उत्तराखंड देश

22 सालों से सत्तासीनों के भ्रष्टाचार रूपि टावरों को ढहाने के लिए आक्रोशित व उद्देल्लित है उतराखण्डी, राज्य गठन जनांदोलन की तर्ज पर सडकों पर उतरने के लिए हैं बेताब

भारत में  ध्वस्थ किया भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा प्रतीक नोयडा का जुडवां टावर

देव सिंह रावत

इसी सप्ताह 28 अगस्त 2022 को जहां एक तरफ देश की राजधानी क्षेत्र दिल्ली के नोयडा में भ्रष्टाचार व सरकारी तंत्र के गठजोड़ के सबसे बडे प्रतीक नोयडा के सेक्टर 93 ए में बनी जुडवां टावर को ध्वस्थ होते देख भ्रष्टाचार से त्रस्त देश के 130 करोड़ भारतीयों ने चैन की सांस ली। इन टावरों के ध्वस्थ होने से देश में साफ संदेश गया कि अगर भारतीयों को भ्रष्टाचार में लिप्त सरकारी तंत्र को जुडवां टावर की तरह जमीदोज करना है तो उसे भी सेक्टर 93 ए के निवासियों की तर्ज पर मजबूती से संगठित हो कर भ्रष्टाचारियों के साथ जुगलबंदी करने वाले सरकारी तंत्र के नापाक गठजोड कर न्यायपालिका के सहयोग से ध्वस्थ किया जा सकता है। जिस समय पूरा देश इस भ्रष्टाचार के प्रतीक जुडवां टावरों को ध्वस्थ होते देख कर चैन की सांस ले रही थी। ठीक उसी समय उतराखण्ड की जनता भी आहें भर रही थी कि काश हुक्मरानों द्वारा भ्रष्टाचार के गर्त में धकेले  उतराखण्ड को शिकंजे मेें जकडे हुआ शिकंजा भी नोयडा के जुडवां टावर की तरह ध्वस्थ होता।
भ्रष्टाचार व कुशासन से त्रस्त उतराखण्ड की जनता न केवल स्तब्ध है अपितु वह इस भ्रष्टाचार रूपि कुशासन से मुक्ति के लिए बेहद उद्देल्लित है। उतराखण्ड के युवा अपने भविष्य पर प्रदेश के हुक्मरानों द्वारा लगाये जा रहे ‘भ्रष्टाचार व अंधा बांटे रेवडी अपने अपने दे रूपि  ग्रहण  से मुक्ति के लिए उतराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन की तर्ज पर एक बडे जनांदोलन छेडने के लिए उद्देल्लित है। उतराखण्ड राज्य गठन के बाद उतराखण्ड की जनता को आशा थी कि उतराखण्ड में सत्तारूढ रही सरकारें उतराखण्ड के राज्य गठन की राजधानी गैरसैंण बनाने, मुजफ्फरनगर काण्ड-94आदि राज्य आंदोलन को कुचलने वाले गुनाहगारों को दण्डित करने, प्रदेश की जनांकांक्षाओं के अनुरूप भू कानून, मूल निवास, जनसंख्या पर आधारित विधानसभाई क्षेत्र  परिसीमन पर अंकुश लगाने, युवाओं को रोजगार प्रदान करने, अपराधियों व घुसपेटियों से उतराखण्ड की रक्षा करने व भ्रष्टाचार रहित सुशासन प्रदान करने आदि जनांकांक्षाओं को साकार करेगी। परन्तु उतराखण्ड के अब तक के 22 सालों की सरकारों ने अपने निहित स्वार्थ व दलीय आकाओं को खुश करने के लिए उतराखण्ड के हक हकूकों को रौंद कर प्रदेश को भ्रष्टाचार के रसातल में धकेल कर जनता की आशाओं पर बज्रपात कर दिया।
प्रदेश गठन के बाद रोजगार परख योजनाओं को क्रियान्वयन करने के बजाय प्रदेश की सरकारों में आसीन तथाकथित जनसेवक बने जनप्रतिनिधियों ने सरकारी तंत्र के साथ मिल कर न केवल अपने पद का दुरप्रयोग किया अपितु अपने रिश्तेदारों व प्यादों को मनमाने ढंग से सरकारी विभागों में बड़ी संख्या में नियुक्तियां प्रदान करके उतराखण्ड के युवाओं के साथ प्रदेश के हितों को रौंदने का जघन्य कृत्य किया। यह देख कर प्रदेश की विभिन्न विभागों में हो रही भर्ती परीक्षाओं में भी घोर अंधेरगर्दी कर परीक्षा प्रश्न पत्र को परीक्षा से पूर्व खरीददारों को मुंहमांगे दामों में बेच कर प्रदेश के हितों के साथ खिलवाड करने करने का जघन्य कृत्य भी उजागर होने से उतराखण्ड के लाखों बेरोजगारों के साथ प्रदेश की जनता स्तब्ध है। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि सरकारी बडे पदाधिकारियों की संलिप्तता के कैसे एक सडक छाप दलाल पूरे तंत्र को अपने जेब में रख सकता है। उतराखण्ड अधिनस्थ सेवा चयन आयोक की भर्ती परीक्षाओं में भारी धांधलियां केे उजागर होने के बाद जहां इसके परीक्षार्थी दंग हैं वहीं प्रदेश का तंत्र छोटे प्यादों को गिरफ्तार कर जनता की आंखों में धूल झोंक रहा है।
जनता चाहती है कि प्रदेश को भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए एक व्यापक जनांदोलन उतराखण्ड राज्य गठन की तर्ज पर चलाया जाय। आम युवाओं के साथ जनता भी उद्देल्लित व आक्रोशित है। पर सवाल यह है कि यह  यह एक दल या किसी व्यक्ति विशेष या किसी टावर विशेष से मुक्ति का मामला नहीं है। किस पर भरोसा करे। आंदोलन तो व्यापक हो जायेगा। परन्तु देश ने देखा कि कैसे देश के साथ ं कुछ साल पहले चले भ्रष्टाचार विरोधी जनलोकपाल आंदोलन के नाम पर छल किया गया। इस आंदोलन की कोख से जन्मी आम आदमी पार्टी के कर्णधारों के कारनामें जनता को स्तब्ध कर रहे हैं। इस देश का दुर्भाग्य है कि यहां लोगों व दलों का उदेश्य केवल किसी भी प्रकार से सत्ता पर काबिज करना रह गया। सत्तासीन होने के बाद लोग कैसे अपनी पदलोलुपु आकांक्षाओं के लिए अपने ही आदर्शों व कथनों को जमीदोज करते है। उतराखण्ड में सबसे रूकावट दलीय, जातिवाद, क्षेत्रवाद व अपनी पदलोलुपता के मोह में बंधे लोग इसमें सबसे बडे बाधक है। वे अपना बर्चस्व बनाये रखने के लिए समर्पित व दिशावान नेतृत्व को स्वीकार नहीं करता । जिसके कारण राज्य गठन के ऐतिहासिक आंदोलन की तरह प्रदेश में कोई व्यापक जनांदोलन सफल नहीं हो पाया। इनके चेहते चकोर प्रदेश में खबरिया जगत में काबिज हैं वे अपने दुराग्रह के कारण साफ छवि के समर्पित नेतृत्व को किसी भी सूरत स्थापित नहीं होने देना चाहता। सबसे हैरानी है कि जो लोग खुद को आंदोलनकारी व प्रदेश के हित रक्षक भी कहते हैं वे भी राज्य गठन की राजधानी गैरसैंण , मुजफ्फरनगर काण्ड-94, भू कानून आदि जनांकांक्षाओं को साकार करने के लिए संघर्ष करने के अपने दायित्व का निर्वहन करना तो रहा दूर ये लोग अपना स्वर भी इन मुद्दो्र को देने के लिए तैयार नहीं है। हाॅ केवल अपना वजूद बनाये रखने के लिए सियार की तरह समय समय पर उठ रहे तत्कालीन मुद्दों पर कभी कभार हुंकार भू कर जनता की आंखों में धूल अवश्य झोंकते है। सच में इनको न प्रदेश के हितों से कोई लेना देना होता है ये केवल अपने दुराग्रह व अपने वजूद बनाये रखने के लिए संघर्षशील होने के लिए कालनेमी बनते है।
