली की दामिनी का न्याय देने के लिए त्वरित न्यायालय में यह मामला संचालित किया गया। इसके बाबजूद गुनाहगारों को सजा सालों बाद भी नहीं मिली। जबकि 2012 में दिल्ली की दामिनी के साथ हुई जघन्य काण्ड के बाद पूरा देश सडक पर उतर कर यही मांग कर रहा था कि ऐसे अपराधियों को एक साल के अंदर सजा हर हाल में दिया जाय। परन्तु 7 साल बाद भी न्याय नहीं मिला और गुनाहगार आज भी जिंदा हो कर देश की न्याय व्यवस्था पर तमाचा मार रहे है।
ऐसे निराशा के माहोल में डूबे देश को 6 दिसम्बर की सुबह एक आशा की किरण के रूप में तेलांगना पुलिस द्वारा हेदराबाद की दामिनी के चारों आरोपियों को पुलिस मुठभैड़ में मारे जाने की खबर से दिखाई दी। तेलंगाना के साइबराबाद पुलिस के आयुक्त सीवी सज्जनार ने बताया कि तेलांगाना पुलिस जब चारों आरोपी मोहम्मद आरिफ, जोलू नवीन, जोलू शिवा, चिंता कुंटा को 6 दिसम्बर की तडके घटनास्थल पर अपराध के दृश्यांकन कराने को ले गयी तो बिना हथकड़ी लगे इन आरोपियों ने भागने की नियत से पुलिस दल के हथियार छिन कर हमला कर दिया तो पुलिस दल के साथ मुठभेड़ ये चारों आरोपी मारे गये।
6 दिसम्बर की तडके  हेदराबाद की दामिनी के सभी चारों गुनाहगारों को तेलांगना की पुलिस ने एक मुठभेड़ में मार गिराने की खबर देश की जनता ने सुनी तो लोग खुशी से झूमने लगे।लोग इस बात से भी बेहद खुश थे इन चारों गुनाहगारों का खात्मा भी उसी स्थान में हुआ जंहा इन्होने तेलांगना की दामिनी को मौत के घाट उतारा था।  नेता, अभिनेता हो या आम आदमी सभी ने एक स्वर में इन हैवानों को मौत के घाट उतारे जाने पर अपनी खुशी जाहिर की। महिलाओं ने जहां पुलिस जिंदाबाद के नारे लगा कर पुलिसवालों का मुंह मिठा किया। वहीं स्कूली छात्राओं ने पुलिस के समर्थन में नारे लगाये। वहीं घटनास्थल पर इसके बाद जांच करने आये पुलिस के उपर लोगों ने पुष्प वर्षा की और पटाखे तक छोड़े। बसपा की प्रमुख मायावती हो या भाजपा की वरिष्ठ नेत्री उमा भारती, आप सांसद संजय सिंह हो या अन्य नेता सभी ने तेलंगाना पुलिस की जांबाजी को नमन करते हुए शाबासी दे रहे थे।हेदराबाद की दामिनी के मां बाप ने इस प्रकरण पर पुलिस को शाबासी देते हुए कहा कि मेरी बेटी को पुलिस ने न्याय दे दिया। वहीं 7 साल से गुनाहगारों को सजा देने की मांग करते करते थक गयी दिल्ली की दामिनि की मां बाप ने कहा कि काश उसकी बेटी के गुनाहगारों को ऐसी सजा मिल जाती। उन्होने कहा कि वे सात साल से हर दिन तिल तिल कर मर रहे हैं परन्तु व्यवस्था ऐसे हैवानों को अभी तक सजा नहीं दे पायी।
इसके बाबजूद कुछ लोग हेदराबाद के सांसद औवसी, भाजपा नेत्री मेनका गांधी व बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी आदि अनैक नेता ऐसे भी है जिनका मानना है कि पुलिस मुठभैड़ की जांच होनी चाहिए। व ऐसे प्रकरणों का समाधान पुलिस द्वारा गुनाहगारों को गोली मार कर सजा देना नहीं। परन्तु ये लोग भूल गये कि देश में न्याय व्यवस्था नाम की कोई चीज है ही नहीं। यहां की न्याय व्यवस्था देश की भाषा में नहीं अपितु अंग्रेजी भाषा