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भारतीय नववर्ष को छोड़कर, क्यों ढो रहे है भारतीय फिरंगी नववर्ष?

सृष्टि प्रारम्भ होने के पावन दिवस पर प्रारम्भ होता है भारतीय नववर्ष विक्रमी संवत

मैं हूं भारत
सत्य सनातन।
तुम्हें मुबारक हो
फिरंगी नया साल।
हमारा नाम भाषा मिटाकर
मिटा दिया संस्कृति इतिहास।
हमें पंचमी गुलाम बनाकर
विकृत कर दिया मन संसार।
भूल गए हम सब अपना
बने हुए हैं अब रंगे सियार।

नववर्ष 2021 मंगलमय हो/ हेप्पी न्यू ईयर/नववर्ष 2021 की हार्दिक शुभकामनाएं आदि संदेशों, दूरभाष संवाद व मिलने पर नव वर्ष की मंगल कामनाओं को प्रदान करने वाले तोते रटंत वाक्यों से आज 2021 की पहली जनवरी का शुभारंभ हुआ।
कल रात यानी 31 दिसम्बर की सांयकाल से ही पूरे विश्व में 2020 की विदाई व नववर्ष 2021 के स्वागत के लिए पूरा संसार सजा हुआ था।अरबों खरबों रूपये शराब इत्यादि नशे को नशेड़ी गटक गये। नव वर्ष के स्वागत के जश्न उत्सव में पूरी दुनिया सड़को/घरों/होटलों/पर्यटन स्थलों पर उमड़ी हुई है। इन हुडंगियों को अंकुश लगाने के लिए कोरोना महामारी से त्रस्त होने के बाबजूद फिरंगी नये साल को मनाने के लिए लोग अपनी जान को हाथ में रख कर इन तमाशों में सम्मलित हुए। यह भी सच है कि इनमें से अधिकांश लोगों को यह भी नहीं मालूम कि यह न तो प्रकृति के अनुसार नया साल है । यह तो केवल
ईसाई जगत का अपना संवत है। यह ईस्वी संवत 2021-2022 चल रहा है। 1 जनवरी को मनाया जाने वाला नववर्ष दरअसल ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है। इसकी शुरुआत रोमन कैलेंडर से हुई थी, जबकि पारंपरिक रोमन कैलेंडर का नववर्ष 1 मार्च से शुरू होता है। दुनियाभर में आज जो कैलेंडर प्रचलित है, उसे पोप ग्रेगोरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था। ग्रेगोरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान किया था। वर्तमान में इसे ईसाई संवत कहते हैं। इस संवत के कारण दुनिया के इतिहास को 2 भागों में बांट दिया गया- ईसा पूर्व और ईसा बाद। इस कैलेंडर का दिन रात की 12 बजे बदल जाता है।
वहीं हिन्दू कालगणना के अनुसार इस इस वक्त सृष्टि संवत् 1,95,58,85,120-21 चल रहा है अर्थात इस धरती पर जीवन की रचना के 1 अरब 95 करोड़ 58 लाख 85 हजार 120 वर्ष बीच चुके हैं। इससे भी पुराना कल्पाब्द संवत् 1,97,29,49,120 है। भारत में विक्रम संवत, कलि संवत और सप्तर्षि संवत एक ही दिन से प्रारंभ होते हैं।

