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भाजपा को सत्ता से हटाने से अधिक कांग्रेस को कमजोर करने की विपक्षी दलों की होड़ ही करायेगी 2024 में फिर से मोदी की ताजपोशी!

श्री राम मंदिर व विश्व नायक ’ के जयघोष से विपक्ष को चारों खाने चित्त करते हुये 400पार की हुंकार भर रही है भाजपा

देव सिंह रावत

सन 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजने वाली है। एक तरफ सन् 2014से ही देश की सत्ता में आसीन प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाला सत्तारूढ़ भाजपा  का राजग गठबंधन फिर से 2024 के लोकसभा चुनाव में फिर से विजय श्री अर्जित करने के लिए पूरे दमखम से न केवल हुंकार भर रहा है अपितु अबकी बार 400 सांसद पार का भी लक्ष्य रखकर विपक्ष को चारों खाने चित्त करने का शंखनाद कर चुका है। ऐसा नहीं है की सत्तारूढ़ गठबंधन किसी बड़बोलेपन या सत्ता मद में ऐसी हवाई शेखी बघार रहा है। अपितु सत्तारूढ़ गठबंधन बहुत ही सोची समझी रणनीति के  तहत श्री राम मंदिर व विश्व नायक ’ के जयघोष से विपक्ष को चारों खाने चित्त करते हुये 400पार की हुंकार भर रही है भाजपा।

