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सत्कर्म करना ही पितरों का सबसे श्रेष्ठ श्राद्ध है

पूर्वजों का स्मरण तर्पण पूजन का पावन पर्व श्राद्ध

देव सिंह रावत

इन दिनों विश्व में भारतीय पूरे श्रद्धा के साथ मना रहे हैं।

श्राध पर्व हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन से प्रारंभ होकर आश्विन मास की अमावस्या को समापन होता है।

इस साल 2021 में श्राद्ध पक्ष 21 सितंबर से 6 अक्टूबर तक मनाया जा रहा है। ऐसी मान्यता है कि पुत्र या पोत्र पिंडदान तिलांजलि इत्यादि श्राद्ध कर्म संपन्न करते हैं।
ऐसा विश्वास है श्राद्ध पर्व में पित्र लोग पितृलोक से भू लोक पर आते हैं।
शास्त्रों के अनुसार जब सूर्य देव कन्या राशि मैं विचरण करते हैं तब पितृलोक भूलोक के निकट आता है।
परिवार एवं माता-पिता से दूर रहने वाला पश्चिम ताकि ताकि समाज, देश व अन्य संप्रदाय आश्चर्यचकित होकर भारत की इस अनूठी परंपरा को देख रहे हैं।
आज मेरी सुबह अपने मित्र लक्ष्मी प्रसाद अप्रैल से दूरभाष पर वार्ता हुई नहीं पूछ रहे थे रावत जी आपने श्राद्ध तर्पण इत्यादि कर दिये?
मैंने कहा लक्ष्मी जी, इंसान द्वारा सत्कर्म करना ही पूर्वजों का सबसे बड़ा तर्पण श्राद्ध है।
उन्होंने कहा इस पर्व पर पंडितों को बुलाकर पित्र तर्पण पूजन और उनको भोजन इत्यादि कराना चाहिए।
मैंने कहा सामान्य रूप से परंपरा यही है।
अधिकांश लोग इसी को श्राद्ध पूजन दर्पण समझते हैं।
परंतु विवेकवान व्यक्ति समझता है श्राद्ध पक्ष की गूढ़ रहस्य को,भारतीय संस्कृति की मर्म को। हालांकि भारतीय शास्त्रों में भी कहा गया है जीव को केवल अपने कर्मों का ही फल भोगना होता है।
सांसारिक परंपरा के अनुसार व भारतीय संस्कृति की गूढ़ मर्म का मिश्रण करते हुए हमें जीवन को हर पल सत कर्मों में प्रति समर्पित करके श्राद्ध पर्व पर सहकर्मी पंडित से तर्पण श्राद्ध कराना चाहिए। इस अवसर पर अपने सामर्थ्य के अनुसार जरूरतमंदों को भोजन सहयोगी इत्यादि करना चाहिए।

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