उत्तराखंड देश

पेंशन दायित्व बंटवारे की तरह केन्द्र करे 17 साल से लंबित पडे परिसम्पतियों का बंटवारा व गैरसैंण राजधानी बनाने की पहल

गृह मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद सुलझा उप्र व उत्तराखण्ड के बीच पेंशन  दायित्व बंटवारा

नई दिल्ली(प्याउ)। भले ही  उत्तराखण्ड राज्य का गठन 2000 में हो गया परन्तु 17 साल बीत जाने के बाबजूद अभी तक उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड के बीच परिसंपत्तियों में बंटवारे का विवाद भी नहीं सुलझ पाया। राज्य गठन के समय तत्कालीन उप्र सरकार व केन्द्र सरकार ने परिसम्पतियों के बंटवारे को इस प्रकार से किया कि जिससे उत्तराखण्ड के भू भाग के अन्तर्गत आने वाली कई नहरें, जमीन व सम्पतियांें आदि का स्वामित्व उप्र के पास ही दिया गया। जिससे उत्तराखण्ड के हक हकूकों पर सीधा कुठाराघात माना जा रहा है। वेसे भी टिहरी बांध सहित गंगा यमुना आदि नदियों के जल आदि संसाधनों की ऐसी बांट की गयी जिसे पहली नजर में उत्तराखण्ड के हितों पर खुला कुठराघात माना जा रहा है। इस बंटवारे में कुम्भ क्षेत्र का बंटवारा बहुत ही अविवेकपूर्ण ढंग से किया है। प्रदेश की भौगोलिक सीमाओं का पुन्न निर्धारण करके बिना मांगे थोपे गये क्षेत्र की भी समीक्षा की जानी चाहिए। इसके साथ केन्द्र सरकार को देश की सुरक्षा को गंभीर खतरा हो रहे पलायन के समाधान व राज्य गठन की जनांकांक्षाओं का सम्मान करते हुए प्रदेश सरकार से अविलम्ब राजधानी गैरसैंण को घोषित करने के दायित्व के निर्वहन कराने का बोध कराना चाहिए।
उत्तराखण्ड गठन के बाद उप्र के साथ परिसम्पति बंटवारे के एक महत्वपूर्ण  भाग कर्मचारियों के बंटवारे  और उनके पेंशन दायित्व के बंटवारे  के  लंबित पडे विवाद को आखिरकार केन्द्र सरकार ने हस्तक्षेप कर सुलझा दिया है।
इस मामले को सुलझाने में 6 जुलाई को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश की बैठक आहूत की। जिसमें इस मसले पर विचार विमर्श हुआ और उप्र ने उत्तराखंड की इस बात को मान लिया कि पेंशन दायित्व का विभाजन सतत् रूप से होना चाहिए। परिसंपत्ति बंटवारे के दौरान पेंशन दायित्व बंटवारे का आधार आबादी को बनाया गया था। इसके अनुसार 95 प्रतिशत हिस्सा उत्तर प्रदेश को तो 5 प्रतिशत हिस्सा उत्तराखंड को देना होता है।
नई दिल्ली में गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ हुई बैठक में उत्तराखण्ड सरकार व उप्र सरकार के अधिकारी शामिल हुए थे। अब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कार्यवृत्त जारी कर दिया है। कार्यवृत्त के अनुसार उप्र ने उत्तराखंड के दावे पर सहमति दे दी है।  इस विवाद को इसी निर्णय के मार्ग दर्शन में हल कर दिया जायेगा।

