उत्तराखंड देश

मोदी व योगी की उपस्थिति में धामी ने ली मुख्यमंत्री की शपथ

# सतपाल महाराज, प्रेमचंद्र अग्रवाल, धन सिंह रावत, गणेश जोशी, सुबोध उनियाल, रेखा आर्य ,चंदन राम दास व सौरभ बहुगुणा ने मंत्री पद की शपथ

प्रचंड मोदी लहर में भी हारे हुए धामी को ही इसलिए बनाया मोदी ने उत्तराखंड मुख्यमंत्री!

देव सिंह रावत

भले ही आज 23 मार्च 2022 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने छुपी हुई राजधानी देहरादून के विशाल परेड ग्राउंड में एक भव्य समारोह में प्रधानमंत्री मोदी व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी की उपस्थिति में उत्तराखंड के 11 में मुख्यमंत्री की शपथ ली। इस समारोह मैं प्रदेश के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने तमाम वरिष्ठ नेताओं, नवनिर्वाचित विधायकों व हजारों जनता की उपस्थिति में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली इस समारोह में मुख्यमंत्री के अलावा सतपाल महाराज, प्रेमचंद अग्रवाल, गणेश जोशी, धन सिंह रावत, सुबोध उनियाल सुबोध उनियाल रेखा आर्य, चंदन राम दास ंमत्रियों ने भी पद और गोपनीयता की शपथ ली। हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुई इस शपथ ग्रहण समारोह में केंद्रीय पर्यवेक्षक व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी केंद्रीय प्रभारी दुष्यंत गौतम सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे।
उल्लेखनीय है कि 10 मार्च को अन्य चार राज्यों के साथ उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 की मतदान की मतगणना हुई इसमें उत्तराखंड सहित 4 राज्यों उत्तर प्रदेश, मणिपुर व गोवा में भाजपा की विजय हुई। वहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी को भारी सफलता मिली।
परंतु उत्तराखंड की जनता के ही नहीं पूरे देश के जागरूक जनता के दिलों दिमाग में एक ही प्रश्न रह रहे हैं कर उठ रहा है कि आखिर वह कौन सी मजबूरी थी या क्या कारण था जो प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में प्रचंड मोदी की लहर में भी अपनी दो बार ही चुके परंपरागत विधानसभा सीट खटीमा से हारे हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को ही भारी बहुमत वाले भाजपा सरकार का नया मुख्यमंत्री बनाया?

उल्लेखनीय है कि जैसे ही 21 मार्च की शाम 5:00 बजे उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में प्रचंड बहुमत से जीते भारतीय जनता पार्टी विधायक मंडल की बैठक में केंद्रीय मंत्री व उत्तराखंड भाजपा विधायक मंडल की बैठक के लिए भाजपा आलाकमान द्वारा भेजे गये केंद्रीय पर्यवेक्षक राजनाथ सिंह ने ऐलान किया है कि पुष्कर सिंह धामी ही होंगे उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री। विधायक मंडल ने सर्वसम्मति से पुष्कर सिंह धामी को चुना है। उससे ही 10 मार्च को हुई मतगणना के बाद लग रही तमाम अटकलों पर विराम लग गया कि उत्तराखंड का नया मुख्यमंत्री कौन होगा?

