उत्तराखंड देश

उत्तराखंड में बाहरी व्यक्तियों पर भूमि खरीदने पर प्रतिबंध लगाने वाले मुख्यमंत्री धामी के बयान को मात्र कोरी बयानबाजी करार देते हुये उतराखण्डियों ने तेज किया आंदोलन

 

कोरी ट्वीट करने के बजाय विधिसम्मत ठोस कानून बनायें सरकार,

6 जनवरी 2023 को दिल्ली, 15 जनवरी को बागेश्वर व फरवरी में कोटद्वार में होगी मूल निवास स्वाभिमान महारैली

प्यारा उतराखण्ड डाट काम

उतराखण्ड के मुख्यमंत्री ने मूल निवास भू कानून पर चल रहे उतराखण्डी जनांदोलन को देखते हुये
जहां पहले सचिव स्तर की एक समिति का गठन किया। जब समिति के गठन का जनांदोलन पर कोई ठोस प्रभाव नहीं पडा तो 31 दिसम्बर 2023 को सुबह 10बज कर 39 मिनट पर उतराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के अधिकारिक ट्वीटर से इस आशय का एक ट्वीट में आंदोलनकारियों व जनता को ठोस भू कानून बनाने की दृष्टि से सरकारी आश्वासन दिया। मुख्यमंत्री धामी ने इस ट्वीट में स्पष्ट कहा कि उन्होने शासकीय आवास पर भू-कानून के संबंध में उच्च स्तरीय बैठक लेते हुए अधिकारियों को निर्देश दिए कि भू कानून समिति की आख्या प्रस्तुत किये जाने तक या अग्रिम आदेशों तक जिलाधिकारी बाहरी व्यक्तियों को कृषि एवं उद्यान के उद्देश्य से भूमि क्रय करने की अनुमति के प्रस्ताव पर निर्णय नहीं लेंगे।
भू-कानून के लिए बनाई गई कमेटी द्वारा बड़े पैमाने पर जन सुनवाई की जाए और विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोगों और विशेषज्ञों की राय ली जाए। भू-कानून के लिए विकेंद्रीकृत व्यवस्था के लिए गढ़वाल और कुमाऊं कमिश्नर को भी शामिल किया जाए। हम प्रदेशवासियों के हितों के लिए कार्य करने हेतु सदैव प्रतिबद्ध हैं ।
मुख्यमंत्री के इस आश्वासन का भले ही आम लोगों ने स्वागत किया परन्तु उतराखण्ड के प्रबुद्धजन, विधिवेता व आंदोलनकारियों ने इसे चल रहे व्यापक मूल निवास भू जनांदोलन की धार कूंद करने व जनता की आंखों में धूल झोकने वाला कदम बता कर सरकार को सलाह दी कि मात्र कोरी बयानबाजी करने के बजाय विधानसम्मत ढ़ग से पारित किया जाय।
मुख्यमंत्री के ट्वीट आश्वासन को आंदोलन की धार कुंद करने के साथ उतराखण्डियों की आंखों में धूल झौंकने वाला हथकण्डा बताते हुये उतराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के प्रखर ध्वजवाहक व प्यारा उतराखण्ड के संपादक देवसिंह रावत ने कहा कि “काश मुख्यमंत्री सच्चे मन से विधिसम्मत ढंग से करते। चुनावी मौसम में कितनी बार जनता से विश्वासघात कर चुके हैं अब तक की सरकारें।राजधानी गैरसैण बनाने,नौकरियों की बंदरबांट, मुजफ्फरनगर काण्ड, अंकिता भण्डारी प्रकरण आदि। अभी जनांदोलन की धार कुंद करने के लिये यह हवाई आश्वासन दे रहे हैं परन्तु जब इनको प्रदेश की जमीन को अपने चेहतों को बांटनी होगी या जरूरत होगी तब फिर सीधे या कानून बनाने के बाद भी इसमें नये संसोधन करके मनचाहा कर लेंगे। यह सवाल केवल उतराखण्ड की वर्तमान भाजपा सरकार या उनके मुख्यमंत्री पुष्कर धामी का नहीं है अपितु यह अब तक दिल्ली के आकाओं के प्यादे बने सभी सरकारों व उनको समर्थन देने वाले राजनैतिक दलों का भी है। इनको सत्तालोलुपता का घनघोर रोग है। हिमाचल के सरकार व राजनेताओं की तरह उतराखण्ड से कोई लगाव नहीं है। इसीलिये ये बार बार जनता को झूठे आश्वासन दे कर छल करते हैं।”

जमीन की बिक्री पर मुख्यमंत्री के ट्वीट रूपि आश्वासन को सिरे से नकारते हुये मूल निवास भू कानून समन्वय समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने इसे सिरे से खारिज करते हुये कहा कि उत्तराखंड की जनता की आंखों में धूल झोंकना बंद करो सरकार बहादुर। जनता सब जानती है।

