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‘अंग्रेजी की गुलामी हटाओ, भारतीय भाषा लागू करो’ आंदोलन में जुड रहे है देशभर के लोग

50 माह से जंतर मंतर पर देश में अंग्रेजी की गुलामी हटा कर शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन भारतीय भाषाओं में संचालित करने के लिए भारतीय भाषा आंदोलन ने छेड़ी है आजादी की जंग
 
नई दिल्ली (प्याउ)। 50 महिने से संसद की चैखट जंतर मंतर पर चल रहे देश से अंग्रेजी गुलामी हटाओं, भारतीय भाषाओं को लागू करो आंदोलन की मांग सुनने के बजाय सरकार पूर्व सरकारों की तरह ही पुलिसिया दमन कर रही हो परन्तु देश भर के प्रबुद्ध लोग भारतीय भाषा आंदोलन को समर्थन देने के लिए जंतर मंतर पंहुच रहे है।
भारतीय भाषा आंदोलन के प्रमुख ध्वजवाहक देवसिंह रावत के अनुसार 30 मई को ही भारतीय भाषा आंदोलन में जहां केरल के प्रमुख संत नारायण दास, उड़िसा से भ्रष्टाचार विरोधी आंदंोलन में सक्रिय रहे तपन मोहंती, उप्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरि बाबू कौशिक, भारत के विदेश व्यापार सेवा के पूर्व निदेशक महेश  चंद्रा, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस के वरिष्ठ समाजसेवी अभिराज शर्मा, कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी के प्रबुद्धजन रामजी शुक्ला, बिहार के समर्पित भाषा आंदोलनकारी सुनील कुमार सिंह, अरूणाचल से जुडे उद्यमी दिनेश शर्मा, इंडिया अगेंस्ट करपशन के प्रमुख  ध्वजवाहक व यमुना मुक्ति आंदोलन के प्रणेता मथुरा के बाबा श्रीओम गौतम, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विधानसभा क्षेत्र बाड़ बख्तारपुर के वेदानंद, जार्ज फर्नाडिस के करीबी व वर्तमान भाजपा नेता दिनकर वर्मा, अंकुर जैन सहित अनैक समाजसेवी भारतीय भाषा आंदोनल के धरने में सम्मलित हुए।
वहीं इस सप्ताह भारतीय भाषा आंदोलन को समर्थन देने वाले प्रमुख लोगों में तमिलनाडू से आम आदमी पार्टी से जुडे समाजसेवी शिपिंग उद्यमी एन चंद्रसेकरन,अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष आलमदार अब्बास, राष्ट्रीय लोकदल के दिल्ली प्रदेश के महासचिव मनमोहन शाह, डीएमएस के वरिष्ठ कर्मचारी नेता तेजासिंह बिष्ट, भारतीय भाषा आंदोलन के लिए समर्पित मुन्नु कुमार, आशा शुक्ला, अध्यापक अश्वनी सुकरात, सुधांशु शिखरपति त्रिपाठी, कश्मीर से अनिता पंडित, विमल कुमार गुप्ता,अधिवक्ता रामनरेश सिंह,  भाजपा के समर्पित कार्यकत्र्ता मोहन जोशी व यतेन्द्र वालिया, चंद्र किशोर रावत, अजीत त्यागी आदि थे।
उल्लेखनीय है कि भारतीय भाषा आंदोलन पर 21 अप्रैल 2013 से यानी 50माह से संसद की चैखट जंतर-मंतर पर चल रहा है। भारतीय भाषा आंदोलन की प्रमुख मांग है कि अंग्रेजों के जाने के बाद देश को अंग्रेजों की भाषा, अंग्रेजी की गुलामी से भी मुक्त करके, विश्व के तमाम स्वाभिमानी और विकसित देशों की तरह अपने देश की ही भाषा में शिक्षा ,रोजगार ,न्याय ,सम्मान व शासन प्रदान किया जाए।
