उत्तराखंड देश

मुख्यमंत्री धामी की दूसरी विधानसभा बनाकर राजधानी थोपने की तुगलकी मंशा के कहर से उत्तराखंड को बचाये प्रधानमंत्री मोदी

उत्तराखंड के लिए भी मोहम्मद बिन तुगलक (चमड़े के सिक्के चलाने वाले व राजधानी बदलने वाले )ही साबित हो रहे हैं जबरन देहरादून में नई विधानसभा बनाने वाले मुख्यमंत्री

 

राव, मुलायम व तिवारी की तरह ही उत्तराखंड द्रोह है राजधानी(विधानसभा) गैरसैंण की उपेक्षा कर बलात देहरादून में नया विधानसभा भवन बनाना

 

देवसिंह रावत

सच ही कहा गया कि इतिहास अपने आप को दोहराता है । उत्तराखंड में भी ऐसा लग रहा है कि इतिहास एक बार फिर अपने आप को दोहरा रहा है। जैसे ही प्रदेश की जनता को यह भनक लगी कि केंद्र सरकार ने उत्तराखंड के वर्तमान पुष्कर सिंह धामी सरकार के उस प्रस्ताव को सिद्धांत रूप से मंजूरी दे दी है। जिसके तहत प्रदेश में एक अन्य विधानसभा भवन देहरादून के रायपुर क्षेत्र में वन भूमि में बनाया जाएगा।
उत्तराखंड की जागरूक जनता और राज्य गठन के समर्पित आंदोलनकारी इस बात से हैरान है कि कि जब उत्तराखंड राज्य में भारत की सबसे रमणीक विधानसभा गैरसैंण में करोड़ों रुपए खर्च करके बनी हुई है और उसमें बजट छात्र शीतकालीन और कृष्ण कालीन सहित सभी महत्वपूर्ण सत्र 2014 से निरंतर सफलता से संचालित हो रहे हैं। और गैरसैंण में विधानसभा बनने से राज्य गठन के सभी आंदोलनकारियों को समर्पित जनता बेहद प्रसन्न है तो फिर क्यों सरकार हजारों करोड़ के घर के नीचे दबे हुए उत्तराखंड में सैकड़ों करोड़ कर्जा करके एक अन्य विधानसभा भवन व्यर्थ में बना कर उत्तराखंड के आंदोलनकारियों, शहीदों व समर्पित जनता की जन भावनाओं को रौंदने का लोकतांत्रिक कृत्य कर रही है।

उत्तराखंड राज्य गठन हुए 22 साल हो गए परंतु यहां के मुख्यमंत्रियों व उनकी सरकारों ने अपनी सनक, जनाकांक्षाओं को रौंदकर पंचतारा शानो शौकत में जीने के लिए विकास के संसाधनों को लुटाने व कुशासन के कारण उत्तराखंड, विकास की कुचालें भरने के बजाय इस प्रदेश पर 73477 करोड से अधिक का भारी कर्ज चढ़ा दिया है। प्रदेश के उपलब्ध संसाधनों का सदप्रयोग करके प्रदेश को हिमाचल की तरह खुशहाल बनाने के बजाय अपनी सनक के लिए जबरन गैर जरूरत की चीजों में प्रदेश के करोड़ों रुपए बर्बाद करके मोहम्मद बिन तुगलक की तरह जनहित को रौंद रहे हैं।
इससे लोगों को ऐसा प्रतीत होता है एक बार इतिहास ने करवट लेकर मोहम्मद बिन तुगलक की प्रेत आत्मा प्रदेश के शासकों के सर पर चढ़कर प्रदेश को बर्बाद कर रही है।
जिस तरह से भारतीय इतिहास के कालखंड में चमड़े के सिक्कों को चलन में 1325-1350 ई. के बीच मोहम्मद तुगलक लाया था और अपनी राजधानी को दिल्ली-दौलताबाद-दिल्ली करने के कारण बदनाम भी हुआ और आर्थिक रूप से कंगाल भी हो गया था यही कंगाली उसके पतन का कारण बनी थी।
ठीक उसी प्रकार से उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों ने अपनी सनक के कारण न केवल उत्तराखंड राज्य की जन आकांक्षाओं को रौंदकर प्रदेश को पतन के गर्त में धकेल दिया है अपितु प्रदेश के ऊपर कर्ज़े का भारी पहाड़ चढ़ा दिया है।