प्रदेश में अनैक भ्रष्टाचार के मामलों को बेनकाब करने वाले व उतराखण्ड के हक हकूकों को अपनी मजबूत आवाज देने वाले वाले वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्र शेखर करगेती ने बाहरी लोगों को जमीनों की बिक्री पर रोक लगाने के आश्वासन रूपि ट्वीट को दो टूक शब्दों में इसे खारिज करते हुये कहा कि
क्या विधानमंडल द्वारा पारित एंव राज्यपाल की स्वीकृति के उपरांत अधिसूचित किसी कानून के क्रियान्वयन को राज्य के मुख्यमंत्री के किसी मौखिक आदेश या प्रेस को जारी किये बयान से जबरन रोका जा सकता है । मुझे जहां तक मुझे विधिक जानकारी है ऐसा विधि सम्मत नहीं हो सकता, अगर ऐसा होना कानूनन सम्भव होता तो मुख्यमंत्री का कोई भी बोल बचन कानून होता और फिर किसी राज्य में विधानमंडल की जरूरत नही होती । पोस्ट में चस्पा अखबार में छपी खबर किसी शिगूफे से इतर और कुछ नही हो सकती, जो है भी ।

वरिष्ठ पत्रकार व मूल निवास भू कानून जनांदोलन के ध्वजवाहक चारू तिवारी ने भी मुख्यमंत्री धामी के आश्वासन को नकारते हुए कहा कि
“सावधान! मैं पहले भी कह चुका हूं कि जमीन ख़रीदना बेचना भू कानून नहीं है। सरकार के लिए यह बहुत सरल है कि वह तात्कालिक तौर पर जमीन की खरीद फरोख्त पर रोक लगा देगी। लेकिन हमारे क़ृषि योग्य जमीनों का हमारे हाथों से जाना नहीं रुकने वाला है। मुख्यमंत्री ग़लत तरीके से 154 की व्याख्या कर रहे हैं। उन्हें यह पता होना चाहिए कि त्रिवेंद्र रावत की सरकार ने 2018 में 154के सारे प्रतिबंध हटाकर जमीनों को एकमुश्त बेचने का इंतजाम कर दिया था। हमारी मांग है कि 2018 के सारे संशोधनों जैसे 154, 143और 156 के अलावा वे सारे संशोधन वापस लिए जायें जो उस समय की सरकार ने लिए थे। फिर आगे बात होगी। हमारी किसी समिति पर कोई भरोसा नहीं है।”

राज्य  आंदोलन, राजधानी गैरसैंण आंदोलन सहित उत्तराखंड के हक्कूओं के लिए संघर्षरत रघुवीर बिष्ट ने भी मुख्यमंत्री के आश्वासन को कोरा आश्वासन बताते हुए आंदोलन को तेज करने पर जोर दिया

वहीं समीर मुंडेपी ने दो टूक शब्दों में कहा कि 143 क एवम 154 में उपधारा २ को वापस ले राज्य सरकार।

इस आंदोलन को देहरादून, दिल्ली व बागेश्वर में तेज करने के साथ 1950को आधार मानने वाला मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने ऐलान किया कि फरवरी माह में कोटद्वार में होगी मूल निवास स्वाभिमान महारैली।
मूल निवास स्वाभिमान आंदोलन को जन-जन तक पहुँचाने के लिए मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति, उत्तराखंड विभिन्न क्षेत्रों में बैठक कर विचार-विमर्श कर रही है।
इसी कड़ी में संघर्ष समिति ने कोटद्वार में विभिन्न सामाजिक संगठनों, पूर्व सैनिकों, राज्य आंदोलनकारियों और गणमान्य लोगों के साथ बैठक कर अग्रिम रणनीति पर चर्चा की। फरवरी माह में कोटद्वार में मूल निवास स्वाभिमान महारैली पर सहमति बनी। जिसकी तिथि समन्वय संघर्ष समिति, कोटद्वार की टीम द्वारा तय की जाएगी।
वहीं दिल्ली में भी इस आंदोलन को मुकाम तक पहुंचाने के लिए दिगमोहन नेगी, शशि मोहन कोटनाला, डा विनोद बछेती, हरिपाल रावत,अनिल पंत, खुशहाल सिंह बिष्ट, सुरेंद्र सिंह हालही सहित दर्जनों लोग भी इस आंदोलन को जनांदोलन बनाने में जुटे हैं।

