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आर्थिक भंवर में फंसे ब्रिटेन की नौका को पार लगा पायेंगे ऋषि या होगा जॉनसन-लिज की तरह ही हस्र!

 

ऋषि को प्रधानमंत्री बना कर ब्रिटेन ने विश्व को दी दिवाली की सौगात,किया लोकशाही व प्रतिभा का सम्मान

देव सिंह रावत

28 अक्टूबर 2022 को कंजर्वेटिव पार्टी के 42 वर्षीय नेता ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे। इस तरह से    12 मई 1980 को इंग्लैंड के साउथम्पैटन में जन्मे भारतीय मूल के ब्रिटेन के पूर्व वित्त मंत्री ऋषि सुनक पहले हिंदू व अश्वेत प्रधानमंत्री होंगे। सत्तारूढ़ कंजरवेटिव पार्टी द्वारा प्रधानमंत्री के दावेदार ऋषि सुनक के चुने जाने पर उन्होंने एक प्रकार से खुद के सर पर कांटों का ताज पहना है। ब्रिटेन के  210 साल में ऋषि सुनक सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री हैं।
यह एक प्रकार से सुनक के साथ-साथ कंजरवेटिव पार्टी व ब्रिटेन के लिए भी अग्नि परीक्षा का समय है। अगर सुनक ब्रिटेन को आर्थिक मंदी के इस दौर से उबार पाने में सक्षम होते हैं तो ब्रिटेन के साथ-साथ कंजरवेटिव पार्टी भी उबर जाएगी। अगर ऋषि सुनक भी पूर्व प्रधानमंत्री लिज ट्रस की तरह असफल रहते हैं, तो ब्रिटेन के साथ साथ कंजरवेटिव पार्टी के भविष्य पर एक प्रकार से बड़ा ग्रहण लगेगा। यही नहीं बिटेन को भी मध्यावधि चुनाव को झेलना पड़ेगा।
हालांकि ऋषि सुनक के सामने चुनौतियां बहुत बड़ी है जिस प्रकार से ब्रिटेन, नाटो देशों का अग्र ध्वजवाहक बनकर यूरोप को ईंधन ऊर्जा के प्रदाता रुस के खिलाफ यूक्रेन का साथी बना हुआ है। इससे क्रुद्ध होकर रूस ने ब्रिटेन सहित यूरोप को बिजली इंधन गैस इत्यादि की आपूर्ति ठप कर दी है। जिससे कोरोना काल की मंदी के प्रहार से कमजोर हो रही ब्रिटेन पर आर्थिक संकट का कहर सा टूट गया है। इसे ब्रिटेन में गैस इत्यादि की कीमतों में भारी वृद्धि हुई, मुद्रास्फीति बढी और पाउंड कमजोर हो रहा है। इससे ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से डगमगा रही है। इसको उबारने में जहां जॉनसन व उनके बाद बनी लिज भी असफल रही। लिज के असफल रहने के बाद ही ब्रिटेन के अधिकांश कंजरवेटिव सांसदों ने आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ ऋषि को भारी बहुमत से देश की बागडोर सौंपने का निर्णय लिया। हालांकि इससे पूर्व जॉनसन के इस्तीफे के बाद अधिकांश सांसद चाहते थे कि लिज के बजाय ऋषि सुनक को ही प्रधानमंत्री बनाया जाए परंतु उस समय ऐसा प्रतीत हुआ कि ब्रिटेन के अधिकांश सांसद किसी गुलाम मुल्क मूल के अश्वेत व गैर ईसाई नागरिक को देश की बागडोर सौंपने के लिए इच्छुक नहीं है। अब लिज के असफल होने के बाद लगता है ब्रिटिश सांसदों को अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने संकट में घिरे ब्रिटेन को उबारने के लिए संत इन बातों को नजरअंदाज करके प्रतिभा संपन्न व्यक्ति को ब्रिटेन की बागडोर सौंपने का निर्णय लिया। ब्रिटेन के सांसदों के इस निर्णय की सराहना पूरे विश्व में की जा रही है।

आज जहां स्वयं ऋषि सुनक व विश्व भर के करोड़ों सनातन धर्मी प्रकाश का पर्व दीपावली को हर्षोल्लास के साथ मना रहे है उसी दिन उनके प्रधानमंत्री के लिए कंजरवेटिव पार्टी के नेता के रूप में चुने जाने का ऐलान किया जाना उनकी साथ-साथ पूरे विश्व को ब्रिटेन की तरफ से दीपावली का अनुपम उपहार समझा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि ऋषि सुनक के दादा-दादी भारत से अफ्रीका गये तथा उसके बाद वे अफ्रीका से इंग्लैंड में जाकर बस गये।
ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री होने का ऐलान आज सर ग्राहम ब्रेडी ने उस समय किया, जब प्रधानमंत्री की अन्य दावेदार पेनी मॉरडॉन्ट ने पर्याप्त संख्या में सांसदों का समर्थन अर्जित न किए जाने के कारण प्रधानमंत्री के पद के लिए डेढ़ सौ सांसदों के समर्थन हासिल कर चुके ऋषि सुनक के खिलाफ प्रधानमंत्री की चुनावी जंग लड़ने के बजाय उन्होंने अपना नाम वापस लेंना ही उचित समझा।   उल्लेखनीय  है कि ऋषि सुनक को करीब 200 सांसदों का समर्थन प्राप्त हुआ।
उल्लेखनीय है ब्रिटेन में राजनीतिक दल में भी की प्रधानमंत्री की दावेदारी करने के लिए कम से कम उम्मीदवार के पास 100 सांसदों का समर्थन होना चाहिये।

