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चीन व पाकिस्तान  को दुश्मन व आतंकी देश घोषित कर सभी प्रकार के संबंध तत्काल समाप्त करे भारत

अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र में फंसने के बाबजूद भारत से युद्ध  छेड़कर विश्व शांति, एशिया के भविष्य व अपने देश के अस्तित्व को तबाह करने की यूक्रेनी सी आत्मघाती भूल न करे चीन

देवसिंह रावत

चीन द्वारा भारतीय सीमा के अंतर्गत तवांग में अतिक्रमण कर भारतीय सेना के साथ हिंसक झडप करने धृष्ठता की खबरों से भारतीय जनमानस बेहद आक्रोशित है। संसद में सत्तारूढ दल व विपक्ष में भारी गहमागहमी हो रही है। देश की सेना ने अतिक्रमण का दुशाहस करने वाले चीन सैनिकों को करारा मुहतोड सबक सिखाया पर देश की जनता चाहती है कि चीन को ऐसा सबक सिखाये वह फिर भारत की तरफ आंख उठा कर देखने का साहस तक न कर पाये। देश की इसी मंशा को भांपते हुये भले ही सरकार ने पूर्वोत्तर सीमा पर 15 व 16 दिसम्बर 2022 को वायु सेना का बडा अभ्यास कर दिया है। परन्तु एक बात मुझे समझ में नहीं आ रही है कि आखिर चीन, भारत से ऐसे समय क्यों उलझ रहा है जब वह ताइवान प्रकरण में पूरे विश्व में बुरी तरह से घिरा हुआ है। ताइवान प्रकरण में अमेरिका अपने नाटो मंडली के साथ क्वाड देशों व चीन द्वारा सताये गये अपने पडोेसियों द्वारा बुरी तरह से घिरा हुआ है। ऐसे संकट के समय वह अपने पडोसियों से उलझने के बजाय उनसे मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित करना नीति संगत हैं। यह सब जानने के बाबजूद अगर चीन जानते हुये भी भारत पर युद्ध थोप रहा है तो इसका एक ही कारण समझ में आ रहा है कि चीन अपनी ताकत के गरूर में इतना अंधा हो गया है कि उसको न अमेरिका का अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र दिखाई दे रहा है व न अपना विनाश। अपने जिस ताकत के दम पर चीन अपने पूर्व हिस्से ताइवान पर कब्जा करने के साथ भारत के साथ युद्ध करने के  लिये आतुर है, उससे विश्व शांति के साथ चीन के अस्तित्व पर भी ग्रहण लग सकता है। इसके साथ चीन की इस भयंकर भूल से एशिया के भविष्य पर दूसरे विश्व युद्ध के बाद फिर ग्रहण लग जायेगा।अमेरिका ने चीन को इस सैन्य झडप के लिये दोषी बताते हुये आगाह किया कि वह चीन की अपने पडोेसियों पर अतिक्रमणकारी प्रवृति जिम्मेदार है। अमेरिका ने चीन की इस हरकत का मुंहतोड जवाब देने के भारतीय सेना के प्रत्युतर की सराहना करते हुये कहा कि हम अपने सहयोगियों के साथ मजबूती से खडे है। अमेरिका ने इस बात का भी खुलाशा किया कि चीन ने भारत की सीमा पर भारी सैन्य जमवाडा बना रखा है जिससे साफ होता है कि चीन भारत से युद्ध करने की मंशा रखता है।  अमेरिका ने चीन की हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपने पडोसियों को उकसाने वाली ऐसी हरकतों को विश्व शांति के लिये भी खतरा बताया। वहीं संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी भारत व चीन में सैन्य झडप पर दोनों देशों से संयंम से बरतने की सलाह दी।
