उत्तराखंड देश

उतराखण्ड में सत्ता परिवर्तन की आश लगाने वालों की आशाओं पर सर्वोच्च बज्रपात!

उतराखण्ड उच्च न्यायालय के आदेश से भौचंक्का सर्वोच्च न्यायालय ने लगायी मुख्यमंत्री के खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश पर रोक

उतराखण्ड उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत पर लगे भ्रष्टाचार के मामले की सीबीआई जांच करने का दिया था आदेश

 

नई दिल्ली(प्याउ)।सर्वोच्च न्यायालय ने 29 अक्टूबर को उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा भ्रष्टाचार के एक मामले में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश पर रोक लगा दी सर्वोच्च न्यायालय केंद्रीय जांच ब्यूरो इस मामले की गुहार लगाने वाले दो पत्रकारों को ने 4 सप्ताह के अंदर अपना पक्ष रखने का भी नोटिस जारी किया। इससे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत व उनके खेमे सहित भाजपा ने राहत की सांस ली। वहीं इस मामले की आड़ में उतराखण्ड में सत्ता परिवर्तन की आश लगाने वालों की आशाओं पर एक प्रकार का बज्रपात सा हुआ। गौरतलब है उतराखण्ड जैसे छोटे राज्य में सत्तासीन मुख्यमंत्री को अपदस्थ करने की जन्मजात प्रवृति रही। यहां सरकार को अपदस्थ करने की प्रवृति में विपक्षी दलों से कहीं अधिक हर सत्तारूढ़ दल में क्षत्रप ही अधिक लालायित दिखायी देते।
29 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड़डी व न्यायमूर्ति एम आर शाह की तीन सदस्यीय पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय उतराखण्ड उच्च न्यायालय के फेसले से भौचंक्का है। कैेसे उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री का पक्ष सुने बगैर व फरियादी पक्ष की याचिका में मुख्यमंत्री के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध न किये जाने के बाबजूद जिस मामले में राज्य पक्षकार नहीं था, उस मामले में उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री के खिलाफ सीबीआई जांच का आदेश दे दिया।
इस मामले में प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की तरफ से सर्वोच्च न्यायालय में अटाॅर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने उतराखण्ड उच्च न्यायालय के आदेश पर सवालिया निशान खडा करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री के पक्ष सुने बगैर उन पर प्राथमिकी कैसे दर्ज की जा सकती। उच्च न्यायालय का यह आदेश एक निर्वाचित सरकार को अस्थिर ही करेगा।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उच्च न्यायालय के मुख्यमंत्री की सीबीआई जांच के आदेश पर रोक लगाने के फैसले का उतराखण्ड प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वंशीधर भगत ने स्वागत करते हुए इसे बहुत महत्वपूर्ण बताया। श्री भगत ने कहा कि इसके जरिये उतराखण्ड के मुख्यमंत्री को बदनाम करने व प्रदेश सरकार को अस्थिर करने का षडयंत्र विफल हो गया।
