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अगर अमेरिका, कारगिल युद्ध में भी पाकिस्तान की ढाल न बनता तो बांग्लादेश युद्ध की तरह पाकिस्तान, भारत के सामने आत्मसमर्पण के लिए मजबूर हो गया था

कारगिल युद्ध के बाद भी भारत ने नहीं सीखा सबक!

 

देवसिंह रावत

 

आज 26 जुलाई 2022 को राष्ट्र कारगिल युद्ध के अमर बलिदानियों व योद्धाओं की स्मृति को शत-शत नमन कर रहा है वहीं सेना सहित राजनीतिक दल भी कारगिल विजय दिवस को मना कर भारतीय सेना के गौरवशाली परंपरा को नमन कर रहे हैं। देश के राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित देश के सभी राजनेताओं, तीनों सेना प्रमुखों व जागरूक लोगों ने जांबाज सैनिकों को स्मृति को नमन किया।
भले ही 23 सालों में कारगिल युद्ध के दंश से शहीदों के परिजनों व घायलों की जख्म न भरे हों, परंतु धीरे धीरे कारगिल युद्ध भी पूर्व में घटित अन्य घटनाओं की तरह ही समय चक्र व जनमानस की स्मृतियों में इतिहास की एक घटना सी बन गयी है।
आज की पीढ़ी, शायद कारगिल युद्ध के इस रहस्य बन गई सच्चाई से भी अनविज्ञ होगी कि कारगिल युद्ध में भी चौतरफा घिर चुकी पाकिस्तान की सेना, भारत तीजा पेग सेना के पराक्रम के आगे बांग्लादेश युद्ध की तरह ही शर्मनाक आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर सी हो गई थी। अगर अमेरिका उस समय भारत सरकार पर दबाव नहीं बनाता तो कारगिल में घुसपैठ करने वाले पाकिस्तान के हजारों सैनिको को जुलाई 1999 के प्रारंभ में ही भारतीय सेना के चारों तरफ से पूरी तरह से घेर लिया था। कारगिल में घिर चूकी पाकिस्तानी सेना के पास दो ही रास्ते शेष रह गए थे या आत्म समर्पण करें या मारे जांय। तब पाकिस्तान के हुक्मरानों ने अपने आका अमेरिका से पाकिस्तानी सैनिकों की रक्षा के लिए गुहार लगाई। बांग्लादेश युद्ध की प्रकरण में पाकिस्तान को न बचा पाने के कारण मुंह की खाने वाले अमेरिका ने बहुत ही कूटनीति से भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई पर यह दबाव बनाने में सफलता हासिल की कि पाकिस्तान युद्ध बंद करने के लिए तैयार है, बशर्ते भारत, कारगिल में घिर चूके पाकिस्तानी सेना को सुरक्षित पाकिस्तान वापस जाने दे ।
अमेरिका की इसी रणनीति को परवान चढ़ते ही पाकिस्तान ने 5 जुलाई 1999 को युद्ध समाप्ति की घोषणा की और भारत ने अपराधी पाकिस्तानी सैनिकों को सुरक्षित वापिस पाकिस्तान जाने दिया। जिन्होंने भारत के सैकड़ों सैनिकों का प्राण हरे थे, सैकड़ों जवानों को घायल किया था तथा भारत की जमीन पर कब्जा करने का दुस्साहस कर भारत के खिलाफ युद्ध थोप था।
उस समय देश भले ही देश, कारगिल विजय की गगनभेदी जयघोषों के बीच नजर अंदाज कर रहा था परंतु इस सच्चाई से आज भी देश भक्तों व समर्पित जांबाजो को आवश्यक पीड़ा पहुंचाती है। काश उस समय देश की हुक्मरान अमेरिका की इस जहां से मैं नाते तो पाकिस्तान को बांग्लादेश युद्ध की तरह कारगिल में भी भारतीय सेना के आगे आत्मसमर्पण करना पड़ता। इस युद्ध में अमेरिका फिर आतंकी पाक की ढाल ही बना।