भारतीय भाषा आंदोलन के प्रमुख ध्वजवाहक देवसिंह रावत के अनुसार शर्मनाक बात यह है कि देश,अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति होने के 70 साल बाद भी सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी की ही गुलामी चल रही है और भारतीय भाषाओं में न्याय तक नहीं मिलता है। वही इस देश में भारतीय प्रशासनिक सेवा से लेकर कुत्ते की भर्ती तक की नौकरियां मैं अंग्रेजी की अनिवार्यता बनी हुई है। देश की जनता से भारतीय भाषाओं में जनादेश मांगने वाले राजनेता भी सत्तासीन होकर भारतीय भाषाओं में राजकाज चलाने की बजाय अंग्रेजी भाषा में ही शासन चलाते हैं।
यही नहीं देश में भारतीय भाषाओं की साहित्यकार फिल्मकार वह शिक्षाविद् जो भारतीय भाषाओं से रोजी रोटी व सम्मान कमाते हैं वह भी अपने कार्यक्रमों को अंग्रेजी में ही संचालित करते हैं।अपने साहित्य सम्मान को वापस करने वाली तथाकथित साहित्यकार भारतीय भाषाओं को जमींदोज करके अंग्रेजी की गुलामी पर शर्मनाक रखते हैं। वहीं पूरे संसार में रूस, चीन, जापान, जर्मनी, फ्रांस, इटली, इस्राइल, कोरिया, इंडोनेशिया ही नहीं नेपाल जैसा देश भी अपने देश की भाषा में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन प्रदान कर पूरे विश्व में विकास का परचम लहरा रहा है। परन्तु भारत जैसा जो अपनी भाषाओं के दम पर पूरे विश्व में जगदगुरू व सोने की चिडिया रही। जिसके वैभव की चकाचैध से दुनिया भर के चंगैज,सिकंदर, मुगल शासकों व यूरोपिय देशों के  लूटेरे शासकों ने कई बार भारत पर ने शताब्दियों तक निरंतर हमला कर लूटपात करते रहे। वहीं अंग्रेजों के जाने के 70 सालों से जब से भारतीय हुक्मरानों ने देश के सम्मान, संस्कृति व लोकशाही को रौंद कर अंग्रेजी का इस देश को गुलाम बनाया तब से भारत हजारों विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, कालेज खुलने व साक्षरता का स्तर कई गुना अधिक बढ़ने के बाबजूद भारत अब विश्व में सबसे असहाय, भ्रष्ट व गरीब देशों की श्रेणी में है। पूरा देश भ्रष्टाचार, हिंसा, अराजकता, अनैतिकता, देशघाती व असामाजिक तत्वों के शिकंजे में जकड़ा हुआ है। इसका मूल कारण देश में भारतीय संस्कृति के जीवन मूल्यों को संचारित करने वाली भारतीय भाषाओं से वंचित हो रखा है। बच्चों को बलात अंग्रेजों की लूटमार, शोषण करने वाली प्रवृति को संचालित करने वाली अंग्रेजी भाषा से शिक्षित कर भारत के विमुख बनाने का देशघाती कृत्य बेशर्मी से किया जा रहा है।
भारतीय भाषा आंदोलन न केवल वर्तमान प्रधानमत्रीं नरेंद्र मोदी अपितु पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी इस आशय के दर्जनों ज्ञापन दिए जा चुके हैं। परंतु दुर्भाग्य इस देश का यह है कि देश के हित की मांग को शांतिपूर्ण आंदोलनों से स्वीकार करने की बजाए सरकार दमनकारी कृतियों का सहारा लेकर लोकशाही पर कुठाराघात करती है। धूप-लू ,भूख-प्यास , सर्दी, बरसात, सरकारी दमन व उपेक्षा की परवाह न करते हुए भारतीय भाषा आंदोलन ने संसद की चैखट जंतर मंतर पर भी जारी रखा देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करके भारतीय भाषाएं लागू करने का आजादी का आंदोलन।
इन 50 महिनों के इस संघर्ष में सरकारी दमन को सोते हुए भी भाषा आंदोलन कारियों ने देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कर के भारतीय भाषाओं को लागू करने का संकल्प ले रखा है।

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