गौरतलब है कि राज्य गठन से लेकर अब तक उप्र के साथ चले आ रहे परिसंपत्ति विवाद से ही जुड़े कार्मिकों के बंटवारे और उनके पेंशन दायित्व विवाद के हल की दिशा में उत्तर प्रदेश ने अब स्वीकार कर  लिया है कि पेंशन दायित्व का बंटवारा के तहत ही चलेगी। इसके तहत  उप्र  पेंशन दायित्व का  तब तक हिस्सा देगा जब तक कि अंतिम व्यक्ति सेवानिवृत्त नहीं हो जाता। 9 नवंबर 2000 से 31 मार्च 2011 की अवधि तक पेंशन दायित्व की मद में उत्तर प्रदेश ने कुल 2633.16 करोड़ रू उत्तराखंड को पहले ही दे दिये थे । वह आगे इस मद में एक पाई भी और देने के लिए तैयार नहीं था। उप्र के इस अडियल रवैये को देखकर प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर अपनी आपत्ति दर्ज की थी। पेंशन दायित्व का विभाजन सतत् रूप से होना चाहिए। यह किसी निर्धारित कट ऑफ तिथि के लिए सीमित नहीं होना चाहिए। प्रदेश सरकार ने उप्र पर 2933.17 करोड़ रुपये का दावा भी किया था। इस मामले को सुलझाने को लेकर केन्द्रीय गृहमंत्रालय ने उत्तराखण्ड व उप्र के बीच यह विवाद सुलझाने के लिए एक बैठक का आयोजन किया।
पेंशन दायित्व वाले विवाद का मामला सुलझाने के सराहनीय पहल के बाद लोगों को आशा है कि परिसम्पतियों के बंटवारे का भी विवाद शीघ्र सुलझ जायेगा। सबसे महत्वपूर्ण संयोग यह है कि उप्र व उत्तराखण्ड के साथ केन्द्र में भी एक ही दल यानी भाजपा की ही सरकार है। लम्बे समय से यह विवाद इस लिए भी उलझा कि उप्र, उत्तराखण्ड व केन्द्र में अलग अलग दलों की सरकारें आसीन थी जिनका अपना दलीय स्वार्थ भिन्न होने के कारण वे इस मामले को सलझा नहीं पाये।
वर्तमान समय में ऐसा अनुकुल संयोग आया है जिसमें अगर केन्द्र सरकार जरा सी भी गंभीरता से इन मामलों पर हल करने की इच्छा से पहल की तो ये मामले सहजता से सुलझाये जा सकते हैं। प्रदेश की जनता ने मोदी जी को इसी आशा व विश्वास के साथ अभूतपूर्व जनादेश लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव में दिया है कि मोदी जी उत्तराखण्ड की जनांकांक्षाओं को साकार करेंगे। क्योंकि प्रदेश की जनता को मालूम है कि प्रदेश के हितों व जनांकांक्षाओं के प्रति उदासीन रहे प्रदेश भाजपा नेतृत्व कभी इन समस्याओं का समाधान करना तो रहा दूर , उसमें राजधानी गैरसैंण बनाने व परिसम्पतियों के बंटवारे में प्रदेश के हितों की रक्षा करने की न तो सुध ही है व न इच्छा शक्ति। इन्हीं के कृत्यों से आहत हो कर प्रदेश की जनता ने राज्य गठन के बाद दो बार  सत्तासीन हुए भाजपा के हुक्मरानों ने जनांकांक्षाओं को रौंद कर जनता को कांग्रेसी हुक्मरानों की तरह ही निराश किया। इसी कारण प्रदेश की जनता ने राज्य गठन करने वाली भाजपा को सुधरने की चेतावनी रूपि सत्ता से बेदखल करने का जनादेश दिया। परन्तु अभी भी प्रदेश के हुक्मरान अपनी पुरानी ही गलतियों को ही दोहरा कर प्रदेश हितों को रौंदने से बाज नहीं आ रहे है। इन्हें आज भी न तो प्रदेश के हक हकूकों व सम्मान का भान है व नहीं चिंता। प्रदेश के 17 साल में रहे तमाम सत्तासीनों के कृत्यों ने निराश उत्तराखण्ड की जनता ने राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करने की  आश में ही मोदी को अभूतपूर्व जनादेश दिया है। अब मोदी से ही प्रदेश की जनता को आश है कि वे उत्तराखण्ड की राजधानी गैरसैंण व हक हकूकों की रक्षा  करने का काम अपनी प्रदेश सरकार से करायेंगे।

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