राज्यसभा के टिकट बंटबारे से केजरीवाल पूरी तरह बेनकाब, जनता स्तब्ध व आप कार्यकत्र्ता निराश
आम आदमी पार्टी के समर्पित वरिष्ठ नेताओं के बजाय नारायण दास गुप्ता और सुशील गुप्ता को उम्मीदवार बनाने से उठा विवाद
द्वारा देवसिंह रावत
नई दिल्ली(प्याउ)। दिल्ली राज्य से खाली हुई राज्यसभा की तीन सीटों पर अभूतपूर्व बहुमत वाली अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी द्वारा संजय सिंह, नारायण दास गुप्ता व सुशील गुप्ता को अपना प्रत्याशी बनाने का ऐलान किया। संजय सिंह को छोड़कर दो नये नाम को देख कर लोग हैरान है। आप द्वारा राज्य सभा प्रत्याशियों के ऐलान ने भ्रष्टाचार, नैतिकता व आम जनता के हितों के लिए समर्पित होने की हुंकार भरने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया।
वहीं आम आदमी पार्टी के समर्पित कार्यकत्र्ता इस बात से हैरान हैं कि पार्टी के समर्पित वरिष्ठ नेताओं के बजाय 36 दिन पहले पार्टी में सम्मलित हुए नेता को पार्टी ने संसद के उच्च सदन में भेजने का काम किया। अण्णा के नेतृत्व में चले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में सम्मलित होने वाली व सहानुभूति रखने वाली देश की आम जनता, अण्णा आंदोलन की कोख से पैदा हुई केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी द्वारा भी अपने सभी सिद्धांत, संघर्ष व नैतिकता को दाव को लगा कर, जिस प्रकार से अन्य दलों की तरह ही निष्ठावान समर्पित वरिष्ठ नेताओं को छोड़ कर थैलीशाहों को राज्यसभा की सदस्यता नवाजने की परंपरा का अंधानुशरण करते देख कर स्तब्ध है। देश की जनता को कुर्सी नहीं जनसेवा करने व देश की कुव्यवस्था को बदलाव के लिए राजनीति में आने के अरविंद केजरीवाल के वादे का जनाजा खुद केजरीवाल द्वारा राज्यसभा चुनाव में सरेआम निकालने से स्तब्ध है।
अन्ना के नेतृत्व में चले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बाद आम आदमी पार्टी बनाते समय केजरीवाल खुद हुंकार भर रहे थे कि वे राजनीति में सत्ता के लिए नहीं भ्रष्टाचार के खिलाफ सुशासन देने के लिए आये है। वे सत्तासीन होने के बाद न बंगला लेगे व तामझाम, भ्रष्टाचार का जो भी आरोपी होगा उसे तत्काल बर्खास्त कर जांच की जायेगी। परन्तु सत्ता में आने के बाद आम आदमी कार्यकत्र्ताओं के बजाय जिस प्रकार थैलीशाहों को राज्यसभा में भेजा उससे समर्थक ही नहीं विरोधी भी हैरान है। त्याग व नैतिकता के साथ आम आदमी की बात करने वाले केजरीवाल खुद तो मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हो गये। मुख्यमंत्री का बंगला भी ले लिया। परन्तु मुख्यमंत्री का सारा कार्य उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया कर रहे है। बिना काम किये केजरीवाल, सत्ता का सारा सुख सुविधाओं को भोग रहे हैं परन्तु अण्णा आंदोलन व आम आदमी पार्टी बनाने में बराबर के सहयोगी रहे प्रशांत, योगेन्द्र, विश्वास जैसे नेताओं को अलोकतांत्रिक ढंग से या तो पार्टी से दर किनारा करते रहे या निरंतर उपेक्षा करके अपमानित करते रहे।
पार्टी के अधिकांश कार्यकत्र्ताओं को आशा थी कि केजरीवाल, संसद में पार्टी की मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने के लिए कुमार विश्वास, योगेन्द्र जैसे समर्पित नेताओं को भेज कर आम आदमी पार्टी को मजबूत करेंगे। परन्तु असुरक्षा की भावना से ग्रसित केजरीवाल ने पार्टी के कुमार, आशुतोष, खेतान आदि तमाम वरिष्ठ नेताओं दर किनारे करके जिस प्रकार के 36 दिन पहले कांग्रेस से इस्तीफा देकर आम आदमी पार्टी में आये नेता को राज्य सभा में भेजने का निर्णय लिया तो उससे साफ हो गया कि आम आदमी पार्टी भी सपा, बसपा, कांग्रेस आदि दलों की तरह दलीय वरिष्ठ समर्पित नेताओं के बजाय थैलीशाहों को ही वरियता देती है और दल में आंतरिक लोकतंत्र पूरी तरह खत्म हो गया।
