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जितने प्रतिशत वादे पूरा करे उतने प्रतिशत सीटों पर चुनाव लडने की इजाजत हो सत्तारूढ दल को

जनादेश के हरण का प्रतीक बन गये चुनावी घोषणा पत्र पर अंकुश लगाये चुनाव आयोग

लोकशाही पर ग्रहण व जनादेश का हरण का पत्र बन गया है राजनैतिक दलों का घोषणापत्र

नई दिल्ली से देवसिंह रावत

लोकसभा चुनाव 2019 के चुनावी समर में एक प्रश्न फिर देश के जनमानस के समक्ष प्रमुखता से उभर कर सामने आया कि चुनाव के समय राजनैतिक दलों द्वारा जनता के समक्ष किये गये चुनावी वादो का प्रतीक ‘चुनाव घोषणा पत्र’ पर चुनाव आयोग क्यों अंकुश नहीं लगा रहा है। इसी कारण राजनैतिक दल ऐसे हवाई वादे करते है। जनता उनके लोेक लुभावने वादो पर विश्वास करके उनके पक्ष में मतदान करती है। परन्तु सत्तारूढ हो कर राजनैतिक दल अपने चुनावी वादे भूल जाते हैं। फिर अगले चुनाव में नये वादे करके जनता को झांसा देते है। इन दलों पर देश के चुनाव आयोग ने कोई अंकुश नहीं लगा रखा है। इसी कारण चुनाव घोषणा पत्र एक प्रकार छलावा व लोकशाही का हरण करने का ढकोसला पत्र बन कर लोकशाही को जमीदोज करने का कारण बन गया है।
इसलिए देश के निर्वाचन आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि इस प्रवृति पर तत्काल अंकुश लगाये। लोक लुभावने व जनता को दिये जाने वाले प्रलोभनों पर भी अंकुश लगाने की जरूरत है। देश में मुफ्तखोरी को बढावा देने व देश को पतन के गर्त में धकेलने वाली प्रवृति पर तुरंत अंकुश लगाने की जरूरत है। इसके लिए चुनाव आयोग को चाहिए कि ऐसा कठोर नियम बनाये कि जो भी राजनैतिक दल अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी करता है। उसके प्रति उसकी जबाबदेही निश्चित होनी चाहिए। इसके लिए यह नियम बनाना चाहिए कि सत्तासीन होने के बाद जो राजनैतिक दल अपने चुनावी घोषणा पत्र का जितना प्रतिशत वादों को पूरा करेगा उसे उस चुनाव मेें उतने ही प्रतिशत सीटों पर चुनाव लड़ने की इजाजत दी जानी चाहिए। इस अंकुश से राजनैतिक दलों पर हवाई व लोेक लुभावने वादे करने पर अंकुश लगेगा और जनता से छलावा देने वाली प्रवृति पर भी अंकुश लगेगी। हर राजनैतिक दल को देश के संविधान की मूल भावना, देश की अर्थव्यवस्था, सुरक्षा व सम्मान से खिलवाड करने की इजाजत नहीं दी जा सकती।
इस साल 2 अप्रैल को कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी व एके एंटनी आदि वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की उपस्थिति में ‘हम निभाएंगे का वचन देते हुए 22 लाख सरकारी नौकरी देने, गरीबों को न्यूनतम आय योजना (न्याय) के तहत सालाना 72 हजार रपए देने और किसानों की स्थिति सुधारने के लिए अलग बजट के प्रावधान करने, सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्य सेवा की उपलब्धता, ग्रामीण स्तर पर हर साल लाखों युवाओं को रोजगार देने, राफेल एवं भ्रष्टाचार के अन्य मामलों की जांच कराने, राष्ट्रीय एवं आंतरिक सुरक्षा पर जोर देने तथा अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी, अल्पसंख्यकों एवं महिलाओं के विकास के लिए कदम उठाने जैसे अनैक वादे करने वाला घोषणा पत्र जारी किया तो उसे प्रधानमंत्री मोदी ने ढकोसला पत्र बता कर जनता के साथ फिर छलावा देने वाला कृत्य बता कर सिरे से खारिज कर दिया। वहीं कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार पर 2014 को जारी किये गये भाजपा के घोषणा पत्र में देश को दिये गये वायदों को पूरा न करके देश की जनता को धोखा देने का आरोप लगाया। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी  ने 15 लाख रुपये का झूठे वादे किये। मोदी सरकार आर्थिक, समाज कल्याण, सुरक्षा, सहित सभी क्षेत्र में असफल रही। देश में मजदूर, किसान सहित हर वर्ग खुद को छला महसूस कर रहा है। कांग्रेस का आरोप है मोदी सरकार ने जहां नोटबंदी, जीएसटी व कुशासन से आम लोगों का जीना दुश्वार किया, वहीं देश की सुरक्षा, अर्थव्यवस्था व देश में भाईचारा को तहस नहस कर दिया। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा ने देश के युवाओं को रोजगार के अवसरों पर बज्रपात किया।
वहीं भाजपा ने इस घोषणा पत्र में किये गये प्रमुख वादों को छलावा बता कर कांग्रेस को गरीबों के साथ देश की सुरक्षा से खिलवाड करने व सुरक्षा बलों का मनोबल गिराने वाला अपना चेहरा खुद बेनकाब करने वाला बताया। भाजपा ने गरीबों को न्यूनतम आय योजना के तहत 72 हजार रूपये देने के वादे को गरीबों से चार पीडियों से लगातार खिलवाड करने वाला जघन्रू कृत्य बताया। भाजपा ने कहा कि विगत 55 सालों में देश की सत्ता में आसीन रही कांग्रेस ने लगातार गरीबी मिटाने के नाम पर गरीबों का जनादेश हरण तो किया परन्तु गरीबों के कल्याण का ईमानदारी से काम नहीं किया। इसी के कारण देश में विश्व के सबसे  अधिक गरीब निवास नहीं करते।
उल्लेखनीय है कि सार्वजनिक रूप से अपने सिद्धान्तों एवं इरादों (नीति एवं नीयत) को प्रकट करना घोषणापत्र कहलाता है। इसका स्वरूप प्रायः राजनीतिक होता है किन्तु यह जीवन के अन्य क्षेत्रों से भी सम्बन्धित हो सकता है।
कुछ संसदीय लोकतांत्र की व्यवस्था वाले देशों में राजनैतिक दल चुनाव के कुछ दिन पहले अपना घोषणापत्र प्रस्तुत करते हैं। इन घोषणापत्रों में इन बातों का उल्लेख होता है कि यदि वे जीत गये तो नियम-कानूनों एवं नीतियों में किस तरह का परिवर्तन करेंगे। घोषणापत्र पार्टियों की रणनीतिक दिशा भी तय करते हैं। भारत में सन् १६२० में पहली बार जारी हुआ था घोषणा-पत्र। पहले राजनैतिक दल  देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझते थे। घोषणा पत्र को बडी जिम्मेदारी से बनाते थे। पर अब केवल छलावा बन कर रह गया।
चुनावी घोषणा पत्रों से छली देश की जनता का अब राजनैतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्र के प्रति कोई उत्सुकता नहीं रही। आम जनता को राजनैतिक दलों पर एक रत्ती भी विश्वास नहीं रह गया। इस प्रवृति के बढने से देश की लोकशाही को खतरा पैदा हो सकता है। क्योंकि जनता को ऐसी धारणा बन गयी कि राजनैतिक दल केवल देश के संसाधनों की बंदरबांट करने के लिए ही राजनीति करते है। ये चुनावी घोषणा पत्र केवल छलावा मात्र रह गया। इसलिए देश में लोकशाही की रक्षा के लिए देश के निर्वाचन आयोग को तत्काल राजनैतिक दलों की घोषणा पत्र के प्रति जवाबदेही तय करने के लिए इस पर अंकुश लगाने के अपने दायित्व का निर्वहन करना चाहिए।

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