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संवेदनशील हिमालय से खिलवाड करके उत्तराखण्ड को पंचेश्वर बांध जेसे बांधों से क्यों डूबोने के लिए उतारू है सरकार

क्या उत्तराखण्ड जैसी सृष्टि की मोक्ष भूमि केवल बांध व बाघों के लिए बर्बाद करने को है?

सडक, नहर व अस्पताल जैसे जरूरी निर्माण को पर्यावरण के नाम पर रूकावट करने वाली सरकार अब एशिया के सबसे बडे पंचेश्वर बांध के नाम पर 134 गांवों को डूबोने को तुली
-देवसिंह रावत
टिहरी आदि बांधों से हो रही उत्तराखण्ड में विनाशकारी प्राकृतिक महाविनाश के बाद भी क्यों पूरी घाटियों को डूबोने को उतारू है सरकार। एक अनुमान के तहत उत्तराखंड में प्रस्तावित पंचेश्वर सहित 550 से अधिक बांध बनाने की योजना है, इसी के कारण 25  लाख से अधिक लोगों को विस्थापित होना पडेगा। जबकि हिमालय की प्राकृतिक संवेदनशील स्थिति को देखते हुए यहां बडे बांधों के बजाय छोटी-छोटी परियोजनाएं बनाने की निरंतर पर्यावरणविदों व वैज्ञानिकों के द्वारा दी जा रही हैं। परन्तु बडे बांधों के आड़ में भ्रष्टाचार के इस समुद्र में गौता मारने की अंधी लालशा के कारण देश के योजनाकार प्रकृति से अंधाधुंध खिलवाड़ व लाखों लोगों को जबरन विस्थापन  करके घाटी की घाटी डूबोने के लिए उतारू हैं।
पंचेश्वर बांध भारत व नेपाल का संयुक्त ऊर्जा परियोजना है। पंचेश्वर बांध में भारत का 120 वर्ग किमी और नेपाल का 14 वर्ग किमी क्षेत्र डूब जाना है। इस क्षेत्र में महाकाली और सहायक नदियों की उपजाऊ तलहटी में बसे प्रमुखतः कृषि पर जीवनयापन करने वाले 115 गांवों के 11,361 परिवार प्रभावित होंगे। हालांकि इस बाँध की क्षमता 6,480 मेगावाट आंकी जा रही है।
भारत नेपाल सीमा पर बहने वाली काली नदी पर सरकार एशिया का सबसे बडा  व दुनिया का बडा बांध पंचेश्वर के नाम से बना रही है। 315 मीटर ऊंचा बनने वाला पंचेश्वर भगवान शिव का नाम है परन्तु शिव की पावन धरती को बांध के नाम पर डूबोने को उतारू है सरकार। इस पंचेश्वर बांध को 5040 मेगावाट बिजली बनाने के नाम पर 33 हजार लोगों को उजाड़ने को तुली सरकार है सरकार। महाकाली नदी पर पंचेश्वर में बनने वाले इस बांध के प्रस्ताव ‘भारत-नेपाल महाकाली संधि’ पर 12 फरवरी 1996 को दोनों देशों के हस्ताक्षर हो चुके हैं। पंचेश्वर बाँध, पंचेश्वर में महाकाली और सरयू नदी के संगम से 2 किमी नीचे बनना है।
इस बांध पर दो चरणों में काम होना है। पहले 315 मीटर ऊँचा बाँध पंचेश्वर में महाकाली और सरयू नदी के संगम से 2 किमी नीचे बनना है। पंचेश्वर बांध के दूसरे चरण में 145 मीटर ऊंचाई वाला बाँध इससे नीचे महाकाली की अग्रगामी शारदा नदी पर पूर्णागिरी में। इसमें  134 वर्ग किलोमीटर झील बनेगी।
भारत के प्रधानमंत्री ने अपनी नेपाल यात्रा के दौरान पंचेश्वर बांध निर्माण के लिए नेपाल के साथ समझौता पत्र पर हस्ताक्षर भी किया है। इसके आधार पर पंचेश्वर विकास प्राधिकरण पर सहमति बनी है, जिसका कार्यालय नेपाल के कंचनपुर में होगा। बिजली उत्पादन पर दोनों देशों का बराबर हक होगा। इस पर होने वाले कुल खर्च में से भारत 62.5 प्रतिशत और नेपाल शेष 37.5 प्रतिशत राशि खर्च करेगा।
वेसे पंचेश्वर स्थान भारत के चम्पावत जनपद में है। इसमें भारत व नेपाल के लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक पंचेश्वर मंदिर है। इस पंचेश्वर बांध से जहां 134 गांव बलात डूबोये जायेगें। इसमें पिथौरागढ़ के 87, चम्पावत के 26 व अल्मोडा के 21 गांव डूबोये जायेंगे। टिहरी बांध का दंश से अभी भी उत्तराखण्ड उबर नहीं पा रहा है। केदारनाथ त्रासदी के अलावा प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र में आये दिन होने वाले बादल फटने की घटनाओं में खतरनाक