उत्तराखंड

तीरथ के इस्तीफे से उपजे सवाल, महाराज की ताजपोशी उबार पाएगी क्या भाजपा को 2022 विधानसभा चुनाव में?

देव सिंह रावत

आखिरकार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ रावत ने अपने 115 दिन के कार्यकाल की बाद दो जुलाई की रात 11:15 बजे हर राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया। 2022 में होने वाली उत्तराखंड विधानसभा की चुनावी समर के भंवर से कौन भाजपा की नौका को पार लगाएगा उसकी होनहार रूपी नए मुख्यमंत्री का चुनाव आज यानी 3 जुलाई को  3:00 बजे देहरादून में उत्तराखंड भाजपा विधायक मंडल की बैठक में किया जाएगा। भाजपा आला नेतृत्व द्वारा चयनित उत्तराखंड का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, इस नाम को लेकर केंद्रीय पर्यवेक्षक, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर देहरादून में होने वाली इस महत्वपूर्ण बैठक में उपस्थित रहेंगे।
10 मार्च 2021 को मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए तीरथ रावत स्पेशल न केवल उत्तराखंड अपितु देश भर की भारतीय जनता पार्टी की समर्थकों में गहरी निराशा छा गई। ऐसा नहीं कि तीरथ रावत कोई लोकप्रिय मुख्यमंत्री रहे। उनकी नियुक्ति के समय भाजपा आलाकमान को भी आशा थी कि उनके नेतृत्व में ही 2022 में होने वाली उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा चुनावी समर में फिर से सत्ता सीन होगी। परंतु जिस प्रकार से तीरथ रावत का बिना विधानसभा भवन के पटल में पांव रखे बिना ही संक्षिप्त कार्यकाल रहा, उससे पूरे देश में भाजपा नेतृत्व की निर्णय पर प्रश्नचिन्ह खड़े हो गए हैं।

उत्तराखंड विधानसभा के बजट सत्र को संक्षिप्त करके यकायक तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को जिस प्रकार दिल्ली तलब करके आलाकमान द्वारा इस्तीफा लिया गया और उसके बाद आनन-फानन में तीरथ रावत को मुख्यमंत्री के पद पर आसीन किया गया। और 115 दिन के बाद ही तीरथ रावत से भी इस्तीफा ले लिया गया। फिर अगले मुख्यमंत्री के चुनाव का निर्णय लिया गया। इससे उत्तराखंड की जनता ही नहीं देश की आम जनमानस भी स्तब्ध है। आखिरी मुख्यमंत्री बनाओ का खेल उत्तराखंड में निरंतर क्यों किया जा रहा है।
उत्तराखंड की जनता को भाजपा की रणनीति को देखकर यह भी विश्वास है कि जो अगला मुख्यमंत्री चुनावी वैतरणी को पार करने के लिए बनाया जा रहा है उसको भारतीय जनता पार्टी भावी मुख्यमंत्री के रूप में यह चुनाव लड़ेगी कि नहीं यह भी अनुचित है।
राज्य गठन के मात्र 21 साल में ही जिस प्रकार से भाजपा और कांग्रेस ने यहां मुख्यमंत्रियों की नियुक्ति व अदला-बदली अविवेक पूर्ण ढंग से की,उससे ही जनता बेहद हैरान है और प्रदेश की विकास को रसातल में धकेलने वाला यह महत्वपूर्ण कारस्तानी मानी जा रही है।
उत्तराखंड की जनता हैरान है कि जनता ने ऐतिहासिक आंदोलन दमन व शहादत देकर अपनी जन आकांक्षाओं को साकार करने के लिए जिस उत्तराखंड राज्य का गठन किया उसको दिल्ली में बैठे कांग्रेस व भाजपा के आला नेतृत्व ने अविवेक पूर्ण ढंग से मुख्यमंत्री बनाओ मुख्यमंत्री हटाओ के खेल में बर्बाद कर दिया।
जिस प्रकार से उत्तराखंड के पड़ोसी राज्य हिमाचल में राज्य गठन के अब तक के सफर में 1952 से केवल 13 मुख्यमंत्री बने। वहीं उत्तराखंड में 21 सालों में ही 9मुख्यमंत्री बन चुके हैं।
9 नवंबर 2000 को गठित उत्तराखंड राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में भाजपा ने नित्यानंद स्वामी को बनाया उस निर्णय को भी उत्तराखंड की जनता दिल से स्वीकार नहीं कर पाई। श्री को देखकर भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन आला नेतृत्व में प्रथम विधानसभा चुनाव में भाजपा का चेहरा ठीक करने के लिए नित्यानंद स्वामी को 354 दिन बाद ही पद से हटाकर भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री पद पर आसीन कर दिया।
