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ग्रामीणों के सहयोग के बिना वन विभाग के भरोसे कैसे वनाग्नि से बचेगा उत्तराखंड, देहरादून में बैठकर मुख्यमंत्री जी ?

वनाग्नि से वनों को त्वरित बचाने के लिए ग्रामीणों के शताब्दियों से रहे वनाधिकार से युक्त करे सरकार

 

वृक्षारोपण का कार्य वन विभाग व एनजीओ को देने के बजाय स्थानीय ग्रामीणों को ही प्रदान करें सरकार।

*वनाग्नि से उत्तराखंड की रक्षा के लिए देहरादून में की मुख्यमंत्री ने उच्चाधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक

प्यारा उत्तराखंड डॉट कॉम व उत्तराखंड सूचना

2 मई 2022 सोमवार को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में देहरादून स्थित सचिवालय में प्रदेश में लगी भीषण वनाग्नि की रोकथाम करने के लिये विभागों के उच्च अधिकारियों व जिला अधिकारियों की समीक्षा बैठक आयोजित की गई।
इस भीषण वनाग्नि व सरकार की समीक्षा बैठक पर कड़ा प्रहार करते हुए उत्तराखंड राज्य गठन आंदोलन के वरिष्ठ आंदोलनकारी पत्रकार व अंतरराष्ट्रीय चिंतक देव सिंह रावत ने दो टूक शब्दों में कहा कि एक तरफ उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों में कई दिनों से विशाल जंगल धू धू कर जल रहे हैं। वहीं देहरादून में पंचतारा सुविधाओं में डूबी उत्तराखंड सरकार वनाग्नि का स्थाई समाधान ढूंढ कर त्वरित कार्रवाई करने के बजाय हर साल की तरह समीक्षा बैठक कर अपना कर्तव्य इतिश्री समझ रही है।
श्री रावत ने कहा कि उत्तराखंड सरकार को चाहिए था कि मुख्यमंत्री स्वयं उत्तराखंड की जनाकांक्षाओं की राजधानी गैरसैण व अपने मंत्रियों को विभिन्न जनपदों में डेरा जमा कर वनाग्नि नियत्रिंत करने के लिए जमीनी स्तर पर शासन प्रशासन को समर्पित करते।

प्रदेश के उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भीषण वनाग्नि से तबाह प्रदेश की रक्षा करने के लिए सचिवालय में संबंधित विभागों के अधिकारियों व वनाग्नि से प्रभावित जनपदों के जिलाधिकारियों से गहन विचार विमर्श हुआ निर्देश दे रहे थे । मुख्यमंत्री की सरपरस्ती में देहरादून में वनाग्नि की रोकथाम के संबंध में समीक्षा बैठक संपन्न हुई। मुख्यमंत्री ने निर्देश दिये कि वनाग्नि को रोकने के लिए वनाग्नि से प्रभावित जनपदों में शीघ्र वन विभाग के उच्चाधिकारियों को नोडल अधिकारी बनाया जाय। परंतु जब तक सरकार की कुंभकरण की नींद खुलती तब तक उत्तराखंड के विशाल जंगल इस भीषण वनाग्नि के भैंट चढ चूके थे।
श्री रावत ने कहा कि भले ही हर साल वनाग्नि के बाद सरकारें एक शाम वक्तव्य निर्देश जारी करती है कि वन विभाग अब इस भीषण अग्नि से जंगलों को बचाने के लिए स्थानीय जनता का सहयोग लेगी । परंतु फिर दूसरे साल समस्या विकराल से विकराल रूप में सामने आती है इससे साफ लगता है कि सरकारें इस समस्या का न तो स्थाई निदान ढूंढना चाहती है व न उसकी दिली इच्छा इस समस्या के निदान के प्रति है।
श्री रावत ने कहा कि राज्य गठन के बाद इन 22 सालों में अगर प्रदेश की एक भी सरकार इस समस्या के प्रति गंभीरता से चिंतन करती तो उसे साफ समझ में आता कि बिना स्थानीय ग्रामीणों के सहयोग से न वनों की रक्षा की जा सकती है न वनाग्नि से ही वनो को बचाया जा सकता है। परंतु सरकार स्थानीय ग्रामीणों को जोड़ें बिना प्रदेश की अकूत वन संसाधनों के लिए सफेद हाथी बन गये बेहद कमजोर वन विभाग के भरोसे ही प्रदेश की वन संपदा की रक्षा करना चाहता है। इसी कारण न प्रदेश की वनों की रक्षा हो रही है वह नहीं वनाग्नि पर नियंत्रण लग पा रहा है।
सरकार के कर्णधारों को सोचना चाहिए कि आखिर वन विभाग से पहले इन जंगलों की रक्षा ग्रामीण कैसे करते थे। आम ग्रामीण जंगलों को अपने बच्चों की तरह सुरक्षित रखते थे क्योंकि उनका पूरा जीवन ही वनों पर आश्रित था। किसी भी वन तस्करों की हिम्मत नहीं होती थी कि वह इन वनों में झांक भी पाये। जब से फिरंगी सरकार व उसके बाद आजाद भारत की सरकार ने वन विभाग बना कर स्थानीय लोगों को वन अधिकार से वंचित किया, तभी से प्रदेश के इन जंगलों में वन तस्करों व भीषण वनाग्नि की बाढ़ से वन संपदा निरंतर तबाह होती जा रही है।
इसलिए हिमालय राज्यों सहित उत्तराखंड को चाहिए कि स्थानीय ग्रामीणों के वनाधिकारों का सम्मान वापस लौटाते हुए उन्हें वनमित्र वनरक्षक घोषित किया जाए। इसके साथ सरकार वन विभाग के अधिकारी सहित कर्मचारियों को साफ निर्देश दें की स्थानीय ग्रामीणों का सम्मान करें। जब स्थानीय ग्रामीणों को वन विभाग के कर्मचारियों अपने हितेषी लगेंगे व वन मित्र लगेंगे तो स्थानीय ग्रामीण उनके उनका पर्याप्त सहयोग करेगा।

