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70 सालों में ही अपनी भाषा के दम पर विश्वशक्ति बने चीन से प्रेरणा लेकर अंग्रेजी की गुलामी त्यागे भारत

जब चीन अपनी भाषा व अपने नाम से  विश्व की महाशक्ति बन सकता है तो भारत( जो चीन से 2 साल पहले मुक्त हुआ )क्यों बेशर्मी से 73 सालों से आक्रांता अंग्रेेजों की ही भाषा अंग्रेजी व थोपे नाम इंडिया की गुलामी को ढोकर, खुद अपने देश के सम्मान,आजादी,संस्कृति व विकास का गला घोंट रहा है ? 

 
नई दिल्ली(प्याउ)। चीन के राष्ट्रपति शी चिगपिंग की भारत यात्रा के अवसर पर भारतीय भाषा आंदोलन न देश के हुक्मरानों से 70 साल में ही विश्व की महाशक्ति बने चीन से प्रेरणा लेकर अविलम्ब अंग्रेजी की गुलामी त्याग कर भारतीय भाषाओं को आत्मसात करने का पुरजोर मांग की है।ै  देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कराने के लिए 11 अक्टूबर को संसद की चैखट से प्रधानमंत्री कार्यालय तक भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत के नेतृत्व में पद यात्रा करने के बाद  सौंपे गये ज्ञापन में भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी  से दो टूक सवाल किया कि जब अपनी भाषा व अपने नाम  के दम पर चीन ने  मात्र 70 सालों में विश्वशक्ति  बन कर पूरे विश्व में अपना परचम लहरा रहा है तो भारत क्यों  अंग्रेजों से मुक्त होने के 73 साल बाद भी  भारतीय भाषाओं व भारत के नाम से अपनी व्यवस्था को संचालित करने के बजाय बेशर्मी से उन्हीं विदेशी आक्रांता अंग्रेजों की भाषा‘अंग्रेजी’ व उनके द्वारा थोपे गये ‘इंडिया’ की गुलामी ढौ कर  भारत की लोकशाही, सम्मान, संस्कृति, मानवाधिकार  व सुरक्षा को जमीदोज करने  का आत्मघाती कृत्य कर रहा है।
प्रधानमंत्री को लिखे ज्ञापन  का मूल पाठ यह हैै-
मान्यवर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी,
    जय हिन्द! वंदे मातरम्, 11अक्टूबर  को जहां एक तरफ देश की राजधानी दिल्ली में भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कराने की मांग को लेकर 78 माह से सत्याग्रह कर रहे भारतीय भाषा आंदोलनकारी, संसद की चैखट जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा करके  प्रधानमंत्री कार्यालय में इसी आशय का दो टूक ज्ञापन देते हुए गहरा आक्रोश प्रकट किया कि देश के पदलोलुपु हुक्मरानों ने अंग्रेजों के जाने के बाद 73सालों से भारत की आजादी,लोकशाही,संस्कृति, मानवाधिकार व स्वाभिमान को रौदकर देश को  अंग्रेजी व इंडिया का गुलाम बनाया हुआ है। वहीं दूसरी तरफ आज 11अक्टूबर को ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग  भारत की 2 दिवसीय यात्रा में पंहुच चूके है। आपने महाबलीपुरम में चीनी राष्ट्रपति शी जिंगपिग का भव्य स्वागत किया।चीन जिसने इसी 1 अक्टूबर को अपना 70वीं वर्षगांठ बडे धूमधाम से मनाया। इन 70 सालों में चीन विश्व की महाशक्ति बन चूका है। चीन की इस चकाचैंध को देख कर पूरी दुनिया हैरान है। भारतीय हुक्मरानों को इस बात पर गंभीरता से चिंतन मंथन करते हुए चीन से प्रेरणा लेना चाहिए कि भारत से दो साल बाद यानी 1949 में गुलामी की बंधनों से मुक्त हुए हमारे पडोसी व दुश्मन देश चीन ने 70 सालों में ही अपनी भाषा मंदारिन व अपने ही नाम से संसार में सामरिक व आर्थिक दृष्टि से ऐसा चहुमुखी विकास किया कि वह विश्व की महाशक्ति बन गया है। चीन ने विकास का प्रचण्ड डंका बजाते हुए विश्व के बाजारों पर अपना कब्जा किया है।