में संचालित होती है। देश में ऐसी जरजर न्याय व्यवस्था है की दशकों तक एक मामले पर न्याय ही नहीं मिलता। आम आदमी न्याय व्यवस्था से फरियाद करने के बजाय भगवान के उपर सब छोड़ देता है। जिस प्रकार से रामजन्म भूमि में फैसला आने को 5 दशक वर्तमान समय में लगे, वहीं मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को सजा देने में 25 साल से देश की व्यवस्था असफल रही। पंजाब आतंकबाद, 84 के गुनाहगारों सहित अनैक मामलों पर सजा देने में असफल रही।
इस पूरे प्रकरण में कटघरे में खड़ी रही देश की न्याय व्यवस्था, जिसकी लेट लतीफी से पूरा देश इस बात से आक्रोशित व आहत है। जिसके कारण दिल्ली की दामिनी के गुनाहगारों को 7 साल बाद भी सजा नहीं मिली। जिसके कारण उन्नाव की दामिनि के गुनाहगार आज भी जिंदा है। अगर देश की न्याय व्यवस्था जीवंत रहती तो बलात्कार के आरोपी मुख्य आरोपी शुभम त्रिवेदी को  जमानत नहीं मिलती। इन हैवानों ने जमानत मिलने के बाद उन्नाव की दामिनी को जिंदा जला दिया था। इसके बाबजूद उन्नाव की इस 90 प्रतिशत जलायी गयी पीड़िता ने हिम्मत नहीं हारी व एक किमी दौड़ लगा कर इस हैवानियत की सूचना अपने परिजनों को दी। उसके बाद इस दामिनी को इलाज के लिए लखनऊ के चिकित्सालय व बाद में जले के इलाज की दृष्टि से देश के सबसे बेहतर अस्पताल दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में लाया गया। जहां उस पीड़िता ने दम तोड़ दिया। दम तोड़ने से पहले उन्नाव की दामिनी ने अपने भाई सहित परिजनों से कहा था कि किसी भी हालत में गुनाहगारों को सजा मिलनी चाहिए। उन्नाव की दामिनी के निधन के बाद उनके परिजनों ने एक स्वर में मांग की कि उनकी बेटी के सभी गुनाहगारों को हैदराबाद के गुनाहगारों की तरह मुठभेड़ में मार गिराना चाहिए या फांसी पर लटकाना चाहिए। उन्नाव की दामिनी के निधन पर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गहरा शोक प्रकट करते हुए पीड़ित परिजनों को आश्वासन दिया कि गुनाहगारों को कड़ी सजा मिलेगी। परन्तु लोगों के जेहन में एक ही सवाल है कि उन्नाव की पीड़िता को सुरक्षा तक मुहैया न कराने वाली व्यवस्था ने इसके गुनाहगारों को जमानत क्यों दी? अगर पीड़िता को सुरक्षा व गुनाहगारों को जमानत नहीं दी जाती तो उन्नाव की दामिनी का जीवन बचाया जा सकता। उन्नाव की दामिनी के गुनाहगारों में शुभम त्रिवेदी, शिवम त्रिवेदी, उमेश बाजपेई, राज किशोर व हरिशंकर है। आरोप है कि दो साल तक शादी का झांसा देकर उन्नाव की दामिनी का शारीरिक शोषण करने वाले शिवम त्रिवेदी के मुकरने पर जब उन्नाव की दामिनी ने पुलिस में शिकायत की तो बचने के लिए इस आरोपी ने 18 जनवरी 2018 को रायबरेली न्यायालय में पीड़िता से शादी की। परन्तु कुछ दिन बाद ही इसने पीड़िता को दगा दे दिया। इन्होने इस पीड़िता से सामुहिक बलात्कार भी किया। जब पीड़िता ने फरियाद की तो शिवम ने पीड़िता के परिजनों पर तीन लाख रूपये लेकर पीड़िता की शादी कहीं अन्यत्र करने के लिए दवाब डाला। जिसे पीड़िता ने  नकार कर न्यायालय का द्वार खडखडाया। इससे आक्रोशित हो कर आरोपियों ने पीड़िता पर न्यायालय से मामला वापस लेने के लिए अनैक बार धमकाया। जब पीड़िता इस मामले की सुनवाई पर न्यायालय जा रही थी तो तब इन हैवानों ने चाकू मारकर घायल करने के बाद उस पर तेल छिड़क कर जिंदा जलाने की कोशिश की। इसके बाद पीड़िता घटना स्थल से एक किमी दूर अपने घर की तरफ बचाओ बचाओं चिलाते हुए भागी। बाद में वह गिर पड़ी, उसके बाद उसे अस्पताल पंहुचाया गया।
