उत्तराखंड देश

गैरसैंण राजधानी बनने के मार्ग में अवरोधक बने आस्तीन के सांपों को हरायें उतराखण्डी

11 अप्रैल को हो रहे लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण के चुनाव में उतराखण्डी विरोधी ताकतों को परास्त कर लोकशाही का सबक सिखायें जनता

नोटा का प्रयोग करने से गैरसैंण विरोधी नेताओं को ही मिलेगा जीवनदान, गैरसेंण विरोधी नेताओं के निकटतम प्रतिद्वंदी को मतदान कर हराये

भाजपा व कांग्रेस आदि दल नहीं असली गुनाहगार है प्रदेश के पदलोलुपु नेता   

देहरादून से प्यारा उतराखण्ड डाट काम
आगामी 11 अप्रैल को उतराखण्ड की 5 सीटों सहित देश की 91 सीटों पर  17वीं लोकसभा के गठन के लिए मतदान किया जायेगा। तमाम राजनैतिक दल, देशभक्त व जनसेवक बन कर लोक लुभावने चुनावी वादों व विरोधियों को देश व जनता का दुश्मन बता कर जनादेश की गुहार लगा रहे है। कोई जाति, धर्म व क्षेत्र सहित अन्य प्रलोभनों से मतदाताओं को लुभा रहे है। शराब व धन का जम कर दुरप्रयोग करके जनता के जनादेश का हरण करने का षडयंत्र किया जा रहा है। परन्तु जनता को इस बात का भान होना चाहिए कि ये तमाम राजनैतिक दल केवल व केवल सत्ता के भूखे भैड़िये है, इनका देश, प्रदेश व जनता से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है। इनका असली चेहरा इनके सत्तासीन होने पर जनता को दिखाई देता है। हर चुनाव में इनके पास बिना काम के अकूत धन दौलत बरसती रहती है। सत्तासीन होने के बाद ये देश, प्रदेश व जनसेवा करने के बजाय केवल अपनी कुर्सी, दलीय हितों व अपने परिजनों को राजनीति में स्थापित करने के लिए समर्पित रहते है।
इस बार लोकसभा चुनाव के पहले चरण  के 11 अप्रैल को हो रहे मतदान में देश के 91 सीटों पर मतदान होगा। इन 91 लोकसभा सीटों में उतराखण्ड की सभी पांचों सीटों के लिए भी मतदान होगां। प्रदेश की जनता बहुत ही बेसब्री से प्रदेश की सत्तासीन त्रिवेन्द्र रावत की सरकार को करारा सबक सिखाने के लिए मन बना चूकी है। जिस प्रकार से उतराखण्डियों ने 2014 में प्रदेश की सभी 5 सीटों के साथ 2017 को प्रदेश विधानसभा चुनाव में मोदी जी के अच्छे दिन लाने के आश्वासन पर विश्वास करते हुए एक तरफा जनादेश भाजपा को दिया। परन्तु भाजपा की उतराखण्ड सरकार के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत व प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष अजय भट्ट की उतराखण्ड विरोधी कृत्यों व मानसिकता के कारण प्रदेश के हितों व जनांकांक्षाओं पर भारी बज्रपात किया गया। खासकर जिस प्रकार से प्रदेश की राजधानी गैरसैंण को घोषित न किये जाने के कारण सीमान्त व पर्वतीय जनपदों से भारी पलायन होने से देश की सुरक्षा को गंभीर खतरा हो गया है। इसका एक मात्र कारण प्रदेश की 18 साल की सरकारों का अंध देहरादून मोह। जिसके कारण प्रदेश के शिक्षक, चिकित्सक व अन्य कर्मचारी देहरादून सहित प्रदेश के 3 मैदानी जनपदों में कुण्डली मार कर बैठ गये हैं। इससे प्रदेश के सीमान्त व दूरस्थ पर्वतीय जनपदों में शिक्षा, चिकित्सा व रोजगार के साथ साथ शासन से वंचित हो गया है। इससे लोग भारी निराश है। जिस प्रकार से प्रदेश की सरकारों ने निरंतर गैरसैंण राजधानी सहित राज्य गठन की तमाम जनांकांक्षाओं (मुजफ्फर नगर काण्ड-94, भू कानून, मूल निवास, नशा व भ्रष्टाचार मुक्त उतराखण्ड, जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई परिसीमन रोकना व सुशासन)को रौदने का कृत्य करके प्रदेश को पतन के गर्त में धकेल दिया है। उतराखण्ड की पूर्व सरकार ने जनभावनाओं का सम्मान करते हुए राजधानी गैरसैंण बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए प्रदेश की एकमात्र विधानसभा भवन का निर्माण करने के साथ वहां पर मंत्रीमण्डल की बैठक व विधानसभा का अधिवेशन भी आयोजित किया।
इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव 2017 में भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष अजय भट्ट ने कर्णप्रयाग विधानसभा के चुनाव में दो टूक शब्दों में कहा था कि उतनी सरकार राजधानी गैरसैण बनायेगी। परन्तु जीतने के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत व प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष अजय भट्ट की जुगलबंदी ने अपनी सनक के लिए राजधानी गैरसैण घोषित करने के मार्ग में अवरोध खडा कर दिये। जनता की पुरजोर मांग पर भी गैरसैंण में विधानसभा का ग्रीष्मकालीन सत्र का आयोजन न किया गया। बाद में भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के दवाब में गैरसैंण में ग्रीष्मकालीन सत्र का आयोजन कराने को तैयार न होने वाले उतराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने शीतकालीन व सबसे महत्वपूर्ण बजट सत्र का आयोजन भी किया। इसके बाबजूद त्रिवेन्द्र रावत की सरकार ने अलोकतांत्रिक रूख अपनाते हुए देहरादून, गैरसैंण, दिल्ली सहित पूरे उतराखण्ड में चले राजधानी गैरसैण्ंा बनाने के आंदोलनों को नजरांदाज किया। वहीं जिस उतराखण्ड प्रदेश में राज्य गठन आंदोलन के मूल में ही  हिमाचल की तरह ही भू कानून लागू करने के लिए आंदोलन सतत चला उस प्रदेश में जमीन की खरीद फरोख्त पर लगे अंकुश को हटा कर त्रिवेन्द्र सरकार ने अपना उतराखण्ड विरोधी चेहरा खुद ही बेनकाब कर दिया। यही नहीं जिस प्रकार प्रदेश में सत्तारूढ होने से पहले भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पर उतराखण्ड शराब का गटर बनाने का आरोप लगाया था परन्तु सत्तारूढ होते ही प्रदेश में घर घर शराब पंहुचाने का कृत्य किया उससे प्रदेश की जनता में भारी आक्रोश है। प्रदेश की जनता की सत्तारूढ हुक्मरानों को सबक सिखाने का मन बना चूकी है। वह त्रिवेन्द्र रावत व अजय भट्ट को सबक सिखाने के लिए प्रदेश में गैरसैंण राजधानी विरोधी भाजपा के प्रत्याशियों को हराने व राजधानी गैरसैंण के समर्थक प्रत्याशियों के पक्ष में जनादेश देने का मन बना चूकी है।
उतराखण्ड राज्य आंदोलन के शीर्ष आंदोलनकारी देवसिंह रावत ने कहा कि यहां पर असली सवाल मात्र भाजपा व कांग्रेस का अंध विरोध करने का नहीं   अपितु उतराखण्ड विरोधी प्रदेश के दिशाहीन नेताओं को सबक सिखाने का है। इसलिए प्रदेश की जागरूक जनता को ऐसे जनविरोेधियों को लोकशाही का सबक सिखाने के लिए बिना लाग लपेट के गैरसैंण विरोधी नेताओं को पराजित करने वाले गैरसैंण समर्थक मजबूत प्रत्याशी के पक्ष में भारी मतदान करना चाहिए। इसके अलावा इन तत्वों को सबक सिखाने का कोई रास्ता सार्थक नहीं है। नोटा का प्रयोग भी एक प्रकार से भाजपा के इन गैरसैंण विरोधियों को एक प्रकार से जीवनदान देने वाला ही साबित होगा। श्री रावत ने स्पष्ट किया कि उतराखण्ड का घोर  विरोधी सपा को छोड़ कर कोई दल नहीं रहा। यहां पर सबसे ध्यान देने वाली बात यह है कि दलों से कहीं अधिक गुनाहगार इन दलों के कहार बने प्रदेश के नेता जिम्मेदार हैं, जो अपने दलों के नेतृत्व को प्रदेश की जनांकांक्षाओं से अवगत नहीं कराते। जबकि झारखण्ड में भाजपा के नेताओं ने राज्य गठन के समय ही वनांचल को दरकिनारे करके प्रदेश के स्वाभिमान के प्रतीक झारखण्ड को आत्मसात किया। जनसंख्या पर आधारित विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन से प्रदेश के हितों की रक्षा की। इसके साथ झारखण्ड में भू कानून व मूल निवास को लागू कराया। परन्तु उतराखण्ड के पदलोलुपु भाजपा के नेताओं ने प्रदेश के स्वाभिमान के प्रतीक ‘प्रदेश के नाम उतराखण्ड को दरकिनारे करके उतरांचल थोप कर उतराखण्डियों का मान मर्दन करने का कृत्य किया।
श्री रावत ने कहा कि वहीं कांग्रेस की हिमाचल सरकार में परमार से लेकर वीरभद्र ने हिमाचल के हितों की रक्षा कर हिमाचल को विकास का परचम लहराया। हिमाचल को देश का सबसे श्रेष्ठ स्थान पर आसीन किया हुआ है। परन्तु उतराखण्ड में नेता  चाहे भाजपा हो या कांग्रेस या अन्य दलों के सब सत्ता मिलते ही जनहितों व जनांकांक्षाओं को रौंदने की बेशर्मी करते हैं। उक्रांद के नेता भी जब भी भाजपा व कांग्रेस सरकार में सम्मलित रहे वे अपने निहित स्वार्थ में लिप्त रहे,उससे जनता को भारी निराशा ही हाथ लगी। इसलिए जनता को समझ लेना चाहिए कि गुनाहगार भाजपा या कांग्रेस जैसे सत्तारूढ दल न हो कर इन दलों सहित प्रदेश की राजनीति में सम्मलित अधिकाश्ंा नेताओं को प्रदेश व जनहितों से कोई लेना देना नहीं है। प्रदेश में राजनीति में उपस्थित अधिकांश नेता केवल अपनी तिजौरी, कुसी व परिवार तक सीमित है। इसीलिए प्रदेश का ऐसा शर्मनाक पतन हुआ। प्रदेश की जनता को चाहिए कि ऐसे धूर्त आस्तीन के सांपों को जनादेश से अंकुश लगाने का काम करे और ऐसे लोगों के पक्ष में मतदान करे जो जनहितों के रक्षक हो और राजधानी गैरसैंण के समर्थक हो।

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