उत्तराखंड

अगस्त्यमुनि का जनाक्रोश प्रतीक है गैरसैंण राजधानी सहित जनांकांक्षाओं को रौंदे जाने से धधक रहे सीमांत उत्तराखण्ड का

हुक्मरानों द्वारा गैरसैंण राजधानी, रोजगार सहित राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को रोंदे जाने से ठगे से महसूस कर रहे है उत्तराखण्डी  

 
अगस्त्यमुनि महाविद्यालय के निर्माणाधीन भवन के मजदूरों द्वारा एक लड़की को भायाक्रांत करने के खिलाफ 6 अप्रैल फूटा छात्रों व लोगों का गुस्सा

देवसिंह रावत
6 अप्रेल को अगस्त्यमुनि में महाविद्यालय के निर्माणाधीन भवन के कुछ मजदूरों द्वारा एक युचती को गलत मंशा से भयाक्रांत करने के खिलाफ छात्र, युवा व जनता को जो रौद्र रूप देखने को मिला उससे न केवल रूद्रप्रयाग का जिला प्रशासन भौचंक्का है अपितु उत्तराखण्ड का शासन प्रशासन भी स्तब्ध है। भले ही कुछ लोग इसके पीछे साम्प्रादायिक ताकतों की करतूत बता कर प्रदेश में धधक रहे जनाक्रोश पर पर्दा डालने की कोशिशे करें परन्तु राज्य गठन के बाद प्रदेश के हुक्मरानों द्वारा किये विश्वासघात से आहत व आक्रोशित हैै।जनता को रोजगार, शिक्षा, सम्मान देने के बजाय सरकारें प्रदेश को शराब का गटर बनाकर बर्बाद करने को तुली है।
लोग हैरान है कि देवभूमि उत्तराखण्ड की शांत वादियां जनाक्रोश से क्यों धधक रही है। पूरे विश्व में उत्तराखण्डी अपनी ईमानदारी, मेहनत, वीरता व कुशाग्र बुद्धि के साथ अमन परस्त के रूप में जाना जाता है।  जिस प्रकार से जनाक्रोश का लावा 1994 में उत्तराखण्ड राज्य गठन अंांदोलन के दौरान राव मुलायम सरकार के दमन के खिलाफ पूरे उत्तराखण्ड में फूटा, ठीक ऐसा ही जनाक्रोश राज्य गठन के 18 सालों बाद कभी सतपुली, कोटद्वार, तो कभी गैरसैंण व अब अगस्त्यमुनि में देखने को मिला।
इसके पीछे भले ही शासन प्रशासन कुछ असामाजिक तत्वों को कटघरे में लेकर अपना दायित्व इतिश्री मान रहा है। परन्तु जमीनी हकीकत यह है कि प्रदेश गठन के बाद जिस प्रकार से प्रदेश के हुक्मरानों ने अपनी पंचतारा सुविधाओं के लिए जनभावनाओं को रौंदते हुए राजधानी गैरसैंण बनाने के बजाय बलात देहरादून से ही राजधानी संचालित करने का उत्तराखण्ड विरोधी कृत्य किया। इसके कारण राज्य गठन के लिए अमानवीय दमन सहने व संघर्ष करने वाले उत्तराखण्ड के सीमान्त व पर्वतीय जनपदों से शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व शासन पूरी तरह पटरी से उतर देहरादून व उसके आसपास के मैदानी जनपदों में कुण्डली मार कर बैठ गया। जनता को विश्वास था कि राज्य गठन के बाद राजधानी गैरसैंण बनेगी, उत्तराखण्ड में शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार के साथ शासन प्रशासन हिमाचल की तरह विकासोनुमुख होगा। प्रदेश के हक हकूकों की रक्षा होगी। 

