उत्तराखंड देश

हुक्मरानों के विश्वासघात के बाबजूद उतराखण्डी जलाये हुए है राजधानी गैरसैंण की मशाल

 

 
देवसिंह रावत,
गैरसैंण के लिए राज्य गठन आंदोलन के समय व राज्य गठन के बाद निरंतर चल रहा है। राज्य आंदोलनकारी संगठनों की तरफ से कई बार इस पर प्रदर्शन, गोष्ठियां, रैेलियां व बैठकें कर चूके है। प्रधानमंत्री को भी दर्जनों ज्ञापन दे चूके है। राज्य आंदोलनकारियों के सतत् संघर्ष, तथा बाबा मोहन उतराखण्डी व देवसिंह नेगी जी की शहादत के कारण ही प्रदेश गठन के बाद से इन 19 सालों में सत्तासीन रहे विभिन्न दलों के  उतराखण्ड विरोधी सत्तालोलुपु हुक्मरानों ने ना चाहते हुए इसी जन दवाब के कारण जनांकांक्षाओं की राजधानी गैरसैंण में विधानसभा भवन का निर्माण किया। ग्रीष्मकालीन सत्र का आयोजन भी गैरसैंण में न करके उसे अवैध व सुविधा विहिन जगह बताने वाले पंचतारा सुविधाओं के गुलाम हुक्मरान भी गैरसैंण के भराड़ीसैेंण में बने इस सुन्दर व भव्य विधानसभा भवन में शीतकाल व बजट सत्र करने के लिए मजबूर हुए।

समर्पित आंदोलनकारी निरंतर इस राजधानी आंदोलन को जारी रखे हुए है। दिल्ली में संसद की चैखट हो या प्रधानमंत्री से गुहार लगाने या देश के सबसे बडे पत्रकार संगठन ‘ प्रेस क्लब आफ इंडिया’ के सभागार में सर्वदलीय गोष्ठी, जंतर मंतर से लेकर रामलीला मैदान में विशाल जनसभाये, संसद की चैखट से शहीद स्थल मुजफ्फरनगर नगर होते हुए गैरसैंण यात्रा, गैरसैंण में जनता का लम्बा संघर्ष, रूद्रप्रयाग में आंदोलन, हल्द्वानी, बागेश्वर, अल्मोडा, पौडी आदि स्थानों में प्रदर्शन। देहरादून में विधानसभा भवन पर प्रदर्शन, मशाल जलूस व 17सितम्बर 2018 से देहरादून के परेड ग्राउड में ‘राजधानी गैरसैंण निर्माण अभियान’ के बैनरतले निरंतर धरना चल रहा है।
इस आंदंोलन को दमन करने के लिए जहां सत्तारूढ सरकारें पुलिस प्रशासन के दमन का कहर ढाती रही वहीं पदलोलुपु लोेग आंदोलन में अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए इस आंदोलन में काबिज होने की नापाक षडयंत्र बेशर्मी से करते रहे। इन तमाम दमन व षडयंत्रों के बाबजूद उतराखण्ड के लिए समर्पित सच्चे उतराखण्डी अपने संघर्ष की मशाल से राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए  निरंतर उतराखण्ड विरोधी मानसिकता की कुम्भकर्णी सरकारों पर निरंतर दवाब बनाये हुए है। भले ही राजनैतिक दलों के प्यादे इस आंदोलनों को कमजोर करने के लिए समय समय पर नापाक हरकत करते रहते हैं पर इसके बाबजूद  समर्पित जागरूक उतराखण्डी  बिना पद व नाम के मात्र देश व उतराखण्ड के कल्याण के लिए राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए राजधानी गैरसैंण की मशाल जलाये हुए है। आंदोलनकारियों को आशा थी कि प्रधानमंत्री मोदी अपने अच्छे दिन लाने के वचन को निभाते हुए जनभावनाओं का सम्मान करते हुए राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए अपनी प्रदेश सरकार के दिशाहीन हुक्मरानों को निर्देश देतेे।

आंदोलनकारियों के साथ उतराखण्ड की जनता व  उप्र सरकार द्वारा बनायी गयी समिति ने एक स्वर में राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए सहमति राज्य गठन आंदोलन से पहले ही बन चूकी थी। राजधानी गैरसैंण बनाने के पीछे पूर्व में उप्र शासन के दौरान हुक्मरानों की लखनवी मानसिकता के कारण उतराखण्ड की हुई उपेक्षा व पिछडेपन का स्थाई निदान के रूप में गहन चिंतन मंथन के बाद किया गया। परन्तु राज्य गठन के बाद की पंचतारा सुविधाओं के गुलाम हुक्मरानों ने गैरसैंण के बजाय देहरादून में बेशर्मी से डेरा डालने के कारण प्रदेश के खासकर सीमान्त व पर्वतीय जनपदों से शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार सहित पूरा शासन तंत्र पटरी से उतर कर देहरादून व उसके आसपास के तीन जनपदों तक ही सीमिट गया। इसी कारण बेहतर शिक्षा, चिकित्सा व रोजगार की चाह में लोग देहरादून आदि मैदानी जनपदों में पलायन करने लगे जिससे इस सीमान्त प्रदेश के पर्वतीय जनपदों से 3000 से अधिक गांव उजड़ गये जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया। राज्य गठन की तमाम जनांकांक्षाओं को भी उतराखण्ड की 19 सालों की सरकारों ने राजधानी गैरसैंण की तरह निर्ममता से रौंदने का जो कृत्य किया उन सबको साकार करने के लिए उतराखण्डी अब राजधानी गैरसैंण आंदोलन को प्रदेश की लोकशाही व जनांकांक्षाओं का प्रतीक मान कर निर्णायक संघर्ष कर रहे है।

About the author

pyarauttarakhand5