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दिल्ली में कोई जरूरत नहीं है दिल्ली विधानसभा की, जरूरत है केवल दिल्ली नगर निगम को मजबूत करने की

देश को अराजकता व संवैधानिक संकट से बचाने के लिए जरूरी है 1956 की तरह फिर दिल्ली विधानसभा का समाप्त करने की

 

 

देव सिंह रावत

इन दिनों दिल्ली की राजनीति में घमासान मचा हुआ है। एक तरफ केजरीवाल देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी सहित भारतीय जनता पार्टी को ललकार रहे हैं। वहीं भारतीय जनता पार्टी के चाणक्य व देश के गृहमंत्री अमित शाह दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को संसद में दिल्ली की जनता के साथ विश्वासघात करने का आरोप लगा रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि जब से अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने वह निरंतर केंद्र सरकार व दिल्ली नगर निगम से गाहे-बगाहे टकराते रहते हैं। इससे न केवल दिल्ली के का विकास अवरुद्ध हो गया अपितु दिल्ली में कई बार संवैधानिक संकट उत्पन्न होता नजर आता है। जिसका खामियाजा दिल्ली की 2 करोड़ जनता और देश की शान को चुकाना पड़ता है।
दिल्ली सरकार के मुखिया अरविंद केजरीवाल व देश के गृह मंत्री अमित शाह के बीच चल रहा है यह वाक युद्ध खबरिया चैनलों से लेकर सड़क व संसद में साफ दिखाई दे रहा है।
ताजा विवाद का मुख्य कारण है दिल्ली नगर निगम के आम चुनाव। नियमानुसार 18 मई 2022 तक दिल्ली नगर निगम का गठन हो जाना चाहिए। पांच राज्यों की विधानसभा चुनाव के संपन्न होने के बाद ऐसी आशा की जा रही थी कि अब दिल्ली नगर निगम का चुनाव होगा।
पंजाब विधानसभा के चुनाव में भारी सफलता अर्जित करने के बाद दिल्ली सरकार में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी को आशा थी कि वह इस बार दिल्ली के तीनों नगर निगमों के चुनाव में भी अपना परचम लहरायेगी।
दिल्ली नगर निगम के चुनाव में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी का मुख्य मुकाबला केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी से होना तय माना जा रहा था हालांकि यहां पर कांग्रेस भी मजबूती से दिल्ली नगर निगम में काबिज होने की हुंकार भर रही है।
दिल्ली में नगर निगम पर अपना परचम लहराने के लिए भारतीय जनता पार्टी व आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस भी कमर कैसे हुई थी ।तीनों पार्टियां बड़ी बेसब्री निर्वाचन आयोग दिल्ली नगर निगम के आम चुनाव का एलान का एलान करता इससे पहले
गृह मंत्रालय ने दिल्ली नगर निगम के तीनों नगर निगमों को एकीकरण करके चुनाव कराने का प्रस्ताव निर्वाचन आयोग के पास भेज दिया ।इसी को देखते हुए निर्वाचन आयोग ने चुनाव ऐलान की तमाम कार्यवाही कुछ समय के लिए स्थगित कर दी। इसकी खबर पाते ही दिल्ली नगर निगम के चुनाव में फतह के हसीन सपने देख रहे आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने सीधे-सीधे प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती देते हुए कहां की भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली नगर निगम चुनाव में हार नए की आशंका के कारण चुनाव को एकीकरण के नाम पर डाल दिया है उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती देकर कहा कि भाजपा ने दिल्ली नगर निगम में संभावित हार को देखते हुए चुनावी जंग में उतरने का साहस नहीं जुटा पा रही है। केजरीवाल ने भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी में अगर दम है तो वह आम आदमी पार्टी का मुकाबला करें अगर भारतीय जनता पार्टी युवा चुनाव जीत जाएगी तो अरविंद केजरीवाल सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लेगा।