केजरीवाल से पार्टी को मजबूती प्रदान करने वाले समर्पित कार्यकत्र्ता आशा कर रहे थे कि वे विवेक व बड़ा हृदय से पार्टी से बाहर हुए भूषण व योगेन्द्र को साथ लाने के लिए पहल करते हुए राज्य सभा भेजने का काम करके टूटे घटक को पार्टी में जोडेंगे। लोगों को विश्वास था कि केजरीवाल आम आदमी पार्टी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कुमार विश्वास को भी सदन में भेज कर आप की मजबूत उपस्थिति दर्ज करायेंगे। संजय सिंह को राज्य सभा भेजने पर किसी को प्रश्न नहीं। परन्तु संजय से अधिक योगदान जनता की नजरों में भूषण, योगेन्द्र व कुमार विश्वास का है। आशुतोष जैसे पत्रकारों व अनैक युवाओं ने अपना पूरा जीवन दाव पर लगा कर आम आदमी पार्टी के निर्माण के लिए समर्पित किया था। पर आज अरविन्द केजरीवाल केवल अपने चंद समर्थकों को लेकर पार्टी बनाने के एक एक मजबूत स्तम्भों ंको जिनका पार्टी व जनता दोनों में काफी प्रभाव है निर्ममता व अपमानित ढंग से बाहर होने के लिए मजबूर कर रहे है उससे उनका अलोकतांत्रिक व असुरक्षित चेहरा खुद ही बेनकाब हो गया।
भले ही राज्य सभा के तीनों प्रत्याशियों को भेजने के निर्णय का समर्थन करते हुए अरविंद केजरीवाल से सबसे करीबी व दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया ने कहा कि सुशील गुप्ता ने दिल्ली-हरियाणा में शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है। वे करीब 15 हजार बच्चों को निशुल्क शिक्षा मुहैया करा रहे हैं। दूसरे उम्मीदवार, नारायण दास गुप्ता इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष हैं। तीसरे प्रत्याशी संजय सिंह हैं जो शुरू से ही ‘आप’ के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत कर रहे हैं।
अरविन्द केजरीवाल उच्च सदन में दिल्ली का प्रतिनिधित्व करने के लिए तीन जानी-मानी हस्तियां चाहते थे। हमने मीडिया, शिक्षाविदों और कानूनविदों सहित 18 लोगों से संपर्क किया था। इसके बाद उम्मीदवारों के नाम का चयन किया गया।
वहीं आम आदमी पार्टी के अधिकांश कार्यकत्र्ता जिन वरिष्ठ नेता कुमार विश्वास को राज्यसभा भेजना चाहते थे उन्होने अरविन्द पर कटाक्ष करते हुए कहा कि लगभग डेढ़ साल पहले केजरीवाल ने पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मुस्कान के साथ कहा था, हम आपको खत्म कर देंगे, लेकिन आपको शहीद नहीं बनने देंगे। मैं उन्हें बधाई देता हूं कि मैंने अपनी शहादत स्वीकार कर ली है।
आम आदमी पार्टी ने जिन तीन नेताओं को राज्यसभा भेजने का निर्णय लिया उनमें संजय सिंह के चयन पर कोई प्रश्न नहीं उठा रहा है। उप्र के सुल्तानपुर के रहने वाले संजय सिंह पार्टी के वरिष्ठ नेता व सामाजिक कार्यकत्र्ता होने के साथ मुख्यमंत्री केजरीवाल करीबी व विश्वासी नेता है। वे प्रारम्भ से ही केजरीवाल के साथी है ।
जिन नेताओं को राज्य सभा भेजने में सबसे अधिक विवाद है उनमें सुशील गुप्ता व एन डी गुप्ता है।
हरियाणा मूल के एनडी गुप्ता जिनका पूरा नाम नारायण दास गुप्ता चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। वे इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रह चुके हैं। पार्टी से जुडे रहे परन्तु सक्रिय व वरिष्ठ नहीं रहे।
राज्य सभा के प्रत्याशी बनने से मात्र 36 दिन पहले आप में सम्मलित हुए सुशील गुप्ता जो कांग्रेस के टिकट पर 2013 में विस चुनाव हार गए थे। दिल्ली में निजी और परमार्थ स्कूलों की श्रृंखला चलाते हैं। उनके आप में सम्मलित होने वाले दिन से लोग कायश लगा रहे थे कि केजरीवाल उनको राज्यसभा का प्रत्याशी बनायेंगे। हालांकि प्रत्याशी बनाने के लिए अरविन्द केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल जो आयकर अधिकारी रही का नाम भी चर्चा में था।
देश की जनता कांग्रेस, भाजपा, बसपा, सपा, राजद, आदि अवसरवादी व जनहितों को नजरांदाज करने वाले दलों से खिन्न हो कर जनसेवा के लिए समर्पित मजबूत विकल्प मान कर आम आदमी पार्टी की तरह आशा भरी निगाह से देख रही थी। परन्तु अरविंद केजरीवाल ने इस दल के साथ जनता की आशाओं को अपनी अंध सत्तालोलुपता व असुरक्षा की भेंट चढ़ा दिया है।
आम आदमी के एक विद्रोही पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा जो 4 जनवरी को राजधाट में अरविंद केजरीवाल की इस कृत्य के खिलाफ उपवास कर रहे है उन्होने आरोप लगाया कि केजरीवाल ने वरिष्ठ आप नेताओं के बजाय सुशील गुप्ता और एनडी गुप्ता जैसे थैलीशाहों को भेज कर आप गठन की मूल धारणा का ही गला घोंट दिया है। केजरीवाल के इस ऐलान से योगेन्द्र यादव भी हैरान है। केजरीवाल के इस निर्णय से अण्णा हजारे सहित वे तमाम लोग भी हैरान है जिन्होने भ्रष्टाचार के खिलाफ इस आंदोलन में अरविंद केजरीवाल पर भरोसा कर उसे जननेता बनाने में प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन किया।