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फिर से मुख्यमंत्री बनने के 100 दिन बाद भी उत्तराखंडियों का विश्वास नहीं जीत पाये धामी

 

किसी दल व नेता का सेवक समझने  के बजाय खुद को उत्तराखंड का मुख्य सेवक समझें मुख्यमंत्री धामी

 

प्यारा उत्तराखंड डॉट कॉम

इसी सप्ताह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने फिर से मुख्यमंत्री बनने की 100 दिन पूरे करने के अवसर पर देहरादून में मुख्यमंत्री आवास में मुख्य सेवक सदन में ग्राम विकास विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में संबोधित करते हुए कहा कि हमारी सरकार के ये 100 दिन विकास, समर्पण और प्रयास के लिए समर्पित रहे।हमारी सरकार द्वारा किए गए वायदों को हम पूरा करेंगे ।

ऐसा लगता है कि मासूम से लगने वाले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री धामी भूल गए कि उत्तराखंड की जनता राज्य गठन के बाद की 22 साल की सरकारों द्वारा राज्य गठन की जनाकांक्षाओं को साकार करने के बजाय रौंदने से किए गए विश्वासघात से बेहद निराश व आहत हैं। उन्हें आशा थी उस नौजवान धामी से जो उत्तराखंड की ही माटी में पला, खेला व बडा हुआ। राज्य गठन आंदोलन के संघर्षों व दमनों की प्रतिध्वनि में राजनीतिक पाठशाला से उत्तीर्ण हुए नौजवान के हाथों में जब उत्तराखंड की बागडोर आई तो सबको विश्वास जगा कि अब उत्तराखंड राज्य गठन की जन आकांक्षाओं( राजधानी गैरसैण बनाने, खटीमा मसूरी मुजफ्फरनगर आदि कांडों के अभियुक्तों को सजा दिलाने, भू कानून -मूल निवास, जनसंख्या पर आधारित विधानसभा परिसीमन पर अंकुश लगाने, बागवानी फलोद्यान वन नीति व जंगली पशु नीति को नए ढंग से बनाने, राज्य गठन के समय परिसंपत्तियों के बंटवारे के नाम पर जो उत्तराखंड के हक हकूक और टिहरी बांध सहित आदि संसाधनों का बंदरबांट किया गया था उसको पुनः अर्जित करना, उत्तराखंड में घुसपैठियों व राजनैतिक,धार्मिक, जल, जंगल,जमीनी अपराधियों पर अंकुश लगाने, रोजगार बनाने व पलायन पर अंकुश लगाने), जिनको उत्तराखंड राज्य गठन के 22 साल की सरकारों ने बहुत ही निर्ममता से रौंदा है उनको साकार करने का भागीरथी काम उत्तराखंड का खटीमा का यही लाल पुष्कर सिंह धामी करेगा।
परंतु उत्तराखंड की जनता का यह दुर्भाग्य रहा कि उत्तराखंड का यह लाल भी उत्तराखंड राज्य गठन के इन 22 सालों के तमाम मुख्यमंत्रियों की तरह सत्ता मद में चूर होकर अपने स्वार्थों व दलीय नेताओं की सेवा में ही समर्पित रहा। वह राज्य गठन की जन आकांक्षाओं को साकार करने के लिए राज्य गठन के लिए अपना सबकुछ समर्पित करने वाले वरिष्ठ आंदोलनकारियों काम मार्गदर्शन लेने के बजाय सत्ता मठाधीशों, अवसरवादी चाटुकारों वह दिशाहीन नौकरशाहों के इशारों पर ही उत्तराखंड की जन आकांक्षाओं को नजरअंदाज करते रहे। चंद महीनों के पहले कार्यकाल में व नई विधानसभा गठित होने के 100 दिन के कार्यकाल में सरसरी तौर पर समीक्षा करने से साफ उजागर होता है कि उत्तराखंड के मुख्य सेवक कहलाने वाले धामी जी भी उत्तराखंड के हाथों को को सेवा करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्रियों की तरह उदासीन है। कहने को उत्तराखंड की प्रथम सरकार से आज तक सभी सरकारें पूरे दमखम के साथ दावा करती हैं कि वह उत्तराखंड राज्य गठन के आंदोलनकारी व शहीदों के सपनों का सम्मान करते हैं। परंतु हकीकत यह है की उत्तराखंड की तमाम मुख्यमंत्रियों की तरह वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड राज्य गठन आंदोलन के समर्पित आंदोलनकारियों से मिलने से भी कतराते हैं कई बार उनको लिखित ज्ञापन दिए जा चुके हैं देश की राजधानी में उत्तराखंड राज्य गठन आंदोलन का ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित करने वाले उत्तराखंड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष देव सिंह रावत, समर्पित आंदोलनकारी खुशहाल सिंह बिष्ट, मनमोहन शाह व अनिल पंत इस बात से बेहद आहत है कि एक तरफ उत्तराखंड की सरकार है राज्य गठन आंदोलनकारियों के सम्मान करने आदि का ढिंढोरा पिटती है दूसरी तरफ वह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सरकार द्वारा चयनित 350 समर्पित आंदोलनकारियों को चिन्हीकरण करने के लिए तैयार नहीं है। वर्षों से आंदोलनकारियों का निरंतर किए जा रहे अपमान से खिन्न होकर आंदोलनकारियों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी व उनके कार्यालय में कई बार ज्ञापन दे चुके हैं। परंतु अभी तक सरकार आंदोलनकारियों को चिन्हीकरण करने का काम नहीं कर कर पाई ।बार-बार मुलाकात के लिए समय मानने के बावजूद मुख्यमंत्री आंदोलनकारियों का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे है। उल्टा सरकार ने आंदोलनकारियों को अपमानित करने के लिए 2008 व 2017 में घोषित किए गए चिन्हीकरण के मापदंडों में भी बदलाव कर अवरोध खड़े कर दिए। उत्तराखंड राज्य के लिए संसद की चौखट जंतर मंतर पर 6 साल तक ऐतिहासिक संघर्ष करने वाले उत्तराखंड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष देव सिंह रावत ने कई बार पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित वर्तमान मुख्यमंत्री धामी को आमने सामने व ज्ञापन देकर उत्तराखंड राज्य गठन आंदोलनकारियों को अपमानित करने वाली मापदंडों व नौकरशाही प्रवृत्ति को त्याग कर राज्य गठन आंदोलनकारियों की सुधि लें तथा उनका सकारात्मक सहयोग राज्य नव निर्माण में लेने का अनुरोध किया था। परंतु सत्ता मद में चूर उत्तराखंड वर्तमान सहित सभी पूर्व मुख्यमंत्री राज्य गठन की जन आकांक्षाओं को साकार करना तो रहा दूर अपितु उनका नाम तक सुनने तक के लिए तैयार नहीं है।