उतराखण्ड का दुर्भाग्य यह है कि अब तक सत्तारूढ रहे भाजपा व कांग्रेस तथा उनके साथ सत्ता का गठजोड करने वाले दल भी जनता की आशाओं पर खरे नहीं उतर पाये। ऐसे में जनता किस पर विश्वास करे। सत्ता में आसीन हो कर नेता व उनका दल अगले चुनाव को जीतने के तिकडम करने में ही लग जाता है। वह जनसेवा करने व अपने चुनावी वायदों को भूल जाता है। इसी कारण सरकारी तंत्र पदलोलुपु नेताओं को भ्रष्टाचार की चासनी में आकंठ डूबों कर प्रदेश की तिजोरी को अपनी तिजोरी बना कर प्रदेश को बर्बादी के गर्त में धकेल देता है। इस कारण प्रदेश  भ्रष्टाचारियों, अपराधियों व घुसपेठियों का अभ्यारहण बन जाता है। जब जनता की आंख खुलती है तब तक वे आकंठ इस भ्रष्ट तंत्र में लिप्त हो जाते है। उसके बाद जब वे इससे मुक्ति का आंदोलन भी करते हैं तो उस आंदोलन में भी दलों के प्यादे व केजरीवाल जैसे पदलोलुपु लोग घुस कर उस आंदोलन की भ्रूण हत्या कर देते है। इसकी परिणीति दिल्ली में जनलोक पाल आंदोलन के बाद सत्ता में काबिज हुये केजरीवाल की तरह हो जाती है। सत्ता तो तिकडम से मिल जाती है परन्तु जिसके लिए आंदोलन किया गया था वह उद्देश्य वे खुद ही रौंद देते है। सत्ता मिलने के बाद उद्देश्य व सिद्धांतों की रक्षा कर उनको साकार करने के बजाय अन्य दलों की तरह किसी भी प्रकार से अपनी चोधराहट बनाये रखना व चुनावी जंग जीतना महत्वपूर्ण हो जाता है। इस प्रकार जनता का संघर्ष भी इस कलंक को मुक्त करने में दिशाहिन पदलोलुपु कालनेमि नेतृत्व के कारण सक्षम नहीं होता है।

उल्लेखनीय है कि इसी सप्ताह नोएडा के सेक्टर-93ए  स्थित सुपरटेक जुड़वां टावर (ट्विन टावर )को अभी दोपहर दो बजकर 30 मिनट पर जमींदोज किया गया। इसको जमीदोज न करने के लिए भ्रष्टाचारियों व भ्रष्ट सरकारी तंत्र ने तमाम ताकत लगा रखी थी। यहां यह टावर तभी ध्वस्थ हो सका जब यहां पीडित पक्ष मजबूती से डटा रहा।  खरीददारों के संघ की एकजूटता व न्यायालय की दृढ इच्छा शक्ति के आगे थेलीशाहों व इनके इशारे पर नाचने वाले सरकारी तंत्र को करारा झटके  के साथ यह एक बडा सबक भी है। भले ही यह कानूनी जंग आम आदमी की नहीं अपितु करोडपति खरीददारों का  भ्रष्ट भवन निर्माताओं व  उनके संरक्षक भष्ट  सरकारी तंत्र के बीच था। जिसके कारण भ्रष्ट गठजोड को मुंह की खानी पडी। इसे गिराने के लिए करोडपति निवासियों के संगठन ने  इलाहाबाद हाईकोर्ट से लेकर सर्वोच्च न्यायालय  तक लंबी लड़ाई लड़ी । सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में टिप्पणी की कि नोएडा अथॉरिटी एक भ्रष्ट निकाय है। इसकी आंख, नाक, कान और यहां तक कि चेहरे तक भ्रष्टाचार टपकता है ।  सर्वोच्च न्याायालय की यह टिप्पणी सरकारी तंत्र की हकीकत को उजागर करने वाला एक आईना ही है। जो इनकी मिली भगत को ही उजागर करता है।
आज समाचार जगत इसको भारत में सबसे बडे भवन का ध्वस्थीकरण मान रहा हो परन्तु यह मात्र भवन का ध्वस्थीकरण नहीं है अपितु यह भारत में भ्रष्टाचार पर सबसे बडा सार्वजनिक प्रहार व ध्वस्थीकरण है। इससे भ्रष्टाचारियों को साफ संदेश है कि उनके आका कितने भी बडे हों परन्तु जब जनता व न्यायपालिका ठान ले तो उनकी भ्रष्टाचार की लंका ऐसी ही ढाई जा सकती है।
नोयडा रितु माहेश्वरी ने इस टावर के ढहने के बाद जारी किये बयान में बताया कि तय योजना के तहत ही ये दोनों टावर ध्वस्थ हो गये हैं। इस विस्फोट से आस पडोस की इमारतों को कोई नुकसान नहीं हुआ।  इस सोसायटी के लोग सांय 6.30 बजे तक अपने घरों में लोट सकते हैं।
