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अग्निवीर योजना के खिलाफ राष्ट्रव्यापी युवाक्रोश को रोकने के लिए प्रधानमंत्री मोदी तुरंत अग्निवीर योजना को रोक कर नियमित भर्ती जारी करें

#अग्निवीर प्रकरण में देशव्यापी हिंसा के लिए हिंसक उपद्रवियों से कम गुनाहगार नहीं है सरकार व समाचार जगत

देवसिंह रावत

सरकार द्वारा देश की सेनाओं व सुरक्षा के लिए बताई जाने वाली अग्निवीर योजना के खिलाफ जिस प्रकार से देशव्यापी युवा जनाक्रोश सड़कों पर भड़का उसके कारण देश में बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, तेलंगाना सहित अनेक राज्यों में व्यापक हिंसा आगजनी की घटनाएं हुई।
1 दर्जन से अधिक रेलगाड़ियां उपद्रवियों द्वारा जलाई गई। सीखना रेलगाड़ियां रद्द की गई। अनैक बसें सहित सार्वजनिक संपत्तियों को नष्ट किया गया। देश के अनेक भागों में आगजनी, रेल संपत्ति को नुकसान पहुंचाना व कार्यालयों पर हमला आगजनी की खबरें आने से पूरे देश को चिंता में डाल दिया है। देश की जनता इस प्रकरण व राष्ट्र घाती अराजकता से स्तब्ध है। लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि आखिर इस हिंसा का गुनाहगार कौन है? क्यों लोग देश में अपनी संपत्ति को ही जला रहे हैं?
इस मामले में आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं। केंद्र सरकार व सत्तारूढ़ भाजपा देश की सुरक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण अग्निवीर योजना के खिलाफ इस हिंसा के लिए जहां विपक्षी दलों व असामाजिक तत्वों के साथ कुछ कोचिंग संस्थानों को मुख्य गुनाहगार बता रही है।
वह इस आंदोलनकारी छात्र युवा व विपक्षी दल इस हिंसा के लिए सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार को गुनाहगार बता रही है। जिसने बिना सोचे समझे देश की सुरक्षा व युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ कर अग्निवीर योजना को देश पर बिना सोचे समझे अचानक थोपे दिया।

देश में कई आंदोलनों में कई वर्षों के जमीनी अनुभव के आधार पर मेरा एक साफ नजरिया है कि अधिकांश आंदोलनों की तरह इस अग्निवीर प्रकरण में भी हो रही देशव्यापी हिंसा के लिए हिंसक उपद्रवियों से कम गुनाहगार नहीं है सरकार व समाचार जगत।
दशकों से आंदोलनों का सहभागी रहने के अनुभव के साथ इस पर गहन अध्ययन के पश्चात मेरा साफ मानना है कि देश का अधिकांश शासन तंत्र, राजनीतिक दलों और सरकारें जनता की जनहित देश हित व व्यक्तिगत हितों की जायज मांगों को भी निर्मलता से नजरअंदाज करती है। ऐसा ही लोकतांत्रिक नजरिया देश के समाचार जगत का भी है। देश का समाचार जगत भी न तो देश हित, जनहित व न्यायार्थ जायज शांतिपूर्ण मांगों व आंदोलन की तरफ ध्यान देता है। समाचार जगत भी केवल उन खबरों को अधिकांश दिखाता है जिसमें आंदोलनकारी मजबूरन हिंसक हो जाते हैं । कुछ राष्ट्र विरोधी आंदोलनों को छोड़कर अधिकांश आंदोलनों को हिंसक बनाने के लिए शासन प्रशासन का अलोकतांत्रिक, अमाननीय व तानाशाह रवैया के साथ समाचार जगत द्वारा की उपेक्षा भी जिम्मेदार होता है। सरकार की तरह ही समाचार जगत भी प्राय शांतिपूर्ण आंदोलनों के बजाय हिंसक आंदोलनों को ही वरीयता देते हैं।

