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विवादस्थ ढ़ांचे ढाहने के आरोपी बनने से अधिक अपनों के चक्रव्यूह में घिरने व्यथित है आडवाणी व जोशी!

मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पहले दिन से आडवाणी व जोशी का राष्ट्रपति न बनना तय मान रहे है  समीक्षक
देवसिंह रावत
भले ही 30 मई को लखनऊ की सीबीआई की अदालत द्वारा अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराने के आरोप में भाजपा के शीर्ष नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, सहित सभी 12 नेताओं को आरोपी  घोषित किया हो। पर भाजपा के शीर्ष नेता लाल कृष्ण आडवाणी  व जोशी सहित वरिष्ठ नेता इस वाद में न्यायालय द्वारा आरोपी घोषित किये जाने से अधिक व्यथित अपनों के चक्रव्यूह में घिरने से व्यथित है। कांग्रेस की सरकार में यदि सीबीआई की अदालत यह  आरोप तय करती आडवाणी सहित सभी आरोपी नेताओं को उतना मलाल नहीं होता। ऐसी स्थिति में  भाजपा भी यही आरोप लगाती कि केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने सीबीआई द्वारा अपने राजनैतिक विरोधियों से बदला लेने के लिए ऐसे हथकण्डे अपना रही है। परन्तु अब अपनी ही सरकार है। लालकृष्ण आडवाणी खुद जिनके राजनैतिक संरक्षक रहे उन नरेन्द्र  मोदी की सरकार वर्तमान केन्द्र में आसीन है। प्रधानमंत्री मोदी के अधीन सीबीआई है। उसी सीबीआई की अदालत में यह मामला चल रहा है। यह बात आरोपी बने 12 नेताओं के ही नहीं अपितु कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों के गले नहीं उतर रही है। भले ही
राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव व कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने इस प्रकरण पर आडवाणी आदि नेताओं के घिरने पर  दो टूक शब्दों में कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नियंत्रण में चलने वाली सीबीआई की ये साजिश है। देश में राजनैतिक विचारकों में इस प्रकरण को सीधे मोदी द्वारा लालकृष्ण आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी को राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति पद पर आसीन न होने देने के राजनैतिक हथकण्डे के रूप में देख रहे है।  सीबीआई की अदालत द्वारा बाबरी मस्जिद ढाहने के मामले में 12 आरोपी बनाये जाने के बाद अब आडवाणी-जोशी के लिए राष्ट्रपति पद के बारे में सोचना भी मुश्किल। लखनऊ में सीबीआई की विशेष अदालत 6 धाराओं के तहत मुकदमा चलाएगी. धारा 120 बी यानी आपराधिक साजिश, धारा 153 यानी दंगे के लिए उकसावा देना, धारा 153-ए समाज में नफरत फैलाना, धारा 295 किसी धार्मिक स्थल को तोड़ने के मामले में केस इन नेताओं पर केस चलेगा।मामले के 12 आरोपियों पर धारा 295 ए यानी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचने और धारा 505 सार्वजनिक शांति भंग करने या विद्रोह कराने की मंशा से गलत बयानी करने का आरोपी भी माना गया हैं।
प्रधानमंत्री पद के लम्बे समय तक दावेदार रहे भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी जब प्रधानमंत्री न बन सके तो उनको आश थी कि भले ही मोदी ने प्रधानमंत्री बनने का उनका रास्ता काट दिया हो पर अब वे राष्ट्रपति बना कर उनकी टूटती आश को साकार करेंगे। परन्तु बाबरी प्रकरण में अदालत द्वारा आरोपी बनाये जाने के बाद आडवाणी बेहद हताश थे। आरोप तय होने के बाद लाल कृष्ण आडवानी ने आरोपों को मानने से इनकार कर दिया। न्यायालय ने जब आडवाणी सहित सभी आरोपियों से आरोप पत्र के कागज पर हस्ताक्षर  करने को कहा तो आडवाणी ने हस्ताक्षर करने से मना करते हुए कहा कि आरोपों को स्वीकार नहीं करते। आडवाणी का रूख देख कर कुछ समय तक अधिवक्ता और जज ने उनको  समझाया। इसके बाद ही आडवाणी ने कागज हस्ताक्षर किये। न्यायालय ने सभी बारह आरोपियों को 20 हजार के निजी मुचलके पर जमानत दे दी है।
ऐसा नहीं है कि आडवाणी अपने विरोधियों के इस राजनैतिक चक्रव्यूह से अनजान है। आडवाणी भले ही भारी बहुमत से सत्ता में आसीन नरेन्द्र मोदी व शाह के दावों से अनविज्ञ नहीं है। राजनीति के मर्मज्ञ आडवाणी व जोशी को इस बात का भी गहरा दुख है कि कैसे मोदी के प्रधानमंत्री चुनाव की कमान संभालने से पहले भाजपा के तमाम नेता उनके एक ही इशारे पर समर्पित रहते थे। आज वाजपेयी के समय भी लालकृष्ण आडवाणी अपने संगठन में मजबूत पकड़ से शक्तिमान नेता बने हुए थे। इसी ताकत के बल पर उन्होने गुजरात दंगों के बाद मोदी का इस्तीफा लेने का मन बना चूके तत्कालीन प्रधानमंत्री मोदी की मंशा पर पानी फेरते हुए मोदी का गुजरात के मुख्यमंत्री का ताज बरकरार रखा। उस समय मोदी की कटोरी के रूप में विख्यात सुषमा स्वराज, जेटली, अनंत कुमार, बेंकटया नायडू सभी आज मोदी के नवरत्न बने हुए है। शिवराज चैहान भी मोदी के मुरीद बन गये है। लालकृष्ण आडवाणी ही नहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता आज खुद को उपेक्षित पा रहे है। अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढाहने वाले मामले में सीबीआई की कोर्ट द्वारा आरोप तय किये जाने के बाद भाजपा नेता खुद को अपनो द्वारा छले सा जाना महसूस कर रहे है।
भाजपा व संघ के क्षेत्र में इस बात पर हैरानी है कि अगर आडवाणी आदि नेताओं को राष्ट्रपति बनाने का मन नहीं था तो इसके लिए कई अन्य बहाने मौजूद थे। परन्तु समीक्षकों का अनुमान है कि मोदी व शाह की जोड़ी आडवाणी व जोशी को राष्ट्रपति बनाने का खतरा नहीं उठाना चाहते है। भले ही दोनों वरिष्ठ नेता अभी अनुकुल परिस्थिति के कारण अवरोधक नहीं बन पा रहे हो परन्तु अंदर से वे मोदी शाह की जोड़ी से खुश नहीं है। इसी आशंका के चलते इन दोनों नेताओं का राष्ट्रपति पद पर आसीन न किया जाना मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पहले दिन से तय माना जा रहा था।
हालांकि भाजपा के बडे नेता बाबरी प्रकरण पर न्यायालय के फरमान व राष्ट्रपति चुनाव का कहीं दूर दूर तक सम्बंध नहीं मान रहे है। वे इसे संयोग मात्र ही मान रहे है।

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