देश

भारत को जातिवादी व धार्मिक उन्माद की भट्टी में झौकने के विदेशी षंडयंत्र को कड़ाई से अंकुश लगाये सरकार

 

 

महाराष्ट्र में भड़की हिंसा के गुनाहगारों को मिले कड़ी सजा

 

देवसिंह रावत,

भारत में विदेशी ताकतें भारत को कमजोर करने के लिए यहां पर आतंकबाद के साथ साथ अंध जातिवादी आंदोलन को हवा दे रहे है। देश के अंध सत्तालोलुपु दल इस षडयंत्र से या तो बेखबर है या इसको अपने निहित स्वार्थ के लिए इसको हवा दे रहे है। महाराष्ट्र में भड़की हिंसा को सामान्य घटना नहीं माना जा सकता है। यह घटना भी देश में बुने जा रहे खतरनाक षडयंत्र का ही एक हिस्सा है पर सरकार इस षडयंत्र पर मूक दर्शक बनी है।
एक जनवरी को दलित समाज द्वारा मनाये जा रहे भीमा-कोरेगांव लड़ाई की 200वीं सालगिरह पर हुए एक गुट के साथ हुए विवाद के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों से पूरा महाराष्ट्र धधक रहा है। सेकडों बसों में तोड़ फोड़ हुई मारपीट व विरोध प्रदर्शन में हुई हिंसा हुई। इस प्रकरण के विरोध में 3 जनवरी को दलित समाज ने महाराष्ट्र बंद का ऐलान किया। इस बंद से महाराष्ट्र के कई शहरों में जनजीवन पूरी तरह ठप्प हुआ है।
गौरतलब है कि 1 जनवरी 1818 में कोरेगांव भीमा की लड़ाई में पेशवा बाजीराव द्वितीय पर अंग्रेजों ने जीत दर्ज की थी। इसमें दलित भी शामिल थे। बाद में अंग्रेजों ने कोरेगांव भीमा में अपनी जीत की याद में जयस्तंभ का निर्माण कराया था। इस समारोह को जहां दलित समाज के नेता शौर्य दिवस मनाते हैं वहीं मराठी समाज इसको अपना अपमान मानते है। भले ही इस विवाद में सीधे विरोध नहीं हुआ परन्तु समाज में तनाव व्याप्त है।

इस घटना पर फेसबुक पर अपना नजरिया रखते हुए उत्तराखण्ड शिल्पकार चेतना मंच ने प्रकट किया कि भीमा कोरेगाँव का एक ऐतिहासिक महत्व है महारों ने ऐसे ही पेशवाओं के खिलाफ युद्ध नहीं लड़ा था। इससे पहले महारों ने पेशवाओं से सिर्फ अमानवीय प्रथा( गले में हांडी और कमर में झाड़ू) को बन्द करने और महारों को सेना में शामिल करने और अंग्रेजों के खिलाफ देश की रक्षा में कन्धे से कन्धा मिलाकर योगदान देने के लिये कहा था।लेकिन पेशवाओं ने (ब्राह्मण) न केवल उन्हें मना किया बल्कि अपमान भी किया। इसी अपमान का बदला लेने के लिये महारों की सेना जो मात्र 500 थे ने अंग्रेजों के साथ मिलकर पेशवाओं के 28000 सैनिकों को हरा दिया। इस शौर्य विजय को मनाने के लिये ही भीमा कोरेगाँव विजय दिवस मनाया जाता रहा है। बाद में बाबा सहाब भी प्रति वर्ष 1 जनवरी को वहॉं जाते थे और इसे दलितों के लिये प्रेरणा स्रोत मानते थे।
आईये इस धटना को इस तरह देखते हैं कि अगर ये पेशवा उस समय महारों की बात मान जाते तो अंग्रेज उसी समय हार जाते और देश गुलाम भी नहीं होता।
भीमा कोरेगाँव में हुई हिंसा सभी को दिख रही है लेकिन ये हिंसा किसने की और किसके इशारे पर हुई इसके बारे में कोई नहीं बता रहा है महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को इसका पता जरूर होगा लेकिन उनकी मजबूरीयॉं होंगीं लेकिन देश हित में उन्हें सच बताना चाहिये।खैर ये तो होना ही है और होगा ही क्यूँकि दलितों का इकट्ठा होना, जश्न मनाना, घोड़ी पर चढ़कर शादी करना, शिक्षा में तरक्की करना, कारोबारी बनना, राजनीति में हिस्सेदारी माँगना ये सब उन लोगों को रास नहीं आता जिन्होंने इस समाज को सदियों से दबाकर रखा था और उनका शोषण किया था।