वहीं दिल्ली नगर निगम को और मजबूती वह जन सेवा में समर्पित करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने शुक्रवार 31 मार्च 2022 को लोकसभा में दिल्ली नगर निगम संशोधन विधेयक 2022 को पेश किया। इस विधेयक को पेश करने पर आम आदमी पार्टी सहित अनेक विरोधी दलों के विरोध को हास्यास्पद बताते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्षी दलों के विरोध को वाहियात बताते हुए साफ किया कि अभी तक उन्होंने तमाम दिल्ली नगर निगम के तीन भागों में बांटे जाने के सभी दस्तावेज खंगाले परंतु उनको कोई ऐसा तथ्य नहीं मिला जिसके कारण दिल्ली नगर निगम को तीन भागों में विभक्त करने की जरूरत महसूस हुई । आरोप है कि अरविंद केजरीवाल कि दिल्ली सरकार के गैर संवैधानिक कृत्य के कारण दिल्ली वित्त आयोग द्वारा दिल्ली नगर निगम के लिए संस्तुत की गई 40000 करोड़ की सहायता भी दिल्ली सरकार ने नहीं दी। जिसके कारण दिल्ली नगर निगम को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं दिया जा सका व दिल्ली नगर निगम पर 11000 करोड़ से अधिक का घाटा वहन करना पड़ा। उल्लेखनीय है कि दिल्ली में दिल्ली नगर निगम के करीब 160000 कर्मचारी कार्यरत हैं ।अगर अरविंद केजरीवाल की सरकार दिल्ली नगर निगम को उसके हिस्से का 40000 करोड रुपए का भुगतान कर देती तो दिल्ली नगर निगम 22 हजार करोड़ के लाभ पर संचालित होती।
संसद में प्रस्तुत दिल्ली नगर निगम संशोधन विधेयक 2022 के तहत केंद्र सरकार अब दिल्ली के तीनों नगर निगमों को पहले की तरह एक नगर निगम के तहत ही संचालित करेगी। वर्तमान में दिल्ली के तीनों नगर निगमों में पार्षदों की संख्या 272 है ।जिसको अब 250 तक सीमित किया जाएगा। नए नगर निगम के अनुसार जहां पार्षदों के क्षेत्रों का नया सीमांकन होगा। वही अनुसूचित जाति व महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों में बदलाव भी होगा ।जब तक नवगठित नगर निगम की पहली बैठक आयोजित नहीं होती है, तब तक के लिए एक विशेष अधिकारी यानी प्रशासक की नियुक्ति की गई
है।
यहां सवाल यह खड़ा हो रहा है कि दिल्ली प्रदेश में चल रही इस प्रकार की राजनीति से देश व दिल्लीवासियों को कैसे निजात दिलाया जाए?
दिल्ली जैसे देश की राजधानी जो इस प्रकार से विश्व की महानगरी भी है उसमें बेवजह के सरकारों के आपस में टकराव के कारण उत्पन्न संवैधानिक संकट व अराजकता किसी भी सूरत में सर उठाने नहीं दी जा सकती है ।इससे जहां देश की किरकिरी होती है ।वहीं नागरिक अधिकारों का भी हनन होता है तथा देश की लोकशाही कमजोर होती है।
सबसे बड़ा सवाल यह है क्या दिल्ली जैसे देश की राजधानी में किसी प्रांतीय सरकार की जरूरत है? संविधान निर्माताओं ने इसी समस्या को सहायक ध्यान में रखते हुए दिल्ली को पूर्ण विधानसभा से वंचित रखा हुआ था क्यों दिल्ली में आम नागरिक सुविधाओं की देखरेख के लिए जहां दिल्ली नगर निगम बखूबी से सक्षम है वहीं विश्व नगरी क्षेत्र दिल्ली में चहुमुखी विकास के लिए नई दिल्ली नगरपालिका भी कार्यरत है। वहीं दिल्ली के कानून व्यवस्था व अन्य विकास के लिए केंद्र सरकार बखूबी से अपना कार्य संपादन करती है।
परंतु दिल्ली के राजनीतिक दलों से जुड़े नेताओं की महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए दिल्ली में सीमित अधिकारों की विधानसभा का भी सर्जन किया गया 17 मार्च 1952 को सी वर्गीय राज्य सरकार अधिनियम 1951 के तहत प्रथम दिल्ली विधानसभा का गठन किया गया। कांग्रेस के नेता चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के प्रथम मुख्यमंत्री रहे। दिल्ली में विधानसभा का कोई औचित्य ना देखते हुए केंद्र सरकार ने 1 अक्टूबर 1956 को दिल्ली में विधानसभा समाप्त कर दी।
दिल्ली में भाजपा कांग्रेस सहित तमाम दलों के नेताओं के आग्रह पर 1991 में पुनः देश का 69 वां संविधान संशोधन करके केंद्र शासित दिल्ली में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा को गठन किया गया।
