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भारत सहित विश्व के लिए अपूर्णिय क्षति है भारतीय संस्कृति के प्रखर ध्वज वाहक, महान संत शिरोमणि आचार्य धर्मेन्द्र का बैकुंठ गमन

 

श्रीमद् पंचखंड पीठाधीश्वर पूज्य संत आचार्य श्री धर्मेंद्र जी महाराज के कई बार आमंत्रण के बाद भी उनके आश्रम विराटनगर न जा पाने का  है मुझे दुख

 

देव सिंह रावत

19 सितंबर 2022 को जैसे ही श्रीपंचखण्ड पीठाधीश्वर आचार्य स्वामी धर्मेंद्र महाराज जी के वैकुंठ गमन की खबर जयपुर से पूरे देश में फैली भारत सहित विदेश में करोड़ों देशभक्त स्तब्ध रह गये। 9 जनवरी 1942 को गुजरात के मालवाडा में महात्मा श्री रामचन्द्र वीर महाराज के पुत्र के रूप में जन्मे आचार्य धर्मेंद्र 8 साल की उम्र से लेकर अंतिम सांस तक दलगत राजनीति से ऊपर उठकर मां भारती के लिए समर्पित रहे।
आचार्य स्वामी धर्मेंद्र महाराज जी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न, मां भारती के महान सपूत, भारतीय संस्कृति के ध्वज वाहक, राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रखर ओजस्वी वक्ता, राम कथा व गौ रक्षा आंदोलन के अग्रणी ध्वजवाहक, राष्ट्रीय चिंतक व भारतीय संस्कृति के लिए समर्पित योद्धा, कवि व पत्रकार थे।
आचार्य स्वामी धर्मेंद्र महाराज जी के निधन पर प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह,राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र सहित देश के अनेक नेताओं, धार्मिक व सामाजिक संगठनों ने सोमवार को श्रीपंचखण्ड पीठाधीश्वर आचार्य स्वामी धर्मेंद्र महाराज के निधन पर शोक जताया है।
आचार्य धर्मेंद्र जी के निधन पर भारतीय भाषा आंदोलन ने गहरा दुख प्रकट करते हुए इसे भारत तथा विश्व की अपूर्णिय क्षति बताया। उनके लिए राष्ट्र प्रथम था। भारतीय संस्कृति के लिए किसी से भी समझौता नहीं करते थे, अपनी बात को दो टूक शब्दों में कहते थे ।इसलिए अधिकांश राजनीतिक दलों की आंखों की किरकिरी बने हुए थे।
भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष बहुत प्यारा उत्तराखंड समाचार पत्र के संपादक देव सिंह रावत ने आचार्य श्री को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि वहीं भारतीय संस्कृति के महान योद्धा थे । राम जन्म भूमि मुक्ति आंदोलन के अलावा आचार्य श्री के दर्शन व उनके विचारों को सुनने का मौका मुझे संसद के समीप कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में मिला। दो-तीन बार स्वयं आचार्य धर्मेंद्र जी ने दूरभाष से मेरे से लंबी वार्ता करके देश की दुर्दशा पर गहरा क्षोभ प्रकट करते हुए मुझे अपने आश्रम राजस्थान के विराटनगर में आने का आमंत्रण दिया। मुझे इस बात का गहरा अफसोस है कि मैं उनके आश्रम में नहीं जा सका।
श्रीपंचखण्ड आश्रम ने उनके निधन पर श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि पीठाधीश्वर आचार्य स्वामी धर्मेन्द्र महाराज सनातन धर्म के अद्वितीय व्याख्याकार,प्रखर वक्ता एवं ओजस्वी वाणी के रामानन्दी संत थे। विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल में शामिल रहे,1965 के गोहत्या बन्द करवाने के आन्दोलन के नेतृत्व कर्ता थे। आचार्य महाराज का पूरा जीवन हिंदी, हिंदुत्व और हिन्दुस्थान के उत्कर्ष के लिए समर्पित रहा है। श्रीरामजन्म भूमि आन्दोलन के अग्रणी सन्त थे, उन्होंने अपने पिता महात्मा श्री रामचन्द्र वीर महाराज के समान उन्होंने भी अपना सम्पूर्ण जीवन भारतमाता और उसकी संतानों की सेवा में, अनशनों, सत्याग्रहों, जेल यात्राओं, आंदोलनों एवं प्रवासों में संघर्षरत रहकर समर्पित किया है। राजस्थान के विराटनगर में उनका मठ एवं पावनधाम आश्रम है, जहां उनके आराध्य श्री वज्रांग महाप्रभु के चरणों में विधी विधान पूर्वक उनके धर्म परिवार जिसे पावन परिवार के नाम से जाना जाता है और अनुयायियों के बीच अन्तिम संस्कार किया गया।
सनातन संस्कृति के अग्रवाहक, लौह पुरुष, हिंदू कुलसूर्य, देवस्वरूप व्यक्तित्व, श्री राम जन्मभूमि आंदोलन एवं गोरक्षा आंदोलन के लिए संघर्षशील एवं नेतृत्व करने वाले, संपूर्ण भारत वर्ष में ही नहीं अतिथि विश्व में भी प्रखर वक्ता के रूप में जाने जाने वाले श्रीमद् पंचखंड पीठाधीश्वर पूज्य संत आचार्य श्री धर्मेंद्र जी महाराज का देवलोक गमन विराट हिन्दू समाज के लिए ही नहीं,गौवंश के लिए और मूक पशु पक्षियों तक के लिए, सम्पूर्ण विश्व के लिए अपूरणीय क्षति है
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।
उल्लेखनीय है कि आचार्य धर्मेंद्र का पूरा जीवन हिंदी, हिंदुत्व और हिन्दुस्तान के उत्कर्ष के लिए समर्पित रहा। अपने पिता महात्मा रामचन्द्र वीर महाराज के समान उन्होंने भी अपना सम्पूर्ण जीवन भारत माता और उसकी संतानों की सेवा में, अनशनों, सत्याग्रहों, जेल यात्राओं, आंदोलनों एवं प्रवासों में संघर्षरत रहकर बिताया और रामजन्मभूमि आंदोलन को अपने जीते जी मुकाम तक पहुंचाया।