मतगणना के दिन से मुख्यमंत्री के नाम के ऐलान के दौरान इन 10 दिनों में उत्तराखंड वह देश की जनता के दिलों दिमाग में एक प्रश्न यह भी था कि उतराखंड में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर किस की बंशी बजवायेंगे मोदी?
हां जैसे ही उत्तराखंड के जनमानस को यह भनक लगी के आनन-फानन में उत्तराखंड के वरिष्ठ भा ज पा विधायक वंशीधर व मदन कौशिक को भाजपा आलाकमान ने दिल्ली बुला रखा है वैसे ही लोगों के मन में प्रश्न उठा कि क्या रामलीला में दशरथ के पाठ का वर्षों से मंचन कर रहे बंशीधर भगत या मदन कौशिक को भारतीय जनता पार्टी उत्तराखंड का नया मुख्यमंत्री बनाएगी?
भारतीय जनता पार्टी मैं कौन मुख्यमंत्री बनेगा इसकी कायस खबरिया चैनलों से लेकर समाचार पत्रों व इंटरनेट की दुनिया में निरंतर चल रही थी। लोग हैरान थे कि उत्तराखंड छोटा सा प्रदेश आखिर यहां मुख्यमंत्रियों की के दावेदारों की इतनी भरमार कैसे हैं ?ऐसा लग रहा था कि हर विधायक भी मुख्यमंत्री का दावेदार बना हुए थे।
सवाल उठता है कि इतने दावेदारों वह अनुभवी विधायकों व नेताओं के होते हुए भी प्रधानमंत्री मोदी ने क्यों मुख्यमंत्री पद पर हारे हुए व्यक्ति धामी को मुख्यमंत्री पद पर आसीन किया ? जो मुख्यमंत्री रहते हुए व मुख्यमंत्री के प्रत्याशी घोषित होने पर भी प्रचंड मोदी लहर के बावजूद अपनी विधानसभा सीट खटीमा से अपने विरोधी से चुनाव हार गया हो।
ऐसा भी नहीं कि धामी ने योगी की तरह प्रदेश में कोई महत्वपूर्ण कार्य अपने संक्षिप्त कार्यकाल में किए हो। महत्वपूर्ण कार्य करना तो रहा दूर अपितु धामी राजधानी गैरसैण, मुजफ्फरनगर कांड के अभियुक्तों को सजा देने, हिमाचल की तर्ज पर भू कानून बनाने, जनसंख्या पर आधारित विधानसभा परिसीमन पर अंकुश लगाने व रोजगार के द्वार खोलने आदि उत्तराखंड की सबसे ज्वलंत समस्याओं और राज्य गठन की जनाकांक्षाओं पर मुंह खोलने के लिए तैयार नहीं रहा केवल लोक लुभावने चुनावी वादे आदि की घोषणाएं करके धामी ने एक चुनावी काल के मुख्यमंत्री का दायित्व निभाया। परंतु धामी के चंद महीनों के कार्यकाल में उत्तराखंड राज्य गठन के आंदोलनकारी उनकी मनोवृत्ति को पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों की तरह ही उत्तराखंड विरोधी ही माना केवल दलिया बॉस निहित स्वार्थी लोग धामी की भोली-भाली सूरत व शिष्ट व्यवहार की झांसी में आकर उनको सफल नेता बताने लगे। प्रदेश तो रहा दूर हुए अपने कार्यकलापों से अपने विधानसभा क्षेत्र की जनता का दिल भी नहीं जीत पाए। अपने कार्यकाल में वे चापलूसों व स्वार्थी लोगों से ही घिरे रहे। उनकी प्राथमिकता प्रदेश के ज्वलंत मुद्दों का समाधान करना नहीं था।
इसके बावजूद सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने हारे हुए विधायक को पूनम मुख्यमंत्री क्यों बनाया? क्या मोदी इस मामले में देश के शिक्षा मंत्री बनाए गए स्मृति ईरानी वाह रमेश पोखरियाल निशंक की नियुक्त की तरह ही भूल कर गए या इसके पीछे कोई अन्य कारण है।
सूत्रों के अनुसार उत्तराखंड में मिली भारी सफलता से भाजपा के प्रांतीय नेता जहां अचंभित थे वहीं केंद्रीय नेता भी गदगद थे क्योंकि चुनाव के पूर्व व बाद मैं हर कोई भाजपा को सत्ता से बेदखल मान रहा था परंतु मोदी लहर के बाद जो परिणाम आए उससे जहां कांग्रेस हैरान व परेशान होकर मृतप्राय हो गई वहीं भाजपा बाग बाग हो गई परंतु प्रधानमंत्री मोदी सहित भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व मुख्यमंत्री के प्रत्याशी पुष्कर सिंह धामी के हार स्तब्ध थे।
केंद्रीय नेतृत्व ने जब इसकी गहन जांच की गई तो पता चला कि पुष्कर सिंह धामी को अभिमन्यु की तरह सत्ता की लालची भेड़ियों ने भितरघात कराकर हरा दिया। इस प्रकरण की जानकारी होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने आस्तीन के सांपों को सबक सिखाने के लिए हार के बावजूद धामी को ही मुख्यमंत्री बनाने का मन बना लिया। ऐसे ही प्रकरण में बंगाल के वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को विधायक सीट पर हारने के बाद मुख्यमंत्री बनने पर जिस ढंग से भारतीय जनता पार्टी व अन्य लोगों ने जनादेश का अपमान करने वाली टिप्पणी की थी इस प्रकार की टिप्पणियों की भी परवाह न करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने धामी को फिर से सत्तासीन करने का निर्णय लिया। इसी निर्णय के तहत आज देहरादून के परेड ग्राउंड में भव्य समारोह में पुष्कर सिंह धामी हारने के बावजूद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हो गए। अब 6 माह के अंदर उन्हें किसी विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित होना है हालांकि डीडीहाट से लेकर कई विधानसभा सीटों से मुख्यमंत्री के उप चुनाव लड़ने की चर्चा है देखते हैं कौन सा विधायक मुख्यमंत्री के लिए अपनी विधायकी त्याग करता है।
पर यहां पर ही सवाल यह है कि मुख्यमंत्री के चयन में एक बार फिर दिल्ली दरबार में उत्तराखंड के हितों को नजरअंदाज किया। सन 2000 से 2022 तक के कार्यकाल पर नजर डालें तो जितनी भी भाजपा व कांग्रेस की सरकारें रही अधिकांश मुख्यमंत्री बनाते समय भाजपा व कांग्रेस का आला नेतृत्व भले ही अपने दलीय स्वार्थ वक्त यादों को आसीन करने में सफल रहा हो परंतु वह उत्तराखंड के हक हकूकों को साकार करने वाला दूरदर्शी व योग्य मुख्यमंत्री देने में पूरी तरह से असफल रहा। इसी कारण राज्य गठन के 22 सालों के बाद भी गैरसैंण में निर्मित प्रदेश की एकमात्र विधानसभा भवन के बावजूद भाजपा कांग्रेस के आलाकमान के प्यादे बने मुख्यमंत्री राजधानी गैरसैंण को घोषित करने का नैतिक साहस नहीं जुटा पाए यही नहीं भाजपा के मुख्यमंत्री ने तो गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करके एक प्रकार से उत्तराखंड के साथ विश्वासघात कर दिया। परंतु बेशर्मी इतनी कि कि वे ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण बनाने को उत्तराखंड की जनता की जन आकांक्षाएं वह शहीदों की शहादत का सम्मान बता कर खुद ही अपनी पीठ थपथपा रहे थे।
इसके साथ अब तक की तमाम सरकारें प्रदेश की जन आकांक्षाओं में भू कानून मुजफ्फरनगर कांड के गुनहगारों को सजा देने जनसंख्या पर आधारित विधानसभा परिसीमन पर अंकुश लगाने मूल निवास रोजगार व सुशासन देने जैसी आकांक्षाओं को साकार करने की तरफ एक शब्द तक बोलने की साहस तक नहीं जुटा पाए। प्रदेश की जनता को विश्वास था कि प्रधानमंत्री मोदी जनता के साथ पूर्ववर्ती आलाकमान की तरह विश्वासघात न करके अपने मुख्यमंत्रियों से उत्तराखंड की जन आकांक्षाओं को साकार कराएंगे परंतु जनता जन आकांक्षाओं को साकार करने की जगह नक्कारे मुख्यमंत्रियों को धोने के लिए अभिशापित सी हो रखी है।