एक तरफ सरकार इस जनाक्रोश की मूल भावनाओं को समझने की कोशिश न करते हुए इस आदमी भी योजना को जल्दी शुरू करने उम्र सीमा बढ़ाने वह अर्धसैनिक बलों में अग्नि वीरों को आरक्षण देने का ऐलान कर युवाओं में जनाक्रोश भड़का रही है।
सरकार की योजना के खिलाफ देश में उपजे आक्रोश को ही समझने के लिए कोशिश ही नहीं कर रही हैं। वह इतना भी नहीं समझ रही है कि देश का युवा किसी अग्निवीर में सम्मलित होने के लिए तैयार नहीं है। वह देश की रक्षा के लिए अग्निवीर नहीं देश का जांबाज़ सैनिक बनने के लिए तत्पर है। एक जांबाज सैनिक का जो सम्मान देश व समाज में है वह उसी को पाना चाहता है ना कि अग्निवीर की तरह बंधुआ मजदूर बनना पसंद करेगा। ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति वर्तमान में है कि एक सैनिक शिव विवाह करने के लिए योग्य कन्याएं तत्पर रहती हैं परंतु वहां रोजगार विहीन धनी युवक से भी अधिकांश कन्याएं शादी करने के लिए तैयार नहीं है। ऐसी मैं विवाह की उम्र में ही सेना से विदा होने वाले अग्निवीर की क्या दशा होगी इसका सहज ही आंकलन ही किया जा सकता है।
सरकार व उसके तंत्र को शायद सेना में भर्ती की आस लगाकर वर्षों से इसकी तैयारी में जुटे हैं युवाओं की भावना वह भविष्य का शायद ही ख्याल है। युवाओं का आक्रोश समझा जा सकता है। कोरोना काल से अब तक
सेना में होने वाली बड़े स्तर पर नियमित भर्तियां ना होने से युवा चिंतित थे उनको आशा थी कि अब इस समय
सरकार सेना में रिक्त पड़े हजारों पदों के लिए तुरंत नियमित भर्ती युद्ध स्तर पर करेगी। परंतु सरकार ने नियमित भर्ती जारी करने के बजाए अग्निवीर जैसी 4 वर्षीय अस्थाई रोजगार की योजना लाकर देश के ग्रामीण युवाओं की आशाओं पर एक प्रकार से बज्रपात कर दिया। रोजगार के नाम पर सरकार द्वारा किये जा रहे विश्वासघात आहत व निराश युवाओं की जख्मों को सरकार ने अग्निवीर योजना थोप कर उनके आक्रोश को सातवें आसमान पहुंचा दिया ।जिसकी परिणीति यह है।
भले ही सरकार युवाओं के जनाक्रोश के लिए विरोधी दलों व कोचिंग संस्थानों को युवाओं को भड़काने का आरोप लगा रही हैं। इसका एकांश हो सकता है सत्य भी हो जहां तक विपक्षी दलों की बात है विपक्षी दलों का संवैधानिक दायित्व होता है सरकार की हर उस योजना का विरोध करें जो देश व जनहित में ना हो रही बात कोचिंग संस्थानों की उनका भविष्य भी युवाओं के रोजगार से ही जुड़ा हुआ है। उनकी चिंता को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता ।जो काम सरकारी संस्थाओं ने करना था वह काम युवाओं को रोजगार के लिए मार्गदर्शन व तैयारी करने का काम देश की विभिन्न कोचिंग संस्थाएं कर रही है। जो सरकार के निकम्मेंपन का ही प्रतीक है। अपने कमजोरियों के लिए कोचिंग संस्थानों पर अंगुली उठाना सरकार के लिए उचित नहीं है।
सरकार भले ही उस योजना में अनेक लाभ आरक्षण इत्यादि की घोषणा कर रही है परंतु जमीनी हकीकत या है कि देश में सेना व अर्धसैनिक बल सहित सरकारी कार्यालय में लाखों रिक्त पड़े पदों पर नियुक्ति अभियान जारी करने को तैयार नहीं है। इससे देश में बेरोजगारी निरंतर बढ़ रही है और देश के युवाओं में आक्रोश भी।
सरकार मंगरेरा, संविदा इत्यादि में भले ही हजारों जरूरतमंदों को अस्थाई रोजगार देकर रोजगार का ढोल पीट रही है परंतु इस बढ़ती महंगाई व शिक्षा चिकित्सा न्याय मैं अपना स्थान न पाकर समाज में असमानता वह असंतोष निरंतर बढ़ रहा है। युवाओं के असंतुष्ट पर उंगली उठाने से पहले सरकार को तमाम रोजगार भर्तियों कीरो की गई परीक्षा परिणाम नियुक्तियों को जारी कर देना चाहिए जिससे युवाओं का विश्वास सरकारी घोषणाओं पर हो सके।

