उत्तराखंड

दारू नहीं गैरसैंण है उत्तराखण्ड की दवा मुख्यमंत्री जी !

देहरादून के मोह के कारण शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व प्रशासन के अभाव तथा शराब के दंश से उजड रहा है उत्तराखण्ड

देवसिंह रावत-

शराब व जनांकांक्षाओं को रौंद रही सरकारों के कुशासन के दंश से बेहाल उत्तराखण्ड की जनता ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राजमार्गो से  शराब की दुकानों को हटाने का फरमान से चंद दिन भले ही अच्छे दिनों की आश में चैन की सांस ले रही थी। पर देवभूमि उत्तराखण्ड की पावनता की रक्षा करने व सुशासन देने का वादा करके अभूतपूर्व जनादेश अर्जित कर सत्तासीन हुई भाजपा की प्रदेश सरकार ने शराब से त्रस्त उत्तराखण्ड को शराब मुक्त बनाने के बजाय शराबयुक्त उत्तराखण्ड बनाने के निर्णय से जनता स्तब्ध है।
जनता हैरान है कि भारतीय संस्कृति व देवभूमि उत्तराखण्ड की पावनता की रक्षा करने की हुंकार भरने वाली भाजपा ने प्रदेश में सत्तासीन होने के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत की सरकार से शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व प्रशासन के अभाव तथा शराब के दंश से बर्बाद हो रहे उत्तराखण्ड की दवा राजधानी गैरसैंण बनाने के बजाय शराब का गटर बनाने के लिए क्यों मजबूर किया। राजनीति की कख जानने वाले जानते है कि प्रायः कमजोर समझे जाने वाले प्रदेश सरकार का मुखिया केवल वही काम कर रहा है जो दिल्ली के आका उनको करने का फरमान सुनाते है।

जनता की आशाओं व सर्वोच्च न्यायालय के फरमान को ठेंगा दिखाते हुए प्रदेश सरकार ने जिस तिकडम से राजमार्ग को जिला मार्ग बना में तब्दीलकर, शराब की दुकानों की रक्षा करने का शर्मनाक कृत्य किया वह प्रदेश में भाजपा की सरकार के आने के बाद सुशासन व जनांकांक्षाओं को साकार होने की आश लगाने वाले लाखों लाख समर्थकों को गहरा झटका लगा।
हैरानी की बात यह है कि प्रदेश में अधिकांश कस्बाई शहरों में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद निरंतर हजारों की संख्या में महिलायें शराब की दुकानों को बंद करने की मांग को लेकर सडकों पर आंदोलन चल रहा है। लोगों को आशा थी कि यह अल्पमत व शराब समर्थक लाबी की सरकार न होकर पहली बार उत्तराखण्ड में तीन चैथाई बहुमत वाली सरकार है।

इस सरकार की कमान भी संघ के स्वयं सेवक रहे त्रिवेन्द्र रावत के हाथों में है। यह सरकार शराब के दंश से तबाह हो रहे उत्तराखण्ड की रक्षा के लिए प्रदेश में शराब मुक्त बनाने का काम करेंगे। त्रिवेन्द्र रावत प्रदेश की राजनीति में साफ छवि के सादगी युक्त नेता माने जाते है। पर आखिर क्या मजबूरी है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री व उनकी सरकार ने प्रदेश में शराब मुक्त प्रदेश बनाने की मांग करने वाली जनता की आवाज न सुन कर शराब बचाने के लिए सरकारों पर दवाब बनाने वाली शराब लाबी के हितों की रक्षा की।
प्रदेश की जनता जानती है कि प्रदेश की बदहाली की जरा सी भी सुध रखने वालो शासन प्रमुख को इस बात का भान है कि प्रदेश के हुक्मरानों की गैरसैंण में राजधानी बनाने के बजाय बलात देहरादून में बनाये रखने के कारण उत्तराखण्ड राज्य की मांग करने वाले पर्वतीय जनपदों से शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व प्रशासन से वंचित है।

इसी कारण पर्वतीय क्षेत्रों से लोगों का पलायन करने को मजबूर होना पड़ रहा है। इसका मुख्य कारण है कि सरकार में आसीन नेता व नौकरशाह अपने ऐशोआराम में डूबे रहने के कारण देहरादून को मोह नहीं छोड़ पा रहे है। जबकि गैरसैंण में विधानसभा भवन व विधायक निवास आदि भी बन कर तैयार हो गया है। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जनता से जनादेश मांगते हुए गैरसैंण में राजधानी बनाने का आश्वासन दिया था। वहीं कुछ समय पहले हरिद्वार के विधायक मदन कौशिक ने खुद गैरसैंण राजधानी बनाने का प्रस्ताव भी सदन में रखा था। इसके बाबजूद भाजपा सत्तासीन होते ही जिस तेजी से भाजपा ने गैरसैंण मुद्द पर गिरगिट की तरह रंग बदला उससे जनता ठगी सी महसूस कर रही है। अगर प्रदेश सरकार हकीकत में प्रदेश का विकास करना चाहती है तो उसे प्रदेश में शराब का गटर बनाने के बजाय शराब मुक्त उत्तराखण्ड बनाने के साथ प्रदेश की राजधानी  गैरसैंण बनानी होगी। तभी राज्य गठन की जनांकांक्षाओं के साथ राज्य गठन के मोहन बाबा उत्तराखण्ड सहित सभी शहीदों की शहादत साकार होगी।

तभी प्रदेश में देहरादून, ऊधम सिंह नगर व हरिद्वार में सिमटा शासन तंत्र पूरे प्रदेश में फेल कर प्रदेश का चहुमुखी विकास होगा। तभी प्रदेश से पलायन रूकेगा। तभी प्रदेश के पर्वतीय जनपदों में शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व विकास की सुशासन वाली रेल पटरी पर सरपट दौडेगी। प्रदेश में सरकारों के देहरादूनी मोह के कारण व्याप्त  कुशासन से शिक्षा के मंदिर विधालय स्तरहीन हो गये है, चिकित्सालय चिकित्सकों व दवा के अभाव में खुद बीमार हो गये है। सरकारी तंत्र देहरादून में सिमट गया है। हालत यह है कि प्रदेश में चिकित्सकों के 1500 पद रिक्त पडे हैं। ऐसे में सरकार को प्रदेश में दारू का गटर बनाने के बजाय देहरादूनी रोग के दंश से  शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व शासन से वंचित  प्रदेश को  गैरसैंण राजधानी रूपि दवा दे कर ही उबारा जा सकता है।

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