ढंग से इजाफा होने से संसार में भूकंप की दृष्टि से इस अतिसंवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में बांधों, सुरंगों व आत्मघाती ढंग से मोटर मार्गो का चैड़ीकरण करने से यहां प्रकृति के साथ गंभीर खिलवाड़ विकास के नाम पर किया जा रहा है। संसार भर में बडे बांधों से हो रहे प्रकृति के साथ विनाशकारी खिलवाड को देखते हुए अधिकांश देशों से बडे बांधों के निर्माण रोक दिये है। परन्तु देश व प्रदेश की सरकारें भगवान शिव, शक्ति व विष्णु की दिव्य भूमि को मात्र बडे भ्रष्टाचार के लिए डूबोने कर महाविनाश को आमंत्रण दे रही है।
ऊर्जा के लिए बडे बांध प्रायः भ्रष्टाचार के समुद्र के रूप में जाने जाते है। ये बांध विकास व ऊर्जा के नाम पर मात्र सफेद हाथी साबित हो रहा है। टिहरी बाँध 2,400 मेगावाट विद्युत का उत्पादन की हुंकार भरी थी । लेकिन पिछले चार सालों से टिहरी जल विद्युत परियोजना सिर्फ 1,000 मेगावाट विद्युत का उत्पादन ही कर पा रही है। वेसे भी उत्तराखण्ड में बने विशाल टिहरी बांध से मिलने वाली ऊर्जा में उत्तराखण्ड को मात्र बिजली उत्पादन का 12 प्रतिशत यानी झूनझूना ही पकड़ाया गया है, इसकी बंदरबांट को देखते हुए कहा जा सकता है कि उत्तराखण्ड के हिस्से केवल बर्बादी ही हाथ आयी। इस बांध परियोजना के लिए भारत में 9100 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जाना है। यह भी दावे किये जा रहे हैं कि इस बांध से 259000 हेक्टेयर भूमि भारत में व 170000 हेक्टेयर भूमि नेपाल में सिंचाई की जायेगी।
इस टिहरी बांध से कितने भ्रष्ट कर्मचारी देश के बडे धन्नासेठ बन गये, कितने नेताओं, नौकरशाहों, इंजीनियरों व दलालों के लिए लूट की ऐशगाह साबित हुई। अगर टिहरी बांध के निर्माण से अब तक विस्थापन, निर्माण आदि की निष्पक्ष उच्च स्तरीय जांच की जाय तो साफ हो जायेगा यह बांध केवल भ्रष्टाचार के लिए बनाया है। अब करीब 22000 करोड़ रूपये लागत से बनने वाला पंचेश्वर बांध का निर्माण में इतनी बेताबी केवल व केवल इसी भ्रष्टाचार के लिए किया जा रहा है। अब इस 4800 किमी वाली परियोजना की लागत 40 हजार करोड़ आंकी जा रही थी।  अगर जनहित के लिए सरकार करती तो अब तक कबका जनता की पुरजोर मांग राजधानी गैरसैंण बन गयी होती। ये बांध प्रायः विकासशील देशों में जहां भ्रष्टाचार अपने चरम सीमा पर पूरी व्यवस्था को शिकंजे में लिया हुआ है विकासशील देशों में विकास के नाम पर तीन चैथाई धन भ्रष्टाचार के उदर में समा जाता हैं ।
यही नहीं उत्तराखण्ड के लोग हैरान है कि गांव में विकास के प्रतीक एक छोटी सी मोटर मार्ग, नहर, अस्पताल व मकान बनाने की राह में आने वाले वृक्षों से आम जनता की विकास को पर्यावरण रक्षा के नाम पर अवरूद्ध किया जाता है। परन्तु भ्रष्टाचार के प्रतीक बडे बांधों को बनाने के लिए लाखों करोड़ों वृक्षों व अरबों करोड़ों जीव जन्तुओं को जबरन डूबों का निर्मम हत्या करने के साथ हजारों हजार लोगों के घर खलिहान व गांवों को जल समाधी दी जाती है। यह सब करते हुए देश के भाग्य विधाताओं को न तो पर्यावरण नजर आता है व नहीं मानवाधिकार। यह सब निहित स्वार्थो के लिए बेशर्मी से किया जाता है। इसमें अधिकाश्ंा राजनैतिक दल व नौकरशाह के साथ दलाल प्रकार के समाजसेवी, ठेकेदार व जनहितों को रौंदने वाले तमाम प्रकार के तत्वों का गठजोड़ होता है। बडे बांधों के बजाय छोटी छोटी परियोजनाओं व ऊर्जा के अन्य विकल्पों के बजाय इस आत्मघाती परियोजनाओं पर बलात कार्य किया जाता है। इन भ्रष्टाचार को संरक्षण देने वालों के इस कृत्य से न केवल प्रकृति अपितु आम जनता के साथ देश प्रदेश को भी दंश झेलने के लिए अभिशापित होना पड़ता है।

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