गौरतलब है कि गत मास 24 दिसम्बर 2023 को देश विदेश में रहने वाले करोडों समर्पित उतराखण्डी, उतराखण्ड गठन के 23 की उतराखण्ड की सरकारों द्वारा उतराखण्डी हक हकूकों व जनांकांक्षाओं को निर्ममता से रौंदे कर विश्वासघात किये जाने से आहत हो कर आंदोलित थे। अपने आक्रोश को देहरादून में एकजूट हो कर स्वर देने के लिये जहां हजारों की संख्या में सत्ता के मठाधीशों की कुम्भकर्णी नींद की खुमार तोडने के लिये मूल निवास स्वाभिमान रैली में विशाल जनशैलाब के रूप में उतरे, वहीं इसकी दस्तक देश की राजधानी दिल्ली में संसद की चौखट पर भी दी।
देहरादून में मूल निवास स्वाभिमान महारैली की आवाहन, सन 1950 को आधार मान कर लागू करे मूल निवास व हिमालयी राज्यों की तर्ज पर सख्त भू कानून को लागू करने की मांग को लेकर मूल निवास, भू कानून समन्वय संघर्ष समिति ने किया ।
उल्लेखनीय है कि उतराखण्ड राज्य गठन के 23 साल बाद प्रदेश की अब तक की तमाम सरकारों द्वारा उतराखण्ड की जनांकांक्षाओं राजधानी गैरसैंण बनाने, मुजफरनगर काण्ड के गुनाहगारों को सजा दिलाने, मूल निवास, भू कानून, प्रदेश के युवाओं को रोजगार दे कर पलायन के दंश से उबारने, जनसंख्या पर आधारित विधानसभा क्षेत्र परिसीमन थोप कर उतराखण्डियों की राजनैतिक ताकत को रौंदने, प्रदेश के हक हकूकों की बेशर्मी से बंदरबांट करने व प्रदेश में भ्रष्टाचार मुक्त विकासनोमुख शासन देने में पूरी तरह असफल रहने से आक्रोशित व आहत उतराखण्डियों ने देहरादून में 24 दिसम्बर को विशाल 1950 को आधार मानने वाले मूल निवास स्वाभिमान महारैली को सफल आयोजन किया। इस रैली की आहट से ही सत्ता के नशे में मदहोश हो कर उतराखण्डी हक हकूकों व उपरोक्त सभी जनांकांक्षाओं को रौंदने वाले भाजपा व कांग्रेस सहित सत्ता की बंदरबांट में इनके सहयोगी रहे सभी राजनैतिक दलों की कुम्भकर्णी खूमार तोड दी। उतराखण्डी स्वाभिमान के नाम से आयोजित इस महारैली में उतराखण्ड के कोने कोने से लोगों ने सहभागी निभाई इसके साथ हजारों की संख्या में देहरादून के लोग भी उमडे। उतराखण्डी बाद्य यंत्रों ढोल दमा, रंगसिंगा की धुन में राज्य आंदोलन के जनगीतों के साथ नारों ने उतराखण्ड के लोगों के जेहन में एक बार फिर उतराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन की यादें ताजा कर दी।
देहरादून में यह रेली 12 बजे परेड मैदान से प्रारम्भ हो कर दोहपर दो बजे 2 बजे शहीद स्थल पर पंहुचा। इतना बडा जनशैलाब था कि भारी संख्या में उमडे लोगों की रैली 3 बजे तक शहीद स्थल पर पंहुच पाया। शहीद स्थल पर इस मूल निवास, भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी, लुसुन टोडरिया सहित इस रैली को सफल बनाने के लिये जसमर्पित रहे युवाओं ने जनता को इस रैली को सफल बनाने के लिये आभार प्रकट किया। इस रैली में जहां हजारों में संख्या में देहरादून के लोगों ने भाग लिया। वहां बडी संख्या में उतराखण्ड के तमाम जनपदों, कस्बों के लोगों के साथ दिल्ली, चण्डीगढ, लखनऊ सहित देश के विभिन्न शहरों में रहने वाले समर्पित उतराखण्डियों ने भागग लिया। उतराखण्ड राज्य आंदोलन की तर्ज पर इइसमें भी भारी संख्या में महिलायें, बच्चे, बुजुर्ग व बडी संख्या में युवाओं ने शांतिपूर्ण ढंग से अपने अपने बैनरों व गणवेश के साथ भाग लिया। आंदोलनकारियों के हाथों में जहां भू कानून व मूल निवास क की मांग को लेकर पट्टे थे, वहीं सभी एक स्वर में इस मांग को लेकर गंगन भेदी नारे लगा रहे थे।