भगत सिंह कोश्यारी का कार्यकाल में मात्र 123 दिन रहा। उत्तराखंड की जन भावनाओं के साथ भाजपा खिलवाड़ (उत्तराखंड का नाम बदलकर उत्तरांचल करने आदि) करने का गुनाहगार समझकर जनता ने उत्तराखंड राज्य की प्रथम विधानसभा चुनाव में राज्य गठन करने वाली भारतीय जनता पार्टी को करारी मात दी। जनादेश हासिल करने के बाद कॉन्ग्रेस आला नेतृत्व में जन भावनाओं को सम्मान करने की जगह दिल्ली ताज पर आंखें गड़ाये हुए उत्तराखंड राज्य गठन के घोर विरोधी रहे नारयान दत्त तिवारी को उत्तराखंड का प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री थोप दिया दिया।
तिवारी ने राज्य गठन की जन आकांक्षाओं व राज्य की नींव मजबूत करने की जगह कांग्रेसी आलाकमान की खुंदक उत्तराखंड राज्य के विकास के साथ खिलवाड़ करके उतारी।तिवारी से आशा थी कि वे राज्य गठन की जन आकांक्षाएं राजधानी गैरसैण मुजफ्फरनगर कांड के अभियुक्तों को सजा दिलाने जनसंख्या पर आधारित विधानसभा का परिसीमन जन भावनाओं के अनुरूप करते व प्रदेश को हिमाचल की तर्ज पर दुकानों व भू कानून, मूल निवास वासु शासन की टीम मजबूत नींव रखते। परंतु तिवारी नेशन आशाओं पर वह अपने अनुभव को दरकिनार करते हुए केवल प्यादों कार संरक्षण किया जिससे प्रदेश की नीव में ही मट्ठा डल गया।
तिवारी जी उत्तराखंड के एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। तिवारी 1832 दिन सत्ता में आसीन रहे। उनका कार्यकाल इतना विवाद अश्व अनुप्रिया रहा की जनता ने दूसरी विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु विधानसभा का जनादेश दिया। 2007 में हुई दूसरी विधानसभा के चुनाव में भी हरीश रावत के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस अन्य विधायकों का समर्थन लेकर सत्ता बनाने में सफल होते देखकर तिवारी ने कांग्रेस की आशाओं में पानी फेर दिया। जिससे अन्य विधायकों के समर्थन से प्रदेश में भाजपा की सरकार सत्तासीन हुई। भाजपा आला नेतृत्व में भी अपने वरिष्ठ विधायक भगत सिंह कोश्यारी को दरकिनार करते हुए मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री के पद पर आसीन कर दिया। उनकी अनुभव हीनता का दंड उत्तराखंड को जनसंख्या पर आधारित विधानसभा परिसीमन का विरोध न करके भोगना पड़ा। उन्होंने भी तिवारी के पद चिन्हों का अनुकरण करके ना गैरसैण राजधानी बनाने का काम किया वह नहीं मुजफ्फरनगर कांड के अभियुक्तों को सजा दिलाने के लिए ही पहल की। हिमाचल और झारखंड की तरह भू कानून व मू ल निवास कानून बनाने की सुध भी मेजर जनरल खंडूरी को नहीं रही।
एक नौकरशाह का मोह खंडूरी की बनाई कृतिम छवि को तार-तार कर गई। भाजपा विधायक दल में गहरा असंतोष देखकर भाजपा आला नेतृत्व ने वरिष्ठ विधायक भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री आसीन करने की जगह खंडूरी द्वारा समर्थित रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री पद पर आसीन कर दिया। निसंग की कार्यशैली सही भी विधायक नाराज हो गए। सरकार बचाने के लिए फिर भाजपा आला नेतृत्व में भुवन चंद खंडूरी को ही प्रदेश की सत्ता में आसीन कर दिया। पहले कार्यकाल में खंडूरी 839 व निशंक 808 दिन सत्ता में रहे। दूसरे कार्यकाल में खंडूरी 185 दिन सत्तासीन रहे।