उल्लेखनीय है कि भाजपा शासित इन चार राज्यों में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी को पहले से ही चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया हुआ था। परंतु भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे जी का जंजाल बना उत्तराखंड जहां भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री का चेहरा वर्तमान कार्यकारी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को घोषित किया था। परंतु इसे उत्तराखंड का सौभाग्य कहो या पुष्कर सिंह धामी का दुर्भाग्य वहां मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी जी की इस अभूतपूर्व लहर में भी अपनी परंपरागत विधानसभा सीट खटीमा से अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेसी प्रत्याशी भूवनचंद्र कापड़ी के हाथों 6579 मतों से परास्त हो गए।
हालांकि मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में प्रदेश में धामी के अतिरिक्त 1 दर्जन से अधिक भाजपाई नेताओं का नाम चर्चाओं में थे।
वर्तमान समय में उत्तराखंड में जिन नेताओं का नाम खबरिया चैनलों इंटरनेट की दुनिया व समाचार जगत मैं चल रहा है उन में मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी लहर के बावजूद अपनी विधानसभा सीट न बचा पाने वाले कार्यकारी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, भी शामिल है जिन के समर्थक बड़ी बेशर्मी से यह तर्क दे रहे हैं कि धामी ने बहुत मेहनत की। वह सभी विजयी विधायकों को जिताने में सफल रहे। इस कारण वह अपनी सीट पर ध्यान नहीं दे पाए। इसलिए भाजपा आलाकमान को चाहिए कि वह धामी की मेहनत को देखते हुए हारी हुई ममता बनर्जी की तरह मुख्यमंत्री के पद पर आसीन करें। इस तर्क को देते हुए धामी के अंध समर्थक भूल जाते हैं कि 2017 में हिमाचल में भी मुख्यमंत्री के दावेदार धूमल चुनाव हार जाने के बाद भाजपा ने उनको नहीं बनाया मुख्यमंत्री। आखिर भारतीय जनता पार्टी किसी पदलोलपु व्यक्ति के लिए लोक मर्यादाओं को क्यों रौंदेगी?
वे भूल जाते हैं कि आखिर रामराज्य व भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाला दल एक व्यक्ति की पदलोलुपता के खातिर भारतीय जनता पार्टी लोकतांत्रिक मर्यादाओं व जनादेश का अपमान क्यों करें?
जहां तक धामी का सवाल है धामी के मासूमियत चेहरे के पीछे छिपे उनकी पदलोलुपता को लोक नजरअंदाज क्यों करते हैं? भाजपा आला नेतृत्व को इस सवाल से भी जूझना पड़ रहा है कि भारी बहुमत के बाद किसी असफल रहे पूर्व मुख्यमंत्री या सांसद को मुख्यमंत्री बनाकर यह संदेश जनता को क्यों दें कि सभी जीते हुए विधायक मुख्यमंत्री बनने के काबिल नहीं हैं।