उल्लेखनीय है कि 1947 से आज तक भारत को बर्बाद करने व कब्जाने में लगे पाकिस्तान ने भारतीय भूभाग कारगिल की ऊंची पहाड़ियों में अपने 5000 सैनिकों को गुपचुप भेजकर कब्जा कर भारत पर जो युद्ध हुआ था वह युद्ध विश्व में कारगिल युद्ध नाम से जाना जाता है यह युद्ध 3 मई से 26 जुलाई 1999 तक ( 2 महीने 3 सप्ताह 2 दिन यानी 85 दिन) उस दिन तक चला, जब तक जांबाज भारतीय सैनिकों ने भारत की भूमि पर हुए कब्जे को पूरी तरह से मुक्त न कर दिया।
पाकिस्तान द्वारा किए गए इस नापाक कब्जे की सूचना भारतीय सेना और स्थानीय प्रशासन को 3 मई को चरवाहों ने सूचना दी ।
10 मई से भारतीय सेना ने इस पाकिस्तानी घुसपैठ के खिलाफ ऑपरेशन विजय का शुभारंभ किया।
1 जून को अमेरिका और फ्रांस में पाकिस्तान के इस दावे को सिरे से खारिज किया कि यह कश्मीरी लोगों का हमला है इससे पाकिस्तान का कोई हाथ नहीं है। पाकिस्तान भारत पर उल्टा आरोप लगा रहा था कि भारत पाकिस्तान पर हमला कर रहा है। जिसे अमेरिका ने सिरे से नकार कर इस हमले के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया।

5 जुलाई 1999 को अंतरराष्ट्रीय यानी अमेरिका के दबाव में पाकिस्तान ने कारगिल से अपनी सेना वापसी का ऐलान किया है इसी दवाबके तहत भारतीय सरकार ने उन अपराधियों को पाकिस्तान जाने की इजाजत थी।
14 जुलाई 1999 को भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने ऑपरेशन विजय की सफलता का ऐलान किया।
19 जुलाई को भारतीय सेना ने पाकिस्तान द्वाराका बीच हुए कारगिल की सभी चोटियों पर तिरंगा लहराते हुए अपने कब्जे में ले लिया।

अक्टूबर 1998 में मुशर्रफ ने कारगिल प्लान को मंजूरी दी थी. कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर पाकिस्तान के सैनिकों ने कब्जा कर लिया था. नियंत्रण रेखा के जरिये घुसपैठ करने की साजिश थी. भारतीय नियंत्रण रेखा (एलओसी) से पाकिस्तानी सैनिकों को हटाने के लिए ये युद्ध हुआ.

5000 घुसपैठिए पाकिस्तानी सैनिक भारत की 30000 सैनिकों ने चौतरफा गिरकर युद्ध में विजय हासिल की
इस युद्ध में 527 भारतीय सैनिक शहीद हुए 1363 घायल हुए। वहीं पाकिस्तान के करीब 4000 सैनिक मारे गए। हजारों घायल हुए।

1947 से आज तक भारत के शासकों ने भारत को मिटाने को तुले आतंकी देश पाकिस्तान व उसके आका बने चीन को मित्रता बनाने की सनक के कारण भारत को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है एक तरफ भारत के इन दोनों दुश्मनों ने भारत की लाखों वर्ग भूभाग पर जबरन कब्जा कर रखा है वहीं दूसरी तरफ भारत को तबाह करने के लिए निरंतर आतंकी व विनाशकारी षड्यंत्र रच रहे हैं। परंतु भारत की गौरवशाली शासन नीति को छोड़कर आत्मघाती पंचशील व अहिंसा के तथाकथित आधे अधूरे रणनीति के कारण बार-बार नुकसान उठा रहा है।
भारत सरकार को चाहिए क्यों वह तत्काल विश्व में तत्काल वाहवाही के मोह को त्याग कर पाकिस्तान व चीन से तब तक सारे संबंध तोड़ दे ।जब तक चीन और पाकिस्तान द्वारा कब्जा की गई भारत की लाखों वर्ग भूमि भारत को वापिस नहीं देते। और तमाम प्रकार के आतंकी गतिविधियों को बंद कर सहृदय से भारत से मित्रता के हाथ नहीं बढ़ाते।

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