इन तमाम घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुये  चीन को इस बात का भान होना चाहिये कि अंतरराष्ट्रीय ताकतों को आर्थिक व सामरिक रूप से एशिया से चीन व भारत का ताकतवर हो कर उभर कर विश्व पटल पर अपना परचम लहराने से नाखुश है। वे हर हाल में अपना बर्चस्व बचाये रखने के लिये इन दोनों पर किसी भी सूरत पर अंकुश लगाना चाहती है। इसके लिये ये ताकतें चाहती है कि किसी प्रकार से एशिया की ये दो ताकतें आपस में उसी तरह से तबाह हो जायें जिस प्रकार से ईरान व इराक को युद्ध में झौंक कर तबाह किया गया। इस लिये चीन व भारत को बहुत ही विवेक से काम लेना चाहिये। तमाम दुराग्रह व कलुषित मानसिकता को छोडकर एक दूसरे के अस्तित्व व हितों का सम्मान करते हुये इस अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र को विफल करे। इससे विश्व शांति, मानवता की भी रक्षा होगी।
परन्तु चीन के नापाक कृत्यों से भारत बेहद आक्रोशित है। भारत का आम जनमानस समझ नहीं पा रहा है कि ताइवान प्रकरण में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चोतरफा घिरने के बाबजूद चीन भारत पर युद्ध क्यों थोप कर अपने विनाश को क्यों आमंत्रित कर रहा है? क्या चीन खुद को महाबली व भारत को कमजोर समझने की धृष्ठताकर रहा है? अगर चीन अपनी ताकत में अंधा हो कर बार बार भारत की तबाही करने को उतारू है तो गलवान में मुंह की खाने के बाद भी तवांग में फिर से चीन की धृष्ठता को देखते हुये भारत सरकार को देश की रक्षा के लिये तत्काल हवाई बयान बाजी करने के बजाय तत्काल कठोर कदम उठाने चाहिये। संसद में चाहे पक्ष विपक्ष एक दूसरे पर भले ही कितने ही आरोप लगालें, परन्तु देश की सुरक्षा इन आरोप प्रत्यारोपों से नहीं अपितु ठोस संकल्प लेने से ही होगी।   चीन व पाकिस्तान  को दुश्मन व आतंकी देश घोषित कर सभी प्रकार के राजनैतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक संबंध  समाप्त करे । देश की सुरक्षा के लिये अपने छुद्र स्वार्थों व संबंधों को दर किनारा करके  ’शठे शाठ्यम समाचरेत’ यानि दुष्ट को कठोरता से ही अंकुश लगाने की  विदुर नीति व चाणक्य को आत्मसात करना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी सहित देश के राजनीतिज्ञों को इस समय भगवान राम की नीति का अनुसरण करना चाहिये। जिसमें दुष्ट रावण को दण्ड देने के लिये समुद्र से राह देने की याचना को नजरांदाज करते हुये कहा था कि ‘विनय न मानत जलधि जड़ गए 3 दिन बीत,बोले राम सकोप तब भय बिन होत न प्रीत। नीति भी कहती है कि परिवार के हित में एक व्यक्ति के हितों को दर किनारे करने में देर नहीं करनी चाहिये। गांव के हितों की रक्षा के लिये एक परिवार, देश के हितों की रक्षा के लिये किसी क्षेत्र व संबंधों को नजरांदाज करना श्रेष्ठकर है।
सबसे हैरानी की बात यह है कि जिस चीन व पाकिस्तान ने भारत की लाखों वर्ग किमी (पाक ने 78000वर्ग किमी व चीन ने 43180 वर्ग किमी)भू भाग बलात कब्जा किया हुआ है, जिन्होने भारत पर कई बार हमला कर युद्ध थोपा हुआ है और जिन्होने भारत को तबाह करने के लिये भारत में अपने आस्तीन के सांप आतंकियों से अनैक हमले निरंतर कर रहे हैं और जब विश्व समुदाय उन आतंकियों पर अंकुश लगाने के लिये कदम उठाता है तो पाकिस्तान का संरक्षक बना चीन उन आतंकियों को बचाने के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ में अपने वीटों पावर का बेशर्मी से दुरप्रयोग कर भारत सहित विश्व के अमन चैन पर ग्रहण लगाने की धृष्ठता करता है। ऐसे भारत के दुश्मनों के साथ भारत सरकार सभी प्रकार के संबंध तोडकर उनको दुश्मन व आतंकी देश घोषित करके देश की रक्षा करने के अपने दायित्व का निर्वहन करने के बजाय इन दोनों दुश्मनों से राजनैतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक संबंध स्थापित कर एक प्रकार से उसके नापाक कृत्यों पर पर्दा डालने व उसको मजबूती प्रदान करने का आत्मघाती कृत्य कर रही है। यह भारत के लिये शर्मनाक व आत्मघाती कदम है कि भारत का पाकिस्तान के संरक्षक बने चीन से 125.6 अरब डालर का व्यापार है। जिसमें भी 97.5 अरब डालर का भारत चीन से आयात करता है और केवल 28.1 अरब डालर का माल निर्यात करते है। भारत, चीन का 15वां व्यापार साझेदार है। इसके बाबजूद चीन भारत की तबाही के लिये ही दिन रात लगा रहता है। अगर हम चीन व पाकिस्तान के साथ सभी प्रकार के संबंध तोड देते हैं तो उससे भारत का ही लाभ होगा और सुरक्षा अधिक मजबूत होगी। चीन व पाकिस्तान भारत के अंदर अपने आस्तीन के सांपों को उतना मजबूत नहीं कर पायेंगे। सबसे शर्मनाक है कि हम भारत, मानवता व विश्वशाति के दुश्मन  पाकिस्तान व चीन को आतंकी व दुश्मन देश न तो खुद घोषित कर उनसे सभी संबंध तोडने का प्रथम काम अभी तक भी नहीं कर पाये व नहीं विश्व पटल पर इन दोनों को आतंकी देश तक घोषित करने की पहल ही कर पाये। उल्टा चीन व पाकिस्तान को मजबूत करने के लिये उसके साथ राजनैतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक संबंध बेशर्मी से जारी रखे हुये हैं। भारत की दयनीय स्थिति उस समय उजागर होती है जब वह विश्व पटल पर पाकिस्तान से क्रिकेट आदि खेल खेलता है। जबकि भारत को चाहिये था कि वह विश्व पटल पर पाकिस्तान व चीन को आतंकी देश बता कर इनसे किसी प्रकार के खेल आदि संबंध न रखे। यही नहीं भारत को भी अमेरिका व पश्चिमी देशों की तरह यह घोषणा करनी चाहिये कि भारत उस देश से भी व्यापारिक संबंध नहीं रखेगा जो मानवता के दुश्मन व विश्व आतंक के संरक्षक पाकिस्तान व चीन से व्यापार आदि संबंध रखेगा। अगर अमेरिका इराक व रूस पर इस प्रकार के प्रतिबंध लगा सकता है तो भारत जायज बात पर ताल ठोक कर आतंकवाद पर अंकुश लगाने का भारतीय हित मजबूत करने वाला कदम क्यों नहीं उठा सकता है। अमेरिका आदि देशों ने अफगानिस्तान पर सोवियत हमले के बाद ओलंपिक खेल तक का बहिष्कार किया था, भारत आखिर दो टके के लिये आतंकी पाकिस्तान व चीन को विश्व प्रतियोगिताओं से बाहर कराने का निर्णय क्यों नहीं लेता। देश की सुरक्षा से बढकर क्रिकेट मेच व निजी संबंध -व्यापार हो गया है क्या देश के हुक्मरानों के लिये?
भारत के शासक भले ही चीन के साथ मैत्री के मोह में कभी पंचशील के राग व कभी चीन राष्ट्रपति को झूले झूलाते रहे। अपने देश के उधोग ध्ंांधों व स्वदेशी उत्पाद को मजबूत करने के बजाय चीन से अरबों डालर का आयात करके चीन को मजबूत करते रहे। परन्तु चीन ने भारत की इन सहृदयता को कायरता समझकर अपनी विस्तारवादी कलुषित मानसिकता के चलते न केवल रौंदने का कृत्य किया अपितु भारत व मानवता के जन्मजात दुश्मन पाकिस्तान व उसके आतंकियों का शर्मनाक संरक्षण करके भारत की तबाही में हर पल जुटा रहा।  चीन भारत के खिलाफ निरंतर अपनी कलुषित मानसिकता को कम करने के बजाय मजबूत कर रहा है। वह भारत के जन्मजात दुश्मन पाकिस्तान के साथ गलबहियां कर रहा है। भारत के अंध विरोध में वह पाकिस्तान के खुंखार आतंकियों का विश्व पटल पर भी रक्षक बनने की धृष्ठता कर रहा है। वहीं वह भारतीय सीमाओं पर निरंतर अतिक्रमण कर रहा है। 1968 से अब तक निरंतर मुंह की खाने के बाबजूद चीन अपनी भारत विरोधी मनोवृति को मिटाने के बजाय और मजबूत कर रहा है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण संयुक्त राष्ट्र मचं पर पाकिस्तान के वैश्विक आतंकियों के बचाव की बेशर्मी करना व भारत से गलवान में सैन्य संघर्ष में घायल हुये सैनिक को इसी साल शीतकालीन ओलंम्पिक की मशाल वाहक बनाना है।