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री की दावेदारी करने के लिए उम्मीदवार बनने के लिए जनादेश अर्जित करने वाले दल के ही प्रत्याशी को दल में 20 सांसदों का समर्थन आवश्यक है। कई दावेदारों के बीच हुए दूसरे चरण के चुनाव में 30 से कम सांसदों के वोट मिलने पर प्रत्याशी को प्रधानमंत्री के अगले दौर के चुनाव से बाहर कर दिया जाता है। आंतरिक चुनाव में यह दौर तब तक जारी रहता है जब तक दो दावेदार ही इस चुनावी दौर में आमने-सामने रह जाय। इस आंतरिक चुनाव में दो प्रत्याशियों में जिसको अधिक सांसदों का समर्थन मिलता वही जनादेश अर्जित दल का प्रधानमंत्री का दावेदार माना जाता है।

ऋषि सुनक एक ब्रिटिश कंजरवेटिव पार्टी के राजनेता हैं।वे ब्रिटेन के पूर्व वित्त मंत्री भी रह चुके हैं। वह 2015 से उत्तर यॉर्कशायर में रिचमंड के लिए संसद सदस्य रहे हैं |ऋषि सुनक 2015,2017 व 2019 में सांसद बने। वे सन 2018 में थेरेसा सरकार में मंत्री व सन 2019में जॉनसन सरकार में वित्त मंत्री भी रहे। और कोरोना काल में उनकी वित्तीय नीतियों के कारण उनकी मुक्त कंठ से सराहना की गई। उनकी इसी योग्यता के कारण आज ब्रिटेन को आशा है कि वे प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होकर आर्थिक संकट से जूझ रहे देश को उबारने में सफल होंगे। इसी आशा से कंजरवेटिव पार्टी के अधिकांश सांसदों ने उनका खुला समर्थन किया। सांसदों व आम जनता में उनके प्रति व्यापक समर्थन को देखते हुये ही पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने चाहते हुए भी प्रधानमंत्री के इस चुनाव से दूर रहने का समझदारी भरा निर्णय लिया।

हालांकि प्रधानमंत्री पद के लिए पूर्व प्रधानमंत्री व कंजरवेटिव नेता बोरिस जॉनसन का नाम भी चर्चा में था। परंतु ऋषि सुनक के लिए बढ़ते सांसदों के समर्थन को देखते हुए पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन चुनावी जंग में न उतरने का फैसला किया जिससे ऋषि सुनक की दावेदारी और मजबूत हुई। उल्लेखनीय है कि उनकी व्यक्तिगत संपत्ति 7300 करोड़ रुपये से भी अधिक है । उनकी पत्नी अक्षता मूर्ति की संपत्ति उनसे कहीं अधिक है। गौरतलब है कि अक्षता मूर्ति ने अपनी विद्यालय शिक्षा बेंगलुरु से ग्रहण करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्नातक की शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद लांस एंजेल्स से फैशन डिजाइनिंग में डिप्लोमा किया। इसके बाद स्टैनफोर्ड में एमबीए करने के दौरान ही उनकी मुलाकात ऋषि सुनक से हुई। इसके बाद सन 2009 में दोनों ने शादी की। इनके बेटे का नाम कृष्णा व बेटी का नाम अनुष्का है।

ऋषि सुनक विश्व प्रसिद्ध भारतीय उद्योगपति नारायणमूर्ति के दामाद है। दुनिया के तमाम अमीर दंपतियों उनका स्थान 222 वां है। गीता पर हाथ रखकर सांसद की शपथ लेने वाले ऋषि सुनक प्राय जन्माष्टमी के पर्व पर मंदिर और गौ सेवा करते दिखे जाने के लिए भी चर्चित हैं।

परंतु जहां ब्रिटेन आर्थिक संकट में घिरा है वहीं ब्रिटेन में इस समय कट्टरपंथी सर उठा रहे हैं जिस प्रकार से हाल ही के महीनों में ब्रिटेन में हिंदू समुदाय के मंदिरों पर हमले ऐसी कट्टरपंथी तत्वों से भी कड़ाई से निपटने की चुनौती भी ऋषि सुनक के कंधों पर होगी। जहां ऋषि खुलकर अपनी सनातन आस्था का प्रदर्शन करते हैं। उससे भविष्य में उनकी राह कठिन हो सकती है ।क्योंकि इस ईसाई बाहुल्य देश में सनातन धर्म का परचम इस ढंग से लहराये यह संकीर्ण कट्टरपंथी तत्व सहज ही स्वीकार नहीं कर पाएंगे। जिस प्रकार से ब्रिटेन सहित नाटो के देशों में पाकिस्तान परस्त कट्टरपंथियों को संरक्षण दिया जाता है उसे ब्रिटेन सहित यूरोपीय देशों की राह आने वाले भविष्य में कठिन नजर आ रही है। क्योंकि कट्टरपंथी तत्व निरंतर अपने असामाजिक गतिविधियों को बढ़ाते ही रहते हैं।

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