श्री रावत ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री धामी से अनुरोध किया कि अगर वह प्रदेश में इमानदारी से जंगलों की रक्षा व जनता का सहयोग चाहते हैं तो प्रदेश के पर्वतीय जनपदों में वृक्षारोपण आदि वन रक्षा की कार्यों को वन विभाग व एनजीओ से कराने के बजाय स्थानीय ग्रामीणों को ही प्रदान करें। इससे एक प्रकार से वनाग्नि पर अंकुश लगेगा सरकार। वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार व पलायन पर भी काफी हद तक अंकुश लगेगा।
इसके साथ मुख्यमंत्री धामी को देहरादून का मोह छोड़कर को प्रदेश की जन आकांक्षाओं व वन संपदा आदि की रक्षा के लिए प्रदेश की राजधानी गैरसैंण को तुरंत घोषित करना चाहिए। क्योंकि 22 सालों के अनुभव से साफ हो गया है कि लखनवी मानसिकता की तरह ही देहरादून की पंच तारा सुविधाओं की मानसिकता वाले नेता व नौकरशाह उत्तराखंड के हितों व जनाकांक्षाओं की रक्षा व सम्मान करने में पूरी तरह से विफल रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि आज देहरादून में आहूत की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री ने साफ निर्देश दिए कि जनपदों में डीएफओ द्वारा लगातार क्षेत्रों का भ्रमण किया जाए। वन विभाग, राजस्व, पुलिस एवं अन्य संबंधित विभागों के साथ ही जन सहयोग लिया जाए। महिला मंगल दल, युवक मंगल दल, स्वयं सहायता समूहों एवं आपदा मित्रों से भी वनाग्नि को रोकने में सहयोग लिया जाय। वनाग्नि को रोकने के लिए आधुनिकतमं तकनीक का प्रयोग किया जाए। रिस्पांस टाइम कम से कम किया जाए। चारधाम यात्रा के दौरान वनाग्नि की घटनाओं को रोकने के लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाय।

मुख्यमंत्री ने कहा कि वनाग्नि को रोकने के लिए शीतलाखेत (अल्मोड़ा) मॉडल को अपनाया जाय। शीतलाखेत के लोगों ने जंगलों और वन संपदा को आग से बचाने के शपथ ली। उन्होंने संकल्प लिया कि वे पूरे फायर सीजन में वे अपने खेतों में कूड़ा और कृषि अवशेष नहीं जलायेंगे। इस क्षेत्र में ग्रामीणों महिला मंगल दल और युवक मंगल दल ने ओण दिवस के रूप में जंगल बचाओ, पर्यावरण बचाओ की शपथ ली। वनाग्नि को रोकने के लिए दीर्घकालिक एवं अल्पकालिक दोनों योजनाएं बनाई जाए। दीर्घकालिक योजनाओं के लिए अनुसंधान से जुड़े संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों से समन्वय स्थापित कर योजना बनाई जाए। इकोनॉमी और ईकॉलॉजी का समन्वय स्थापित करते हुए कार्य किये जाए।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश के विकास के लिए एक नई कार्य संस्कृति एवं कार्य व्यवहार से सभी को कार्य करना होगा। वन सम्पदाओं के संरक्षण के साथ ही वन सम्पदाओं से लोगों की आजीविका को कैसे बढ़ाया जा सकता है, इस ओर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। पिरूल के एकत्रीकरण एवं उससे लोगों की आजीविका कैसे बढ़ाई जा सकती है, इसके लिए ठोस नीति बनाई जाए। राज्य में वन एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए ऐसा मॉडल तैयार किया जाए कि इसका संदेश देश-दुनिया तक जाए। वन्य जीवों की सुरक्षा एवं जल स्रोतों के संरक्षण के लिए प्रभावी प्रयासों की जरूरत है। वनाग्नि को रोकने एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता के लिए स्कूलों में करिकुलर एक्टिविटी करवाई जाए।

वन मंत्री श्री सुबोध उनियाल ने कहा कि वनाग्नि की घटनाओं को रोकने के लिए अधिकारी जन सहभागिता पर विशेष ध्यान दें। वन सम्पदाओं से लोगों की आर्थिकी को जोड़ने के लिए सुनियोजित रणनीति बनाई जाए। वन पंचायतों में फॉरेस्ट फायर मैनेजमेंट कमेटी बनाई जाए।

बैठक में अपर मुख्य सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी, प्रमुख सचिव आर. के सुधांशु, प्रमुख वन संरक्षक विनोद कुमार सिंघल, वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी, वर्चुअल माध्यम से गढ़वाल कमिश्नर सुशील कुमार एवं सभी जनपदों से जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक एवं डीएफओ उपस्थित थे।

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