उल्लेखनीय है कि इसी सप्ताह 27 अक्टूबर को जैसे ही न्यायमूर्ति रवींद्र मैठानी की अध्यक्षता वाली उत्तराखंड उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के खिलाफ भ्रष्टाचार के एक मामले में सीबीआई जांच के आदेश जारी किया । अपने आदेश में न्यायमूर्ति मैठाणी ने कहाकि मुख्यमंत्री रावत के खिलाफ आरोपों की प्रकृति पर विचार करते हुए सच सामने लाना उचित होगा। इसलिए मामले की जांच सीबीआई करे। उच्च न्यायालय ने पत्रकारों पर दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का आदेश देते हुए कहा कि सरकार की आलोचना कभी भी देशद्रोह नहीं हो सकता और जनसेवकों की आलोचना किये बिना लोकतंत्र मजबूत नहीं हो सकता।
उससे उत्तराखंड की राजनीति में भूचाल आ गया था। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने एक स्वर में मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग की । कांग्रेस ने 29 अक्टूबर को उच्च न्यायालय के आदेश के बाद मुख्यमंत्री को तत्काल इस्तीफा देने की व इस्तीफा न देने पर राज्यपाल तुरंत मुख्यमंत्री को बर्खास्त करने की मांग को लेकर राजभवन की तरफ मार्च निकाला। राजभवन की तरफ कूच करने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, कांग्रेस के उतराखण्ड प्रभारी देवेंद्र यादव,प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह सहित अनैक वरिष्ठ नेताओं पर महामारी अधिनियम के तहत मामले दर्ज किये गये। वहीं राजनिवास की तरफ कूच कर रहे कांग्रेसियों को पुलिस ने अवरोधक लगा कर रोक दिया। इस पर कांग्रेसियों ने धरना शुरू कर दिया। सडक घेरे हुए कांग्रेसियों को हटाने के लिए पुलिस ने हल्का लाठीजार्च भी किया। वहीं 2022 में उतराखण्ड विधानसभा चुनाव लड़ने की हुंकार भर रही आम आदमी पार्टी ने भी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के इस्तीफे की मांग करते हुए मुख्यमंत्री आवास कूच करने का ऐलान किया जिसको पुलिस ने विफल कर दिया।
बिहार चुनाव के समय इस प्रकार के प्रकरण उठने से भाजपा भी खुद को असहज महसूस कर रही थी।वहीं लोग इस प्रकरण से हैरान थे कि भ्रष्टाचार व सत्ता संघर्ष इस मुकाम पर पहुंच गया है की संवैधानिक पदों पर आसीन लोग भी इसकी चपेट में आ गए हैं।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के खिलाफ घूसखोरी के मामले में तब सीबीआई जांच की का आदेश दिया जब उच्च न्यायालय में एक पत्रकार ने फरियाद लगाई कि 2016 में जब वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत भारतीय जनता पार्टी के झारखंड प्रभारी थे तब उन्होंने एक व्यक्ति को गौ सेवा आयोग में अध्यक्ष बनाए जाने के लिए यह भ्रष्टाचार किया था और इस राशि को अपने रिश्तेदारों के खातों में हस्तांतरण कराया था। हालांकि यह प्रकरण लंबे समय से प्रदेश में सुनाई देता रहा ।परंतु यह प्रकरण तब सामने आया जब देहरादून निवासी हरेंद्र सिंह रावत ने पुलिस से शिकायत की कि उमेश शर्मा नामक पत्रकार ने फेसबुक में एक वीडियो डाल कर उन पर बेबुनियाद आरोप लगाए हैं और इस मामले में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। इस मामले में पुलिस ने उमेश शर्मा व अन्य पर अपराधिक मामले दर्ज किए।
पुलिस की इस कार्रवाई के खिलाफ पत्रकार उमेश शर्मा शिव प्रसाद सेमवाल द्वारा अलग-अलग याचिकाएं उच्च न्यायालय में दाखिल की । इनकी सुनवाई करते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय की एकल पीठ के न्यायमूर्ति रवींद्र मैठानी ने पत्रकारों पर दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने के आदेश दिए और सीबीआई को मुख्यमंत्री के खिलाफ लगे आरोपों की जांच करने के निर्देश दिए।