इस भ्रष्टाचार के जुडवा टावर की कथा प्रारम्भ होती है देश की राजधानी दिल्ली के समीप बसे नोयडा में। यहां की जमीनें बहुत मंहगी है। दिल्ली में इतनी ज्यादा जनसंख्या व परिवहन की भरमार हो गयी है कि आम आदमी यहां सांस भी ठीक ढंग से नहीं ले सकता है। इसी लिए दिल्ली के धनाडय लोग अपनी कोठी या मकान बनाने के बजाय दिल्ली के आसपास नोयडा व गुडगांव में अत्याधुनिक अपार्टमेंटों में रहना पसंद कर रहे है। परन्तु ये अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त अपार्टमेंट आम लोगों की पंहुच से बाहर है। यहां तीन चार कमरों का मकान ही 2.5 करोड से 5 करोड रूपये तक का है। इसके साथ महिने के देखभाल का खर्चा भी हजारों रूपये देना पडता है। ऐसी ही एक अत्याधुनिक अर्पाटमेंटों से सुसज्जित है नोयडा का सेक्टर 93 ए है। जिसमें सुपरटेक का एमराल्ड से लेकर एल्डिकों अपार्टमेंट है।  यहां विवाद का कारण रहे सुपरटेक का एमराल्ड प्रोजेक्ट। इस का इतिहास यह रहा कि   23 नंवबर 2004 को नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर-93ए स्थित ग्रुप हाउसिंग के लिए प्लॉट नंबर-4 की 84273 वर्ग मीटर जमीन सुपर टेक गु्रप के एमराल्ड कोर्ट को आवंटित किया। 16 मार्च 2005 को इस संपति का पट्टा आवंटित किया गया। सुपर टेक को एमराल्ड कोर्ट के लिए आवंटित  इस जमीन के साथ  ही 6556.61 वर्ग मीटर जमीन का भी सुपरटेक के नाम आवंटित कर इन दोनों प्लाटों को एक प्लाट मान कर सन 2006 को सुपर टेक का एमराल्ड कोर्ट का नक्शा भी पास कर इसका नक्शा पास कर दिया। 16 टावर बनाने की मंजूरी प्रदान की। यहां यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि इसके टावरों में भी निरंतर बदलाव किया गया। उस नक्शे के हिसाब से जहां सुपर टेक ने 32 मंजिल टावर बनायी वहां हरा भरा पार्क दर्शाया गया। जिस ढंग से सुपरटेक ग्रुप को यहां पर अतिरिक्त जमीन देने, टावरों की ऊंचाई व मंजिलों के विस्तार को मंजूरी मिल रही थी उससे आम आदमी व न्यायालय को साफ लगा कि नोयडा प्राधिकरण सुपरटेक पर मेहरवान है। इसके बाद  26 नवंबर 2009 को नोएडा अथॉरिटी ने इसे 17 टावर बनाने का नक्शा पास किया। यही नहीं 2 मार्च 2012 को संशोधन के बाद इन विवाद का कारण बनी जुंडवां टावर को 40 मंजिल तक करने व ऊंचाई 121 मीटर तक करने की इजाजत भी प्रदान कर दी गयी। परन्तु नोयडा प्राधिकरण की कृपा से गदगद हुई सुपर टेक ने इस जुडवां टावर्स के बीच की आवश्यक दूरी 16 मीटर के बजाय केेवल 9 मीटर रख कर आत्मघाती भूल कर दी।
भवन निर्माता सुपर टेेक की मनमानी से तंग आ कर एमराल्ड में फ्लैट के खरीदारों ने 2009 एमराल्ड निवासी कल्याण संस्था यानी आरडब्ल्यू बना कर सुपरटेक की मनमानी रोकने के लिए कानूनी जंग लड़ने के लिए कमर कसी। एमराल्ड कोर्ट निवासी संगठन ने नोयडा प्राधिकरण से इसके नक्शे की मांग की तो नोयडा प्राधिकरण ने तमाम अनुरोध को ठेंगा दिखा दिया। इसके बाद निवासी संगठन ने उप्र उच्च न्यायालय इलाहाबाद में फरियाद की। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पूरे मांमले में नोयडा प्राधिकरण व सुपरटेक की मिली भगत कर की गयी गंभीर अनिमियताओं को देखते हुए 2014 में इस भ्रष्टाचार की जुडवां टावर को ध्वस्थ करने का कठोर निर्णय सुनाया। उच्च न्यायालय के निर्णय से नोयडा प्राधिकरण में हडकंप मच गया। आनन फानन में प्राधिकरण ने इस मामले में एक जांच कमेटी का गठन किया। इस जांच कमेटी ने एक दर्जन से  अधिक अधिकारियों व कर्मचारियों को दो दोषी पाते हुए उनके खिलाफ मामला दर्ज किया।