भाजपा आला नेतृत्व द्वारा बार-बार मुख्यमंत्री बदलने व उनके बनाई गई मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल से जनता आहत थी। इसका नजला जनता ने 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बेदखल करके दिया। सत्तासीन होकर कांग्रेस आलाकमान ने फिर भाजपा की तरह भूल कर के उत्तराखंड की आशाओं में वज्रपात करते हुए अधिकांश विधायकों की पहली पसंद हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाने के बजाय विजय बहुगुणा को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री नियुक्त किया। सतपाल महाराज के समर्थन व सलाह से विजय बहुगुणा ने जिस प्रकार से गैरसैंण में प्रदेश की विधानसभा निर्माण का कार्य प्रारंभ किया उससे जनता मैं सकारात्मक संदेश गया यह देख कर कांग्रेस में मुख्यमंत्री की प्रबल दावेदार रहे तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष हरीश रावत ने गैरसैण राजधानी बनाने के लिए अपना अभियान तेज कर दिया। राजधानी गैरसैंण बनाने के अभियान को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने गोविंद सिंह कुंजवाल वह तेज तरार नेता प्रदीप टम्टा को इस अभियान को आगे बढ़ाने का ध्वजवाहक बनाया। विजय बहुगुणा भी जनता की आशाओं पर खरे नहीं उतर पाए केदारनाथ त्रासदी ने विजय बहुगुणा को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया।विधायकों को असंतोष और जनता में कांग्रेस की छवि ठीक करने के लिए कांग्रेस नेतृत्व ने विजय बहुगुणा को 690 दिनों के कार्यकाल के बाद हटाकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया।
हरीश रावत ने जिस ढंग से राजधानी गैरसैंण में विधानसभा भवन के निर्माण कार्य किया उससे जनता बेहद प्रसन्न थी। परंतु हरीश रावत से यह भूल हो गई कि वह गैरसैंण राजधानी को घोषित नहीं कर पाए। हालांकि उन्होंने गैरसैण क्षेत्र में राजधानी विकास के लिए सड़क व अन्य कार्यों की गति को तेज कर दिया।
2017 में विधानसभा चुनाव की प्रतीक्षा करने के बजाए भारतीय जनता पार्टी ने जिस प्रकार से उत्तराखंड में दल बदल करवा कर हरीश रावत सरकार को 785 के कार्यकाल की बाद अपदस्थ करने का कृत किया। उससे पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी की काफी किरकिरी हुई। यही नहीं सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद विधानसभा में हुए शक्ति परीक्षण में भी भारतीय जनता पार्टी को मुंह की खानी पड़ी।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के हरीश रावत फिर से सत्ता आसीन हुए। उनका दूसरा तीसरा कार्यकाल 1 और 311 दिन का रहा। 2014 में देशभर में उमड़ी मोदी की आंधी की लहर कसीदा प्रभात 2017 की उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भी पड़ा। उत्तराखंड के सबसे दिक्कत जमीनी नेता समझे जाने वाले हरीश रावत 2 विधानसभा सीटों से न केवल पराजित हुए अपितु कांग्रेस भी बड़ी मुश्किल से दहाई का अंक छु पाई। भाजपा को तीन चौथाई यानी भारी-भरकम बहुमत मिला। राज्य गठन के बाद पहली बार किसी दल को इतना अभूतपूर्व बहुमत हासिल हुआ।
भाजपा आलाकमान ने अपने सबसे विश्वसनीय सहयोगी त्रिवेंद्र रावत को उत्तराखंड मैं पद आसीन किया। उत्तराखंड मैं राज्य गठन के बाद विधायकों व असंतुष्ट नेताओं की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने में त्रिवेंद्र सिंह सबसे कामयाब मुख्यमंत्री रहे।
त्रिवेंद्र सिंह ने किसी भी विधायक व मंत्री को मनमर्जी नहीं करने दिया इसलिए वह विधायकों व सत्तारूढ़ दल में लोकप्रिय हो गए।