सबसे हैरानी की बात यह है कि इस पूरे प्रकरण पर शायद केंद्र सरकार को इस बात का भान नहीं है कि प्रदेश में गैरसेंण में बहुत ही रमणीक विधानसभा युक्त राजधानी बनी हुई है और प्रदेश की जनता दिल में इसे दशकों से बसा चुकी है।
जनता हैरान है की राज्य गठन के बाद जिस प्रदेश में युद्ध स्तर पर राजधानी गैरसैंण में विधानसभा उसको संयंत्र करके राज्य गठन के बाद राजधानी चयन आयोग यानी वीरेंद्र दीक्षित आयोग का गठन कर उसको अवरुद्ध करने का प्रयास किया गया और गुपचुप तरीके से देहरादून में राज निवास सहित कई प्रमुख कार्यालयों का निर्माण किया गया। जबकि इस प्रश्न का समाधान 1993 में उत्तराखंड राज्य गठन से पहले तत्कालीन उत्तर प्रदेश की मुलायम सरकार ने नवगठित उत्तराखंड राज्य की राजधानी के लिए चयन के लिए अपने कबीना मंत्री रमाशंकर कौशिक के नेतृत्व में 6 सदस्य समिति का गठन किया था उस समिति ने उत्तराखंड की जनता आंदोलनकारियों बुद्धिजीवियों और प्रशासकों से भेंट करके विस्तृत रिपोर्ट मई1994 को शासन को सौंप दी। जिसके तहत 68% लोगों ने राजधानी के लिए गैरसैण के पक्ष में मत प्रकट किया था। इसके बाद जनता व आंदोलनकारियों ने एक स्वर में इसको स्वीकार करके राज्य गठन का ऐतिहासिक आंदोलन चलाया।
उल्लेखनीय है कि सबसे पहले इस पर्वतीय राज्य की राजधानी पर्वत में होने की पुरजोर मांग देश की आजादी के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने की थी। वे गढ़वाल कुमाऊं मंडल के बीचो-बीच गैरसेण से दुधातोली तक इस क्षेत्र को प्रस्तावित पर्वतीय प्रदेश की राजधानी बनाना चाहते थे। पर्वतीय प्रदेश उत्तराखंड के प्रमुख ध्वज वाहक उत्तराखंड क्रांति दल ने 25 जुलाई 1992 को गैरसेंण को चंद्रनगर नाम से राजधानी को स्वीकार करने का निर्णय लिया। जिसके लिए तब से आज तक निरंतर उक्रांद के साथ सभी आंदोलनकारी भी एक स्वर में मांग करते रहे।

उल्लेखनीय है कि 53483 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले उत्तराखंड में 46035 वर्ग किलोमीटर यानी 86 प्रतिशत क्षेत्रफल पर्वतीय क्षेत्र है। वहीं मात्र 7448 वर्ग किलोमीटर यानी 14% ही क्षेत्रफल मैदानी क्षेत्र है। इसी विषम भौगोलिक परिस्थिति के कारण ही उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड के विभाजन की मांग जनता ने पुरजोर रूप से की थी।