परन्तु जब देहरादून में कुण्डलीमारें नेताओं, नोकरशाहों व माफियाओं की जुगलबंदी ने गैरसैंण राजधानी बनाने के बजाय देहरादून में थोपने का षडयंत्र रचा, प्रदेश में हिमाचल सहित हिमालयी राज्यों की तरह भू कानून लागू न करके माफियाओं का अभ्याहरण बनाया, उत्तराखण्ड के सम्मान को रौंदने वाले मुजफरनगर काण्ड सहित अन्य राज्य गठन आंदोलन को दमन करने के लिए किये गये काण्डों के गुनाहगारों को सजा देने के बजाय उनको शर्मनाक संरक्षण देने, प्रदेश में चहुमुखी विकास करने के बजाय ऊर्जा के नाम पर बांधों से उजाडने, प्रदेश के सीमान्त प्रांत में लोकशाही मजबूत करने के बजाय जनसंख्या पर आधारित विधानसभा परिसीमन थोप कर उत्तराखण्डियों के राजनैतिक, आर्थिक शक्ति को कूंद कर भविष्य पर ग्रहण लगाने का कृत्य करने से प्रदेश की जनता बेहद आहत व आक्रोशित है । प्रदेश के पर्वतीय जनपदों से शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा व शासन सब एक प्रकार से पटरी से उतर कर देहरादून में कुडली मारे जाने से देश की सुरक्षा को गंभीर खतरा हो गया है। लोग हैरान है कि जब आंध्र प्रदेश में वहां के मुख्यमंत्री 4 साल में ही नयी राजधानी बना सकते है तो उत्तराखण्ड की जनता की पुरजोर मांग व विधानसभा बनने के साथ सभी सत्र गैरसैंण में संचालित होने के बाबजूद प्रदेश के हुक्मरान अपनी पंचतारा सुविधाओं के मोह में अंधेे हो कर गैरसैंण को राजधानी क्यों नहीं बना रहे है?
इससे प्रदेश की हालत बेहद विस्फोटक है। जनता निरंतर राजधानी गैरसैंण के लिए आंदोलन कर रही है। सत्तारूढ़ भाजपा के विधायक भी जनभावनाओं का सम्मान कर राजधानी गैरसैंण कर रहे है। परन्तु क्या मजाल है जनता, विपक्ष व अपने विधायकों की  गैरसैंण राजधानी की पुरजोर मांग उत्तराखण्ड के कुम्भकर्णी हुक्मरानों को सुनाई नहीं दे रही है?

खबरों के अनुसार अगस्त्यमुनि में  6 अप्रैल 2018 की तडके 8 बजे से आक्रोशित छात्रों सहित लोगों ने प्रदर्शन करना शुरू किया। लोगों ने  अगस्त्यमुनि थाने के घेराव करने के साथ कुछ दुकानों में तोडफोड व आगजनी भी की। भारी आक्रोशित भीड़ के सामने वहां पुलिस बल असहाय सा नजर आने लगा। आनन फानन में प्रशासन ने और पुलिस बल अगस्त्यमुनि की तरफ भेजा।
जिलाधिकाारी मंगेश घिल्डियाल , जिला पुलिस अधीक्षक पीएन मीणा सहित जिला के उच्चाधिकारियों ने जनाक्रोश का शिकार बने  अगस्त्यमुनि में डेरा डाल कर स्थिति को नियंत्रण में लिया।
पुलिस ने आनन फानन में तीन मुकदमें दर्ज किये। पहले तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लड़की की अश्लील तस्वीर लेने व लडकी को धमकाने का मुकदमा दर्ज किया।  दूसरा साम्प्रादायिक माहौल को खत्म करने व शांति भंग करने का मामला दर्ज किया। वहीं तीसरा मुकदमा आगजनी में सम्मलित 14 नामजद लोगों व अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ।
इस पूरे प्रकरण का मूल में 4 अप्रैल की सांय क्षेत्र के एक पीजी कालेज के निर्माणाधीन भवन में अज्ञात लड़का-लड़की आपत्तिजनक स्थिति में थे। जिन्हेे वहां पर काम करने वाले तीन मजदूरों ने देख लिया। मजदूरों द्वारा देखे जाने पर लडका तो भाग गया । आरोप है कि इन मजदूरों ने इस लडकी की आपतिजनक तस्वीर लेकर उसे 5 अप्रेल को मिलने के लिए धमकाया। सहमी लडकी ने यह बात अपनी सहेली से बतायी। यह बात छात्र नेताओं तक पंहुची। छात्र इन तीनों आरोपियों को पकड कर पुलिस के पास ले गये। परन्तु मामला नहीं सुलझा।
पुलिस का आरोप है इस प्रकरण के मामले में एक विवादस्थ पोस्ट सोशल मीडिया में देखी गयी। जिसके बाद लोगों का आक्रोश फैल गया। यह जनाक्रोश 6 अप्रैल को सड़क पर फूट गया। जिलाधिकारी  मंगेश घिल्डियाल ने बताया कि इस मामले में दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।  अगस्त्यमुनि प्रकरण के बाद प्रशासन ने अगस्त्यमुनि, रुद्रप्रयाग, गुप्तकाशी व  ऊखीमठ में  पुलिस ने गश्त की। प्रशासन ने इस प्रकरण पर साप्रदायिक रंग देने की नापाक कोशिश करने वालों पर कडी कार्यवाही करने की चेतावनी भी दी।
भले ही अब अगस्त्यमुनि में शांति है परन्तु पूरा उत्तराखण्ड अंदर ही अंदर धधक रहा है हुक्मरानों द्वारा राजधानी गैरसैंण सहित जनांकांक्षाओं को रौंदने से। इसका समाधान प्रदेश के कुम्भकर्णी नेताओं को समय पर करना चाहिए अन्यथा इस सीमान्त प्रांत में 1994 की तरह राव मुलायम दमनकारी हुक्मरानों को जनादेशी सबक सिखाने से जनता पीछे नहीं रहेगी।

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