इस स्वाभिमानी रैली को सफल बनाने के लिये जहां उतराखण्ड के शीर्ष लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने जनता से इस आंदोलन में जुडने का खुला आवाहन किया। वहीं समर्पित साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों ने भी इंटरनेटी माध्यमों से इस आंदोलन को सफल बनाने के लिये खुला आवाहन किया। इस स्वाभिमान रैली की गूंज से ही सभी राजनैतिक दल सहमें हुये थे। प्रारम्भ में राज्य गठन जन आंदोलन को भांपने में असफल रहे राजनैतिक दलों ने इस आंदोलन की पदचाप पहचानते ही इसका समर्थन करने में जुट गये। भले ही राजनैतिक दल अधिकारिक रूप से इस मामले में स्पष्ट नहीं थे परन्तु जनता से जुडे अधिकांश नेता इसके समर्थन मे उतरे थे। वहीं उतराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के प्रणेता उतराखण्ड क्रांति दल ने पूरे दमखम से इस आंदोलन में उतरे। कांग्रेस व भाजपा से जुडे आम कार्यकर्त्ता भी यहां पर दलगत दायरे को त्याग कर उतरे थे।
इस आंदोलन के गगनभेदी नारों से जब देहरादून गूंज रहा था। उसी समय देश की राजधानी दिल्ली में संसद की चौखट पर अकेले ही राज्य गठन आंदोलन के लिये 6 साल तक संसद की चौखट पर ऐतिहासिक धरना देने वाले शीर्ष आंदोलनकारी देवसिंह रावत इस मांग के समर्थन में दस्तक दे रहे थे। भारी सुरक्षा बलों के चोतरफा घेरे में घिरा रहने वाले राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर से फेसबुक पर शीघ्र आंदोलनकारी देवसिंह रावत ने प्रधानमंत्री मोदी व मुख्यमंत्री धामी से अविलम्ब 1950 को आधार मानते हुये मूल निवास व हिमालयी राज्यों की तर्ज पर सशक्त भू कानून को उतराखण्ड में लागू करके राजधानी गैरसैंण बनाने की पुरजोर मांग की। राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर, संसद की चौखट से इस भू -मूल निवास कानून स्वाभिमान रैली का समर्थन करते हुये श्री रावत ने कहा कि उतराखण्ड के राजनैतिक दलों की घौर सत्तालोलुपता के कारण ही उतराखण्ड की यह दुर्दशा हो गयी है। उतराखण्डी नेताओं को झारखण्ड व तेलांगाना के नेताओं से सबक लेकर उतराखण्ड के हक हकूकों की रक्षा के लिये एकजूट होना चाहिये। श्री रावत ने कहा कि जिस प्रकार महाराष्ट्र के तमाम राजनेतिक दल, राजनैतिक संकीर्णता छोड कर मराठा हितों के लिये एकजूट होते है, उसी प्रकार उतराखण्डी नेताओं को अपने आकाओं के चारण बनने से उबर कर प्रदेश के हक हकूकों के लिये एकजूट होना चाहिए।
जहां मजबूत भू कानून व मूल निवास स्वाभिमान रैली में देहरादून में हजारों की संख्या में समर्पित उतराखण्डी उमडे थे। पर देश के विभिन्न शहरों में उतराखण्डी संस्कृति व समाज के ध्वजवाहक होने का दंभ भरने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजकों ंव सामाजिक संगठनों के मठाधीशों को अपनी अपनी सभाओं व आयोजन में इस मांग के समर्थन में जनता से खुला आवाहन करने का अपने मंचों से साहस तक नहीं आया। ऐसे संगठनों के मठाधीशों को समझना चाहिये कि समाज की ज्वलंत समस्याओं को नजरांदाज करने से न समाज का हित होता है व नहीं संस्कृति ही बचती है। सामाजिक संगठनों का पहला दायित्व समाज के हक हकूकों की रक्षा करने व ज्वलंत समस्याओं के निदान के लिये समाज को जागृत कराना होता है । न कि समाज के संसाधनों का दुरप्रयोग करना या उनको नीरो बनाना होता है। समाज को ऐसे नीरो बनी संस्थाओं को जागृत करना चाहिये।
स्वाभिमान रैली की गूंज से जहां प्रदेश की धामी सरकार जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिये मूल निवास को सशक्त बनाने के लिये एक समिति गठन का नाटक करती नजर आती है। आंदोलनकारियों ने इसे पलायन समिति की तरह झांसा मानते हुये गठन होते ही नकारने का सराहनीय कार्य किया। वहीं अन्य दल भी इस आंदोलन के समर्थन में भले ही उतरे पर जनता जानती है कि जब ये सत्ता में आते हैं तो सबकुछ भूल कर सत्ता की बंदरबांट पर भी लग जाते है। ऐसे लोगों व दलों पर अंकुश लगाने के लिये जनता को निरंतर आंदोलनरत व एकजूट हो कर अपनी मांग को लागू कराने के लिये कमर कसनी चाहिये। तभी यह आंदोलन सफल होगा।

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