सत्ता मद में चूर होकर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जो आलाकमान के निर्देश पर फैसले लिए उसके कारण जनता में भारी असंतोष फैल गया।खासकर त्रिवेंद्र रावत ने अपने पूर्वाग्रहों व देहरादून मोह ग्रसित होकर उत्तराखंड की जनता की राजधानी गैरसैंण बनाने की पुरजोर मांग को रौंदते हुए राज गैरसैंण को राजधानी बनाने की जगह कृष्ण कालीन राजधानी का तुगलकी फरमान ठोक दिया। एक प्रकार से बिना घोषणा किए त्रिवेंद्र सिंह ने प्रदेश की जन आकांक्षाओं को निर्ममता से रौंदते हुए देहरादून को राजधानी घोषित कर दी। इसके साथ त्रिवेंद्र रावत का सबसे विवादस्त निर्ण य बद्री केदार मंदिर समिति को भंग करके देवस्थान बोर्ड व गैरसैण मंडल घोषित करना भी रहा।
इसे उत्तराखंड का भाग्य कहिए या महाकाल का अभिशाप गैरसैण राजधानी को नकार कर ग्रीष्मकालीन थोपने की 1 सप्ताह के अंदर ही भाजपा आलाकमान ने उस समय पद मुक्त कर दिया जब गैरसैंण में बजट सत्र चल रहा था। आनन-फानन में बजट सत्र कोर समापन कर त्रिवेंद्र रावत को दिल्ली तलब किया गया। उनसे इस्तीफा लिया।
इस प्रकार त्रिवेंद्र सिंह रावत तिवारी के बाद सबसे लंबे समय तक कार्य करने वाले मुख्यमंत्री रहे वे 1567 दिन प्रदेश की सत्ता में आसीन रहे। त्रिवेंद्र रावत के बाद भारतीय जनता पार्टी आला नेतृत्व में विधानसभा चुनाव को देखते हुए तीरथ सिंह रावत जो वर्तमान में लोकसभा सांसद भी हैं को प्रदेश का 12 वां मुख्यमंत्री नियुक्त किया।
परंतु अपने 115 दिन के कार्यकाल के दौरान ही प्रदेश की राजनीति में सबसे इमानदार वह सहृदय समझे जाने वाले तीरथ रावत अपने बयानों व सरलता के कारण न बेलगाम नौकरशाही पर अंकुश लगा पाए वह नहीं प्रदेश के विवादस्त मंत्रियों पर ही अंकुश लगा पाए। इसके कारण भाजपा सरकार जनता के दिलों में वह छाप नहीं छोड़ पा ई जिसकी आशा लेकर आला नेतृत्व में उनको मुख्यमंत्री का ताज सौंपा था।
भाजपा आला नेतृत्व में भी विवेकपूर्ण निर्णय न लेकर भाजपा विधायक दल में सबसे लोकप्रिय व राज्य हितों की समर्थक समझे जाने वाले सतपाल महाराज की निरंतर उपेक्षा की। अब असम में जिस प्रकार से भाजपा नेतृत्व ने समझदारी दिखाते हुए पूर्व कांग्रेसी नेता को असम का मुख्यमंत्री बनाया, उससे लगता है कि भाजपा आला नेतृत्व प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के हितों को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड भाजपा में इस समय सबसे लोकप्रिय व उत्तराखंड के हितों के लिए संघर्ष करने वाले अपने विधायक सतपाल महाराज को प्रदेश मुख्यमंत्री की कमान सौंपेंगे।
सतपाल महाराज ने राज्य गठन के लिए निरंतर आवाज उठाते हुए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सदस्यता से भी त्यागपत्र दिया था।यही नहीं सतपाल महाराज ने कौन उत्तराखंड राज्य गठन जन आंदोलन को अभूतपूर्व समर्थन दिया था इसी को देखते हुए उत्तराखंड राज्य गठन आंदोलन के गांधी समझे जाने वाले स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी ने उनको उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति द्वारा संचालित आंदोलन का संरक्षक नियुक्त किया था। मुजफ्फरनगर कांड की बात जिस प्रकार से सतपाल महाराज के नेतृत्व में तत्कालीन नरसिंह राव सरकार की गृह राज्य मंत्री राजेश पायलट इत्यादि से मिलकर हस्तक्षेप की मांग की गई थी। इसके साथ मुजफ्फरनगर कांड की दमन के पीड़ित आंदोलनकारियों को नारसन व हरिद्वार में सतपाल महाराज के आश्रम में संरक्षण दिया गया था। उससे राम मुलायम के दमन से पीड़ित आंदोलनकारियों को काफी राहत मिली थी। इसके साथ सतपाल महाराज ने उत्तराखंड राज्य गठन के लिए देवगौड़ा सरकार में रहते हुए से प्रधानमंत्री देवगौड़ा को स्वच्छता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से उत्तराखंड राज्य गठन का राष्ट्रीय आश्वासन दिलाने में भी महत्वपूर्ण योगदान समझा जाता है। भारत सरकार में सतपाल महाराज द्वारा वित और रेल राज्य मंत्री के पद पर आसीन होकर उत्तराखंड के हित में कई कार्य किए। यही नहीं उन्होंने निरंतर उत्तराखंडी भाषा, कर्णप्रयाग व टनकपुर रेल मार्ग, आदि के बारे में भी मुखरता से निरंतर सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया।