राज्य गठन के बाद जिस प्रकार से स्वामी, कोश्यारी व नारायण दत्त तिवारी की सरकारों ने राजधानी गैरसेंण बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई तो उत्तराखंड राज्य गठन के लिए समर्पित वरिष्ठ आंदोलनकारी बाबा मोहन उत्तराखंडी ने गैरसैण राजधानी की मांग को लेकर गैरसैंण के निकटवर्ती क्षेत्र में बैनीताल में 02 जुलाई 2004 से लंबा आमरण अनशन शुरू किया जनता के भारी समर्थन के बावजूद तत्कालीन उत्तराखंड विरोधी मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने उनके 37दिनी लम्बे ऐतिहासिक अनशन को नजरअंदाज किया। 08 अगस्त 2004 को पुलिस द्वारा जबरन कर्ण प्रयाग चिकित्सालय में भर्ती करने के कारण बाबा मोहन उत्तराखंडी राजधानी गैरसैंण के लिए बलिदान हो गये। इसके बावजूद भी उत्तराखंड के जनविरोधी मुख्यमंत्रियों को आपने लोकतांत्रिक दायित्व का बोध नहीं हुआ परंतु जनता व आंदोलनकारी निरंतर आंदोलनों से सरकार पर राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए दबाव बनाते रहे इसी के कारण खंडूड़ी सरकार के कार्यकाल में 2008 में वीरेंद्र दीक्षित आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। इस आयु पर उत्तराखंड की निर्लज्ज सरकारों ने करोड़ों रुपए व्यर्थ में खर्च किए।
गैरसैण राजधानी बनाने के लिए भारी जन दबाव व आक्रोश के बाद 3 नवंबर 2012 को तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने सतपाल महाराज की सलाह पर गैरसैंण में पहली बार उत्तराखंड सरकार के मंत्रिमंडल की बैठक का ऐतिहासिक आयोजन किया। जन भावनाओं को भांपते हुए उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा सरकार ने इस बैठक में प्रदेश की विधानसभा भवन गैरसैंण में बनाने का निर्णय लिया।इस पहल की जनता ने खुले दिल से स्वागत किया। जन भावनाओं का सैलाब देख कर प्रदेश कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष हरीश रावत ने प्रदेश के तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल व तत्कालीन सांसद प्रदीप टम्टा सहित कई जनप्रतिनिधियों को लेकर गैरसैंण को स्थाई राजधानी घोषित करने की मांग की। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि उस समय कांग्रेस में चल रही सत्ता संघर्ष के कारण हरीश रावत जो अपने दल के ही नेता विजय बहुगुणा से मुख्यमंत्री की दौड़ में पिछड़ गए थे उन पर दबाव बनाने के लिए राजधानी गैरसैंण की मांग प्रमुखता से उठाई। परंतु जनता और आंदोलनकारी कांग्रेस के इस अंदरूनी संघर्ष से इस बात से खुश थे कि चलो इसी बहाने राजधानी गैरसैंण का मुद्दा साकार होने के लिए जन भावनाओं के अनुरूप प्रमुखता से प्रदेश की राजनीति में अपना दबाव तो बना रहा है।
9 नवंबर 2013 को उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर विजय बहुगुणा सरकार ने गैर सेंड में विशाल आयोजन कर भराड़ीसैंण में बनने वाले विधानसभा भवन का विधिवत भूमि पूजन भी किया।
परंतु तत्कालीन विजय बहुगुणा सरकार का गैरसैंण समर्थक चेहरा उस समय बेनकाब हो गया जब गैरसैंण में विधानसभा भवन बनाने के प्रस्ताव को पारित करने के बाद देहरादून में लौटकर सरकार ने 2012 में देहरादून की रायपुर भोपाल पानी के मध्य की 60 हेक्टर जमीन, वन भूमि पर एक नई विधानसभा भवन सचिवालय बनाने का प्रस्ताव तैयार किया। इस प्रस्ताव की खबर व भनक लगते ही आंदोलनकारियों ने सरकार की इस उत्तराखंड विरोधी निर्णय का भारी विरोध किया। सरकार ने जन विरोध को दरकिनार करते हुए वन भूमि के हस्तांतरण के लिए 7 करोड़ रुपए का भुगतान भी कर दिया। परंतु इस दौरान यह सरकार अपने इस जनविरोधी कार्य को मुकाम पर पहुंचाती।