वहीं दूसरी तरफ मोदी नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को 2024 के लोकसभा चुनाव में सत्ता से बाहर करने की हुंकार भरने वाले कांग्रेस सहित विपक्षी दलों का इंडिया गठबंधन अपने अस्तित्व की रक्षा करने के इस निर्णायक मोड पर भी  भाजपा को सत्ताच्युत  करने की जंग ईमानदारी से नहीं लड़ रहा है।
भाजपा जहां लोकसभा चुनाव की हर संसदीय सीट पर अपने प्रत्याशियों के चयन करने और अपना देशव्यापी व्यापक प्रचार करने में जुटे हुए हैं।
वहीं विपक्षी इंडिया गठबंधन में अभी गठबंधन की दलों की बीच इन चुनाव में विभिन्न प्रांतो में कौन दल कितनी सीटों पर लड़ेगा इस पर भी सहमति नहीं हुई। इंडिया गठबंधन के अधिकांश घटक इस समय भाजपा को परास्त करने के लिये पूरी ताकत लगाने अधिक ताकत अपने अपने प्रभाव वाले राज्यों में कांग्रेस को हाशिये पर धकेलने के अलावा अन्य राज्यों में जहां उनको कम प्रभाव है वहां भी कांग्रेस से अपनी दावेदारी करके एक प्रकार से कांग्रेस को शिकंजे में जकडने की तिकडम पर काम कर रहे है। कांग्रेस में कमजोर नेतृत्व व दिशाहीनता का लाभ भाजपा के साथ कांग्रेस के साथ गठबंधन करने की हुंकार भरने वाले इंडिया गठबंधन के घटक दल कर रहे हैं। सबकी यह कोशिश है कि कांग्रेस की गठबंधन करने की इच्छा को उसकी मजबूरी मान कर आगामी चुनाव में अपने लिये अधिक से अधिक सीटें हासिल करने में लगे हे। पर यह भूल गये कि 2014 से केंद्र व देश के अधिकांश प्रांतों में सत्तासीन भाजपा का निरंतर तीसरी बार जीतना उनके अस्तित्व के लिये भी उतना ही खतरा है जितना कांग्रेस के लिये। खासकर इन दस सालों में  जिस प्रकार महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, पूर्वोतर आदि राज्यों में जिस प्रकार से दलबदल को हवा देकर विपक्ष की सरकारों को अपदस्त करने का कार्य किया गया। उससे भाजपा के इरादे जग जाहिर है कि वह भी पूर्व में केंद्र में सतारूढ रहे कांग्रेस व अन्य दलों की सरकारों की तरह ही विरोधी दलों ंकी सरकारों को चैन से काम करने नहीं देती। हॉ पूर्व में जिस प्रकार उतराखण्ड व राजस्थान में प्रदेश के मजबूत नेता सत्तारूढ रहे उनकी सरकार को अपदस्थ करने में भाजपा को मुंह ंकी खानी पडी। विरोधी दलों की सरकारों को अपदस्थ करने में ऐसी ही असफलता भाजपा को दिल्ली, बंगाल व बिहार आदि प्रांतों में इन प्रांतों के मजबूत नेतृत्व के कारण मिल रही है।
इन सबके बाबजूद विपक्ष के पास आज के दिन भी देश की जनता को अपनी तरफ आकृष्ठ करने वाला मोदी जैसा नेतृत्व नहीं है। भले ही बिहार में नितीश, बंगाल में मंमता, उप्र में अखिलेश, महाराष्ट्र में पंवार, दिल्ली में केजरीवाल  व तमिलनाडू में स्टालिन आदि नेता हों परन्तु ये देश में मोदी के सामने प्रधानमंत्री के दावेदार के रूप में इनके प्रांतों से बाहर की जनता पूरी तरह खारिज करती है। इनकी लोकप्रियता कांग्रेस के आलाकमान राहुल गांधी के सम्मुख भी नहीं है। विपक्ष में मोदी के सामने सबसे बडा चेहरा राहुल गांधी का होने के बाबजूद विरोधी दलों के गठबंधन के अधिकांश आला नेताओं की पहली प्राथमिकता मोदी को रोकने के साथ राहुल गांधी को भी रोकने की है। इनको ऐसा लगता है कि अगर राहुल गांधी को सामने रखेंगे तो कांग्रेस मजबूत होगी जो उनके प्रांतों में उनके दल की राजनीति पर ग्रहण लगाने का कारण भी बन सकते है। इसी लिये इनका पूरा जोर राहुल गांधी के बजाय किसी अन्य को विपक्ष का प्रधानमंत्री का चेहरा या इंडिया गठबंधन का संयोजक बनाने की है। वहीं विपक्षी दलों का ऐसा ही प्रयास वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष खडगे का नाम संयोजक के लिये चलाने का दाव भी है। विपक्षी क्षत्रप कई गुटों में बंटे है। इसकी सच्चाई जनता भी समझ चूकी है कि जब ये दल विपक्ष के सबसे बडे दल के सर्वमान्य नेता राहुल गांधी को स्वीकार नहीं कर रहे हैं तो ये कैसे पवार,नितीश, ममता या केजरीवाल आदि को स्वीकार करेंगे। पवार व ठाकरे की राजनीति पर तो भाजपा पहले ही दलबदल करा कर कुंद कर चूकी है। ऐसी भी अटकलें है कि माया की तरह ही केजरीवाल व ममता भी भाजपा नेतृत्व के प्रकोप से बचने के लिये राहुल व कांग्रेस की राहों में अवरोध ही खडे करेगे। विपक्षी दलों की केकडा प्रवृति से देश की आम जनता का विश्वास जीतने में आज के दिन तक विपक्षी पूरी तरह से विफल रहे।
देश की आम जनता विपक्षी नेताओं की अतिमहत्वाकांक्षा, एक दूसरे को लडंगी मारने की प्रवृति के साथ परिवारवाद, भ्रष्टाचार व अंध तुष्टिकरण के आगोश में घिरे रहने के कारण देश की आम जनता  मंहगाई, रोजगार जैसे ज्वलंत दंशों से देश की  जनता की आशाओं व अपेक्षाओं पर खरे न उतरने में विफल रही मोदी सरकार के साथ ही खडी प्रतीत होती है। खासकर मोदी सरकार द्वारा विश्व में भारतीय सम्मान बढ़ाने व देश की सुरक्षा-सम्मान के लिये समर्पित रहने के साथ भारत विरोधियों को मुंहतोड़ जवाब देने के कारण उसके साथ चट्टान की तरह खडी है।

भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव में परास्त करने के नाम पर  विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन के तमाम दल अपनी पूरी ताकत कांग्रेस को अपने अपने राज्यों में कमजोर करने में लगे है। सभी घटक दल कांग्रेस से उदारता बरतने की सीख दे रहे हैं परन्तु खुद उदारता दिखाने के लिये तैयार नहीं है। सारी कुर्वानी कांग्रेस से चाहते है। सबसे अधिक लोकसभा सीट वाले उप्र में सपा प्रमुख अखिलेश खुद 65 सीटें लडने का ऐलान कर चूके हैं। बाकि 15 सीटों पर रालोद व कांग्रेस आदि घटक दलों को लडने के लिये मजबूर कर रहे है। वहीं बसपा को इंडिया  गठबंधन में प्रवेश पर एक प्रकार से सपा प्रमुख अखिलेख चुनाव के बाद बसपा की गारंटी कोन लेगा वाला वीटो लगा चूके हैं। जबकि कांग्रेस यहां 40 से 20 सीटों की हुंकार भर रही है। ऐसे में जयंत नेतृत्व वाले रालोद व वामदलों का क्या होगा। यहां जयंत की रालोद कम से कम 6 सीटों की मांग कर रहा है।