आचार्य धर्मेंद्र महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता का दर्जा देना अनैतिक व अमर्यादित मानते थे। उनका कथन है कि
कोई डेढ़ पसली वाला, बकरी का दूध पीने और सूत काटने वाला व्यक्ति भारत का राष्ट्रपिता नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि हम भारत को मां मानते हैं, ऐसे में महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहना सही नहीं है। महात्मा गांधी भारत मां के बेटे हो सकते हैं, लेकिन राष्ट्रपिता का दर्जा देना ठीक नहीं है।
आचार्य धर्मेंद्र दो टूक शब्दों में कहते थे कि जब भी भारत में नए नोट छपते हैं तो उस पर महात्मा गांधी की ही तस्वीर होती है। इस बार भी जब नए नोट छपे तो उन्हीं की तस्वीर छपी। नोट पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की फोटो क्यों नहीं लग सकती ? ए.पी.जे. अब्दुल कलाम क्यों नहीं छप सकते। हमारे पास ऐसी हस्तियों की लंबी सूची है जिनका देश के निर्माण में अहम योगदान रहा है। भारत को इंडोनेशिया से सीखना चाहिए जो मुस्लिम देश होते हुए भी अपने यहां की करंसी पर राम, कृष्ण, लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश आदि देवताओं की फोटो छापता है।

अपने पिता के आदर्शो और व्यक्तित्व का अनुसरण करते हुए आचार्य धर्मेंद्र ने 13 साल की उम्र में वज्रांग नाम से एक समाचारपत्र निकाला। इन्होंने 16 वर्ष की उम्र में “भारत के दो महात्मा” नामक लेख प्रकाशित करके गांधीवाद पर गहरा प्रहार किया। सन 1959 में हरिवंश राय बच्चन की “मधुशाला” के प्रत्युत्तर में “गोशाला (काव्य)” नामक पुस्तक लिखी।
आचार्य धर्मेन्द्र विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल में शामिल रहे।
मां भारती के सपूत आचार्य धर्मेन्द्र श्री राम कथा करते हुए
गोरक्षा आन्दोलन में अनुपम योगदान
1966 में देश के सभी गो भक्तों, साधु -संतो से मिलकर विराट सत्याग्रह आन्दोलन छेड़ा। महात्मा रामचन्द्र वीर ने 1966 तक अनशन करके अनशनों के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए। जगद्गुरु शंकराचार्य श्री निरंजनदेव तीर्थ ने 72 दिन, संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने 65 दिन, आचार्य श्री धर्मेन्द्र महाराज ने 52 दिन और जैन मुनि सुशील कुमार जी ने 4 दिन अनशन किया। आन्दोलन के पहले महिला सत्याग्रह का नेत्रत्व श्रीमती प्रतिभा धर्मेन्द्र ने किया और अपने तीन शिशुओ के साथ जेल गयीं।
मार्च,1983 में उप्र मुजफ्फरनगर में संपन्न श्री राम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन
एक हिन्दू सम्मेलन में अयोध्या, मथुरा और काशी के स्थलों को फिर से अपने अधिकार में लेने हेतु हिन्दू समाज का प्रखर आह्वान किया। दो बार देश के अंतरिम प्रधानमंत्री रहे गुलज़ारीलाल नंदा भी मंच पर उपस्थित थे। 1984 में
पहले धर्म संसद – अप्रैल, विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा विज्ञान भवन, दिल्ली में आयोजित पहली धर्म संसद ने जन्मभूमि के द्वार से ताला खुलवाने हेतु जनजागरण यात्राएं करने का प्रस्ताव पारित किया। राम जानकी रथ यात्रा – विश्व हिन्दू परिषद ने अक्तूबर, 1984 में जनजागरण हेतु सीतामढ़ी से दिल्ली तक राम-जानकी रथ यात्रा शुरू की।
आचार्य धर्मेंद्र धर्मनिरपेक्षता को सबसे बड़ा पाखंड मानते थे तथा वे भारत के विभाजन के लिए अंग्रेजों के साथ गांधी नेहरू और जिन्ना को भी जिम्मेदार मानते थे। आचार्य धर्मेंद्र ने धार्मिक आधार पर कीजिए विभाजन के बाद भारत में विवाह जानकारी तत्वों को बनाए रखना नितांत गलत मानते थे। यही नहीं आचार्य धर्मेंद्र गो हत्या पर प्रतिबंध नहीं लगाये जाने आदि मुद्दों पर वर्तमान मोदी सरकार से भी नाखुश थे। वह अपनी बातों को स्पष्ट शब्दों में कहने के लिए जाने जाते थे यही कारण है कि राष्ट्र हितों के प्रति किसी भी सरकार द्वारा किये जा रहे कुठाराघात पर कड़ी प्रतिक्रिया प्रकट करते थे। मां भारती की महान सपूत के बैकुंठ गमन पर उनकी पावन स्मृति को शत-शत नमन।

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