विक्रमी संवत सृष्टि की रचना राजा विक्रमादित्य ने ईसवी संवत से 57 साल पहले बड़े खगोल शास्त्री वराहमिहिर के मार्गदर्शन में की थी। भारतीय पंचांग में हर नवीन संवत्सर को एक विशेष नाम से जाना जाता हैंचैत्र शुक्ल प्रतिपदा 28 मार्च को है। लेकिन कई लोग 29 मार्च को भी मनाएंगे। हिंदू नववर्ष विक्रम संवत 2078 की शुरुआत 28 मार्च 2021को प्रतिपदा लगने के साथ होगी।
वहीं भारतीय नववर्ष को प्रकृति के सबसे अनुरूप मानने वाले अनिरुद्ध जोशी के अनुसार दुनियाभर के समाज, धर्म और देशों में अलग-अलग समय में नववर्ष मनाया जाता है।
हर देश का अपना एक नया वर्ष होता है। भारत में तो कुछ ऐसे प्रांत जिनका एक नया वर्ष प्रचलित नए वर्ष से भिन्न है। नया वर्ष अर्थात नया कैलेंडर अर्थात विक्रम संवत, अंग्रेजी ईस्वी संवत, हिजरी संवत, शक संवत, वीर निर्वाण संवत्, पारसी संवत, बौद्ध संवत, सिख संवत, यहूदी संवत् आदि। इस तरह दुनिया में लगभग 100 से ज्यादा कैलेंडर प्रचलित हैं। मतलब 100 से ज्यादा नए वर्ष हैं। अब आप ही सोचीये कि क्या यह सभी विज्ञान सम्मत हैं? ऐसे में हम नया वर्ष कौनसा मानें?