इसी दौरान 2013 में उत्तराखंड में केदारनाथ सहित पर्वतीय क्षेत्रों में भारी प्राकृतिक त्रासदी हुई। जिसको संभालने में उत्तराखंड की तत्कालीन बहुगुणा सरकार पूरी तरह असफल रही। पूरे देश में बहुगुणा सरकार की जो किरकिरी हुई उससे अपना दामन बचाने के लिए कांग्रेसी नेतृत्व में प्रदेश में बहुगुणा को हटाकर तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया।
हरीश रावत सरकार ने युद्ध स्तर पर जहां केदारनाथ त्रासदी से प्रदेश को उबारने का कार्य किया वही जन भावनाओं का सम्मान करते हुए मुख्यमंत्री हरीश रावत सरकार ने 9 जून से 12 जून 2014 में उत्तराखंड विधानसभा का सत्र गैरसैंण में ट्रेनों में आयोजित किया। इस साहसिक कदम के लिए प्रदेश की जनता ने प्रदेश सरकार की मुक्त कंठ से सराहना करते हुए मांग की कि सरकार को अविलंब गैरसैंण को प्रदेश की स्थाई राजधानी घोषित करनी चाहिए। परंतु हरीश रावत भी पूर्व मुख्यमंत्रियों की तरह इस ऐतिहासिक घोषणा को करने के लिए असफल रहे, इसके लिए वही नहीं जनता भी मन से दुखी है।
इसके बाद 2015 में नवंबर माह में भी गैरसैंण में विधानसभा सत्र का आयोजन किया गया।
2017 में भी गैरसैंण में बने नए विधानसभा भवन में विधान सभा सत्र का विधिवत आयोजन किया गया।
2018 में गैरसैंण में बजट सत्र का आयोजन किया गया।
इसके बाद 3 से 6 मार्च 2020 को त्रिवेंद्र सरकार ने बजट सत्र का आयोजन गैर सेंड में ही किया। जिसमें उत्तराखंड की जन आकांक्षाओं को रौंदकर हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने ग्रीष्मकालीन राजधानी की का विधिवत प्रस्ताव बहुमत से पारित करा दिया जिसका उत्तराखंड की जनता ने भारी विरोध किया। भले ही भाजपा नेतृत्व ने किसी और कारण से तत्काल त्रिवेंद्र रावत को सत्ता से बेदखल करके तीरथ रावत को आनन-फानन में मुख्यमंत्री बनाया परंतु उत्तराखंड की जनता को यह विश्वास सदा ही रहा कि जिसने भी उत्तराखंड के साथ खिलवाड़ किया देवभूमि उत्तराखंड उसको कभी माफ नहीं करता है। उसे महाकाल दंड देता है। इसी विश्वास को त्रिवेंद्र रावत के इस्तीफे के रूप में देखकर जनता को भले ही क्षणिक राहत महसूस हुआ। परंतु उसके बाद जिस ढंग से तीरथ रावत को अपदस्थ करके भारतीय जनता पार्टी ने पुष्कर सिंह धामी को नया मुख्यमंत्री बनाया। उत्तराखंड की जनता को विश्वास था कि कि यह नौजवान उत्तराखंड के आंदोलन की कोख से आगे बढ़ायेगा। वह अवश्य जन भावनाओं का सम्मान करेगा। परंतु जिस प्रकार से गैरसैंण राजधानी के मामले में पुष्कर सिंह धामी ने जन भावनाओं को स्वर देने का साहस भी नहीं जुटाया उसे जनता को गहरी निराशा हुई।
कुछ ही महीने बाद पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड की आशाओं पर वज्रपात किया जब उन्होंने विधानसभा का ग्रीष्मकालीन सत्र भी गैरसैंण में आयोजन करने के ऐलान के बावजूद देहरादून में ही किया। उत्तराखंड के आंदोलनकारियों ने गैरसैंण विधानसभा के सामने धामी सरकार की इस अलोकतांत्रिक कृत्य के खिलाफ उनको धिक्कारने का कार्य किया।

