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कर्तव्यों के हिमालय से ही अधिकारों की गंगा निकलती है: उपराष्ट्रपति

हमारा संविधान हमारी गीता है, बाइबल है, इसका सम्मान करना हम सबका कर्तव्य है : उपराष्ट्रपति

देश का संविधान और संस्कृति पूरक होते हैं, संविधान में निहित मर्यादाएं समाज के संस्कारों से ही बल पाती हैं : उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति ने राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र की पुस्तक “संविधान, संस्कृति और राष्ट्र” का लोकार्पण किया

28सितम्बर 2021, नई दिल्ली से पसूकाभास 

 उपराष्ट्रपति  एम वेंकैया नायडु ने आज कहा कि हमारा संविधान हमारी गीता है, बाइबल है और इसका सम्मान करना हम सबका पवित्र कर्तव्य है। संविधान और संस्कृति को परस्पर पूरक बताते हुए  उन्होंने कहा कि संविधान में निहित मूल्य समाज के संस्कारों से ही बल पाते हैं।

उपराष्ट्रपति आज जोधपुर में आयोजित एक अवसर पर राजस्थान के राज्यपाल श्री कलराज मिश्र के लेखों के संकलन “संविधान, संस्कृति और राष्ट्र” का लोकार्पण कर रहे थे। इस पुस्तक में श्री कलराज मिश्र द्वारा संविधान, संस्कृति, राष्ट्र,  शिक्षा, लघु उद्यम, इनोवेशन, आत्म-निर्भर भारत तथा राजस्थान का इतिहास एवं संस्कृति जैसे समसामयिक विषयों पर, देश के विभिन्न पत्रों में लिखे गए लेखों का संकलन है।

इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारे  संविधान की उद्देशिका  में न्याय, स्वतंत्रता, समता के साथ साथ राष्ट्र की एकता और अखंडता को पर विशेष बल दिया गया है। उन्होंने कहा कि इन महान आदर्शों को सिद्ध करने के  लिए नागरिकों में सामाजिक संस्कार होना जरूरी है।

संविधान की उद्देशिका में स्थापित उद्देश्यों पर अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि न्याय के लिए नागरिकों में संवेदना होना आवश्यक है और बिना अनुशासन के स्वतंत्रता अराजकता बन जायेगी। उन्होंने आगे कहा कि समता के लिए व्यक्ति में करुणा और सहानुभूति होना जरूरी है। साथ ही यह भी जोड़ा कि देश की एकता और अखंडता को मजबूत करने के लिए समाज में बंधुत्व और भाईचारा होना आवश्यक है।

उपराष्ट्रपति ने बल देकर कहा कि इन सामाजिक संस्कारों से ही संवैधानिक आदर्श सिद्ध किए जा सकते हैं और ये संस्कार परिवार में, शिक्षण संस्थाओं में, सामाजिक, राजनैतिक संगठनों में पड़ते हैं।

देश के युवाओं से अपने अधिकारों और कर्तव्यों के बीच संतुलन रखने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि युवा ध्यान रखें कि समाज अधिकारों और कर्तव्यों में संतुलन की अपेक्षा करता है। इस संदर्भ में उन्होंने महात्मा गांधी के वक्तव्य को उद्धृत करते हुए कहा कि महात्मा गांधी ने  भी कहा था कि “कर्तव्यों के हिमालय से ही अधिकारों की गंगा निकलती है।”

शिक्षा और सामाजिक  संस्कारों एवं सारोकारों  की चर्चा करते हुए उपराष्ट्रपति ने आशा व्यक्त की कि नई शिक्षा नीति देश को भविष्य की संभावनाओं के लिए तैयार करेगी और हमें हमारे अतीत की गौरवपूर्ण ज्ञान और शौर्य परंपराओं से भी परिचित कराएगी। उपराष्ट्रपति भारतीय भाषाओं और उनके समृद्ध साहित्य के संरक्षण और संवर्धन के समर्थक रहे हैं।  उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति हमारी भाषाओं को सम्मान देगी जो हमारी संस्कृति और ज्ञान परंपरा की धरोहर हैं।

इस अवसर पर राजस्थान के माननीय राज्यपाल श्री कलराज मिश्र, पुस्तक के प्रकाशक प्रभात प्रकाशन तथा अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

उपराष्ट्रपति वर्तमान में राजस्थान की पांच दिवसीय यात्रा पर हैं। जोधपुर आने से पहले वे जैसलमेर की सीमावर्ती सेना और बीएसएफ चौकियों को देखा और वहां हमारे सैनिक बलों के अधिकारियों और जवानों से बातचीत की। श्री नायडु  ने ऐतिहासिक लोंगेवाला युद्ध स्थल को देखा और तनोट माता के मंदिर के दर्शन भी किए। कल विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर उपराष्ट्रपति ने  मेहरानगढ़ किले को देखा और भारतीय इतिहास और संस्कृति में रुचि रखने वाले सैलानियों और यात्रियों से स्थापत्य की ऐसी विलक्षण कृतियों को देखने का आग्रह भी किया।

आज सुबह उपराष्ट्रपति ने जोधपुर आईआईटी परिसर का दौरा किया और वहां के छात्रों और शिक्षकों को संबोधित किया। श्री नायडु  ने आईआईटी जोधपुर परिसर में नॉलेज और इन्नोवेशन संकुल का उद्घाटन भी किया।

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