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हरक सिंह रावत प्रकरण से बार-बार पूरी तरह बेनकाब हुआ भाजपा व कांग्रेस का आला नेतृत्व

 

सन 2022 में कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए जी जान लगा देंगे डॉ हरक सिंह रावत

 

प्यारा उत्तराखंड डॉट कॉम

आखिरकार अपनी झेंप मिटाने के लिए भाजपा आला नेतृत्व के इशारे पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने 16 जनवरी की मध्य रात्रि में आनन-फानन में उत्तराखंड की सबसे दबंग और किसी आलाकमान के आगे न झुकने वाले कबीना मंत्री हरक सिंह रावत को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करते हुए उन्हें भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से भी 6 साल के लिए निलंबित कर दिया।
भाजपा ने डॉ हरक सिंह रावत को बर्खास्त करते हुए आरोप लगाया कि हुए कांग्रेस के नेताओं से मिलकर भाजपा विरोधी गतिविधियों में संलिप्त थे।
इन आरोपों को सिरे से नकारते हुई डॉ हरक सिंह रावत ने कहा कि वे किसी कांग्रेसी नेता से आज नहीं मिले। भाजपा से निकाले जाने की खबर पर प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए हरक सिंह ने कहा कि जब एक दरवाजा बंद होता तो 10 दरवाजे खुल जाते हैं। डॉ हरक सिंह रावत ने कहा कि उन्हें घुटन से मुक्ति मिली। अब वे खुल कर काम करेंगे और 2022 में कांग्रेस को भारी बहुमत से विजय बनाने के लिए जी जान से जुट जाएंगे। डॉ हरक सिंह ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी भी परिवारवाद से अछूती नहीं है ।उन्होंने भाजपा पर उनके 5 साल बर्बाद करने का भी आरोप लगाया और चुनावी वायदे पूरे न करने का आरोप जड़ दिया।
हालांकि स्थाई तौर पर प्रदेश का हर आदमी दल बदलने के विरोध करता है। परंतु अगर करीब से देखा जाए तो इस प्रकरण में दलबदल करने वाले से अधिक गुनाहगार अगर कोई है तो दल बदल कराने वाले इन दलों के नेता। बिना इनके सहमति के किसी भी दल में दल बदल नहीं हो सकता है। इन दलों के सभी प्रमुख स्थानीय नेताओं को समय-समय पर आईना दिखाने वाले हरक सिंह रावत को इन दलों के नेता अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए निरंतर संरक्षण व विरोध करते रहे हैं। इसी कारण उत्तराखंड की राजनीति अधिकांश समय अस्त व्यस्त रही। दिल्ली दरबार के नेता अपने मोहरे यहां थोपते रहे और जमीन पर मजबूत नेता उनका विरोध करते रहे।
डॉ हरक सिंह उत्तराखंड की राजनीति में सबसे विवादस्त चर्चित व किसी भी आला नेतृत्व की अंकुश में ना आने वाला धारा के खिलाफ चुनावी राजनीति के सफल नेता है। उत्तराखंड में 1984 से भाजपा की विधायक रहे डॉ हरक सिंह 1991 में कल्याण सिंह सरकार में राज्य मंत्री भी रहे छात्र जीवन से ही भाजपा से जुड़े रहने वाली हरक सिंह की पैराशूट से भाजपा में जुड़े भुवन चंद खंडूरी से दूरियां बढ़ने के कारण भाजपा से अपने साथियों के साथ अलग हो गए थे वह उन्होंने उत्तराखंड जनता मोर्चा बनाकर, उत्तराखंड राज्य गठन आंदोलन के समय संसद की चौखट जंतर मंतर पर 6 साल तक सफल आंदोलन करने वाले उत्तराखंड राज्य गठन आंदोलन की सबसे प्रखर संगठन उत्तराखंड जनता संघर्ष मोर्चा का भी नेतृत्व कुछ महीनों के लिए किया था। भाजपा छोड़ने के