3 जुलाई को 3:00 बजे के बाद देहरादून में केंद्रीय पर्यवेक्षक की सरपरस्ती में विधायक गणों की सहमति से उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री की ताजपोशी होगी। यहां ताजपोशी जनादेश अर्जित करने के बाद होती तो भाजपा नेतृत्व मनमर्जी का किसी को भी मुख्यमंत्री बना सकता था। परंतु यह मुख्यमंत्री उसे बनया जाएगा जो 2022 को होने वाले उत्तराखंड विधानसभा की चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को चुनावी वैतरणी पार लगवा पाएगा।

हालांकि भारी बहुमत वाली भारतीय जनता पार्टी के पास मुख्यमंत्री बनने की इच्छुक नेताओं की कोई कमी नहीं है। भा ज पा में सतपाल महाराज के अलावा भगत सिंह कोश्यारी, रमेश पोखरियाल निशंक, भाजपा नेतृत्व के भरोसेमंद त्रिवेंद्र रावत व अनिल बलूनी, हरक सिंह रावत, मदन कौशिक, धन सिंह रावत, पुष्कर धामी सहित दर्जन से अधिक नेता इस समय मुख्यमंत्री बनने के लिए बेताब हैं।
परंतु यह चुनावी जनादेश अर्जित करने वाला मुख्यमंत्री का चयन करने का दायित्व भाजपा आला नेतृत्व के समक्ष है। सामान्य परिस्थितियों में सतपाल महाराज का भारी विरोध भाजपा की अंदरूनी गुटबाज नेता करते रहते हैं। जिसके कारण आलाकमान अपने विवेक का इस्तेमाल न करके छत्रपों दुराग्रह अपनी बातों को सुनकर उत्तराखंड के सबसे योग्य भाजपाई नेता को मुख्यमंत्री के पद पर आसीन करने का अवसर गंवा चुके हैं। इससे उत्तराखंड को भारी नुकसान हुआ।

आप भारतीय जनता पार्टी के आला नेतृत्व को अपनी भूल सुधारने और उत्तराखंड के खेत में काम करने का अवसर है। चुनावी वर्ष में ऐसा मुख्यमंत्री चाहे जिसकी छवि साफ हो, लोकप्रिय हो, जिसे शासन प्रशासन का अनुभव हो,उत्तराखंड की जन आकांक्षाओं का ध्वजवाहक रहा हो।
इन सब को देखते हुए ऐसी अपेक्षा है कि भारतीय जनता पार्टी का आला नेतृत्व पूर्व में की गई भूलों की तरह इस बार अपनी भूल में सुधार करेंगे और सतपाल महाराज को उत्तराखंड का 13 वाँ मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लेंगे। जिस प्रकार से केंद्रीय नेतृत्व ने तीरथ सिंह रावत के इस्तीफा पर लेने से पहले सतपाल महाराज व संगठन मामलों की दक्ष धन सिंह रावत को दिल्ली तलब किया था। उससे साफ संकेत मिलते हैं कि केंद्रीय नेतृत्व ने इस दिशा में मैं ठोस निर्णय लिया होगा।
भाजपा में कांग्रेस के आला नेतृत्व को इस बात को समझना होगा कि कोई भी प्रदेश उनके प्यादे को सत्तासीन करने का स्थान नहीं है। किसी भी प्रदेश का मुख्यमंत्री वहां के करोड़ों लोगों के भविष्य का निर्माता भी होता है। किस प्रकार से उत्तराखंड की अब तक की मुख्यमंत्रियों ने उत्तराखंड की जन आकांक्षाओं का गला घोंटा।उत्तराखंड की जनता में भारी निराशा और प्रदेश में विकास अवरूद्ध हो रखा है।
अपने कृत्यों को छुपाने के लिए राजनीतिक दल भले ही आंकड़ों की बाजीगरी दिखाएं। परंतु सच में उत्तराखंड की जनता खुद को छला हुआ महसूस कर रही है। उन्हें आशा थी कि मोदी जी उनके भले दिन लाएंगे, उनकी जन आकांक्षाएं राजधानी गैरसैण, मुजफ्फरनगर कांड के अभियुक्तों को सजा देने जनसंख्या पर आधारित विधानसभा परिसीमन पर अंकुश लगाने भू कानून व मूल निवास को साकार करने का काम करेंगे।
भाजपा नेतृत्व के पास आज का महत्वपूर्ण समय जब हो उत्तराखंड की जन आकांक्षाओं को साकार करने वाला मुख्यमंत्री पद आसीन करें जो नौकरशाही पर अंकुश लगाते हुए गैरसैण राजधानी का निर्माण करें। राज्य में सुशासन की नींव र खे।

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