वहीं भारतीय हुक्मरान देश की सीमाओं, संसद, संस्कृति, भाषा व नाम की रक्षा तक नहीं कर पाये। चीन ने अपने भू भाग रहे हांगकांग ही नहीं तिब्बत पर भी बलात कब्जा कर लिया। वहीं भारत चीन व पाक द्वारा बलात कब्जा किये गये भू भाग को वापस तक नहीं ले पाया। नहीं चीन के समक्ष मजबूती से चीन द्वारा कब्जाये भू भाग को वापस मांगने की बात तक कह पाते है। भारत के पतन को मुख्य कारण रहा कि यहां के हुक्मरानों ने अपने देश की भाषाओं व अपने नाम भारत को जमीदोज करके उन्हीं अंग्रेजों आक्रांताओं की भाषा अंग्रेजी व उनके द्वारा थोपे गये नाम इंडिया का देश गुलाम बना दिया है। इस गुलामी के कारण भारत अपने देश के विकास, लोकशाही, स्वतंत्रता, संस्कृति व मानवाधिकारों को खुद निर्ममता से रौंद कर जमींदोज कर रहा है और चीन अपनी भाषा व अपने नाम से विश्व का सरताज बन गया।  
ऐसा विकास मात्र चीन ने ही नहीं किया अपितु जब रूस,जापान,फ्रांस,जर्मन,कोरिया व इजराइल सहित विश्व के सभी देशों ने भी अपने नाम व अपनी भाषाओं में शिक्षा,रोजगार,न्याय,शासन संचालित करके विश्व में अपना परचम लहरा रहे हैं तो अंग्रेजों के जाने के 73 साल बाद भी भारत क्यों  अंग्रेजी व इंडिया का गुलाम बना हुआ है ?
मान्यवर, शर्मनाक बात यह है कि  अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होने के 73 साल बाद भी भारत को उन्हीं अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी का गुलाम (शिक्षा,रोजगार,न्याय व शासन) बनाकर  देश के हुक्मरान,देश से विश्वासघात कर रहे हैं।
(1) भारतीय भाषा आंदोलन का संसद की चैखट से प्रधानमंत्री कार्यालय तक ऐतिहासिक आंदोलन  का विवरण-
(क) -21 अप्रैल 2013 से इसी मांग को लेकर जंतर मंतर पर अखण्ड धरना (खद्ध30 अक्टूबर 2018 हरित अधिकरण(ग्रीन ट्रिव्यनलª) की आड़ में सरकार ने जंतर मंतर पर चल रहे इस ऐतिहासिक  धरने सहित अन्य आंदोलनों को रौदने व प्रतिबंद्ध लगाने का अलोकतांत्रिक कृत्य किया।
(ख) – पुलिस प्रशासन द्वारा न्यायालय व आंदोलनकारियों को गलत गुमराह किया कि आंदोलन स्थल रामलीला मैदान बनाया गया। जबकि वहां कोई स्थान नियत नहीं किया गया। आंदोलनकारियों ने रामलीला मैदान में धरना देने की कोशिश की तो वहां पर कोई स्थान तय नहीं किया गया। उसके बाद आंदोलनकारी महिनों तक शहीदी पार्क पर आंदोलनरत रहे परन्तु पुलिस ने वहां पर भी परेशान किया।
(ग) 28 नवम्बर 2018 से जंतर मंतर पर भारतीय भाषा आंदोलन का धरना प्रारम्भ (सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जंतर मंतर व वोट क्लब पर आंदोलन करने की इजाजत जारी करने के बाद) पर एक पखवाडे बाद ही दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ के अधिकारी द्वारा उत्पीड़न किये जाने के बाद धरना स्थगित ।
(घ)  28 दिसम्बर 2018 से 18 मार्च 2019 तक हर कार्यदिवस पर सर्दी, वर्षा व गर्मी के साथ पुलिसिया दमन को दरकिनारे करके हर कार्य दिवस पर राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक  पदयात्रा व ज्ञापन सौंपने का ऐतिहासिक आजादी का आंदोलन  किया।18 मार्च को चुनाव आचार संहिता लगने पर नयी सरकार के गठन तक आंदोलन  जारी पर पदयात्रा स्थगित।