समय डॉ हरक सिंह रावत के साथ भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर आने वाले नेताओं में तत्कालीन उत्तर प्रदेश की भाजपा की प्रदेश उपाध्यक्ष राजेंद्र रावत, भाजपा की प्रवक्ता रही प्रकाश सुमन ध्यानी आदि नेता थे। जिनके साथ उन्होंने अपना उत्तराखंड जनता मोर्चा व दिल्ली में आंदोलन कर रहे उत्तराखंड जन संघर्ष मोर्चा (उत्तराखंड आंदोलन संचालन समिति) साथ मिलकर उत्तराखंड जनता संघर्ष मोर्चा का गठन किया ।इसमें पूर्व सैनिक संगठन के लेफ्टिनेंट जनरल जगमोहन सिंह रावत व मेजर जनरल शैलेंद्र राज बहुगुणा को भी संचालक मंडल मे बनाया गया। इसके मुख्य संचालक डॉ हरक सिंह रावत के हाथों में कमान सौंपी गयी। परंतु 1996 की विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों के चक्रव्यूह में उत्तराखंड जनता संघर्ष मोर्चा बिखर गया। अवतार रावत व देव सिंह रावत के नेतृत्व में आंदोलनकारियों ने राष्ट्रीय धरना स्थल पर आंदोलन राज्य गठन तक जारी रखा। इसमें आंदोलनकारी रह गए और राजनीतिक नेता डॉ हरक सिंह के व अन्य टुकड़ों में बिखर गए । डॉ हरक सिंह रावत इसके बाद उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के दल बसपा में सम्मलित हो गए। डॉ हरक सिंह रावत बसपा के उत्तराखंड क्षेत्र के अध्यक्ष भी बन रहे। मायावती की सरकार में हुई दर्जा धारी मंत्री भी रहे व उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग सहित तीन नए जनपद व कई तहसीलों के सर्जन कर्ता रहे।
परंतु उत्तराखंड राज्य गठन के बाद की बदली हुई स्थिति में उत्तराखंड में बसपा की राजनीति सीमित होने के कारण हरक सिंह रावत ने कांग्रेस का दामन थाम लिया 2002 में हुई उत्तराखंड विधानसभा के प्रथम चुनाव में हुई विजयी हुए और तिवारी सरकार के बाद 2022 तक विभिन्न सरकारों में मजबूत मंत्री रहे।
परंतु हरक सिंह रावत की किसी भी नेता से संबंध कुछ समय बाद सही नहीं रहे तिवारी हो जा हरीश रावत, खंडूड़ी हो या सतपाल महाराज यानी उत्तराखंड का कोई ऐसा बड़ा नेता नहीं रहा जिससे हरक सिंह रावत का सीधा टकराव ना रहा हो इसका मुख्य कारण यह है कि डॉ हरक सिंह रावत अन्य राजनेताओं की तरह अति महत्वकांक्षी के साथ राजनीति के सभी दावों के मर्मज्ञ रहे। उनसे कनिष्ठ रहे अनेक नेता उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बन गए इससे हो समय-समय पर उद्वेलित व विद्रोही छवि के नेता बन गए। सबसे विचित्र बात यह है कि जिस गढ़वाल विश्वविद्यालय के कुलपति से सीधे टकराव के बाद उनको विश्वविद्यालय से बाहर का रास्ता दिखाया गया था उसी गढ़वाल विश्वविद्यालय में डॉ हरक सिंह रावत सैन्य विज्ञान के प्रोफ़ेसर बनकर फिर उत्तराखंड की राजनीति में सबसे विद्रोही नेता बने रहे। सैन्य विज्ञान के प्राध्यापक के साथ हुई राजनीति के मर्मज्ञ भी बन गए। परंतु अपने इस राजनीतिक शक्ति का सदुप्रयोग करने की जगह हरक सिंह महिला आदि विवादों में भी घिरे रहे ,इसलिए प्रदेश के हितों के लिए समर्पित लोग उनका विरोध करते रहते हैं। अगर हरक सिंह अपनी इस शक्ति का सदुपयोग प्रदेश के हितों के लिए संघर्ष करने में लगाते तो वह आज उत्तराखंड के सबसे चहेते नेता होते।

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