मासूम से लगने वाले मुख्यमंत्री धामी से लोगों का भ्रम पूरी तरह टूटा भी नहीं था कि कि अचानक खबर आई कि केंद्र सरकार ने उत्तराखंड सरकार का देहरादून की रायपुर क्षेत्र में भारतीय वन्यजीव संस्थान की 60 हेक्टेयर जमीन पर बनाये जाने वाली विधानसभा भवन व सचिवालय के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी है हालांकि खबरों में यह भी बताया गया की सरकार द्वारा इस स्थान पर बनाई जाने वाली विधायक निवास वह नौकरशाही आवास की मंजूरी अभी नहीं दी।
इस खबर की जगजाहिर होने के बाद जनता के सामने धामी सरकार पूरी तरह बेनकाब हो गई जनता सवाल कर रही है कि जब प्रदेश की आम जनता आंदोलनकारी व पूर्व उत्तर प्रदेश सरकार ने गैरसैंण में प्रदेश की राजधानी के लिए एक स्वर में स्वीकार कर लिया है और वहां पर राज्य निर्माण के बाद प्रदेश का एकमात्र विधानसभा भवन जो सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च करके भारतीय विधानसभाओं में सबसे सुंदर और रमणीक बना हुआ है। यही नहीं गैरसैण विधान सभा भवन में प्रदेश के बजट सत्र ग्रीष्मकालीन शत्रु और शीतकालीन सत्र से लेकर सभी महत्वपूर्ण सत्र कई सालों से सफलतापूर्वक संचालित किए जा रहे हैं। जनता इसके लिए राज्य गठन के दिनों से लेकर अब तक निरंतर आंदोलन कर रही है खुद प्रधानमंत्री मोदी से लेकर संसद की चौखट जंतर मंतर देहरादून गैर सेंड सहित प्रदेश के कोने-कोने पर आंदोलन किए गये। भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट व प्रदेश के वर्तमान अध्यक्ष मदन कौशिक ने (पूर्व नेता प्रतिपक्ष के रूप में) गैरसैंण को प्रदेश की स्थाई राजधानी बनाने के लिए सार्वजनिक रूप से जनता के समक्ष व विधानसभा में गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने का प्रस्ताव रखा था।
प्रदेश की जनता प्रदेश के मुख्यमंत्री क्रिस हठधर्मिता के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यह गुहार लगा रही है कि जब प्रदेश करें 73477 करोड़ से अधिक के कर्ज में डूबा हो और वहां एक जन भावनाओं के अनुरूप सुंदर विधानसभा भवन बना हो तो आखिर प्रदेश सरकार किसके हित के लिए देहरादून के रायपुर में सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च करके बिना जरूरी विधानसभा भवन बनाने की तुगलकी कदम उठा रही है। जब प्रदेश की जनता प्रदेश की राजधानी गैरसैण मांग रही है तो लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों का पहला दायित्व होता है कि जनता की भावनाओं का सम्मान करके उसे शिरोधार्य करना। प्रदेश की जनता प्रधानमंत्री मोदी से अपेक्षा करती है कि प्रदेश की धामी सरकार को लोकशाही का सम्मान करने का निर्देश देते हुए गैरसैंण में राजधानी को घोषित कर प्रदेश की लोकशाही, चौमुखी विकास व देश की सुरक्षा करने वाला यह कार्य करें। उत्तराखंड की जनता की नजरों में यह  राव, मुलायम व तिवारी की तरह ही उत्तराखंड द्रोह है राजधानी(विधानसभा) गैरसैंण की उपेक्षा कर बलात देहरादून में नया विधानसभा भवन बनाना है।

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