उल्लेखनीय है कि चीन ने भारत की 43180 वर्ग किमी जमीन पर बलात कब्जा किया हुआ है। संसद में इस आशय के एक लिखित प्रश्न के उतर में विदेश राज्य मंत्री बी मुरलीधरन ने यह जानकारी दी। यहां पर यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि पाकिस्तान व चीन का कितना भारत विरोधी गठजोड है। इसका एक उदाहरण है, 2 मार्च 1963 को पाकिस्तान द्वारा भारत की 5180 वर्ग किमी शक्सगाम घाटी के भू भाग को चीन को एक अवैध समझोता करते हुये प्रदान की गयी। जिसका भारत ने विरोध भी किया। परन्तु भारत के इस विरोध को न पाकिस्तान व नहीं चीन ने कोई महत्व तक नहीं दिया। ऐसी ही हालत कश्मीर की भी है। कश्मीर का क्षेत्रफल 2.22 लाख वर्ग किमी है। परन्तु पाक द्वारा 1.21 लाख वर्ग किमी क्षेत्र कब्जाने के बाद भारत के पास केवल 1.01 लाख वर्ग किमी रह गया। इसको आशुतोष भटनागर नामक शोधकर्ता ने प्रमुखता से उठाया परन्तु उसको सरकार ने कान तक नहीं दिये। पाकिस्तान द्वारा कब्जाये 78000 वर्ग किमी क्षेत्र में गिलगिट व बलतिस्तान जैसे समृद्ध क्षेत्र भी हैं।
6अप्रैल 1975 को भारत ने बहुत की समझदारी से सिक्किम के तत्कालीन शासक चोग्याल के महल को घेर कर केवल 30 मिनट में भारत में सम्मलित कर दिया था। दोपहर 12.45 बजे भारतीय सेना के 5000 जवानों ने सिक्किम के शासक चोग्याल को उसके 243 सुरक्षा बल पर अपने नियंत्रण में ले कर वहां पर लोकशाही स्थापित की। जिसे भारतीय संसद द्वारा पारित प्रस्ताव को राष्ट्रपति द्वारा  हस्ताक्षर किये जाते ही 15 मई 1975 को सिक्किम भारतीय गणराज्य का 22वां राज्य बन गया। हालांकि सिक्किम के तत्कालीन शासन भारतीय हुक्मरान को यह धमकी देता रहा कि सिक्किम को गोवा समझने की भूल न करे। परन्तु तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने चीन द्वारा तिब्बत के बाद भारत के कई भू भाग को हडपने की 1962 की मंशा को भांप कर खासकर पूर्वोतर में भारतीय सामरिक मजबूती के लिये सबसे संवेदनशील क्षेत्र सिक्किम की कमजोरी को दूर करके पूर्वोतर में भारतीय सुरक्षा मजबूत की। जिस प्रकार से चीन ने 1962 में भी भारत पर हमला करके भारत के बडे भू भाग पर बलात कब्जा करने के बाद भी वह अरूणाचल सहित कई भारतीय क्षेत्रों पर अपना निरंतर दावा करता रहा। वह अरूणाचल को तिब्बत का ही हिस्सा प्रचारित करके उसको कब्जाने के लिये निरंतर घुसपेट करता रहा। 1962 में भी चीन ने तवांग आदि स्थानों पर हमला किया था। जिसे भारत के जांबाज सैनिकों ने उसके कलुषित मंशा को विफल कर दिया। 1967 में चीन ने भारत पर फिर हमला करने की धृष्ठता की। चीन की ऐसी ही धृष्ठता का जबाब भारत ने 1968 में ऐसा दिया कि जिसमें चीन को भारी नुकसान हुआ। इसके बाद चीन ने कई दशकों तक भारत की तरफ आंख उठा कर देखने का साहस नहीं किया। अब दो साल पहले 2020 में जिस प्रकार से चीन ने गलवान में भारतीय सैनिकों पर हमला करने का दुशाहस किया उसका भारतीय सेना ने मुंह तोड जवाब दिया। चीन अपनी धृष्ठता निरंतर जारी रखते हुये इसी साल 9 दिसम्बर 2022 को संवेदनशील अरूणाचल के तवांग के समीप सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण 17000फीट की ऊंचाई में स्थित  यांगत्से क्षेत्र जो मार्च माह तक वर्फ से ढका होता है, वहां पर कब्जा करने की धृष्ठता की, जिसे वहां स्थित भारतीय सेना ने बहुत ही बहादूरी से चीन के मंसूबों पर अपनी वीरता का जोहर दिखा कर न केवल विफल किया अपितु घुसपेट करने वाली चीन को ऐसा करारा सबक सिखाया। उससे पूरे विश्व में चीन की भारी खिल्ली उड़ी।
