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दो टके के लिए जानबुझ कर भारतीयों की आस्था से खिलवाड करने वालों पर तत्काल अंकुश लगाये सरकार

काली फिल्म के विकृत पोस्टर से जानबुझ कर जनता को भडका कर अपनी फिल्म से अकूत दौलत व शौहरत अर्जित करने का षडयंत्र
देवसिंह रावत

जैसे ही फिल्म निर्मात्री लीना मणिमेकलई ने 2 जुलाई को अपनी डाक्यूमेंट्री फिल्म ‘काली’ का पोस्टर जारी किया। वेसे ही भारत सहित विश्व में रहने वाले करोड़ोें भारतीयों ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया प्रक्अ की। अपने इस विवादस्थ फिल्म का जो पोस्टर लीना मणिमेकलई ने टवीटर सहित अन्य माध्यमों से जारी किया उससे लोगों की आस्था को गहरी ठेस लगी। आम भारतीय जनमानस  माॅ भगवती के दुष्टों के संहारक रूप काली विकराल रूप की पूरी श्रद्धा से पूजा करता है। परन्तु इस विवाद के बाद जिस प्रकार से लीना मणिमेकलई ने जनता की भावनाओं को नजरांदाज करके अपने कृत्य को जायज ठहराने की धृष्ठता की उससे साफ हो गया कि उसने यह  विकृत रूप पोस्टर जिसमें मां काली को सिगरेट पीते हुए व  उनके एक हाथ में एक  समुदाय का झंडा दिखाया है, वह उसने जानबुझ कर भारी विवाद पैदा करके अपनी फिल्म को चर्चा में लाकर अंतरराष्ट्रीय जगत में शौहरत व दौलत अर्जित करने के लिए किया है।
फिल्म निर्माताओं व इस प्रकार के तथाकथित बुद्धिजीवियों में एक ऐसी हैवानी प्रवृति प्रायः लम्बे समय से प्रचलित है कि भारत की खासकर सनातनी धर्मावलम्बियों को बदनाम करके भारत के प्रति दुराग्रही व शत्रुतापूर्ण मनोवृति रखने वाले पश्चिमी जगत की वाहवाही लूट कर दौलत व शौहरत बटोरो। वेसे भी अपनी फिल्मों ंआदि को सफल बनाने के लिए निर्माता इस देश में जानबुझ कर न केवल इसे विवादस्थ बनाते हैं अपितु इस विवाद को भड़काने का भी पूरा अभियान छेडते है। यह सब होता है देश की सरकारों की उदासीनता व लापरवाही के कारण। सबसे हैरानी की बात है कि भारत सरकार का इन फिल्मों, नाटकों आदि पर नियंत्रण लगाने के लिए एक फिल्म नियंत्रक बोर्ड यानि फिल्म सेंसर बोर्ड होता है। जिसके प्रमाण के बिना ये फिल्में कहीं प्रसारित नहीं होती। यहां पर भारी भ्रष्टाचार व्याप्त है। ये अपने दायित्वों का निर्वहन करने के बजाय केवल अपने निहित स्वार्थो में ही लिप्त रहते है। सरकार को चाहिए कि इस फिल्म नियंत्रक बोर्ड के सभी सदस्यों को तत्काल प्रभाव से पद मुक्त कर उनकी सम्पति की जांच की जाय। जो इस प्रकार के प्रकरणों में दोषी हैं उनको तत्काल प्रभाव से कड़ी सजा दिलाने का कार्य ंिकया जाय।
फिल्म निर्मात्री के आशा के अनुरूप ही मां काली के इस विकृत रूप को देखते ही लोगों का गुस्सा फूट पड़ा, जिसके बाद देश भर में फिल्म का विरोध हुआ। और अब लीना मणिमेकलई के ऊपर दिल्ली, उप्र व महाराष्ट्र सहित कई स्थानों में शिकायत  भी दर्ज की गई है। जनता के भारी विरोध  को देखते भले ही यह कहा जा रहा है कि ट्विटर ने लीना मणिमेकलई के इस पोस्टर को हटा दिया है। परन्तु आज भी माॅ काली की यह विवादस्थ तस्वीर उसके ट्विटर पर लगी हुई है।
फिल्मकार लीना मणीमेकलाई की फिल्म का जानबुझ कर विरोध को भडका रही है। इस फिल्म के पोस्टर का ही देशव्यापी विरोध होने के बाद भी जिस प्रकार से पोस्टर का भारत में भारी विरोध हो रहा है। उसके बाद अगर वह अपनी गलती मान कर जनता से माफी मांग लेती तो यह उसकी भूल समझी जाती। परन्तु  आज 7 जुलाई 2022 को भी उसने इसी फिल्म में मां काली की वेशभूषा में एक महिला व भगवान शिव का भेष धारण किये हुए कलाकार को ध्रुम्रपान करने वाली तस्वीर ट्वीट कर जनता के आक्रोश को और भडकाने के साथ भारत सरकार को ठेंगा दिखाने की हटधर्मिता की।
