Pauri उत्तराखंड देश

प्रधानमंत्री के वचनों को साकार करने के लिए रक्षा मंत्रालय ने लैंसडौन का नाम बदलने के लिए कसी कमर

भारत से अंग्रेजी, इंडिया व लैंसडौन आदि गुलामी के प्रतीकों को मिटा कर प्रधानमंत्री मोदी के वचन को साकार करे सरकार

 

भारतीय भाषा आंदोलन ने किया देश से गुलामी के प्रतीकों से मुक्त करने के प्रधानमंत्री मोदी सरकार के अभियान का स्वागत

 

प्यारा उतराखण्ड डाट काम /      प्रेस विज्ञप्ति     29अक्टूबर 2022 नई दिल्ली।

 

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा देश की आंजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में देशवासियों को देश के माथे से गुलामी के प्रतीकों को मिटाने हटाने के वचनो को साकार करने के लिए केंद्र, राज्य सरकारों के साथ देश के तमाम महत्वपूर्ण संस्थान जुटे हुये है।

अंग्रेजों द्वारा भारत से जाने के 75 साल बाद भी देश को अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी व अंग्रेजों द्वारा थोपे गये नाम इंडिया की गुलामी से मुक्त करके भारतीय भाषायें व देश का अपना नाम भारत दिलाने के लिए( संसद से सडक सहित प्रधानमंत्री कार्यालय पर) दशकों से संघर्ष कर रहे भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने प्रधानमंत्री मोदी व उनकी सरकार की इस दिशा में पहल करने की मुक्त कंठों से सराहना की। श्री रावत ने कहा कि यह कार्य 1947 में ही महात्मा गांधी की इच्छा का सम्मान करते हुए सरकारों ने तुरंत कर देना चाहिये था। परन्तु देश के माथे पर 75 सालों तक गुलामी के यह कलंक लगे रहे यह देश का दुर्भाग्य रहा। भारतीय भाषा आंदोलन के प्रमुख देवसिंह रावत ने प्रधानमंत्री मोदी व गृहमंत्री अमित शाह से अनुरोध किया कि गुलामी के खुमार में देश की आजादी व लोकशाही को रौद रहे गुलाम मानसिकता के नौकरशाहों व कहारों द्वारा खडे किये गये तमाम अवरोधकों को शीघ्र ध्वस्थ करने के कार्य को साकार करने के लिए प्रधानमंत्री स्वयं निगरानी रखे। इन कलंकों को मिटाने व भारतीयता को आत्मसात करने से ही देश की आजादी के सैनानियों के बलिदानों का सम्मान होगा और भारत में सच्चे अर्थों में लोकशाही व आजादी का सूर्योदय होगा।   
श्री रावत ने कहा कि देश से गुलामी के प्रतीकों को मिटाने के राष्ट्रव्यापी अभियान का शुभारंभ कुछ ही माह पहले खुद प्रधानमंत्री मोदी ने देश की राजधानी दिल्ली में संसद व राष्ट्रपति भवन के समीप देश की रक्षा के लिए अपना बलिदान देने वाले बलिदानियों की स्मृति में बनाये गये अमर जवान ज्योति ‘इंडिया गेट क्षेत्र’ से हटायी गयी ब्रिटेन के सम्राट जार्ज पंचम की मूर्ति के स्थान पर आक्रांता अंग्रेजों को खुली चुनौती दे कर भारत की आजादी का ऐलान करके गठित प्रथम आजाद भारत सरकार के प्रमुख नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति को स्थापित कर श्रीगणेश किया। इसके बाद मध्य प्रदेश की सरकार ने इसी माह देश में चिकित्सा शिक्षा को हिंदी सहित 8 भारतीय भाषाओं में प्रारम्भ किया। इसका भी देशभक्तों ने मुक्त कंठो से सराहना करते हुए सलाह दी कि प्रधानमंत्री की यह सद इच्छा तभी सार्थक होगी जब देश में अंग्रेजी की अनिवार्यता रूपि गुलामी को हटा कर देश की शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन को भारतीय भाषाओं में प्रदान किया जायेगा।