गौरतलब है कि भारतीय हुक्मरानों ने विगत सात दशको से चीन की इस धृष्ठता के बाबजूद भी मित्रता को बढावा दिया। जिसको चीन व उसके शार्गिद पाक ने  हमेशा भारत की कायरता समझ कर भारत को तबाह करने का ही षडयंत्र जारी रखे। अंग्रेजो से मुक्त होने के बाद भारत ने 1952 में बांडुंग सम्मेलन में चीन से पंचशील सिद्धांतों के तहत मित्रता की नींव रखी। जिस पर चीन ने अपने विस्तारवादी मनोवृति के दंश से 1962 में भारत पर युद्ध थोप कर विश्वासघात ही किया। 9 दिसम्बर को भारतीय सेनिकों के साथ सीमा पर चीनी सेनिकों की हिंसक झडप की खबर जब 12 दिसम्बर 2022 को दोपहर बाद लगी तो पूरा देश आक्रोशित हो गया। मानसून सत्र में चल रही संसद में कोहराम मच गया। इस पर कांग्रेस ने सदन में स्थगन प्रस्ताव रख कर चर्चा की मांग की। जिसे 13 दिसम्बर 2022 को सरकार ने ठुकरा दिया। हालांकि सरकार का पक्ष रखते हुये रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सदन को अवगत कराया कि 9 दिसम्बर 2022 को चीनी सेनिकों ने भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण करने का दुशाहस किया उसको भारत की जांबाज सेना ने विफल कर दिया। रक्षा मंत्री ने स्पष्ट किया कि इस संघर्ष में भारतीय सेना को कोई क्षति नहीं हुई। न कोई भारतीय सैनिक गंभीर रूप से घायल हुआ। रक्षा मंत्री के जवाब से असंतुष्ठ विपक्ष ने इस पर विशेष चर्चा कराने की मांग की। जिसे सरकार ने सिरे से नकार दिया। चीन व पाकिस्तान की धृष्ठता को देख कर देश का आम जनमानस को संसद व सडक में होने वाली सरकार व विपक्षी दलों के आरोप प्रत्यारोपों में कोई रूचि नहीं है। देश की जानता चाहती है कि सरकार देश व विश्व के इन दो दुश्मनों के खिलाफ ठोस कदम उठाये। चीन व पाकिस्तान जो हर दिन भारत की बर्बादी का षडयंत्र रच रहे है। चीन ने जहां भारत की मित्रता के पंचशीली राग को रौंद कर 1962, 1967,1968, 2020 व 2022 जैसे हमले किये वहीं पाकिस्तान ने अपने जन्म पर ही 20 लाख निर्दोष भारतीयों का कत्लेआम कराया, अक्टूबर 1947 कश्मीर पर हमला कर हजारों वर्ग किमी भू भाग पर कब्जा किया, 1965 में युद्ध किया व इसकी समाप्ति के लिये ताशकंद समझोता किया, 1971 युद्ध में 94 हजार पाक सैनिक बंदी बनाये (इस युद्ध में पाक की हार देखते हुचे अमेरिका, ब्रिटेन,चीन व फ्रांस आदि देश  बढे तो भारत के परम मित्र सोवियत संघ ने 1948 में हुये भारत के साथ मैत्री समझोते का पालन कर तुरंत अपनी सेना भारत के पक्ष में उतार कर अमेरिका व उसके पाक मित्रों को चेतावनी दी कि भारत पर हमला करने वाले को गंभीर परिणाम भुगतने पडेंगे। इससे अमेरिका आदि पाक मित्र वापस लोटे । पाक को आत्मसम्र्पण करना पडा। इससे पाकिस्तान दो टूकडों में बांटा गया और बाग्लादेश का उदया हुआ।),1999 पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध में मुंह की खाई। इसके बाद पाकिस्तान ने भारत से सीधा युद्ध छोड कर आतंकी हमले शुरू किये। पाकिस्तान द्वारा भारत में किये गये बडे आतंकी हमलेः- कोयम्बटूर में 4 फरवरी 1998 को आतंकियों ने किये अनैक विस्फोट। जम्मू कश्मीर विधानसभा भवन पर 1 अक्टूबर 2001 को आतंकी हमला।  