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मूल निवास उतराखण्डी स्वाभिमान रैली में देहरादून में उमडा जनसैलाब, संसद की चौखट पर भी दी दस्तक

उतराखण्ड की जनांकांक्षाओं व हक हकूकों को सत्तामद में  रौंद रहे हुक्मरानों की टूटी खुमार 

 

प्यारा उत्तराखंड डाट काम 

24 दिसम्बर 2023 को देश विदेश में रहने वाले करोडों समर्पित उतराखण्डी, उतराखण्ड गठन के 23 साल से उतराखण्ड की सरकारों द्वारा उतराखण्डी हक हकूकों व जनांकांक्षाओं को निर्ममता से रौंदे कर विश्वासघात किये जाने से आहत हो कर आंदोलित थे। अपने आक्रोश को देहरादून में एकजूट हो कर स्वर देने के लिये जहां हजारों की संख्या में सत्ता के मठाधीशों की कुम्भकर्णी नींद की खुमार तोडने के लिये मूल निवास स्वाभिमान रैली में विशाल जनसैलाब के रूप में उतरे, वहीं इसकी दस्तक देश की राजधानी दिल्ली में संसद की चौखट पर भी दी।
देहरादून में मूल निवास स्वाभिमान महारैली का आवाहन, सन 1950 को आधार मान कर लागू करे मूल निवास व हिमालयी राज्यों की तर्ज पर सख्त भू कानून को लागू करने की मांग को लेकर मूल निवास, भू कानून समन्वय संघर्ष समिति ने किया ।
उल्लेखनीय है कि उतराखण्ड राज्य गठन के 23 साल बाद प्रदेश की अब तक की तमाम सरकारों द्वारा उतराखण्ड की जनांकांक्षाओं राजधानी गैरसैंण बनाने, मुजफरनगर काण्ड के गुनाहगारों को सजा दिलाने, मूल निवास, भू कानून, प्रदेश के युवाओं को रोजगार दे कर पलायन के दंश से उबारने, जनसंख्या पर आधारित विधानसभा क्षेत्र परिसीमन थोप कर उतराखण्डियों की राजनैतिक ताकत को रौंदने, प्रदेश के हक हकूकों की बेशर्मी से बंदरबांट करने  व प्रदेश में भ्रष्टाचार मुक्त विकासनोमुख शासन देने में पूरी तरह असफल रहने से आक्रोशित व आहत उतराखण्डियों ने देहरादून में 24 दिसम्बर को विशाल 1950 को आधार मानने वाले मूल निवास स्वाभिमान महारैली को सफल आयोजन किया। इस रैली की आहट से ही सत्ता के नशे में मदहोश हो कर उतराखण्डी हक हकूकों व उपरोक्त सभी जनांकांक्षाओं को रौंदने वाले  भाजपा व कांग्रेस सहित सत्ता की बंदरबांट में इनके सहयोगी रहे सभी राजनैतिक दलों की कुम्भकर्णी खुमार तोड दी। उतराखण्डी स्वाभिमान के नाम से आयोजित इस महारैली में उतराखण्ड के कोने कोने से लोगों  ने सहभागी निभाई इसके साथ हजारों की संख्या में देहरादून के लोग भी उमडे। उतराखण्डी बाद्य यंत्रों ढोल दमा, रंगसिंगा की धुन में राज्य आंदोलन के जनगीतों के साथ नारों ने उतराखण्ड के लोगों के जेहन में एक बार फिर उतराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन की यादें ताजा कर दी।
देहरादून में यह रेली 12 बजे परेड मैदान से प्रारम्भ हो कर दोहपर दो बजे 2 बजे शहीद स्थल पर पंहुचा। इतना बडा जनशैलाब था कि भारी संख्या में उमडे लोगों की रैली 3 बजे तक शहीद स्थल पर पंहुच पाया।  शहीद स्थल पर इस मूल निवास, भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी, लुसुन टोडरिया सहित इस रैली को सफल बनाने के लिये जसमर्पित रहे युवाओं ने जनता को इस रैली को सफल बनाने के लिये आभार प्रकट किया। इस रैली में जहां हजारों में संख्या में देहरादून के लोगों ने भाग लिया। वहां बडी संख्या में उतराखण्ड के तमाम जनपदों, कस्बों के लोगों के साथ दिल्ली, चण्डीगढ, लखनऊसहित देश के विभिन्न शहरों में रहने वाले समर्पित उतराखण्डियों ने भाग लिया। उतराखण्ड राज्य आंदोलन की तर्ज पर इसमें भी भारी संख्या में महिलायें, बच्चे, बुजुर्ग व बडी संख्या में युवाओं ने शांतिपूर्ण ढंग से अपने अपने बैनरों व गणवेश के साथ भाग लिया। आंदोलनकारियों के हाथों में जहां भू कानून व मूल निवास क की मांग को लेकर पट्टे थे, वहीं सभी एक स्वर में इस मांग को लेकर गंगन भेदी नारे लगा रहे थे।
इस स्वाभिमानी रैली को सफल बनाने के लिये जहां उतराखण्ड के शीर्ष लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने जनता से इस आंदोलन में जुडने का खुला आवाहन किया। वहीं समर्पित साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों ने भी इंटरनेटी  माध्यमों से इस आंदोलन को सफल बनाने के लिये खुला आवाहन किया।