भारत के कुल 36 कैलेंडर्स में से 24 अब चलन में नहीं। इस समय बांग्ला संवत 1427-28 चला रहा है जिसका नया वर्ष वैशाख (अप्रैल) माह से प्रारंभ होता है। फसली संवत भी वैशाख (अप्रैल) माह से प्रारंभ होता है। तमिल संवत पुथुंडु अप्रैल से प्रारंभ होता है, मलयालम संवत बिशु वैशाख (अप्रैल) से, तेलगु संवत उगादी मार्च अप्रैल के मध्य से प्रारंभ होता है। ज्यादातर देशों के कैलेंडर्स में फरवरी से अप्रैल के बीच नया साल शुरू होता है।
डा सौरभ मालवीय के अनुसार भारतीय पंचांग में हर नवीन संवत्सर को एक विशेष नाम से जाना जाता है। भारतीय संस्कृति में विक्रम संवत का बहुत महत्व है। चैत्र का महीना भारतीय कैलंडर के हिसाब से वर्ष का प्रथम महीना है।ं. वैदिक पुराण एवं शास्त्रों के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि को आदिशक्ति प्रकट हुईं थी। आदिशक्ति के आदेश पर ब्रह्मा ने सृष्टि की प्रारंभ की थी।इसीलिए इस दिन को अनादिकाल से नववर्ष के रूप में जाना जाता है.।मान्यता यह भी है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्य अवतार लिया था।इसी दिन सतयुग का प्रारंभ हुआ था। इसी तिथि को राजा विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त की थी।विजय को चिर स्थायी बनाने के लिए उन्होंने विक्रम संवत का शुभारंभ किया था, तभी से विक्रम संवत चली आ रही है. इसी दिन से महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और साल की गणना कर पंचांग की रचना की थी।
सृष्टि की सर्वाधिक उत्कृष्ट काल गणना का श्रीगणेश भारतीय ऋषियों ने अति प्राचीन काल से ही कर दिया था. तदनुसार हमारे सौरमंडल की आयु चार अरब 32 करोड़ वर्ष हैं. आधुनिक विज्ञान भी, कार्बन डेटिंग और हॉफ लाइफ पीरियड की सहायता से इसे चार अरब वर्ष पुराना मान रहा है.
यही नहीं हमारी इस पृथ्वी की आयु भी 2018 मार्च को, एक अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हजार एक सौ 23 वर्ष पूरी हो गई. इतना ही नहीं।
श्रीमद्भागवद पुराण, श्री मारकंडेय पुराण और ब्रह्म पुराण के अनुसार अभिशेत् बाराह कल्प चल रहा है और एक कल्प में एक हजार चतुरयुग होते है. इस खगोल शास्त्रीय गणना के अनुसार हमारी पृथ्वी 14 मनवंतरों में से सातवें वैवस्वत मनवंतर के 28वें चतुरयुगी के अंतिम चरण कलयुग भी. आज 51 सौ 18 वर्ष में प्रवेश कर लिया.
जिस दिन सृष्टि का प्रारंभ हुआ, वह आज ही का पवित्र दिन है. इसी कारण मदुराई के परम पावन शक्तिपीठ मीनाक्षी देवी के मंदिर में चैत्र पर्व की परंपरा बन गई.
मेरा आक्रोश केवल नया साल मनाने को लेकर नहीं है। नहीं यह हमारा व तुम्हारे नववर्ष को लेकर है। भारतीय संस्कृति के अनुसार मेरा स्पष्ट मानना है कि जीव को जो सही हो उसे आत्मसात करना चाहिए और जो गलत हो उसे त्यागना चाहिए। परन्तु भारतीयों ने केवल फिरंगियों को सही मानते हुए उनका अंध अनुशरण करने की आत्मघाती प्रवृति से देश की हो रही बर्बादी के कारण में दुखी रहता हॅू। भारतीय भूल गये कि अंग्रेज लूटेरे थे, अत्याचारी, हत्यारे व शोषक थे। भले ही अंग्रेजों ने तत्कालीन हुक्मरानों को परास्त कर भारत को दो शताब्दियों तक गुलाम बनाया। परन्तु अंग्रेजों की न तो नियत ठीक थी व नहीं नीति। इसलिए उनका अंधानुशरण मूर्खतापूर्ण व खुद के विनाश करने के अलावा कुछ दूसरा नहीं है। परन्तु भारतीय हुक्मरानों ने मुर्खतापूर्ण कृत्य करते हुए जिस प्रकार भारत की विश्व में सबसे वैज्ञानिक,उन्नत व समृद्ध भारतीय भाषाओं को आत्मसात करने के बजाय केवल अंग्रेजों की भाषा को आत्मसात किया। यही नहीं भारतीय हुक्मरानों ने अपने गौरवशाली प्राचीन नामों के बजाय फिरंगियों द्वारा हिराकत के लिए थोपे गये इंडिया नाम को ही आत्मसात किया। अपनी संस्कृतिव अपने गौरवशाली इतिहास के बजाय पंचमी कहारों द्वारा लिखे गये झूठे व विकृत इतिहास को थोप कर यहां के वर्तमान व भविष्य को भी पथभ्रष्ट कर दिया है। भारतीय शिक्षा पद्धति के बजाय मैकाले द्वारा थोपे गये इंग्लिश ऐजूकेशन एक्ट-1835 के तहत ही भारतीयों को पथभ्रष्ट किया जा रहा है। इससे पूरे भारत में भारतीय संस्कारों युक्त नौनिहाल होने के बजाय फिरंगी संस्कृति के लूट खसौट व शोषण के गुणों युक्त विष का संचार हो गया है। इसी बर्बादी को बचाने के लिए मैं चाहता हूॅं कि भारतीय,भारतीय संस्कृति को आत्मसात करें। भारतीय भाषायें शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन में संचालित हो। देश को अपनानाम भारत मिले। भारत में भारतीय मूल्यों का अमृतपान करे। भारतीयों को भारत व विश्व के कल्याण के लिए हर हाल में भारतीय मूल्यों को आत्मसात करना होगा और फिरगियों का अंधानुशरण करना छोड़ना होगा। तभी भारत सच्चे अर्थों में आजाद, लोकतांत्रिक देश हो सकेगा। गुलामी का कहार बनके न देश की रक्षा होगी व नहीं भारतीय संस्कृति जीवंत हो सकेगी। हमारी तो एक ही कामना है कि-
आओ एक दीपक ऐसा जलाएं जो रोशन कर दे सारा संसार
मिटाये हिंसा धृणा राग द्धेष को बरसाये प्रेम का अमृत बौछार
शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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