सवाल यह है कि जो मुख्यमंत्री पद लोलुपता के लिए प्रदेश की गैरसैंण राजधानी जेसी जन भावनाओं को साकार करने के बजाए उसको रौंदने वाले कृत्य को शहीदों व जन आकांक्षाओं का सम्मान बताने की निर्लज्जता कर रहा हो, इससे साफ हो जाता है कि वह भी प्रदेश के हितों व सम्मान के साथ तिवारी व खंडूरी की तरह ही खिलवाड़ करेगा। पद मिलते ही धामी जिस प्रकार से सत्ता मद में चूर होकर आंदोलनकारियों की बार-बार लगाई न्यायोचित गुहार को नजरअंदाज कर गए, उससे साफ होता है कि 4 महीने के चुनावी कार्यकाल में भी जो जन भावनाओं को सम्मान नहीं कर पाता हो वह सामान्य कार्यकाल में कभी नहीं करेगा।
मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल अन्य दावेदार हैं पूर्व में असफल मुख्यमंत्री व केंद्रीय शिक्षा मंत्री रहे रमेश पोखरियाल निशंक, अनुभवहीन व जनता से कटे हुए सांसद रमेश बलूनी, वर्तमान केंद्रीय राज्य मंत्री अजय भट्ट, उत्तराखंड राज्य गठन आंदोलन में संयुक्त संघर्ष समिति के संरक्षक, पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदेश सरकार के पूर्व काबीना मंत्री व वर्तमान विधायक सतपाल महाराज, पूर्व काबीना मंत्री व विधायक डॉक्टर धन सिंह रावत, पूर्व मुख्यमंत्री खंडूड़ी की विधायक बेटी रितु खंडूरी व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व वर्तमान विधायक प्रेम अग्रवाल के बाद अब बंशीधर भगत व मदन कोशिक का नाम भी दिल्ली जाने के बाद मुख्यमंत्री के दावेदारों की पंक्ति में शुमार हो गया था। इसके अतिरिक्त पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत व तीरथ सिंह रावत का नाम भी चर्चाओं में आ जाता है परंतु इन चर्चाओं में राजधानी गैरसैंण सहित सभी जन आकांक्षाओं को समर्थन देने वाले पाक साफ छवि के ईमानदार जन नेता रहे मोहन सिंह रावत गांववासी का नाम चर्चा में ना होने पर ऐसा ऐसा आभास होता है कि दिल्ली दरबार में समर्पित वरिष्ठ व साफ छवि के जन नेताओं की कहीं कोई पूछ नहीं है। अगर होती तो भारतीय जनता पार्टी उत्तराखंड राज्य गठन जन आंदोलन के मुख्य सूत्रधार रही स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी के नेतृत्व वाली उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के संरक्षक सतपाल महाराज जिनका राज्य गठन से लेकर उत्तराखंड की बोली भाषा रेल मार्ग राजधानी गैरसैण से लेकर विकास की सकारात्मक सोच व संघर्ष रहा है। केंद्रीय मंत्री जी से लेकर प्रांतीय मंत्री के साथ संगठन का भी उन्हें व्यापक अनुभव रहा है। केवल गुटबाजी व जातिवादी बदलू लूट नेताओं के विरोध के कारण अब तक देश विदेश व प्रदेश में व्यापक जनाधार वाले सतपाल महाराज की उपेक्षा भारतीय जनता पार्टी उत्तराखंड व देश की लोकशाही के लिए काफी नुकसानदायक रही ।