उल्लेखनीय है कि उतराखण्ड पुलिस ने यह मामला तब दर्ज किया जब देहरादून निवासी सेवानिवृत प्रोफेसर हरेंद्र सिंह रावत ने पुलिस को शिकायत की कि पत्रकार उमेश शर्मा पर आरोप लगाया कि झूठी कहानी गढ़ कर उसकी और मुख्यमंत्री की छवि को धूमिल कर रहा है । पुलिस में फरियाद लगाते हुए प्रोफेसर हरिंदर ने शिकायत दर्ज कराई कि पत्रकार उमेश पर एक झूठी कहानी गढी कि हरविंदर की पत्नी सविता रावत जो एसोसिएट प्रोफेसर हैं , वह सीएम रावत की पत्नी की बहन है। 2016 में नोटबंदी के दौरान अमृतेश सिंह चैहान नाम के एक व्यक्ति ने गौ सेवा पैनल के अध्यक्ष नियुक्त करने के लिए तत्कालीन झारखंड भाजपा के प्रभारी श्री रावत को रिश्वत के रूप में पैसे दिए थे । वह धन विभिन्न बैंक खातों में ट्रांसफर किए हैं जो उनके पत्नी के नाम है।
फरियादी हरेंद्र सिंह ने उमेश शर्मा के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए दो टूक शब्दों में कहा कि उनका मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत से कोई रिश्तेदारी नहीं है।
हरिंदर रावत के इसी शिकायत पर पत्रकार उमेश शर्मा के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। इस खबर को चलाने के लिए
पत्रकार शिव प्रसाद सेमवाल के समाचार पोर्टल पर्वतजन व एक अन्य पत्रकार राजेश शर्मा की मीडिया आउटलेट वह क्राइम स्टोरी का नाम भी प्रथम सूचना में दर्ज था।
इसी प्राथमिकी को रद्द करने की मांग को लेकर उमेश शर्मा व शिव प्रसाद सेमवाल ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय में फरियाद लगाई थी।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद यह तय था कि उत्तराखंड सरकार विशेष अवकाश याचिका के साथ सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाई।
उल्लेखनीय है कि इस मामले में उमेश शर्मा पहले भी अनेक विवादों में धीरे रहे उमेश शर्मा का दावा है कि वह संवैधानिक पदों में आसीन प्रभावशाली लोगों के भ्रष्टाचारियों को निरंतर उजागर करता है इसीलिए उन पर बदले की कार्रवाई करते हुए इस प्रकार का मामले दर्ज किए जाते हैं।
ऐसा नहीं कि उमेश शर्मा पहली बार विवादों में घिरे है। पूर्व मुख्यमंत्री निशंक के कार्यकाल में भी हुए विवादों में घिरे कर निशंक की आंखों की किरकिरी बने हुए थे। उत्तराखंड के अनैक नेताओं के बेहद करीबी रहे पत्रकार उमेश शर्मा
इससे पहले भी कई ऐसे ही मामलों में हुई चर्चा में रहे। उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार को अपदस्थ करने के लिए जिस प्रकार से विधायकों की खरीद-फरोख्त के स्टिंग वीडियो आदि से उनके विरोधी लोग उनको भी भय दोहन करने वाले पत्रकार मानते हैं।
भले ही उच्च पदों पर आसीन खुद को पाक साफ बताते रहे हो परंतु भ्रष्टाचार में डूबी व्यवस्था में है अब लोगों को किसी पर विश्वास नहीं रहा। भले ही न्यायालय में मामला भ्रष्टाचार का चल रहा पर आम जनता यह जान चुकी है कि यह लड़ाई सत्ता संघर्ष की ही है।
देश की जनता नेताओं ,नौकरशाहों व पत्रकारों से ही नहीं अपितु न्यायपालिका से भी बेहद निराश है।
जब तक भ्रष्टाचारियों पर खड़ा अंकुश नहीं लगाया जाता तब तक इस प्रकार की कहानियां आए दिन पात्र बदलकर समाचारों में आती रहेंगी और जनता धीरे-धीरे इसको नजरअंदाज ही करती रहेगी।
क्योंकि जनता का विश्वास पूरी तरह व्यवस्था से उठ गया है। उत्तराखंड में जिस प्रकार श्री सत्ता संघर्ष चल रहा है उसी राज्य गठन की जनाकांक्षायें निर्ममता से जमींदोज हो गई है।
इसकी चिंता ना नेताओं में दिखती है, न नौकरशाहों में दिखती है। ना पत्रकारों में दिखती है । नहीं न्यायपालिका ओं में ही दिखती है। मुजफ्फरनगर कांड जैसे वीभत्स कांड पर भी न्याय न मिलने से उत्तराखंड की आम जनता का विश्वास न्यायपालिका से भी उठ गया है।
आम जनता चाहती है कि राज्य गठन के बाद यहां के नेताओं, नौकरशाहों तथाकथित समाजसेवियों पत्रकारों आदि की संपत्ति की सीबीआई जांच की जानी चाहिए। भ्रष्टाचारियों की संपत्ति को तत्काल जब्त करनी चाहिए।  अब देखना यह है कि अब सर्वोच्च न्यायालय में अब ऊंट किस करवट बैठता है।

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