ऐसा ही नजारा 48संसदीय सीट वाले महाराष्ट्र में भी देखने को आ रहा है। राकांपा प्रमुख पवार व शिवसेना प्रमुख ठाकरे जो अपने अपने दलों को टूटने से नहीं बचा पाये वे भी 2019 लोकसभा में उनके दल के हिस्से के अनुसार ही सीटों पर दावेदारी कर रहे है। ठाकरे 23 व पंवार भी एक दर्जन के करीब सीटों पर दावेदारी कर रहा है। इसके अलावा महाराष्ट्र में विपक्षी गठबंधन की घटक वंचित बहुजन अघाडी भी 4 सीटों के लिये हुंकार भर रही है। इस प्रकार कांग्रेस यहां क्या 8 सीटों पर संतोष करेगी ?
वहीं 40 लोकसभा सीटों वाले बिहार प्रांत में सत्तारूढ राजद व जदयू दोनों 17-17 सीटों की ताल ठोक रही है। इंडिया गठबंधन के वाम दल भी 6 सीटों पर दावा कर रहे है तो क्या कांग्रेस 2 सीटों का झुनझुना ही बजा कर संतोष कर लेगी?

42संसदीय क्षेत्र वाले बंगाल प्रांत में सत्तासीन ममता बनर्जी तो कांग्रेस सहित इंडिया गठबंधन के वाम सहयोगियों को हाशिये में धकेलने के मामले में सबसे अव्वल है। वह प्रांत में कांग्रेस को 2 सीटें देने की बात कह रही है। वामदलों के लिये शायद ही ममता की झोली में कुछ होगा। ऐसे में बंगाल में 2024 के लोकसभा चुनाव में  मोदी के खिलाफ इंडिया गठबंधन की रेल चल पायेगी या इंडिया गठबंधन रूपि रेल के डब्बे भाजपा का मुकाबला करने के बजाय आपस में ही टकरा कर भाजपा की राह आसान करेगी? ममता का सितम कांग्रेस पर केवल बंगाल में ही नहीं गिरेगा । ममता की असम में भी 4 सीट की दावेदारी 14 सीट वाले असम प्रांत में भी है।
वहीं दूसरी तरफ पंजाब व दिल्ली प्रांत की सत्ता में आसीन अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी  ने भी ममता की तर्ज पर कांग्रेस की नकेल कसने में कोई कसर नहीं छोड रखी है। कांग्रेस जहां केजरीवाल की आप से दिल्ली व पंजाब प्रांत की लोकसभा सीटों पर तालमेल की बातचीत करना चाहती है परन्तु केजरीवाल ने गुजरात की 26 सीटों में 1  तथा गोवा की 2 सीटों में से एक, दिल्ली की  7 सीटों में 4 , पंजाब की 13 सीटों में से 7 सीटों पर दावेदारी ठोकी है। वेसे भी ममता व केजरीवाल दोनों अपने अपने स्तर से कांग्रेस को हासिये में धकेलने की पुरजोर कोशिस कर रहे है।
ऐसी स्थिति से कांग्रेस व इंडिया गठबंधन मोदी के नेतृत्व वाले राजग गठबंधन को मुकाबला कैसी करेगी। हालांकि गठबंधन के सहयोगी दलों में सीटों की बंटवारे की समस्या भाजपा नेतृत्व के समक्ष भी है। परन्तु मोदी नेतृत्व वाली राजग गठबंधन के सबसे बडे दल भाजपा की स्थिति  बिना नेता वाले इंडिया गठबंधन के सबसे बडे दल कांग्रेस से लाख गुना बेहतर है। इंडिया गठबंधन का अधिकांश सहयोगी दल जहां कांग्रेस पर जबरदस्त दवाब बनाये हुये हैं वहीं राजग गठबंधन में कोई भी दल भाजपा पर दवाब बनाने की स्थिति में नहीं है। खासकर भाजपा से दूर होकर जो हालत ठाकरे की शिवसेना व बादल के अकाली दल के साथ नितीश कुमार के जदयू की हो गयी है,उसको देख कर राजग गठबंधन का कोई भी दल भाजपा को आंखे दिखाने की स्थिति में नहीं है अपितु भाजपा के रहमोकरम पर उसके इशारे पर नाचने के लिये विवश है।
इस प्रकार ये सब तमाम परस्थितियां, वर्तमान में दो-तीन माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से मोदी की ताजपोशी का ही शंखनाद कर रही है।

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