इस रैली में बड़ी संख्या में राज्य गठन आंदोलनकारी, पूर्व सैनिक व राजधानी गैरसैंण आंदोलन सहित उतराखण्ड के सरोकारों से जुड़े आंदोलनकारी भी बड़े उत्साह के साथ सम्मलित हुए।
इस स्वाभिमान रैली की गूंज से ही सभी  राजनैतिक दल सहमें हुये थे। प्रारम्भ में राज्य गठन जन आंदोलन को भांपने में असफल रहे राजनैतिक दलों ने इस आंदोलन की पदचाप पहचानते ही इसका समर्थन करने में जुट गये। भले ही राजनैतिक दल अधिकारिक रूप से इस मामले में स्पष्ट नहीं थे परन्तु जनता से जुडे अधिकांश नेता इसके समर्थन मे उतरे थे। वहीं उतराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के प्रणेता उतराखण्ड क्रांति दल ने पूरे दमखम से इस आंदोलन में उतरे। कांग्रेस व भाजपा से जुडे आम कार्यकर्त्ता भी  यहां पर दलगत दायरे को त्याग कर उतरे थे।
इस आंदोलन के गगनभेदी नारों से जब देहरादून गूंज रहा था। उसी समय देश की राजधानी दिल्ली में संसद की चौखट पर अकेले ही राज्य गठन आंदोलन के लिये 6 साल तक संसद की चौखट पर ऐतिहासिक धरना देने वाले शीर्ष आंदोलनकारी देवसिंह रावत इस मांग के समर्थन में दस्तक दे रहे थे। भारी सुरक्षा बलों के चोतरफा घेरे में घिरा रहने वाले राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर से फेसबुक पर शीघ्र आंदोलनकारी देवसिंह रावत ने  प्रधानमंत्री मोदी व मुख्यमंत्री धामी से अविलम्ब 1950 को आधार मानते हुये मूल निवास व हिमालयी राज्यों की तर्ज पर सशक्त भू कानून को उतराखण्ड में लागू करके राजधानी गैरसैंण बनाने की पुरजोर मांग की। राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर, संसद की चौखट से इस भू -मूल निवास कानून स्वाभिमान रैली का समर्थन करते हुये श्री रावत ने कहा कि उतराखण्ड के राजनैतिक दलों की घौर सत्तालोलुपता के कारण ही उतराखण्ड की यह दुर्दशा हो गयी है। उतराखण्डी नेताओं को झारखण्डतेलांगाना के नेताओं से सबक लेकर उतराखण्ड के हक हकूकों की रक्षा के लिये एकजूट होना चाहिये। श्री रावत ने कहा कि जिस प्रकार महाराष्ट्र के तमाम राजनेतिक दल, राजनैतिक संकीर्णता छोड कर मराठा हितों के लिये एकजूट होते है, उसी प्रकार उतराखण्डी नेताओं को अपने आकाओं के चारण बनने से उबर कर प्रदेश के हक हकूकों के लिये एकजूट होना चाहिए।
जहां मजबूत भू कानून व मूल निवास स्वाभिमान रैली में देहरादून में हजारों की संख्या में समर्पित उतराखण्डी उमडे थे। पर देश के विभिन्न शहरों में उतराखण्डी संस्कृति  व समाज के ध्वजवाहक होने का दंभ भरने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजकों ंव सामाजिक संगठनों के मठाधीशों को अपनी अपनी  सभाओं व आयोजन में इस मांग के समर्थन में जनता से खुला आवाहन करने का अपने मंचों से साहस तक नहीं आया। ऐसे संगठनों के मठाधीशों को समझना चाहिये कि समाज की ज्वलंत समस्याओं को नजरांदाज करने से न समाज का हित होता है व नहीं संस्कृति ही बचती है। सामाजिक संगठनों का पहला दायित्व समाज के हक हकूकों की रक्षा करने व ज्वलंत समस्याओं के निदान के लिये समाज को जागृत कराना होता है । न कि समाज के संसाधनों का दुरप्रयोग करना या उनको नीरो बनाना होता है। समाज को ऐसे नीरो बनी संस्थाओं को जागृत करना चाहिये।
स्वाभिमान रैली की गूंज से जहां प्रदेश की धामी सरकार जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिये मूल निवास को सशक्त बनाने के लिये एक समिति गठन का नाटक करती नजर आती है। आंदोलनकारियों ने इसे पलायन समिति की तरह झांसा मानते हुये गठन होते ही नकारने का सराहनीय कार्य किया। वहीं अन्य दल भी इस आंदोलन के समर्थन में भले ही उतरे पर जनता जानती है कि जब ये सत्ता में आते हैं तो सबकुछ भूल कर सत्ता की बंदरबांट पर भी लग जाते है। ऐसे लोगों व दलों पर अंकुश लगाने के लिये जनता को निरंतर आंदोलनरत व एकजूट हो कर अपनी  मूल निवास, भू कानून व राजधानी गैरसैंण आदि मांगों को लागू कराने के लिये कमर कसनी चाहिये। इन मांगों की एक जुटता रखनी चाहिए, तभी यह आंदोलन सफल होगा और उत्तराखंड की जनांकांक्षायें साकार होगी। 

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