उन्नाव की दामिनी के निधन की खबर सुनकर स्तब्ध कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी, दामिनी के  परिजनों को से मिलने उन्नाव की तरफ रवाना हो गयी। वहीं बसपा प्रमुख ने भी गहरा दुख प्रकट करते हुए  गुनाहगारों को कड़ी सजा देने की मांग की। इसके अलावा इस प्रकरण पर प्रदेश की योगी सरकार को कटघरे में खडा करते हुए पूूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि यह पहली घटना नहीं है। योगी राज में बेटियां सुरक्षित नहीं है। इसके विरोध में वे उप्र विधानसभा भवन के सामने धरने पर बेठ गये है। वहीं दिल्ली में आप नेत्री स्वाति मालिवाल भी 3 दिसम्बर से बलात्कारियों को तुरंत सजा दिये जाने की मांग को लेकर जंतर मंतर के बाद राजघाट पर आमरण अनशन कर रही है।7 दिसम्बर को उन्नाव की दामिनी का मृतक देह लेकर दिल्ली से उन्नाव ले जाया जा रहा है।
जब तक देश की न्याय व्यवस्था को भारतीय भाषाओं में व त्वरित फैसले देने के लिए जवाबदेह नहीं बनाया जाता तब तक देश की न्याय व्यवस्था जीवंत नहीं होगी। इसके साथ देश की न्यायालयों में न्याय के बजाय फैसलों व लेट लतीफी के कारण करोड़ों मामले न्यायालयों में दम तोड़ रहे है।ऐसे माहौल में देश के लोगों का विश्वास इस देश की न्याय व्यवस्था में कायम रखने के लिए सरकार को न्याय व्यवस्था में व्यापक सुधार करने की त्वरित जरूरत है। एक साल के अंदर हर हाल में ऐसे जघन्य काण्डों के आरोपियों को सजा मिल जानी चाहिए। देश की न्याय व्यवस्था को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कर भारतीय भाषाओं में संचालित करके जनता को न्याय मिलना चाहिए। इसके लिए न्याय पालिका को जवाबदेही तय करनी होगी।तभी लोगों का विश्वास न्याय व्यवस्था में बरकरार होगा। तभी लोग पुलिस मुठभेड में आरोपियों को ढेर किये जाने पर फूलों की वर्षा नहीं करेगे। इसके लिए इस देश में व्यापक सुधार करने की जरूरत है। लोग इस बात से भी आहत है कि देश के कुछ आस्तीन के सांपों को जिस प्रकार से देश को तबाह करने वाले आतंकियों व दुराचारियों को शिकंजे में जकड़ने या सुरक्षा बलों द्वारा मौत के घाट उतार दिये जाने के बाद भी मानवाधिकारों की चिंता क्यों सताने लगती? क्यों इनको देश की सुरक्षा व आम जनता के मान सम्मान-जीवन की चिंता नहीं सताती। ऐसे दानवाधिकारों पर विधवा विलाप करने वाले आस्तीन के सांपों से देशवासी बेहद खिन्न है। लोग चाहते हैं कि व्यवस्था में व्यापक सुधार कर ऐसे दानवाधिकारों पर विधवा विलाप करने वालों को भी कड़ी सजा दे सरकार।

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