महाराष्ट्र में इस साल इस समारोह का आयोजन भाजपा की केन्द्र सरकार को समर्थन दे रहे राम दास अठावले की रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया ने भीमा कोरेगाँव के युद्ध की 200वीं बरसी पर खास कार्यक्रम कराया था। इसमें महाराष्ट्र के खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री गिरीश बापट, भाजपा सांसद अमर साबले, उप मेयर सिद्धार्थ डेंडे और अन्य नेता भी शामिल हुए। इस मौके पर देशभर से करीब 2 लाख दलित यहां इकट्ठा हुए थे। सरकार को चाहिए था कि इस आयोजन के आसपास भी कोई विरोधी गुट न पंहुच पाये। वर्षो से मनाये जा रहे इस कार्यक्रम के आस पास विरोध गुट की उपस्थिति व उनसे शौर्य दिवस समर्थकों से हुए विवाद को प्रशासन नहीं रोक पायी। यही टकराव महाराष्ट्र में हुए विवाद का मूल कारण है।
पुणे के पास भीमा-कोरेगांव लड़ाई की 200वीं सालगिरह पर आयोजित कार्यक्रम में दो गुटों की हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। इसके बाद जातीय हिंसा मुंबई, पुणे, औरंगाबाद, अहमदनगर जैसे डेढ़ दर्जन शहरों तक फैल गई। बहुजन महासंघ, महाराष्ट्र डेमोक्रेटिक फ्रंट, महाराष्ट्र लेफ्ट फ्रंट समेत 250 से ज्यादा दलित संगठनों ने 3 जनवरी को महाराष्ट्र बंद का एलान किया। मुंबई, ठाणे समेत राज्य के कई इलाकों में प्रदर्शन हो रहे हैं। ठाणे में एडमिनिस्ट्रेशन ने 4 जनवरी तक 144 धारा लगा दी है। यहां के ज्यादातर स्कूल और कॉलेज बंद हैं। वहीं, पुणे से बारामती और सतारा जिलों को जाने वाली बसें भी फिलहाल बंद कर दी गई हैं।
इस विवाद का मूल कहीं न कहीं देश में बुने जा रहे खौपनाक षडयंत्र में ही है। देश हित में काम करने वाले तमाम समर्पित लोगों को समाज को जोड़ने के लिए काम करना चाहिए। समाज में राग द्वेष व हिंसा फैलाने वाली ताकतों से सजग  रहना चाहिए।
 विदेशी ताकतें धर्मांतरण व जातीय उन्माद फैला रही है। इन ताकतों पर पुतिन की तर्ज पर अंकुश लगा कर ही इनके नापाक इरादे जमीदोज किये जा सकते । सरकारों की उदासीनता के कारण ये नापाक तत्वों ने देश के उपेक्षित, वंचित, आदिवासियों, पिछडे व दलित समाज में सेवा के नाम पर पेठ बना कर उनको जातीय उन्माद की गर्त में धकेलने का काम कर रहे है। सरकार को चाहिए कि इन विदेशी ताकतों के प्यादों पर अंकुश लगा कर देश में उपेक्षित, वंचित, पिछडे व दलित समाज को ससम्मान विकास के पथ पर बढ़ाने का काम करे। किसी भी सूरत में उनके हितों का रौदने का कृत्य करने का साहस कोई न करे। इसके साथ देश को तबाह करने के लिए जातीय उन्माद भड़काने वाले तत्वों को सर उठाने से पहले जमीदोज किया जाय। शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन को भारतीय भाषा में संचालित कर इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार को समूल नष्ट किया जाय। दलित, हिंदू समाज का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। परन्तु कुछ अज्ञानता व भारतीय संस्कृति के मर्म को न जानने वालों ने हिंदू धर्म के इस महत्वपूर्ण अंग का सम्मान, साधन से वंचित रखा। इसके खिलाफ भी हिंदू धर्म के कई भक्तिमार्गी संतों व समाज सुधारकों ने इसको दूर किया। अब इसमें काफी सुधार हो गया। इसे सुधार को बिगाडने के लिए नापाक ताकतें वर्षो से षडयंत्र कर रही है। इसी के तहत अब हिंदू समाज के इस उपेक्षित रहे समाज के जख्मों को अपने निहित स्वार्थों के लिए कुरेदने का काम विदेशी ताकतें करा रही है। उनका एक मात्र स्वार्थ है इनको अपने साथ मिला कर देश की एकता व अखण्डता को जमीदोज कर देश का काबिज होना है। इस अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र को रोकने में सरकार विफल रही। सरकार को ऐसे तत्वों पर भी नजर रख कर अंकुश लगाना चाहिए जो धार्मिक व जातिवादी जहर समाज में फेला रहे है। किसी को भी जाति व धर्म के आधार पर किसी निर्दोष व्यक्ति का शोषण व अपमान करने की इजाजत नहीं होनी चाहिए।

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