उप्र उच्च न्यायालय के जुडवां टावर ध्वस्थ करने के निर्णय के खिलाफ भवन निर्माता सुपर टेक सर्वोच्च न्यायालय में देश के मंहगे से मंहगे अधिवक्ताओं से फरियाद कराई। परन्तु मंहगे अधिवक्ताओं के तमाम तर्क भी सर्वोच्च न्यायालय सुपर टेक व नोयडा प्राधिकरण की मिली भगत से बनी भ्रष्टाचार के प्रतीक जुडवां टावर की सच्चाई पर पर्दा  नहीं डाल सकी। सर्वोच्च न्यायालय ने 31 अगस्त 2021 को  तीन महिने के अंदर इस भ्रष्टाचार के प्रतीक जुडवां टावरों को गिराने का साफ आदेश जारी कर दिया। उच्च न्यायालय के बाद सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट आदेश के बाद सुपरटेक की आशाओं पर बज्रपात हो गया। परन्तु उसने हार नहीं मानी। यह आदेश भी समय पर साकार नहीं हो पाया। अदालती प्रक्रिया के तहत सर्वोच्च न्यायालय ने इसको ढहाने का समय 22 मई 2022 तय किया। परन्तु उसके बाद अब इसके लिए अंतिम तिथि आज 28 अगस्त 2022 को तय की गयी। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के तहत इसको सुरक्षित विध्वंश कराने वाली भारत की विश्व विख्यात कंपनी ने इसको ध्वस्थ करने का दायित्व निभाने के लिए आगे आयी। इसी के तहत इन दोनों इमारतों को गिराने के लिए आज दोपहर 2.30 बजे का समय तय किया गया। इसके तहत भारी मात्रा में विस्फोटक लगाए गए हैं। यह झरने की तरह ध्वस्थ करने वाली विधि से ध्वस्थ किया जायेगा।  ध्वस्तीकरण के चलते पुलिस ने कड़े सुरक्षा इंतजाम किए हैं.।
32 और 29 फ्लोर वाले दोनों टॉवर को गिराने के लिए 3,700 किलोग्राम विस्फोटकों का 9600 छेदों में इस्तेमाल किया गया है. टॉवर के गिरने के वक्त किसी प्रकार का नुकसान न हो इसके लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतेजाम किए हैं. बड़ी तादाद में पुलिसकर्मी ट्विन टावर के आसपास तैनात किए गए हैं. साथ ही नोएडा ट्रैफिक पुलिस ने अन्य वैकल्पिक रास्तों का प्रबंध किया है।  नोएडा एक्सप्रेसवे को आधे घंटे के लिए बंद रखने का भी फैसला किया गया, जिसे विस्फोट के बाद खोल दिया गया है ।इसके अलावा विवाद ग्रस्त टावर के आसपास के करीब 7000 घरों को खाली किये गये।सुपरटेक के अलावा पूर्वांचल अपार्टमेंट, सिल्वर सिटी, पार्शनाथ सोसायटी, एटीएस, एल्डिको सभी में बिजली की सप्लाई रोकी गयी।  सभी अपार्टमेंट के गैस की सप्लाई को बंद किया गया। कुछ अपार्टमेंट खाली कराये गये थे।  विस्फोट की जद में आने वाले अपार्टमेंट से सुरक्षा में तैनात गार्ड भी हटाये गए।इस विस्फोट के कारण किसी प्रकार की आपात स्थिति से निपटने के तमाम चिकित्सा प्रबंध किये गये थे।
प्रशासन व इस क्षेत्र के निवासियों ने इस विस्फोट के योजना के तहत निपटने के बाद राहत की सांस ली। प्यारा उतराखण्ड के संपादक देवसिंह रावत ने इस क्षेत्र का सुबह दौरा करने के बाद बताया कि लोगों में दहशत साफ देखी जा रही थी।  विस्फोट के बाद लोगों के साथ प्रशासन ने चैन की सांस ली। हालांकि शासन ने विस्फोट को देखते हुए यमुनाा एक्सप्रेस रोड व इस क्षेत्र की वायु सीमा भी विस्फोट के समय बंद कर दी थी।

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