वेसे ही लीना भले ही दक्षिण भारतीय सिनेमा जगत की निर्मात्री व निर्देशिका है। परन्तु उसका सारा ध्यान व काम विदेशी फिल्म महोत्सव को ध्यान में रखकर भारतीय समाज की महिलाओं आदि पर संक्षिप्त फिल्म बनाने के लिए जानी जाती है। हालांकि उसने अभिनेत्री के तौर पर चंद संक्षिप्त फिल्मों में कार्य भी किया।
सबसे हैरानी की बात यह है कि देश के राजनैतिक दल व तथाकथित समाजसेवी बुििद्धजीवी जो चंद दिन पहले ईश निंदा के प्रकरण पर लोगों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने के लिए एक से बढ कर एक तर्क गढ़ रहे थे। वे ही अब भारतीय संस्कृति पर किये जा रहे इस विकृत मानसिकता के प्रहार के बचाव में कलाकार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का राष्ट्रघाती प्रहार भारतीय समाज पर कर रहे हैं।
मां काली पर बनी फिल्म पर देशव्यापी विवाद चल रहा है। विवाद इसलिए मां भगवती जिससे काली स्वरूप दुष्टों का सहायक माना जाता है उसको एक फिल्म निर्माता ने इस ढंग से प्रस्तुत किया कि लोगों की आस्था को गहरी ठेस पहुंची। गलत को गलत कहने के बजाय हमारे कुछ मित्र  व लोग कई तथ्य दे रहे हैं। वह कह रहे हैं  कि मां काली के विकृत तरीके से फिल्मांकन करने पर भारतीय जनमानस आपत्ति क्यों  कर रहे हैं ?
इस विवाद से बंगाल की सत्ता में काबिज ममता के दल ने अपनी एक नेता के काली के विकृत रूप का समर्थन करने की धृष्ठता करने वाली नेत्री की टिप्पणी को उनकी निजी टिप्पणी बता कर उस पोस्टर के समर्थन नहीं किया। मेने अपने तथाकथित बुद्धिजीवियों से कहा कि उनके तर्क भी तृणमूल के समझ में भी नहीं आ रहे हैं। सबसे पहले भारतीय संस्कृति बात करने वाले मित्रों को समझ लेना चाहिए कि संस्कृति का सकारात्मक पक्ष दिखाने से ही समाज और देश के नौनिहालों को प्रेरणा मिलेगी। इसीलिए फिल्म सेंसर बोर्ड भी होता है जो शायद भांग खाकर मूर्छित पड़ा हुआ है। जिसकी नजर इस फिल्म के इस विकृत प्रस्तुतीकरण पर नहीं गई। भारतीय संस्कृति सदैव अपने समाज में पनप रही बुराइयों को सुधारने का काम करती है। इसलिए गलत चीज का विरोध होना चाहिए ।सही चीज को आत्मसात करना चाहिए।सुना है पहले जमाने में नरबलि की जाती थी । गलत चीज को त्यागना ही भारतीय संस्कृति का पहला अमृत मय गुण है। सनातन संस्कृति हमेशा सनातन मूल्यों को आत्मसात करता है। अन्य धर्मों में यह गंगा की तरह आत्म सुधार की दिव्य प्रवृति कहीं दूर दूर तक नहीं दिखाई देती है। इसीलिए सनातन धर्म सदैव सनातन रहता है वह जड़ता से दूर रहता है।
हम यह बात भी समझ लेनी चाहिए कि समाज में अज्ञानता व दुराग्रह से कितने घृणित, अमाननीय व हैवानियत के कार्य होते हैं । उनको महिमामंडित करते हुए  पर्दे पर दिखाना उचित नहीं है।गलत कार्यों को समाज व   फिल्मों में हतोत्साहित किया जाना चाहिए ।इस मामले को दलीय नजरिये से ऊपर उठकर राष्ट्रीय अस्मिता व देश के भविष्य को ध्यान में रखकर अपना नजरिया रखना चाहिए।
तभी समाज सतपथ पर संचालित होगा। तभी देश में अमन चैन स्थापित होगा। अराजक व दिशाहीन समाज अमेरिका, पाकिस्तान व चीन की तरह पथभ्रष्ट व विनाशकारी होता है। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय नमो।

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