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आज सुबह जब मैंने केरल की (6000रु किलो मूल्य वाली) जड़ी-बूटी चाय (ग्रीन टी) पी तो विश्व में जड़ी बूटियों का दुर्लभ भंडार उत्तराखंड की बर्बादी पर मेरा दिल रोने लगा

देव सिंह रावत

आज सुबह जब मैंने केरल की (6000रु किलो मूल्य वाली) जड़ी-बूटी चाय ग्रीन टी पी तो विश्व में जड़ी बूटियों का दुर्लभ भंडार उत्तराखंड की बर्बादी पर मेरा दिल रोने लगा। यहां सवाल इस चाय की कीमत का नहीं है। इससे भी कई गुना अधिक महंगी  चाय हो सकती है। परंतु इतनी कीमती जड़ी बूटी उत्तराखंड में सरकार के निकम्मे पन के कारण माफियाओं के उदर में जा रही है या व्यर्थ में नष्ट हो रही है।

विश्व में जड़ी बूटियों का अनुपम भंडार उत्तराखंड।शासन प्रशासन की उपेक्षा के कारण उत्तराखंड व देश को मालामाल कर सकने वाली अधिकांश अति दुर्लभ व अमृत मय जड़ी बूटियां या तो माफियाओं के उदर पूर्ति का साधन बनती है या व्यर्थ में नष्ट हो जाती है। इन जड़ी बूटियों से से जन जन का कल्याण हो सकता है।

आज मुझे केरल से लायी गई जड़ी बूटी वाली चाय( ग्रीन टी) जिसकी कीमत देखकर मैं हैरान रह गया, ₹6000 किलो यानी ₹600 का 100 ग्राम। इस चाय को देख कर मुझे ऐसा प्रतीत हुआ उत्तराखंड में इससे भी कई दुर्लभ व बहु कीमती संजीवनी, कीड़ा जड़ी, कटुकी, चंद्रा, शिलाजीत आदि उत्तराखंड के हिमालय पर्वत श्रृंखला में यत्र तत्र दृष्टिगोचर होते हैं। अगर पर्वतीय क्षेत्रों के नाम नागरिकों को यह जड़ी बूटी की खेती करने के लिए सरकार प्रेरित व संरक्षण प्रदान करें तो उत्तराखंड में बेरोजगारी दूर होकर खुशहाली की बहार आ जायेगी । परंतु पथ भ्रष्ट राजनीतिक नेतृत्व व भ्रष्ट नौकरशाही, जनता को जागृत करने के अपने दायित्व का निर्वहन करने के बजाए उनके मार्ग में अपने निकम्मेपन व  स्वार्थों में फंसे रहने कारण अवरोध खड़ा करते हैं। अगर उत्तराखंड में #हिमाचल की तरह #परमार से लेकर #वीरभद्र  जैसा प्रदेश के विकास के लिए समर्पित नेतृत्व मिलते तो उत्तराखंड आज अपनी बर्बादी की दुर्दशा पर इस तरह से आंसू नहीं बहाता।

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