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सर्वोच्च न्यायालय ने धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)की कार्यवाही व अधिकार पर लगाई मुहर , सरकार विरोधियों में हडकंप

जांच, गिरफ्तारी व संपति जब्त करने के अधिकार को न्याय संगत

नई दिल्ली(प्याउ)। आज 27 जुलाई 2022 को सर्वोच्च न्यायालय ने  एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत प्रवर्तन निदेशालय की कार्यवाही व अधिकार पर अपनी वैधानिक मुहर लगाई।  आज सर्वोच्च न्यायालय ने धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत प्रवर्तन निदेशालय की कार्यवाही व अधिकार पर प्रश्न चिन्ह लगाने व इस अधिनियम को असंवैधानिक बताने वाली तमाम याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया।सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत प्रवर्तन निदेशालय तहत की जा रही कार्यवाही, गिरफ्तारी व संपति जब्त करने के अधिकार को मनमानी न मानते हुए इनको उचित बताया। इसके साथ न्यायालय ने इस धन शोधन निवारण अधिनियम कानून में वित्त विधेयक  के जरिए किए गए बदलाव के मामले पर विशेष सुनवाई के लिए  7 न्यायाधीशों की पीठ को सौंप दिया है। इसके साथ न्यायालय ने याचिका में बिना शिकायत पत्र दिये भी गिरफ्तारी जायज है, इसमें आरोपी को कारण बताना भी पर्याप्त है।
इस फैसले से जहां इस मामलों में फंसे लोगों सहित विपक्षी दलों में हडकंप मच गया है। गौरतलब है कि विरोधी दल आरोप लगा रहे हैं कि सत्तारूढ मोदी सरकार इस कानून को हथियार बनाकर अपने विरोधी दलों के नेताओं  पर शिकंजा कस कर उनको नाहक ही राजनैतिक प्रतिशोध के कारण दण्डित कर रही है। वहीं सत्तारूढ भाजपा सरकार विरोधियों के इन आरोपों पर तीब्र प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए इस कानून के तहत जिन विपक्षी नेताओं पर कार्यवाही हुई उनको भ्रष्टाचारी बता कर कार्यवाही को देश के हित में बता रही है। सरकारी दल का मत है कि कोई भी अगर भ्रष्टाचार करता है तो देश के कानून उसको अवश्य दण्डित करेगा। भ्रष्टाचारी , राजनीति का ढाल बना कर अपने गुनाहों पर पर्दा नहीं डाल सकते है।गौरतलब है कि जिस प्रकार से कांग्रेस के शीर्ष नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी, नेकांफ्रे के फारूख अब्दुला, तृणमूल के प्रमुख ममता बनर्जी के भतीजे सहित कई नेता, राजद के शीर्ष नेता लालू यादव, शिवसेना के प्रवक्ता संजय राकांपा के कई नेता सहित अनैक लोग इसी कानून के तहत सरकार निरंतर पूछताछ व कार्यवाही कर रही है। इसी भय से सभी राजनैतिक दल व व्यापारी सहमें हुए है। उनको इससे उबरने के लिए न्याय पालिका से अंतिम आश लगी थी वह भी इसे फैसले से एक प्रकार से धूमिल हो गयी है। कांग्रेस नेतृत्व वाली सप्रंग सरकार में बने इस कानून व संस्थान आज कांग्रेस सहित विपक्षी दलों के जी का जंजाल बन चूका है। क्योंकि सभी दलों को चुनावी समर में उतरना होता है। इस समर में उतरने के लिए धन की सबसे महत्वपूर्ण जरूरत होती है। चुनाव में अधिकांश सभी दल काले धन का प्रयोग करते हैं। काला धन अधिकांश काले कामों से ही अर्जित होता है। विरोधी दल यही आरोप लगा रहे हैं कि सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं अपितु अपने विरोधियों के संसाधनों पर बज्रपात करने के लिए इस कानून का दुरप्रयोग कर रही है। अगर सरकार भ्रष्टाचार पर कार्यवाही करती तो वह सबसे पहले अपने दल के भ्रष्टों पर कार्यवाही करने के बजाय उनको संरक्षण क्यों देती।

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