भले ही दलीय बंधुआ मजदूर, अवसरवादी तत्व, अंध भक्त व भ्रष्टाचारी जमात पूर्व मुख्यमंत्रियों की तरह वर्तमान मुख्यमंत्री के विकास कार्यों के कसीदे पढ़ कर उन्हें विकास पुरुष, धाकड़ नेता व अन्य अन्य उपाधियां दे रहे हैं। परंतु जमीनी हकीकत यह है कि बेरोजगारी का दंश नौजवानों की छाती में दाल दल रहा है। नौजवान परेशान हैं। आंदोलनकारी खुद को अपमानित महसूस कर रहे हैं। भ्रष्टाचारी, अपराधियों, हिंसक पशुओं व घुसपैठियों से प्रदेश की जनता त्रस्त है। राजधानी गैरसैंण आदि जन आकांक्षाओं को साकार न किए जाने के कारण प्रदेश का सीमांत क्षेत्र पलायन की आंधी से व्यथित है। वहीं सत्ता मद में चूर उत्तराखंड के हुक्मरान देहरादून में पंचतारा सुविधाओं की खुमार में कुंभकरण की नींद में बेहोश हैं।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री धामी को यह नहीं भूलना चाहिए कि कि वह उत्तराखंड के प्रथम सेवक हैं ।धामी भी पूर्व मुख्यमंत्रियों की तरह खुद को अपने राजनीतिक दल व नेताओं का ही सेवक समझने लगे हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री धामी को यह नहीं भूलना चाहिए कि उत्तराखंड राज्य गठन करने के लिए उत्तराखंड की जांबाज जनता ने राव मुलायम जैसे कुशासकों के खिलाफ जो ऐतिहासिक संघर्ष व दमन सहा था वो उत्तराखंड के मान सम्मान की रक्षा के साथ उत्तराखंड की जन आकांक्षाओं के साकार करने के लिए किया था। न की किसी स्वामी कोश्यारी, तिवारी, खंडूरी, निशंक, बहुगुणा, रावतों व धामी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए । धामी जी के पास अभी भी समय है वह उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण बनाकर व अन्य जन आकांक्षाओं को साकार कर खुद को उत्तराखंड के प्रथम सेवक साबित कर सकते हैं। धामी जी को यह बात समझ लेनी चाहिए कि सत्ता किसी भी व्यक्ति के पास सदा के लिए नहीं होती है। समय रहते हुए जो व्यक्ति जन आकांक्षाओं को साकार करने का काम करता है उसी को देश की जनता हिमाचल की परमार की तरह वर्षों तक श्रद्धा से याद करती है।

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