सरकार वास्तव में देश की सुरक्षा के प्रति चिंतित है तो उसे देश की वर्तमान असुरक्षा की के वातावरण को जरूर ध्यान में रखना चाहिए था। देश के ऊपर न केवल इस समय पाकिस्तान और चीन का खतरा मंडरा रहा है अपितु जिस प्रकार से 57 इस्लामिक देशों ने वह अफगानिस्तान आदि आतंकी संगठनों ने भारत को सबक सिखाने के लिए कमर कसी हुई है उसको देखते हुए भारत को अपनी सेना में मजबूती प्रदान करने के बजाए अग्निवीर जैसी अव्यवहारिक व विवाददस्त योजना को किसी भी सूरत में लागू नहीं करना चाहिए था। सरकार को अगर सच में देश में अगली वीरों की जरूरत है तो इस योजना को नियमित सैनिक भर्ती से नहीं जोड़ना चाहिए था।

इस देशव्यापी हिंसा व अराजकता को रोकने के लिए सरकार को अपनी हठधर्मिता व अहम छोड़कर तत्काल इस योजना पर विराम लगाना चाहिए। इसके साथ अग्निवीर भर्ती शुरू करने के बजाय नियमित भर्ती जारी रखने का ऐलान करते हुए नियमित भर्ती तत्काल शुरू करना चाहिए।
देश के युवाओं से शांति की मांग करने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री मोदी को देश के युवाओं से शांति बनाए रखने की अपील के साथ नियमित भर्ती जारी रखने व अग्निवीर योजना को स्थगित करने का आश्वासन देना चाहिए। हालांकि सरकार इस मुद्दे को सुलझाने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ हुआ तीनों सेनाओं के प्रमुख गहन मंत्रणा कर रहे हैं और उसके बाद अग्नि वीरों को दी जाने वाली सुविधाओं का छूट का और भविष्य की प्रति उनके रोज़गार की व्यवस्था का आश्वासन दे रहे हैं। जो युवाओं के आक्रोश को कम करने के बजाय बढ़ाने वाला ही साबित हो रहा है ।इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश की सुरक्षा वह व्यापक जनहित को देखते हुए देश के युवाओं को संबोधित करना चाहिए।
सरकार अगर अपनी योजना को जारी भी रखना चाहती है तो इसको नियमित सैनिक भर्ती से हटकर जारी रखें। इसमें एक शर्त और भी लगा सकती है सरकार कि देश में सरकारी सेवाओं में व राजनीति में उसी व्यक्ति को सम्मानजनक पद मिलेगा जो अग्निवीर के रूप में देश की सेना की सेवा करेगा। सेना व नागरिक अधिकारियों को भी तभी देश में रोजगार मिलेगा जब वह अग्निवीर बनकर देश की सेवा करेगा। परंतु सरकार के नीति निर्धारकों ने जिस प्रकार से नियमित भर्ती के स्थान पर सीमित अग्निबीरो का प्रयोग किया, वह देश की सुरक्षा के साथ देश के अमन-चैन के लिए सहायक नहीं है अपितु एक खतरा भी है।
जहां तक संसाधनों की कमी को दूर करने का सवाल है वहां सैनिकों को दी जाने वाली पेंशन व वेतन को धारण मानकर उनको देश की रीढ़ की हड्डी मानना चाहिए। चीनी सैनिकों के दम पर हम चीन की विशाल सेना आस्तीन के सांपों से देश की रक्षा कर रहे हैं। 23 की सेनाओं के बदौलत हम 57 देशों की धमकी को रौंद सकते हैं । जिस प्रकार का राष्ट्र विरोधी माहौल 23 की कश्मीर पंजाब बंगाल सहित कई स्थानों पर दिखाई दे रहा है उससे देश की रक्षा के लिए राजनीतिक दल नौकरशाह जिया काल बजाने वाले बुद्धिजीवी नहीं कर सकते हैं उस समय भी देश की सुरक्षा जाबाज सैनिक व अर्धसैनिक बल ही कर सकेंगे खासकर जिस प्रकार से यूक्रेन रूस युद्ध चल रहा है और ताइवान चीन में युद्ध किसी भी पल हो सकता है ऐसे संकटकाल में भारत इस वैश्विक युद्ध से अछूता नहीं रहेगा ऐसे समय में भारतीय सेना को मजबूती देने के बजाय उसका मनोबल कमजोर करना मैं राष्ट्र हित में है ना तर्कसंगत है।