मुख्यमंत्री की दौड़ में के लिए भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस में जनता व विधायकों की पहली पसंद व सक्षम प्रतिभाओं के बजाए दिल्ली दरबार के आला नेताओं के स्वार्थों के प्रतीक प्यादों कोअब तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन किए जाने के कारण जहां उत्तराखंड बदहाली के कगार पर है वहीं मुख्यमंत्री बनने की ललक यहां नवनिर्वाचित विधायकों में भी बलवती हो गई है। इसीलिए मुख्यमंत्री बनने के लालसा लिए दिल्ली दरबार की परिक्रमा करने वाले नवनिर्वाचित विधायकों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है।

आज उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश सहित 5राज्यों के चुनाव में चार राज्यों में फिर से सत्तारूढ़ हुई भारतीय जनता पार्टी की अपार सफलता के बाद देश के आम जनमानस के दिलो-दिमाग में यही प्रश्न रह रह कर उठ रहा है की उत्तराखंड में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर किसकी बंसी बजवायेंगे भाजपा के आलाकमान मोदी ?
आल्हा नेतृत्व को गत विधानसभा की तरह उत्तराखंड में मुख्यमंत्रियों की पंक्ति को बढ़ाने की भूल पर भी गंभीरता से विचार करना होगा। बार बार मुख्यमंत्री बदलने से न केवल भारतीय जनता पार्टी की पूरी देश में जग हंसाई हुई ।अपितु केंद्रीय नेतृत्व के प्रदेश के हित में निर्णय लेने की क्षमता पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया। इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए भारतीय जनता पार्टी के आला नेतृत्व को समझ लेना चाहिए कि प्रदेश का जनादेश राज्य गठन की जन आकांक्षाओं को साकार करने के लिए जनता द्वारा उन उन पर विश्वास करके दिया गया है ।ऐसे में अयोग्य प्यादों को मुख्यमंत्री के पद पर थोप कर न तो उत्तराखंड का ही भला होगा और ना भारतीय जनता पार्टी का। इस सीमांत राज्य में अक्षम व पदलोलुपु शासक देकर इस राज्य को पलायन की राष्ट्रीय से प्रदेश के हुक्मरानों ने तमाशा कर दिया है। हिमाचल की तरह यह राज्य भी खुशहाल व समृद्ध व पलायन रहित बन सकता था। परंतु दिशाहीन प्यादों को आसीन करने की दिल्ली दरबार के आला नेताओं की प्रवृत्ति ने उत्तराखंड की जन आकांक्षाओं पर पानी फेर दिया है ।वहीं गैरसैण राजधानी न बनने के कारण पर्वतीय जनपदों से शिक्षा, चिकित्सा, शासन और रोजगार भी देहरादून सहित चंद मैदानी जनपदों में सिमट कर रह गया है। इससे इन श्रीमान जनपदों में हुए पलायन से चीन से लगा यह राज्य देश के लिए खतरे का संकेत दे रहा है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने राजनाथ सिंह को उत्तराखंड व अमित शाह को उत्तर प्रदेश केंद्रीय पर्यवेक्षक के रुप में भेज कर विधान मंडल की बैठक में नए नेता के चयन की जिम्मेदारी सौंपी है। समझा जाता था कि 18 मार्च को होली के समापन के एक-दो दिन के अंदर ही यह तस्वीर साफ हो जाएगी कि कौन बनेगा उत्तराखंड का नया मुख्यमंत्री। परंतु जातिवाद व क्षेत्रवाद से बेहाल हुई प्रदेश की जनता को आशा है कि मोदी जी इस बार जातिवाद और क्षेत्रवाद के नाम पर मोहरों को मुख्यमंत्री की पद पर आसीन करने की हवाई नेताओं की तिकड़म में ना आकर अनुभवी, योग्य व जनाधार वाले नेता को मुख्यमंत्री पद पर आसीन करके उत्तर प्रदेश की तरह उत्तराखंड में भी डबल इंजन की सरकार से विकास की गंगा बहाएंगे। परंतु लगता है कि जनता की जन आकांक्षाओं की तरफ नजर फिरने का भी इस समय दिल्ली दरबार के नेताओं के पास नहीं है। धामी को पुनः मुख्यमंत्री बनाने के बाद एक प्रकार से भाजपा नेतृत्व ने यह साफ सा संदेश जनता को दे दिया है ।अब जनता को ही अपनी जन आकांक्षाओं को साकार करने के लिए केंद्रीय नेतृत्व पर निर्णायक दबाव बनाना पड़ेगा।

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