13 दिसम्बर 2001 में भारतीय संसद पर पाक द्वारा कराया गया आतंकी हमला। सितम्बर 24, 2002 को  अक्षरधाम पर पाक आतंकी हमला। दिल्ली में 29 अक्टूबर 2005 को एक के बाद एक आतंकी हमला। 11 जुलाई 2006 को मुम्बई पर पाक आतंकी हमले में मारे गये 209 लोग। जयपुर में 13 मई 2008 को एक के बाद एक आतंकी हमला। असम के गुवाहाटी में 30 अक्टूबर 2008 को एक के बाद एक आतंकी धमाके।  27 जुलाई 2015 को पंजाब के गुरूदासपुर में  आतंकी हमला।  2 जनवरी 2015 को पठानकोट वायुसेना बेस पर पाक आतंकी हमला। जम्मू कश्मीर के उड़ी में 18 सितम्बर 2016 को भारतीय सेना के शिविर पर पाक आतंकियों ने हमला किया। वहीं जम्मु कश्मीर के ही पुलवामा में आतंकियों ने श्रीनगर जम्मू राजमार्ग पर केआसुब के काफिले पर किया आतंकी हमला। पुलवामा आतंकी हमले से पूरा देश आक्रोशित था सरकार ने देश की भावना का सम्मान करते हुये पाकिस्तान के आतंकी प्रशिक्षण केंद्र बालाकोट पर 26 फरवरी 2019 को हवाई हमला कर तहस नहस कर कडा जवाब दिया।
यही नहीं अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को संरक्षण देने से दूरी बनाने के बाद जिस प्रकार से चीन, पाकिस्तान का संरक्षक बन कर उसको भारत के खिलाफ उकसा रहा है। उससे भारत को हल्के में नहीं लेना चाहिये। खासकर रूस के यूक्रेन युद्ध में फंसने व अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को चीन की सरपरस्ती के बाबजूद सैन्य व आर्थिक सहायता पुन्न उपलब्ध कराना तथा इस्लामिक देशों के संगठनों का भारत विरोधी रूख को देखते हुये अपनी सुरक्षा के लिये ठोस कदम उठाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता शेष नहीं है। भारत को चाहिये कि बिना किसी मुगालते में रहे भारत व विश्व शांति विरोधी पाकिस्तान व उसके आतंकी सरक्षक आका चीन को दुश्मन देश घोषित कर सभी संबंध तोड़ देना चाहिये। चीन व पाकिस्तान द्वारा भारत द्रोही प्रवृति को  त्यागे बिना उससे एक तरफी मित्रता की पींग बढाना न केवल भारत घाती होगा अपितु यह विश्व शांति के लिये भी खतरा होगा। अगर भारत सरकार इसके बाबजूद नहीं जागी तो दुनिया यही कहेगी कि

ठोकर पर ठोकर खाकर भी जो कभी नहीं संभलते हैं
उनका हश्र भी दुनिया में भारत की तरह ही होता है।।
भारत के विभाजन के बाद जिस प्रकार से देश के हुक्मरानों ने देश में पुन्नः अलगाववादी प्रवृति सर न उठाये उसका आज तक भी मजबूती से कोई प्रबंध नहीं किया है। न ही भारत ने बार बार भारत के हितों को रौंदने के लिये भारत से सीधे युद्ध व आतंकी हमला करने वाले पाकिस्तान व चीन पर कडा अंकुश लगाने के लिये ठोस कदम उठाये है। अपितु उल्टा उन दोनों दुश्मनों से राजनैतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक संबंध बनाये रख कर उनको मजबूती देकर उनके भारत को बर्बाद करने के मंसूबों को ही सबल कर रहे है। इस विषय पर भारत सहित चीन को गंभीरता से सोचना चाहिये। पाकिस्तान तो किसी भी सूरत में सुधर नहीं सकता। रही बात चीन की उसको अपने भारत विरोधी मनोवृति को त्याग कर अपना व विश्व के कल्याण का काम करना चाहिये। अन्यथा चीन के पाले में विनाश के अलावा कोई दूसरी चीज नहीं देखने को मिलेगी।

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