प्रधानमंत्री मोदी के इसी वचन को साकार करने की दिशा में अब एक महत्वपूर्ण खबर देश के सीमांत राज्य उतराखण्ड से भी आ रही है। खबरों केे अनुसार उतराखण्ड में स्थित देश की प्रतिष्ठित सैन्य छावनी लैंसडोन का नाम बदलने के लिए देश के रक्षामंत्रालय ने मन बना लिया है। उल्लेखनीय है कि सीमान्त राज्य उतराखण्ड में भारतीय सेना की दो प्रमुख सैन्य दलों का मुख्यालय है। गढवाल रायफल्स का मुख्यालय पौडी जनपद के लैन्सीडान व कुमाऊ रेजिमेंट का मुख्यालय रानीखेत है। अंग्रेजों ंने ब्रिटेन की तरह ही ठण्डे वातावरण वाले रमणीक स्थानों को अपने ऐशगाह, आश्रयस्थान व विश्रामघर बनाये। इसी दिशा में अंग्रेजों ने शिमला, मसूरी आदि पसंद थे। इसके साथ उन्होने कुछ स्थान अपने वायसराय के नाम से भी बसावत किये। इसमें लैन्सीडान, डलहोजी आदि स्थान है। अब रक्षा मंत्रालय जनता की लंबे समय से चली इन स्थानों के प्राचीन नाम को बदलने का मन बना चूका है। खबर है कि इसके लिये कार्यवाही की जा रही है। सरकार इसका ऐलान वाजपेयी जी के जन्म दिवस पर या उतराखण्ड राज्य स्थापना दिवस पर कर सकती है।
श्री रावत ने इस खबर पर भी खुशी प्रकट करते हुये कहा कि भले ही 1887 में यानि 135 साल पहले तत्कालीन अंग्रेजी शासको ने अपने वाइसराय लैन्सीडान के नाम से कालूं डांडा का नामांतरण कर अपनी बसावत की। देश की राजधानी दिल्ली से 270 किमी दूर समुद्र तल से 1706 मीटर की ऊंचाई में बसा कालूडांडा पहाडी की चोटी पर बसा हैै। बादलों से घिरा रहने के कारण इसे कालूं डांडा यानि काला डांडा भी कहते है। यहां पर वर्फवारी के नजारे के साथ साथ हिमालय पर्वत श्रंखला का मनोहारी छटा पर्यटकों को बरबस अपनी तरफ आकृष्ठ करती है। यहां जाने के लिए पर्यटक प्रायः निकटवर्ती रेलवे स्टेशन कोटद्वार से बस, कार इत्यादि से लेंन्सीडान की तरफ कूच करते है। पहाड की चोटी यानि डांडा पर स्थित होने के कारण बस व कार जब बरसात व सर्दियों में लैन्सीडोन की तरफ रूख करती है तो ऐसा लगता है कि हम बादलों का चीर कर उपर की तरफ जा रहे हैं या वहां से नीचे निहारने पर यात्रि खुद को बादलों से उपर पाता है।  
लैंसडाउन को ब्रिटिश द्वारा वर्ष 1887 में बसाया गया। उस समय के वायसराय ऑफ इंडिया लॉर्ड लैंसडाउन के नाम पर ही इसका नाम रखा गया। वैसे, इसका वास्तविक नाम कालूडांडा है। यह पूरा क्षेत्र सेना के अधीन है और गढ़वाल राइफल्स का मुख्यालय व परेड ग्राउंड भी । देश की आजादी के संग्राम  की कई गतिविधियों का साक्षी भी रहा।
21 अप्रेल 2013 से 30 अक्टूबर 2018 तक देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करने की मांग को लेकर संसद की चौखट, राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर दिल्ली में अखण्ड ऐतिहासिक धरना प्रदर्शन करने वाले भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने कहा कि देश की व्यवस्था व सरकारों की उदासीनता व दमन के बाबजूद भारतीय भाषा आंदोलन ने अपना संघर्ष जारी रखा है। उल्लेखनीय है कि भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष  देवसिंह रावत ने कई बार देश से अंग्रेजी, इंडिया  व लैंसडाउन आदि गुलामी के प्रति को को मुक्त करने की मांग की है परंतु पूर्ववर्ती सरकारों ने गुलाम मानसिकता के कारण इसको नजरअंदाज किया।
इसी मांग को लेकर भारतीय भाषा आंदोलन ने 18दिसम्बर 2018 से 18 मार्च 2020 तक जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक हर कार्य दिवस में पद यात्रा कर देश के प्रधानमंत्री को देश की आजादी हेतु इस आशय का ज्ञापन दिया। विश्वव्यापी कोरोना काल में भारतीय भाषा आंदोलन ने आजादी के इस ऐतिहासिक अभियान को  19 मार्च 2020 से आज तक हर दिन देश के प्रधानमंत्री मोदी को उनके टवीटर/फैसबुक पेज पर ज्ञापन दे रहे हैं।

About the author

pyarauttarakhand5