इस इस राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के पहली विधानसभा का चुनाव 1993 में हुआ, जिसमें भारतीय जनता पार्टी सत्तासीन हुई। भाजपा सरकार के पहले मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना बने परंतु भारतीय जनता पार्टी के आला नेतृत्व दिल्ली के मजबूत जमीनी नेता मदन लाल खुराना से नाखुश से इसलिए साहिब सिंह वर्मा को बनाया गया और इसके बाद विधानसभा के शेष कार्यकाल के लिए सुषमा स्वराज को भी मुख्यमंत्री बनाया किया। भाजपा नेताओं की आपस की खींचतान से जनता ना खुश रही इसलिए 1998 में हुए दूसरी विधानसभा के चुनाव में जनता ने कांग्रेस को दिल्ली की सत्ता सौंप दी और दिल्ली कि मुख्यमंत्री दिल्ली के तमाम स्थानीय नेताओं को दरकिनार करते हुए कांग्रेस नेतृत्व ने शीला दीक्षित को दिल्ली की मुख्यमंत्री बनाया। शीला दीक्षित के कार्यों से जनता खुश रही । इसी कारण जनता ने 2003 और 2008 यानी तीसरी और चौथी विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को विजयी बनाया। दिल्ली के विकास में खासकर यमुनापार और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में शीला दीक्षित का महत्वपूर्ण योगदान रहा। हालांकि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए अन्ना हजारे व केजरीवाल के जनलोकपाल आंदोलन के कारण कांग्रेस को 2013 में पांचवी विधानसभा के चुनाव में केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी से मात खानी पड़ी। 2013 के चुनाव में आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता में काबिज हुई अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। 2015 में केजरीवाल सरकार द्वारा इस्तीफा देने के कारण हुए दिल्ली विधानसभा के चुनाव में अरविंद केजरीवाल की पार्टी को भारी बहुमत मिला। चुनाव में बहुमत पाते ही अरविंद केजरीवाल ने रंग दिखाना शुरू किया और दिल्ली की स्थिति को नजरअंदाज करते हुए अपनी महत्वकांक्षा के लिए दिल्ली विधानसभा को पूर्ण राज्य की दर्जा दिए जाने की मांग पर केंद्र से सीधा टकराव का रास्ता चुना। जिससे दिल्ली की स्थिति बद से बदतर हो गई। सफाई की जगह दिल्ली में यत्र तत्र गंदगी का अंबार खड़ा हो गया सफाई कर्मचारियों और नगर निगम के कर्मचारियों को भी समय पर वेतन नहीं मिला। इस टकराव से दिल्ली में जहां कई बार संवैधानिक संकट खड़ा हो गया दिल्ली सरकार दिल्ली नगर को नगर निगम को दिए जाने वाले धन को रोक कर दिल्ली में व्यवस्था को चरमराने का काम करने लगी। यही नहीं केजरीवाल अपने महत्व कान्हा के लिए संप्रदायिक तुष्टिकरण करने में जुट गए अपने जनलोकपाल आंदोलन की बातों को भूल कर मात्र सत्ता में बने रहने के लिए कांग्रेस व भाजपा की तरह तिकड़म करने लग गए। भले ही अरविंद केजरीवाल का दल आम आदमी पार्टी पंजाब में सत्तासीन हो गए हो, परंतु केजरीवाल का गुप्त एजेंडा जो उनके करीबी मित्र कुमार विश्वास ने बेनकाब किया उससे साफ होता है कि अरविंद केजरीवाल की राजनीति न केवल दिल्ली पंजाब के लिए घातक है। अपितु यह देश के लिए यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की तर्ज पर ही राष्ट्रघाती भी साबित हो सकती है। ऐसा नहीं कि इससे पहले दिल्ली में कोई मुख्यमंत्री कार्य नहीं कर रहे थे दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस की सरकार ने लंबे समय तक रही परंतु किसी ने भी अरविंद केजरीवाल की तरह संवैधानिक संकट व अराजकता खड़ी करके दिल्ली के लोगों का जीना दुश्वार नहीं किया। शायद ऐसी ही परिस्थितियों की आशंका के कारण संविधान निर्माताओं ने दिल्ली में पूर्ण राज्य का दर्जा वाली विधानसभा के गठन पर अपनी सहमति नहीं दी। वैसे भी देखा जाए तो दिल्ली में विधानसभा का कोई औचित्य ही नहीं है। दिल्ली की साफ-सफाई, शिक्षा, चिकित्सा, सड़क, बिजली, पानी व विकास इत्यादि का कार्य दिल्ली नगर निगम बखूबी से करता है। रही बाकी कसर नई दिल्ली नगर पालिका व केंद्र सरकार अपना दायित्व का निर्वहन दिल्ली के चौमुखी विकास के लिए करते रहते हैं। वैसे भी दिल्ली में कानून व्यवस्था व दिल्ली विकास प्राधिकरण केंद्र सरकार के अधीन कार्य करता है। ऐसी स्थिति में दिल्ली विधानसभा जो सीमित अधिकारों वाली होती है वह केवल राजनीतिक दलों के चंद नेताओं की नेतागिरी को चमकाने का माध्यम मात्र रह गई है। जिस प्रकार से अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली दंगों में लिप्त अपने दल के नेताओं के प्रति व कश्मीर आतंकवाद से पीड़ितों के प्रति अपनाया हुआ है वह देश व मानवीय मूल्यों के प्रति बहुत ही शर्मनाक स्थिति है। ऐसी स्थिति में दिल्ली विधानसभा को बनाए रखना ना देश के हित में है व नहीं दिल्ली वासियों के हित में। केंद्र सरकार को चाहिए कि वहां दिल्ली नगर निगम के एकीकरण करने के साथ-साथ दिल्ली विधानसभा को 1956 की तरह ही समाप्त करके देश को संवैधानिक संकट व अराजकता से बचाने के संवैधानिक दायित्व निर्वहन करे। आखिर चंद लोगों की सता लो लूटा और नेतागिरी के लिए देश संवैधानिक संकट अराजकता को क्यों बढ़ावा दे।

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