अगर संसाधनों की कमी देश को दूर करने के लिए सरकार को कदम उठाना जरूरी है तो सरकारी सेवाओं की अधिकारियों व राजनेताओं को दी जाने वाली लाखों करोड़ों रुपए के वेतन व भत्ते व पेंशन में भारी कटौती करके इस को दूर किया जा सकता है। जरूरत पड़ने पर देश का आम नागरिक सेनाओं को अत्याधुनिक हथियारों को लाने के लिए अपराध धन दौलत देने के लिए तैयार है कोई जरूरत है देश में ईमानदारी से सही दिशा में काम करने वालों की।
इसके साथ यह कठोर कदम भी उठाने चाहिए कि
– देश की रीढ़ सैनिकों के वेतन व पेंशन को देश पर भार मान कर इसमें कटौती का राष्ट्रघाती सलाह देने वाले नौकरशाहों व केवल अग्निवीर योजना को सेना में लागू कराने वालों को तत्काल पदमुक्त कर उनका वैतन पेंशन आदि ज़ब्त की जाय।
यहां एक बात साफ समझ लेना चाहिए कि यह अग्नि वीरों का विरोध मात्र में युवाओं को रोजगार के लिए नहीं अपितु यह देश की सुरक्षा का सबसे बड़ा सवाल है। दूरदर्शी स्वार्थी लोगों की सलाह पर सरकार को देश को खतरे में नहीं डालना चाहिए अब नहीं देश का आम नागरिक देश की सुरक्षा के प्रति उदासीन रह सकता है। क्योंकि देश में अमन चैन व विकास तभी संभव है जब देश की मजबूत सेनाएं देश को सुरक्षित रखती है। इसलिए सैनिकों को दिए जाने वाले वेतन व पेंशन आदि सुविधाओं को धार समझने वाले नरेश के हितेषी हैं ना लोकशाही के रक्षक। इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार से यही अपेक्षा देश का युवा व आम नागरिक करता है कि इस संक्रमण काल में जब चारों तरफ से दुश्मनों से घिरा हुआ है अग्निवीर जैसी विवादस्त योजनाओं को तत्काल बंद कर देश की सेनाओं की मजबूती के लिए युद्ध स्तर पर नियमित भर्तियां शुरू करें। अगर सरकार की इस घोषणा के बाद भी जो लोग देश में हिंसक आंदोलन जारी रखते हैं उनको देखते ही गोली मारने का आदेश जारी किया जाए। इससे स्पष्ट हो जाएगा कि उनकी निष्ठा न राष्ट्र में है ना अमन चैन में है। वे केवल इस देश को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। इसलिए उन्हें कड़ा दंड दिया जाना चाहिए। हमें विश्वास है देश का युवा प्रधानमंत्री से केवल रोजगार और देश को सुरक्षित रखने का आश्वासन के साथ क्रियान्वयन चाहता है।

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