(ड़) 30 मई 2019 को नयी सरकार के गठन के बाद 1 जून 2019 से पुन्न जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पद यात्रा कर ज्ञापन आंदोलन जारी  (च)ष्अंग्रेजी व इंडिया की गुलामीष्से मुक्ति पाये बिना न तो भारत में न तो लोकशाही व गणतंत्र स्थापित हो सकता है व नहीं हो सकता है चहुंमुखी विकास
     भारतीय भाषा आंदोलन देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करने के लिए विगत 21 अप्रेल 2013 से यानी 78 माह से संसद की चैखट  से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक सत्याग्रह कर रहे हैं। परन्तु देश की सरकार के कान में जूं तक नहीं रैंग रहा है। देश की इस प्रथम मांग को तत्काल स्वीकार करने के बजाय देश की सरकार, पुलिस प्रशासन से सत्याग्रहियों का दमन कर आंदोलन को कूचलने का अलोकतांत्रिक कृत्य कर रही है। इसके बाबजूद भारतीय भाषा आंदोलन के सत्याग्रही संसद की चैखट (जंतर मंतर/रामलीला मंदिर/शहीद पार्क/संसद मार्ग पर धरना और जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा) पर सतत् शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहा है। सरकार के इस अलौकतांत्रिक रवैये के खिलाफ ही भारतीय भाषा आंदोलन अपने आंदोलन को जारी रखते हुए 18 मार्च तक पदयात्रा व ज्ञापन दिया।  अब नयी सरकार के गठन के बाद पहली जून से पुन्न हर कार्य दिवस पर जंतर मंतर से पदयात्रा कर ज्ञापन देने का सत्याग्रह कर रहा है।
हैरानी की बात यह है कि  विश्व के चीन, रूस, जर्मन, फ्रांस, जापान, टर्की, इस््रााइल सहित सभी स्वतंत्र व स्वाभिमानी देश अपने देश की भाषा में अपनी व्यवस्था संचालित करके विकास का परचम पूरे विश्व में फंेहरा रहे हैं।परन्तु भारत भारत व भारतीय संस्कृति को अंग्रेजियत के प्रतीक इंडिया का गुलाम बनाया जा रहा है। भारतीय भाषा आंदोलन का मानना है किसी भी स्वतंत्र देश की भाषाओं को रौंदकर विदेशी भाषा में बलात शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन देना किसी देशद्रोह से कम नहीं है। आशा है आपकी सरकार भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी की कलंक से मुक्त करेंगे।

इस ज्ञापन मे भारतीय भाषा आंदोलन ने अपनी मांगों पर भी विस्तार से उल्लेख किया । ये मांगे  है-ं (1) सर्वोच्च व उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी के बजाय भारतीय भाषाओं में दिया जाय न्याय(2) अंग्रेजी अनिवार्यता मुक्त व भारतीय भाषाओं में भारतीय मूल्यों युक्त सरकार द्वारा पूरे राष्ट्र में एक समान निशुक्ल शिक्षा प्रदान की जाय (3)संघ लोकसेवा आयोग सहित देश प्रदेश में रोजगार की सभी परीक्षाएं अंग्रेजी के बजाय भारतीय भाषाओं में ली जाय। (4) शासन प्रशासन भी भारतीय भाषाओं में संचालित किया जाय। (5) देश के  नाम पर लगे इंडिया के कलंक से मुक्ति दिला कर देश का नाम केवल भारत (इंडिया नहीं) ही रखा जाय।(5) राष्ट्रीय धरनास्थल जंतर मंतर पर सतत्(प्रातः11 बजे से सांय 4 बजे तक) धरना प्रदर्शन की इजाजत दी जाय।
उल्लेखनीय है कि भारतीय भाषा आंदोलन 21 अप्रेल 2013 से देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कराने व भारतीय भाषाओं में देश की व्यवस्था संचालित करने के लिए सतत् आंदोलन कर रहा है। परन्तु देश का दुर्भाग्य है देश के हुक्मरान इस देश की सर्वोच्च मांग को तत्काल लागू करने के बजाय आंदोलनकारियों का ही दमन व उपेक्षा कर रहे हैं।

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